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चुनावी हिंसा के मुहाने पर बिहार

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अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net

पटना:चर्चित कथा है कि एक बार एक कौवे के बच्चों को इंसानी गोश्त खाने का दिल कर रहा था. कौवे ने कहा, ‘ये कौन सी बड़ी बात है. खिलवा देते हैं.’ उसने एक मस्जिद में जाकर सुअर का गोश्त रख दिया और गाय की कुछ हड्डियां मंदिर के बाहर. शहर में फ़साद हुआ. लोग मरे. कौवे कई दिनों तक इंसानी गोश्त खाते रहे.

इंसानों का गोश्त खाने को यदि ‘राजनीतिक लाभ’ से जोड़कर समझा जाए तो कौवे इस फ़ायदे के लिए इंसानों का गोश्त खाने की कोशिश लगातार कर रहे हैं.

सितंबर 2013 के मुज़फ़्फ़रनगर दंगे और उसके बाद हुआ वोटों का ध्रुवीकरण कोई छिपी बात नहीं है. और अब वही फार्मूला बिहार चुनाव में भी अपनाया जा सकता है. हमने सारण प्रमंडल यानी सिर्फ छपरा, सीवान व गोपालगंज में जाकर कुछ तथ्य जुटाए और उन पर ग़ौर किया तो इस कयास से जुड़ी हुई एक-एक तस्वीर साफ़ नज़र आने लगी.

3 सितंबर को सीवान के जीबी नगर थाना क्षेत्र के पचपकड़िया व हयातपुर गांव के बीच सिर्फ एक बाइक से एक युवक को ठोकर लग जाने के बाद जमकर मार-पीट हुई. कुछ देर बाद इस मारपीट को साम्प्रदायिक रंग दे दिया गया, जिससे इलाक़े में तनाव फैल गया. इस घटना में एक खास पक्ष के तीन लोग गंभीर रूप से ज़ख्मी हो गए है, जिनका इलाज स्थानीय अस्पताल में चल रहा है. तनाव के माहौल को देखते हुए पुलिस गांव में कैंप कर रही है.


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सीवान में सन्नी बताते हैं कि कब किन बातों को लेकर माहौल खराब कर दिया जाए, कहा नहीं जा सकता. यहां छोटी-छोटी बातों को लेकर तनाव हो जाता है. सन्नी बताते हैं कि मैढ़वा विधानसभा क्षेत्र के इंग्लिश गांव में ईद के दिन दंगा करने की कोशिश की गई. बात बहुत मामूली थी. एक लड़का एक लड़की की तस्वीर ले रहा था, मना करने पर लड़ाई पहले गालीगलौच से शुरू होकर मारपीट तक आ गई. फिर इसे सांप्रदायिक रंग दे दिया गया. पुलिस अभी भी वहां कैम्प रही है.

सीवान के ही मनोज कुमार सिंह बताते हैं कि जैसे-जैसे बिहार चुनाव क़रीब आ रहा है. सीवान के लोगों में चिंता बढ़ती जा रही है क्योंकि साम्प्रदायिक तनाव फैलाने के ऐसे कई मामले सीवान में घट चुके हैं.

मनोज बताते हैं कि हाल में ही बड़हरिया थाना क्षेत्र के हरदिया गांव में निकले महावीरी अखाड़ा मेला के जुलूस पर गांव की मस्जिद के पास असामाजिक तत्वों ने पथराव किया था. उसके बाद अखाड़े में शामिल लोगों ने भी कर्बला बाजार में जमकर हंगामा किया था. तकरीबन 70 लोग इस घटना में घायल हुए थे.

सीवान में ही एक महिला का कहना था, ‘यहां ऐसा माहौल हो गया कि अब कोई मुस्लिम महिला नक़ाब लगाने से भी डर रही है.’ पूछने पर कि ऐसा क्यों, तो वे बताती हैं कि अभी 10-12 दिन पहले ही एक सर्राफ के दुकान में नकाबपोश औरतें खरीदारी के दौरान चोरी करते हुए पकड़ी गईं. इस घटना के बाद पूरे इलाक़े में मुस्लिम औरतों को बदनाम करने की कोशिश की गई लेकिन बाद में जब पुलिस ने छानबीन की तो पता चला कि वो औरतें मुस्लिम नहीं थी.

कुछ ऐसी ही कहानी छपरा के अब्दुल क़ादिर खान भी बताते हैं. उनके मुताबिक यहां शहर में अभी ऐसा कुछ नहीं हुआ है लेकिन गांव में छोटी-छोटी बातों पर होने वाली लड़ाई को साम्प्रदायिक रंग देने की पूरी कोशिश लगातार जारी है. हालांकि शहर के लोग डरे हुए हैं क्योंकि पिछले साल बकरीद के ईद मूर्ति-विसर्जन के दिन शहर का माहौल खराब किया गया था. और अब चिंता इस बात की सता रही है कि इस बार दुर्गा-पूजा और मुहर्रम, दोनों एक साथ हैं.

एक ख़बर के मुताबिक सारण ज़िला डोरीगंज के अवतारनगर थाना क्षेत्र में इस साल 26 जुलाई को दो गांवों के लोग एक सड़क निर्माण को लेकर आपस में भिड़ गए. दरअसल ये मामला मनरेगा के तहत बनने वाली सड़क को लेकर था. एक गांव से सड़क बनते हुए दूसरे गांव तक आना था लेकिन रास्ते में सड़क मिलने की जगह को मदन प्रसाद यादव, निरंजन कुमार, शिवप्रसन्न यादव सहित दर्जनों लोगों ने अपनी निजी ज़मीन बताते हुए निर्माण कार्य रोक दिया. लेकिन दूसरे समुदाय के लोग इसे नदी की ज़मीन बताते हुए रात में मिट्टी भरकर सड़क बनाने लगे. बस इसी बात को लेकर गांव का माहौल ख़राब करने की कोशिश की गई. खास समुदाय के कई दुकानों में लूटपाट की गई, जिससे पूरे इलाक़े में तनाव फैल गया. स्थानीय पुलिस की सूझबूझ से एक हादसा होने से टला.

गोपालगंज की कहानी तो छपरा व सीवान से भी आगे है. यहां मीरगंज के मोनू बताते हैं कि पिछले साल मुहर्रम के दौरान लूकार बांझते समय कुछ आग का टुकड़ा एक बच्चे पर गिर गया. बस इसी बात को लेकर पूरे शहर को आग में झोंक दिया गया. यहां तक यहां के एक पेट्रोल पम्प को भी आग लगाने की कोशिश की गई. वो बताते हैं कि आज भी जब वो मंज़र आंखों के सामने आते हैं तो सहम जाता हूं.

लेकिन बजरंग दल के संयोजक पंकज कुमार सिंह देश में होने वाले तमाम दंगों व तनाव के लिए मुसलमानों की ही दोषी मानते हैं. उनका कहना है कि हिन्दू कभी दंगा नहीं करता. हर बार कोशिश मुसलमानों की ही तरफ़ से होती है. गोपालगंज में सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में काम करने वाले राशिद हुसैन बताते हैं कि आज तक यहां शहर में कोई दंगा नहीं हुआ, लेकिन अब माहौल खराब करने की कोशिश पिछले एक-डेढ़ साल से लागातार की जा रही है.

राशिद हुसैन को भी इस बात की चिंता सता रही है कि इस बार तो दुर्गा-पूजा व मुहर्रम एक साथ हैं और चुनाव का मौसम भी है. वो बताते हैं कि हम लोग इस बार कोशिश कर रहे हैं कि मुहर्रम का अखाड़ा न निकले. इस बार एक पर्व की कुर्बानी तो दी ही जा सकती है.

सारण प्रमंडल में ऐसी कई घटनाओं का ज़िक्र आया कि मामूली व छोटी-सी बात पर शहर का माहौल खराब करने की भरपूर कोशिश हुई. लेकिन यहां के लोगों व प्रशासन की सूझबूझ से कोई बड़ा हादसा नहीं हो पाया है. लेकिन इन छोटी घटनाओं ने अपना काम ज़रूर अंजाम दे दिया है. आगे तैयारी इस बात की है कि कुछ ऐसी घटना को अंजाम दिया जाए जिसकी फसल इस चुनाव में सत्ता हासिल करके काटी जाए.

बहरहाल, समय अभी बिहार के मतदाता समूह के परीक्षण का है. वे इन निम्नकोटी समीकरणों में उलझ कर कुछ भी कर सकते हैं, या वे समझदारी से काम लेकर बिहार और बिहार की जनता के समग्र और एकीकृत उत्थान के लिए कदम आगे बढ़ा सकते हैं.

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