अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
पटना: बिहार चुनाव में सोशल मीडिया का क्रेज सिर चढ़कर बोल रहा है. आलम ये है कि वे नेता जिन्हें सोशल मीडिया की ‘ए बी सी डी’ भी पता नहीं, वे सीधे ‘जेड’ जानने की क़वायद कर रहे हैं. ये नेता फेसबुक के ज़रिए चुनाव की आंधी में लगातार ‘ई-धन’ फूंक रहे हैं.
ज़्यादातर नेताओं को इस बात का यक़ीन है कि ये सोशल मीडिया ही इस बार कुछ चमत्कार दिखाएगी. वोट न सही कम से कम टिकट तो सोशल मीडिया पर माहौल बनाकर लिया ही जा सकता है.
पिछले एक महीने में कई बिहार के अलग-अलग ज़िलों में कई नेताओं से मिलने का मौक़ा मिला. ये सारे नेता टिकट हासिल करने के जुगाड़ में लगे हुए हैं. दिलचस्प बात यह है कि इनमें से किसी को टिकट मिलेगी या नहीं, ये तक जानकारी नहीं है. लेकिन सोशल मीडिया पर नेता जी ने अपनी जीत सुनिश्चित कर ली है.
पश्चिम चम्पारण बेतिया विधानसभा क्षेत्र के एक नेता इस बाबत पूछने पर बताते हैं, ‘अरविन्द केजरीवाल को कौन जानता था. इस सोशल मीडिया ने ही उन्हें हिरो बनाया. इसके बगैर उनमें क्या दम था. लेकिन देखिए! सबको पटखनी दे दिया. मेरी भी जीत पक्की है. बस इस बार किसी भी पार्टी का टिकट मिल जाए.’
सच तो यह है कि खुद को नेता साबित करने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाए जा रहे हैं. नेता गांव में घूम-घूमकर अलग-अलग पोज वाली तस्वीरों को सोशल मीडिया पर जमकर शेयर कर रहे हैं. इतना ही नहीं, लोगों को फोन करके अपने पोस्ट पर लाईक करने और कमेंट्स करने को कह रहे हैं कि ताकि आलाकमान को बताया जा सके कि उनके साथ कितनी जनता है.
गोपालगंज के कुछ युवा बताते हैं कि फेसबुक पर विधायक सुभाष सिंह सबसे आगे हैं. उनके पांच हज़ार दोस्त पूरे हो चुके हैं. फेसबुक पर वे हमेशा-हमेशा बड़े-बड़े नेताओं के साथ दिखते हैं. युवाओं का कहना है कि कई नेता तो अपने नाम से कई अकाउंट चला रहे हैं.
कई नेता अपनी उपलब्धियों को जनता तक पहुंचाने के लिए फेसबुक को ही माध्यम बनाया है. अपनी उपलब्धियों को आधार देने के लिए अखबार की कतरने भी खूब पोस्ट की जाती हैं. कईयों ने तो अपने वीडियो भी बनवा कर डालें हैं. इन वीडियोज में इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि नेता जी ने इलाक़े के मुद्दे पर विधानसभा में खूब सवाल उठाए हैं. कई नेता टीवी फूटेज भी शेयर कर रहे हैं, तो कुछ बड़े नेताओं को अपने घर बुलाकर उन नेताओं की तस्वीरें भी पोस्ट कर रहे हैं.
कई नेताओं ने अपने टिकट की दावेदारी सोशल मीडिया के माध्यम से लगातार कर रहे हैं. नेताओं में इस समय सबसे प्रचलित फेसबुक ही है, लेकिन कुछ नेताओं को फेसबुक से ज़्यादा वाट्सअ ज़्यादा रास आ रहा है.
एक नेता जी कहना है कि उन्होंने इस चुनाव के लिए कई स्मार्टफोन अपने समर्थकों को दिए हैं ताकि सोशल मीडिया पर उनका माहौल बना सके. स्मार्टफोन पाकर समर्थक भी नेता जी की तरह-तरह की तस्वीरें नए स्लोगन के फेसबुक पर पोस्ट कर रहे हैं. कई नेताओं ने तो बजाब्ता लोगों को सैलरी देकर इस काम पर लगा रखा है. जब शाम में इलाक़े का भ्रमण करके नेता जी आते हैं तो अपने सोशल-मीडिया सचिव को बुलाकर इस बात की जानकारी लेते हैं कि आज उनके फोटो को कितने लोगों ने लाइक किया. कितने कमेंट्स आएं. वो कमेन्ट्स किस तरह के थे.
ऐसे में कम्प्यूटर की जानकारी रखने वाले नौजवानों की चांदी हो गई है. खासतौर पर वो नौजवान, जो पत्रकारिता का कोर्स करके बेरोज़गारी काट रहे थे. उन्हें अचानक नेता जी की प्रोफ़ाईल संवारने और उनकी सोशल मीडिया में इमेज चमकाने का बैठे-बिठाए रोज़गार मिल गया है.
हालांकि इस पूरी क़वायद में सबसे बड़ा ख़तरा इसी बात का है कि अगर किसी रोज़ इनमें से किसी भी नेता को इनके किसी फेसबुक फ्रेंड ने सामने से पकड़ लिया और फेसबुक की गतिविधियों पर दो-चार सवाल भी कर लिया तो नेता जी के चेहरे पर हवाइयां उड़ती दिखाई देंगी, मगर चुनाव जो न कराए.