मनोज मिश्र
कल हमारे घर में मेरे बचपन की साथी छल्लू ने अपने जीवन के आखिरी बच्चे को जन्म दिया, छल्लू अब तक बहुत ही लाजवाब माँ रही है. उसकी खूबसूरती, चाल और ढाल देखते ही बनती थी. गली में जब भी चलती थी तो गली का हर एक बच्चा मानो उसकी गोद में जगह पाने को दौड़ पड़ता था. चाहे बरसात हो या गर्मी, चाहे खाली पेट ही क्यों ना हो लेकिन छल्लू हरेक को अपने वात्सल्य से भिगो देती थी.
मेरे बहुत सारे किस्से इस मां (छल्लू) के साथ जुड़े है. बाढ़ में फंस जाने और जंगलों की कोस-कोस दूरी पार करवाने में यह हवाई जहाज का भी काम किया करती थी. बहुत सालों तक पता ही नहीं था कि कैसे वो हमसे अलग है? जैसे-जैसे बढ़ता गया छल्लू से दूरी बढ़ती गई. पर छल्लू ने कभी दूरी नहीं बनाई. स्कूलों की परीक्षा के दिनों में सुबह चार बजे जगाना और रात को सोने से पहले अपने कोमल और लम्बी पूंछ से सिर सहलाना. छल्लू को अच्छा नहीं लगता कि मै उसे छल्लू बुलाता हूं. अपनी आँखों से आंसू निकालकर वह अभिव्यक्त करती है कि भला कोई अपनी मां को नाम लेकर बुलाता है क्या? लेकिन अब छल्लू को पता है कि मैं बहुत मॉडर्न हो गया हूं. अब पानी गिरता है तो मै रंगीन छतरी का सहारा ले लेता हूं. नदी पार करनी होती है तो मै लाल गाड़ी (Red Line) ले लेता हूं. पर छल्लू है भी बहुत समझदार, अब उसे भी अच्छा लगता है जब मै उसे छल्लू बुलाता हूं. कहती है उसको लगता है कि वो अभी भी जवान है. बस एक बात की अब शिकायत करती है - तब वो एक नखरे किया करती थी सिर्फ मेरे साथ - कि मुझे गांव के उस कोने वाले तालाब में ही नहाना है. नहाते वक़्त वह घंटों अपने बालों को मुझसे धुलवाती थी. लेकिन हां, घर आते समय वह मदमस्त हवाओं की सवारी का मजा भी देती थी.
(अब उसे उस तालाब में कोई नहीं ले जाता)
हमारी जितनी भी सेल्फ़ी तस्वीरें है - चूहों के साथ, बिल्लियों के साथ, सांपो के साथ – उसने सभी को अपने मन के उस एलबम में कैद करके रखा है और अपने जंगल के सोशल मीडिया में अपलोड करती रहती है.
मेरी अम्मा बता रही थी की तुम्हारी अम्मा (यानी छल्लू) अब कमजोर-सी हो गई है. शायद उसकी ज़िन्दगी के कुछेक महीने ही बाकी हों और यह उसका सातवां और आखिरी बच्चा हो. अब चलने में भी लड़खड़ाती-सी है. मैंने छल्लू के बच्चो की तस्वीरों को देखा और छल्लू को याद करते हुए. इस तपती धूप में भी आँखों से आंसू छलक पड़े. छल्लू के बच्चे छल्लू जैसे ही सुन्दर है. शायद इन बच्चो को कभी पता ही ना चले कि छल्लू कैसी थी - लेकिन उस गली के हर एक बच्चे को पता है कि छल्लू कौन है और कैसी है?
इन बच्चो के लिए बधाई हो छल्लू और तुमसे बेहतर कोई हो ही नहीं सकता. मै तुम्हें अपने मन के तार से एक सेल्फ़ी भेज रहा हूं, तृम्हारे लिए मेरा ये प्यार हमेशा रहेगा. इस लाल गाड़ी और छतरी में तुम्हारे आंचल जैसा प्यार कहीं नहीं.
तुम्हारा मुन्ना
(मूलतः छत्तीसगढ़ से राब्ता रखने वाले मनोज मिश्र फ़िलवक्त बोस्टन में रहते हैं. ज़मीन और मूल्यों से जुड़े मनोज से mmishra.jss@gmail.comपर संपर्क किया जा सकता है.)