अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
पटना:बिहार के आगामी चुनाव में पैकेजिंग और रीपैकेजिंग के सच पर छवि चमकाने का खेल ज़ोरों पर है. केन्द्र व राज्य सरकारें, दोनों ही एक दूसरे का मुक़ाबला कर रही हैं. मुक़ाबला इस बात का कि कौन चुनाव के ऐन मौक़े पर कितना अधिक खर्च करके अपनी छवि चमका सकता है.
दिलचस्प बात यह है कि खुद विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता नंदकिशोर यादव बिहार सरकार की ओर से केन्द्र के पैकेज के ख़िलाफ़ हर दिन अख़बारों में दिए जा रहे विज्ञापनों को सरकारी धन की बर्बादी बता रहे हैं. उनका कहना है कि मुख्यमंत्री को अपने निजी एजेंडे और चुनावी राजनीति के लिए राज्य सरकार के संसाधनों का इस्तेमाल करने का अधिकार नहीं है.
लेकिन यहां इस बात का भी ज़िक्र होना चाहिए कि भारत सरकार द्वारा पूरे देश में रेडियो, टीवी, अख़बारों व पोस्टर-होर्डिंग के ज़रिए हो रहे विज्ञापन हो रहे हैं. इनमें भी सरकारी धन की बर्बादी शामिल हैं.
विज्ञापनों में जीत वाक़ई नरेन्द्र मोदी की हो रही है. लेकिन ‘स्वाभिमान रैली’ के बाद विज्ञापन की तस्वीरों में प्रधानमंत्री मोदी हारते हुए नज़र आ रहे हैं. (हम यहां नरेन्द्र मोदी की बात इसलिए कर रहे हैं कि पूरे बिहार के विज्ञापनों पर सिर्फ़ इन्हीं की तस्वीरें हैं.)
पहले भाजपा के सारे विज्ञापनों में मोदी ऊंगली दिखाते हुए नज़र आ रहे थे. फिर जब नितीश कुमार ने अपने होर्डिंग्स के ज़रिए जवाब दिया तो सारे होर्डिंग्स से पीएम मोदी गायब हो गए और नितीश के स्लोगन ‘बिहार में बहार है...’ का जवाब कुछ इस प्रकार दिया जाने लगा - ‘हत्या और लूट, फिर हो रही दिन रात है. हां भैया बिहार में बहार है...’
लेकिन जब ‘स्वाभिमान रैली’ में मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने कुछ आंकड़े पेश कर दिए तो भाजपा के लोगों को लगा कि इससे काम नहीं बनने वाला. फिर से विज्ञापनों में मोदी को वापिस लाया गया. लेकिन इस बार विज्ञापन में मोदी की मुद्रा बदल गई. इस बार के पोस्टर व होर्डिंग्स में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दोनों हाथ जोड़े हुए हैं. जबकि नितीश कुमार व लालू यादव की तस्वीर अभी भी उसी मुद्रा में है, जैसी शुरूआत में थी.
इन सबके बीच प्रत्यूष कुमार ने अधिवक्ता सैफुर रहमान के ज़रिए पीएम के विशेष पैकेज को लेकर पटना हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की है. प्रत्यूष ने इस याचिका के माध्यम से अदालत से आग्रह किया है कि अदालत मोदी को इस विशेष पैकेज से जुड़े हुए सभी दस्तावेज़ जनता/वोटरों को जानने के अधिकार के तहत प्रचारित करने का आदेश दे.
याचिकाकर्ता का कहना है कि 18 अगस्त को प्रधानमंत्री द्वारा सवा लाख करोड़ के पैकेज के घोषणा के बाद केन्द्र सरकार के सूचना व प्रसारण मंत्रालय ने इस पैकेज का व्यापक प्रचार-प्रसार किया है.
स्पष्ट रहे कि केन्द्र सरकार के सूचना व प्रसारण मंत्रालय द्वारा इस पैकेज के विज्ञापन पर भी पटना के कई वकीलों को ऐतराज है. उनका कहना है कि भारत सरकार कैसे एक पार्टी के लाभ को ध्यान में रखते हुए कोई विज्ञापन कर सकती है. इसके लिए भी कुछ अधिवक्ता जनहित याचिका दायर करने की तैयारी में हैं.
खैर, बिहार में चुनाव आचार-संहिता कभी भी लागू हो सकती है. उसके दिन नज़दीक आ चुके हैं. यही वजह है कि चुनावी आचार-संहिता लागू होने से पहले पार्टियां चुनाव के मैदान में खुलकर विज्ञापनों का खेल रही हैं और जनता की गाढ़ी कमाई के पैसों को पानी की तरह बहा रही हैं. चुनाव के बाद किसका कितना भला होगा, किसी को नहीं मालूम... लेकिन चुनाव के पहले सरकारी ख़जाने से इन पार्टियों को अपने सितारे बुलंदी पर जाते ज़रूर नज़र आ रहे हैं.