Quantcast
Channel: TwoCircles.net - हिन्दी
Viewing all articles
Browse latest Browse all 597

नया फ़ैसला: फ़िल्म बनानी है? पहले तीन-तीन मंत्रालयों से इजाज़त लीजिए..

$
0
0

By सिद्धान्त मोहन, TwoCircles.net,

नई दिल्ली: बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री ‘इंडियाज़ डॉटर’ को भारत सरकार ने अपने आत्मसम्मान से जोड़ लिया था. भयानक स्तर पर सरकार ने कोशिश जारी रखी कि किसी भी तरीके से इस फ़िल्म का प्रसारण रोक दिया जाए. लेकिन ‘अभिव्यक्ति की आज़ादी’ को कुचलने में सरकार असफल रही और बीबीसी ने तयशुदा तारीख से पहले ही अपनी डॉक्यूमेंट्री को प्रसारित कर दिया.

दूध की जली हुई केन्द्र सरकार अब किसी भी फ़िल्म के निर्माण को छाछ की तरह देख रही है. सरकार अब देश में फ़िल्म और डॉक्यूमेंट्री के फिल्मांकन के लिए नियम थोड़े कठोर करने की तैयारी में है. खासकर गैर-भारतीयों के लिए यह नियम ज़्यादा कठोर होंगे, ऐसी सम्भावना है. इन नियमों और दिशानिर्देशों के लिए सरकार के तीन प्रमुख मंत्रालय शामिल होंगे, जिनसे फ़िल्म निर्माण के पहले अनुमति लेनी होगी.


I&B Ministry

कौन-कौन से होंगे मंत्रालय

गृह मंत्रालय, विदेश मंत्रालय और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय...ये वे तीन मंत्रालय होंगे, जिनके तहत नयी अधिसूचनाएं आने की आशा जताई जा रही है. विदेशी फ़िल्मकारों के आने वाले और पेंडिंग पड़े सभी फिल्मांकन से जुड़े आवेदनों की स्क्रूटनी किये जाने की तैयारी है. पिछले दो सालों के भीतर 200 से भी ज़्यादा अनुमतियाँ फ़िल्म बनाने के लिए दी गयीं हैं, खबर है कि इन सभी अनुमतियों को भी फ़िर से जांच के दायरे में लाया जाएगा.

ज़ाहिर है कि इस फैसले में विदेश मंत्रालय को शामिल करने का मतलब है कि विदेशी फ़िल्मकारों पर अंकुश लगाया जा सके. लेकिन इसके साथ यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि इन मंत्रालयों में गृह मंत्रालय को भी शामिल किया गया है. जानकार बताते हैं कि आगे चलकर घरेलू फिल्मकार भी इस मॉनिटरिंग सिस्टम की जद में आ सकते हैं. साथ ही साथ गृह मंत्रालय की संलिप्तता यह बताती है कि सरकार किसी न किसी स्तर पर अपने हिसाब से संवेदनशील मुद्दों का चुनाव कर सकती है.

कैसे होगा काम?

सूत्रों के हवाले से पता चला है कि किसी भी फ़िल्म के प्रपोज़ल को तीनों मंत्रालयों के सभी विभाग बारी-बारी से परखेंगे और पास करेंगे.यह जांच की जानी ज़रूरी है कि फ़िल्म का निर्माण नए दिशानिर्देशों के हिसाब से हो और जिससे देश की छवि न ख़राब होती हो. ‘टाइम्स’ के हवाले से बात करें तो सूचना-प्रसारण मंत्रालय के एक अधिकारी बताते हैं कि सरकार एक फुल-प्रूफ सिस्टम की तैयारी में है. ‘इंडियाज़ डॉटर’ के प्रसारण के बाद सरकार के कुछ मंत्रियों ने यह बात प्रसारित करने में सफलता हासिल की है कि इस डॉक्यूमेंट्री के प्रसारण से देश का मान कम हुआ है..

विदेश मंत्रालय वीजा संबंधी चीज़ों पर कड़ी नज़र बनाए रखेगा. फिल्ममेकरों को फ़िल्म को कहीं भी दिखाने से पहले सरकारी अफ़सर की उपस्थिति में फ़िल्म की स्क्रीनिंग करनी होगी.इसके चरण में अनुमति मिलने के बाद ही फ़िल्म को कहीं दिखाया जा सकेगा.

क्या कहते हैं फिल्मकार?

मुज़फ्फरनगर दंगों पर ‘मुज़फ्फरनगर बाकी है’ नाम से डाक्यूमेंट्री का निर्देशन करने वाले नकुल सिंह साहनी इस बारे में तफसील से बात करते हैं. नकुल कहते हैं, ‘ये कोई अलग फ़ैसला तो है नहीं, सरकार का पूरा रवैया ही अभिव्यक्ति को दबाने के लिए ही काम करने वाला लग रहा है. ये या तो इस तरह से सरकारी ढांचे का फायदा उठाते हैं या तो अपने समर्थकों और कार्यकर्ताओं की बदौलत डरा-धमकाकर काम करते हैं.’

नकुल आगे कहते हैं, ‘सरकार के लिए दंगे-बलात्कार जैसी चीज़ें समस्या नहीं हैं, समस्या इन पर लिखे जाने वाले लेख और बन रही फ़िल्मों से है. रोकने के लिए बहुत सारे लोग हैं. इनकी पार्टी के कई लोग है जो रामजादे-हरामज़ादे और ऐसे ही कई भड़काऊ बयान देते हैं, लेकिन समस्या फिल्मकार ही हैं. गृह मंत्रालय को शामिल करके इन्हें लॉ एंड ऑर्डर का हव्वा खड़ा करना है, अभी विदेशी फ़िल्मकार निशाने पर हैं, बाद में हम सब भी निशाने पर ले लिए जायेंगे.’

आगे के बारे में नकुल कहते हैं, ‘पहले भी ऐसे फैसलों के खिलाफ़ स्वतंत्र फ़िल्मकारों का समूह खड़ा हुआ है. इस बार भी यदि बर्बरता मूर्तरूप लेती दिखाई पड़ती है, तो हम आगे आएंगे.’

क्या पड़ सकता है प्रभाव?

66A को लेकर छिड़ी बहस और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद जनता का युवा रचनाकार वर्ग बेहद मुखर हुआ है. अधिकारों की समझ बढ़ी है. मुमकिन है कि फैसले के साथ-साथ विरोध के स्वर भी उठ खड़े हों. यदि कोई बदलाव नहीं आ पाता है, तो गुरिल्ला-स्टाइल फ़िल्म-मेकिंग और यूट्यूब और बाकी वीडियो शेयरिंग वेबसाईट पर फ़िल्में धड़ल्ले से प्रकाशित की जाएंगी.

फ़िल्ममेकिंग पर रोक लगाने से जनता में और गलत सन्देश जाएगा. वैसे ही लैंड बिल के चक्कर में सरकार आम जनता से दूर होने का आरोप झेल रही है. और बड़े-बड़े मुद्दे लंबित पड़े हैं, सरकार से आशा है कि वह उन मुद्दों की ओर रुख करे. ऐसे फैसलों से यह तय रहा कि सरकार अपने इन फैसलों का खामियाज़ा ज़रूर भुगत सकती है.


Viewing all articles
Browse latest Browse all 597

Latest Images

Trending Articles





Latest Images