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हिन्दू बनाम मुसलमान

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सैयद ज़ैग़म मुर्तज़ा

हिंदुस्तान में कुल आबादी का तेरह से चौदह फीसदी लोग वो हैं जिन्हें मुसलमान कहा जाता है, यानी क़रीब बीस करोड़ लोग। इनमें क़रीब 5 करोड़ शिया, इस्माईली, दाऊदी बोहरा, ख़ोजा वग़ैरह जिन्हें आमतौर पर मुसलमान ही मुसलमान मानने को तैयार नहीं। बचे पंद्रह करोड़ में जुलाहे, बढ़ई, लुहार, तेली, मनिहार, कोंजड़े, भंडेले, मीरासी, बंजारे, भटियारे जैसी पेशेवर क़ौम जिन्हें बराबर में बिठाने या रिश्तेदारी करने के नाम पर तथाकथित मुसलमानों के मुंह टेढ़े हो जाते हैं। इनकी तादाद क़रीब दस से बारह करोड़ है।

Narendra Modi’s speech at Sawai Madhopur, local Muslims react

अब बांग्लादेशी और उत्तर पूर्व के राज्यों के मुसलमान भी हैं जिनके बारे में मुसलमानों का सामान्य ज्ञान दूसरी कक्षा के बच्चों जितना ही है। तमिल, कन्नड़ और मलियाली भी हैं जो मुसलमानों की भीड़ में आकर खो जाते हैं। ग़र्ज़ ये कि इन सबको निकाल दिया जाए तो मुसलमान या मुसलमान के नाम पर लड़ने वाले स्वंभू गिनती के ही बचेंगे।
फिर मुसलमान कौन? मेरे हिसाब से तो बस मौलाना (चाहे किसी भी फिरक़े को हों) पर्सनल लॉ बोर्ड की दुकान और चंद बजूके जो सियासी जमातों में मुसलमानों के नाम की दलाली खाते हैं। इनके अलावा मुसलसल ईमान और दीन की नुमाईंदगी करने वाला कोई है ही नहीं। जब वक़्त पड़ता है तो मुसलमान ग़ायब हो जाते हैं और काफिर, ग़रीब, मज़दूर, नीच और भुखमरी के पायदान पर खड़े लोग ही रह जाते हैं। ये वो लोग हैं जिनका न सियासत से लेना देना, न सही से समाज से।

अब ज़रा हिंदुओं की भी ख़बर लीजीए। 100 करोड़ की आबादी में दलित, आदिवासी और अति पिछड़े इतने ही हिंदू हैं जितना उनकी हैसियत है। चंदा देने की हालत में आ जाएं, पंडित जी को दान दक्षिणा देने लायक़ हैं तो वक़्ती तौर पर हिंदू मान लिए जाएंगे वर्ना मंदिर की चौखट भी नहीं छू सकते। ये कुल आबादी का सत्तर फीसदी हैं। हालांकि कुछ हिंदू तंज़ीमें इन्हें भरकस हिंदू होने का अहसास दिलाती रहती हैं मगर ये महज़ जनसंख्या के आंकड़ों में ही बतौर हिंदू ज़िंदा रहते हैं।बचते हैं बीस से तीस करोड़ लोग। इसमें सिख ईसाई, पारसी, जैन, बौद्ध भी निकाल दें तो दस से पंद्रह करोड़।
अब ये दस से पंद्रह करोड़ भी क्या सच में हिंदू हैं? हो भी सकते हैं, मगर इतने लोग न तो कभी धर्म के नाम पर फसाद फैलाते कभी देखे गए और न ही कभी नारे लगाते हुए। इनमें औरतें, बच्चे भी होंगे। और हिंदुत्व का जो पैमाना वीएचपी, बीजेपी और संघ का है उसपर तो बमुश्किल लाख दो लाख ही आ पाएंगे।

जब 90 फीसदी से ज़्यादा आबादी न सही से हिंदू है और न ठीक से मुसलमान तो फिर ये कौन लोग हैं जो बहुमत को धर्म के नाम पर उल्लू बना रहे हैं? बताने की ज़रूरत नहीं है, समझते सब हैं। बस जानबूझ कर अंजान बने रहते हैं। हम धरती पर सर्वश्रेष्ठ जीव के तौर पर पैदा होते हैं, और जब मरते हैं तो दुनिया जहान की मूर्खताएं हमारे खाते में होती हैं।


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