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भाजपा-संघ का बिहार गेम-प्लान

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अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net

पटना: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने बिहार में मोदी की नाव पार लगाने की ठान ली है. संघ के स्वयंसेवक बिहार के हर ज़िले के हर ब्लॉक तक पहुंच चुके हैं. मक़सद सिर्फ एक है, बिहार में भाजपा की सरकार बनवाने के खातिर अधिक से अधिक संख्या में दलितों, पिछड़ा वर्ग व युवाओं को हिन्दुत्व के नाम पर पार्टी के साथ जोड़ना व भाजपा के समर्थकों को पोलिंग बूथ तक ले जाना और अनंतः बिहार की सत्ता पर क़ाबिज़ होना. इसके लिए संघ के लोकल काडर को सीधे तौर पर नागपुर से इस बाबत आदेश दिए जा चुके हैं.


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संघ का सबसे अधिक जोर अति-पिछड़ा वर्ग व दलितों को अपने साथ जोड़ने पर है क्योंकि उन्हें लगता है कि बिहार के इस वर्ग ने साथ दे दिया तो सत्ता पर काबिज़ होने से कोई नहीं रोक सकता. इसके लिए संघ अपनी रणनीति नए सिरे से बना चुकी है. एक प्रतिनिधि सभा में प्रस्ताव पारित कर गांव स्तर तक छुआछूत से लड़ने का संकल्प लिया जा चुका है. इसके लिए आरएसएस ने ‘एक गांव, एक पनघट, एक मरघट’ का नारा भी दे चुकी है.

खासतौर पर युवाओं को जोड़ने के लिए बिहार के हर प्रांत में बजरंग दल ने अभियान छेड़ रखा है. जगह-जगह कैम्प लगाकर सदस्यों की संख्या में इज़ाफ़ा किया जा रहा है. मोबाइल के माध्यम से भी सदस्य बनाया जा रहा है. धार्मिक जलसों-जुलूसों में बजरंग दल की सक्रियता हर जगह देखी जा सकती है.

नाम न प्रकाशित करने के शर्त पर बिहार में संघ के साथ जुड़े एक पदाधिकारी का कहना है, ‘स्वयंसेवकों ने इस बिहार चुनाव की तैयारी एक-डेढ़ साल पहले ही कर दी थी. हमारा पहला मक़सद था कि वोटर लिस्ट में अधिक से अधिक लोगों का नाम शामिल करवाना, जागरूक बनाना और दूसरा मक़सद चुनाव के दिन अधिक से अधिक लोगों को मतदान केन्द्र तक पहुंचाना.’

वह दावा करते हैं कि बिहार के युवाओं में संघ के प्रति दिलचस्पी काफी तेज़ी से बढ़ रही है. खासतौर पर बिहार चुनाव के मद्देनज़र भाजपा के प्रचार अभियान को और गति देने के लिए देश के विभिन्न प्रांतों से बड़ी संख्या में स्वयंसेवकों को बिहार बुलाया गया है.

इस कड़ी की पहली खेप में झारखंड, राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, पश्चिम बंगाल व महाराष्ट्र आदि से करीब 50 हज़ार से अधिक वरिष्ठ और युवा स्वयंसेवक बिहार पहुंच चुके हैं. खासतौर पर ये स्वयंसेवक गांव के विभिन्न चाय व पान की दुकानों पर राजनीतिक चर्चा करके लोगों को जागरूक कर रहे हैं.

दूसरी तरफ़ बूथ प्रबंधन कमज़ोर न पड़े, इसके लिए भी लाखों की संख्या में स्वयंसेवकों की फौज तैयार की जा रही है. संघ का प्लान मतदाता सूची के हर दो पेज़ के लिए एक पेज प्रभारी भी बूथवार तैनात करने की है.

इतना ही नहीं, स्वयंसेवकों के अलावा दिल्ली, गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल व झारखंड आदि राज्यों के भाजपा कार्यकर्ता, नेता व विधायक भी भारी संख्या में बिहार पहुंचना शुरू कर चुके हैं. ज़्यादातर तो पहुंच कर प्रचार अभियान में जी-जान से जुट भी गए हैं.

इसकी पुष्टि खुद केन्द्रीय मंत्री राधामोहन सिंह मोतिहारी में एक प्रेस कांफ्रेंस के दौरान कर चुके हैं. उन्होंने एक सवाल के जवाब में बताया था ‘हमारे लोग ब्लॉक लेवल तक पहुंच चुके हैं.’

एक रिपोर्ट के मुताबिक भाजपा नेता पवन शर्मा, शिवनारायण, राजेंद्र सिंह और सीआर पाटिल बिहार के अलग-अलग जोन में सक्रिय हैं. ये चारों नेता प्रदेश के चुनाव प्रभारी अनंत कुमार, प्रदेश प्रभारी भूपेंद्र यादव और धर्मेंद्र प्रधान के साथ तालमेल बिठाकर काम कर रहे हैं. इससे इतर ये तीनों सीधे अमित शाह को रिपोर्ट कर रहे हैं.

पार्टी सूत्रों के मुताबिक राज्य को तिरहुत, मिथिलांचल, भोजपुर और अंग प्रदेश के चार हिस्सों में बांटा गया है. चार में से एक हिस्से की जिम्मेदारी गुजरात के सांसद को दी गई है. पार्टी के नेता बता रहे हैं कि जिन लोगों को जीत की जिम्मेदारी दी गई है उनका पुराना रिकॉर्ड काफी शानदार रहा है और सभी अमित शाह के काफी करीबी हैं.

एक दूसरी रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली में मोदी के फ़रमान के बाद नितिन गडकरी समेत बड़े नेताओं को दिल्ली चुनाव से दूर रखा गया था लेकिन संघ की फटकार मिलने के बाद बिहार की रणनीति में अमित शाह गडकरी, सुषमा स्वराज, राजनाथ को भी शामिल किया है.

दरअसल, बिहार में 35 साल की मेहनत के बावजूद सत्ता में साझीदार रह लेने के बाद भी संघ और भाजपा बिहार की सत्ता पाने में कामयाब नहीं हो सकी है. केन्द्र में बहुमत में आने के बाद इस बार यह मौक़ा किसी भी हाल में आरएसएस गंवाना नहीं चाहती है क्योंकि बिहार का यह चुनाव लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा के कद की पैमाइश करेगा.


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