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फारवर्ड प्रेस के कार्यक्रम में इतिहास व साहित्य के पुर्नलेखन का आह्वान

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By TCN News,

पटना: ‘आज भारत के तमाम संस्थानों में वैदिक संस्कृति के नाम पर डुप्लीकेट भारतीय इतिहास पढ़ाया जा रहा है. वैदिक सभ्यता नहीं संस्कृति रही है जिसका कोई ठोस तथ्य व आधार नहीं है’, ये बातें प्रसिद्ध आलोचक व ओबीसी सिद्धांतकार राजेंद्र प्रसाद सिंह ने स्थानीय गांधी संग्रहालय में बागडोर द्वारा आयोजित संगोष्ठी के अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहीं. मुख्य अतिथि बिहार सरकार के वित्त वाणिज्यकर एवं ऊर्जामंत्री बिजेंद्र प्रसाद यादव ने कहा, ‘राजनीति सत्ता परिवर्तन के लिए होती है. समाज परिवर्तन के लिए आंदोलन की आवश्यकता पहले भी थी और आज भी है. भारत की संस्कृति संत, सामंत और ढोंगियों की संस्कृति रही है.’

वरिष्ठ दलित लेखक बुद्धशरण हंस ने कहा कि बहुजन समाज जब तक धार्मिक आडंबरों से मुक्त नहीं होगा, उसका कल्याण संभव नहीं. उन्होंने कहा कि अपने यहां फुले, आंबेडकर से लेकर जगदेव प्रसाद की अर्जक संघ जैसी धाराएं रही हैं लेकिन दुखद है कि इन समाज में उनका प्रभाव क्षीण हुआ है.


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वरिष्ठ पत्रकार श्रीकांत ने कहा, ‘जातियां जड़ नहीं बल्कि बहुत ही गतिशील इकाईयां हैं.’

लेखक हसन इमाम ने दीनाभद्री की लेाकगाथा पर विस्तार से प्रकाश डाला और कहा कि इस देश का बहुजन अपनी प्रकृति के अनुरूप मिथकों को ढाल लेता है. उन्होंने कहा कि अस्मितावादी राजनीति का अपना संकट है और आखिरकार वह हमें संकीर्णता के दायरे में ही ले जाती है.

प्रो० सईद आलम ने समाज और साहित्य में पसमांदा मुसलमानों के सवाल पर विस्तार से रोशनी डाली और कहा कि इनके सबसे बडे़ हितैषी बाबा साहब भीमरारव आंबेडकर ही रहे हैं.

पिछड़ा वर्ग आयोग के सदस्य जगनारायण सिंह यादव ने कहा, ‘बहुजन समाज कई तरह की संकीर्णताओं से घिरा रहा है. किसी ने बहुत सही कहा कि वह दिमाग से ज्यादा भावना से काम लेता है, उसे दोस्त दुश्मन की पहचान नहीं है और उसे पावर मिल जाएगा तो वह उसे बचा नहीं पाएगा.’

बक़ौल वरिष्ठ आलोचक महेंद्र सुमन, यह सुखद है कि इधर के वर्षों में साहित्य के मंच से बहुजन समाज की अस्मिता के सवाल मुखर ढंग से उठ रहे हैं. हेमंत कुमार ने घर वापसी के सवाल को टारगेट करते हुए हिंदुत्ववादी शक्तियों के साथ ही उसमें बहुजन समाज की हिस्सेदारी को भविष्य के लिए गहरा संकट बतलया. उन्होने यह कहा कि जो लोग बहुजन संस्कृति को विकल्प की संस्कृति के रूप में देखना चाहते हैं उन्हें निषेध करने वाले तत्वों की शिनाख्त करनी होगी.

संगोष्ठी का संचालन अरुण नारायण और धन्यवाद ज्ञापन अरुण कुमार ने किया. इस मौके पर राज्य के विभिन्न हिस्सों से आए लगभग दो सौ लेखक बुद्धिजीवी व सामाजिक कार्यकर्ताओं ने हिस्सा लिया.


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