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बिखरते कश्मीर से निकलती दीबा फरहत की कामयाबी की दास्तां

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शरीक़ अंसर,

संघ लोकसेवा आयोग (यूपीएससी) द्वारा आयोजित सिविल सेवा परीक्षा में इस बार भी लड़कियों ने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है. इस बार की पहली चार टॉपरों में क्रमशः इरा सिंघल, रेनू राज,निधि गुप्ता और वंदना राव शामिल रहीं. कुल 4.5 लाख परीक्षार्थियों में 1236 ने सबसे प्रतिष्ठित परीक्षा में अपनी कामयाबी दर्ज़ की. कुल कामयाब होने वाले छात्रों में महिलाओं का प्रतिशत भले ही कम हो लेकिन वे हर तरह की मुश्किलों का सामना करते हुए सफलताएं अपने नाम कर रही हैं. कुल 37 सफल मुस्लिम परीक्षार्थियों में 6 लड़कियां हैं, जिन्होंने तमाम बंधनों और मुश्किलों के बावजूद सिर्फ कामयाबी ही अपने नाम नहीं लिखी बल्कि वे समाज के सामने एक मिसाल बन कर उभरी हैं.

deeba-fahat

अपनी मां के साथ दीबा फ़रहत

इन्हीं सफल छात्राओं में एक नाम दीबा फरहत का भी है. दीबा की कहानी अल्पसंख्यक समुदाय में देश की एक प्रतिष्ठित सेवा में अपना स्थान निश्चित करने का जज्बा भर्ती है. दक्षिणी कश्मीर के बिजबेहरा टाउन की दीबा फरहत की कहानी उन सबसे जुदा है. तीन भाई-बहनों में सबसे बड़ी दीबा ने यूपीएससी में 553 रैंक लाकर एक मिसाल कायम की है. बचपन से ही पढ़ने में तेज़ दीबा ने इंजीनियरिंग में स्नातक की डिग्री हासिल की है. एमटेक में चयनित होने के बावजूद भी दिल से अपने लक्ष्य के प्रति लगन और ठोस इरादे ने उन्हें कामयाबी दिलाई.

सड़क हादसे में दीबा ने अपने पिता को खो दिया. पिता के जाने के बाद मां ने हमेशा हौसला बढ़ाया. मां की ख्वाहिश और एक अदद अभिभावक की कमी को सामने पाते हुए दीबा ने पूरे धैर्य और लगन के साथ अपनी तैयारी को जारी रखा. दीबा को पहली सफलता साल 2012 में मिली. 2012 में कश्मीर प्रशासनिक सेवा में चयनित होने के बाद अनंतनाग में बतौर लेखाधिकारी के तौर पर दीबा ने कार्य करना शुरू किया. आईएएस बनने का सपना बचपन से ही था, इसलिए तमाम मुश्किलों और नौकरी की व्यस्तताओं के बावजूद वह तैयारी में जुट गई.

कश्मीर में बीते साल आये बाढ़ ने दीबा और उनके परिवार के कई इम्तिहान लिए. बाढ़ के चलते घर में परिस्थितियां उलटी पड़ गयीं. पढ़ाई के लिए रखी किताबें भी बाढ़ में बह गई या भींगकर खराब हो गयीं. दीबा दूसरे के घर पर रहकर तैयारी करती रहीं, आखिर में सिर्फ एक माह के कम समय में उन्होंने अपनी तैयारी को मुक़म्मिल किया.

इंजीनियरिंग की छात्रा होने के बावजूद दीबा ने आईएएस की परीक्षा उर्दू विषय से दी है. शायद देश में बहुत कम लोग उर्दू विषय के साथ आईएएस जैसी कठिन परीक्षा की तैयारी करते हैं. मगर दीबा को उर्दू साहित्य और उसकी रचनाओं से शुरू से ही लगाव था. दीबा ने अल्लमा इक़बाल, ग़ालिब आदि शायरों के अलावा उर्दू की तारीख और उसकी दर्शन पर काफी गहरा अध्ययन किया है.

बहरहाल शाह फैसल की कामयाबी के बाद कश्मीर में आईएएस में छात्रों के जाने का रुझान काफी ज़्यादा हुआ है. ये रुझान सिर्फ कश्मीर तक नहीं है बल्कि देश के बाक़ी शहरों में भी प्रशासनिक पदों पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की खामोश कोशिशें हो रही हैं. कुल 6 मुस्लिम लड़कियों की कामयाबी एक नई सुबह का आग़ाज़ है. बिहार की गुंचा सनोबर ने भी राज्य की पहली आईपीएस होने का सौभाग्य प्राप्त किया है. इन सबके बावजूद अभी भी देश की महिलाओं को एक ठोस आधार और समग्रता की ज़रुरत है ताकि वे पूरी शिद्दत से अपनी ख़्वाबों का आसमान छू सकें. हालांकि अभी भी इस पर और भी ठोस काम करने की ज़रूरत है।


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