अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
पटना: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बिहार में विकास की गंगा बहाना चाहते हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने बिहार में अपने चुनावी तक़रीरों में यह बात खुलकर कही है कि विकास ही हर दुखों की दवा है. देश के विकास के लिए राज्यों का विकास होना अत्यंत ज़रूरी है. मेरा सपना है कि आने वाला चुनाव 'जंगलराज से मुक्ति का पर्व'हो.
लेकिन शायद पीएम मोदी का बिहार के विकास का सपना खुद उनके अपने ही सांसद चूर-चूर करते नज़र आ रहे हैं. आंकड़े इस बात के गवाह हैं कि पिछले डेढ़ सालों में बिहार भाजपा और उसके गठबंधन की सहयोगी पार्टियों के लगभग 65 फ़ीसदी सांसदों ने अपने सांसद लैड्स फंड का खाता ही नहीं खोला है. ये तमाम सांसद लोकसभा की जीत के बाद से इस क़दर बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारियों में मसरूफ़ हैं कि उन्हें अपने क्षेत्र के विकास की ओर झांकने का मौक़ा ही नहीं मिला.
सांसद लैड्स फंड की सरकारी वेबसाइट पर मौजूद जानकारी बताती है कि पिछले डेढ़ सालों में एमपी लैड्स फंड के तहत भारत सरकार ने बिहार को सिर्फ 147.5 करोड़ रूपये ही दिए हैं. उसमें भी सिर्फ 62.4 करोड़ रूपये ही स्वीकृत हुए, जिसमें बिहार के 40 सांसद मिलकर सिर्फ 31.8 करोड़ ही विकास कार्यो पर खर्च कर पाए.
आंकड़े बताते हैं कि भारतीय जनता पार्टी के 22 सांसदों में से 11 सांसद ऐसे हैं, जिन्होंने अपने फंड का खाता ही नहीं खोला. उनका खर्च जीरो बटा सन्नाटा ही रहा. वहीं गठबंधन के 9 सांसदों में से 3 सांसद विकास कार्यों के मामले में ज़ीरो नज़र आ रहे हैं.
आंकड़ों के मुताबिक भारत सरकार ने भाजपा के 22 सांसदों को विकास कार्य कराने के नाम पर 82.5 करोड़ रूपये जारी किए लेकिन इस रक़म में से इनके सांसद अपने क्षेत्र में सिर्फ 19.8 करोड़ ही खर्च कर पाए. तकरीबन यही हाल भाजपा के सहयोगी दलों का भी रहा. 9 सांसदों को विकास कार्य के लिए भारत सरकार की ओर से 32.5 करोड़ रूपये जारी किए गए लेकिन ये 9 सांसद सिर्फ 7.73 करोड़ ही अपने क्षेत्र के विकास कार्यों पर खर्च कर पाएं.
हालांकि बिहार के जानकारों का यह भी आरोप है कि बिहार में विकास कार्यों के नाम पर खर्च में खूब घपले-घोटाले हुए हैं और जो थोड़े-बहुत काम हुए हैं वो भी पिछली सरकार में ही स्वीकृत थे.
भाजपा के सांसदों का खर्च विवरण
भाजपा के बिहार गठबंधन के सांसदों का खर्च विवरण
हालांकि इस मामले में विपक्ष के सांसद भी भाजपा के सांसदों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलते हुए नज़र आ रहे हैं. इन्हें भी अपने क्षेत्रों में विकास कार्यों से कुछ खास मतलब नहीं दिख रहा है. आंकड़ों के मुताबिक महागठबंधन के 9 सांसदों में से 4 सांसदों ने अपने फंड का खाता ही नहीं खोला. यानी इनका खर्च भी शून्य ही रहा. जबकि इन 9 सांसदों को भारत सरकार ने विकास कार्य कराने के नाम पर 32.5 करोड़ रूपये जारी किए लेकिन इस रक़म में से सिर्फ 11.34 करोड़ रूपयों को ही स्वीकृति मिल सकी. इस 11.34 करोड़ रुपयों में से भी इनके सिर्फ 5 सांसद मिलकर अपने क्षेत्र में सिर्फ 4.3 करोड़ ही खर्च कर सके.
महागठबंधन के घटक सांसदों का खर्च विवरण (सभी आंकड़े mplads.nic.in से)
ख़ैर, बिहार में भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टियों के सबसे अधिक सांसद होने के बाद भी ये आंकड़े बताते हैं कि विकास के वादे किस क़दर खोखले साबित हो रहे हैं. डेढ़ साल का नतीजा सिफ़र है और डर इस बात का है कि बाकी के साढ़े तीन साल भी कहीं सिर्फ ‘ज़ुबानी जुगलबंदी’ और ‘जुमलेबाज़ी’ में ही बर्बाद न हो जाए.