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जबलपुर: कल तारीख 31 मई 2015 को चुटका परमाणु बिजली परियोजना के खिलाफ चुटका में हुई स्थानीय लोगों की विरोध सभा में शामिल होने के बाद वैज्ञानिक सौम्य दत्ता और परमाणु-विरोधी आन्दोलनों के राष्ट्रीय मंच सीएनडीपी से जुड़े शोधकर्ता कुमार सुन्दरम् ने जबलपुर में प्रेस वार्ता की और जनता व् मीडिया को चुटका परियोजना के खतरों से आगाह किया.
डॉ. सौम्य दत्ता ने कहा, ‘देश की ऊर्जा ज़रूरतों के लिए परमाणु परियोजना की अपरिहार्यता का तर्क असल में एक मिथक है. बेहतर बिजली प्रबंधन, अक्षय ऊर्जा स्रोतों के उपयोग और बिजली उपभोग के समुचित नियंत्रण से वर्तमान स्थिति में ही भारत में पर्याप्त बिजली बनाई जा सकती है.’
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उन्होंने आगे कहा, ‘केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के अनुसार सर्वाधिक बिजली की मांग के समय एक लाख छप्पन हज़ार मेगावाट की ज़रुरत पड़ती है, जबकि इस समय भारत में दो लाख तिरसठ हज़ार मेगावाट क्षमता के विद्युत् उत्पादन संयंत्र मौजूद है, जिनका अस्सी फीसद भी यदि ठीक से उपयोग हो तो देश में आवश्यकता से अधिक बिजली उत्पादन संभव है. इस परियोजना के लिए जिन आदिवासियों को विस्थापित किया जा रहा है, उन्हें इस व्यवस्था में बिजली नसीब नहीं होगी. पिछले पच्चीस सालों में बिजली उत्पादन की कुल क्षमता 63 हज़ार मेगावाट से बढ़ाकर दो लाख तिरसठ हज़ार हो गई है लेकिन बिजली-वंचित जनसंख्या में इस अनुपात में कमी नहीं आई है और आज भी 28 प्रतिशत लोग बिजली से वंचित है. इससे साफ़ होता है की उत्पादन बढ़ाने से गरीबों को बिजली मिल जाएगी यह सच नहीं है. चुटका में संघर्ष कर रहे लोग 80 के दशक में बरघी बाँध से विस्थापित हुए लोग हैं और उनको आज तक ना बिजली मिली, न समुचित मुआवजा और न ही नौकरी.’
डॉ. सौम्य दत्ता ने यह बात जोड़ी कि परमाणु ऊर्जा के मद्देनज़र वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों पर कोई भी विचार नहीं किया जा रहा है.
चुटका परमाणु संघर्ष समिति के जबलपुर स्थित समर्थन समूह द्वारा आयोजित इस प्रेसवार्ता में कुमार सुंदरम ने कहा, ‘चुटका के अलावा देश के अन्य कई हिस्सों - महाराष्ट्र के जैतापुर, तमिलनाडु के कूड़नकुलम, गुजरात के मीठी विर्दी, हरियाणा के गोरखपुर, आंध्र प्रदेश के कोव्वाडा, पश्चिम बंगाल के हरिपुर, राजस्थान के माही बांसवाड़ा इत्यादि स्थानों - में साधारण किसान और मछुआरे परमाणु परियोजना के खतरों और इन प्रोजेक्टों से होने वाले विस्थापन के खिलाफ लड़ रहे हैं. दुनिया भर के देश जापान के फुकुशिमा में दुर्घटना के बाद अपने यहां परमाणु संयंत्र बंद कर रहे हैं जबकि विदेशी कंपनियों के फायदे के लिए भारत में इन संयंत्रों को लगाया जा रहा है. परमाणु तकनीक के दीर्घकालिक खतरे बहुत गंभीर हैं और ख़ास तौर पर भारत में परमाणु सुरक्षा नियमन करने की स्वतंत्र प्रणाली नहीं है. चुटका में परमाणु दुर्घटना की स्थिति में जबलपुर पर भी संकट आएगा.’