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महान शिक्षाविद् पद्मश्री डॉ. सैय्यद हसन नहीं रहे

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TwoCircles.net News Desk

पटना :पद्मश्री शिक्षाविद् व ‘इनसान स्कूल’ के संस्थापक सैय्यद हसन अब नहीं रहें. 91 साल के सैय्यद हसन ने आज किशनगंज में अपनी अंतिम सांस ली. जनाज़े की नमाज मंगलवार यानी 26 जनवरी को दोपहर दो बजे इनसान स्कूल के कैम्पस में अदा की जाएगी.

महान शिक्षाविद् सैय्यद हसन के इस मौत के बाद पूरे देश का मुस्लिम समाज काफी सदमें है. इनके पीछे परिवार में उनकी पत्नी, तीन बेटे व एक बेटी हैं.

Dr. Syed Hasan

किशनगंज के सांसद मौलाना असरारूल हक़ क़ासमी ने अपनी संवेदना व्यक्त करते हुए कहा कि –‘हसन साहब ने ख़ासकर शिक्षा के क्षेत्र में किशनगंज में जो कोशिशें की हैं, उन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता. इस इलाक़े पर उनके बड़े अहसान हैं. उन्होंने ही यहां एक तालीमी इंक़लाब बरपा किया और उसी के ज़रिए यहां के मुसलमानों को शिक्षा के मैदान में आगे बढ़ने का सुनहरा मौक़ा हासिल हुआ.’

उन्होंने कहा कि हसन साहब के साथ मेरे काफी अच्छे संबंध थे. वो एक ईमानदार, विनम्र और अच्छे किरदार वाले व्यक्तित्व थे. उनकी मौत से किशनगंज एक गंभीर तालीम रहनुमा से वंचित हो गया है. उनकी मौत पूरे मुस्लिंम समाज के लिए एक बड़ा नुक़सान है.

ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस-ए-मुशावरत, बिहार चैप्टर के महासचिव अनवारूल होदा ने एक प्रेस विज्ञप्ति के ज़रिए बताया कि –‘महान शिक्षाविद् पद्मश्री डॉ. सैय्यद हसन की अचानक मौत मुस्लिम समाज के लिए एक गहरा आघात है.’

उन्होंने कहा कि –‘श्री हसन एक महान धर्मनिरपेक्ष और दूरदर्शी शिक्षाविद् थे, जिन्होंने पिछले पांच दशक से सीमांचल के वंचित इलाक़ों में पिछड़े मुसलमानों के उत्थान के लिए ज़बरदस्त काम किया. वो धर्मनिरपेक्षता, सांस्कृतिक बहुलवाद और सांप्रदायिक सद्भाव में यक़ीन रखने वाले इंसान और गरीबों के सशक्तिकरण के चैम्पियन थे.’

Insan school

स्पष्ट रहे कि सैय्यद भाई के नाम से मशहूर डॉ. सैय्यद हसन एक भारतीय शिक्षाविद्, मानवतावादी और इनसान स्कूल के संस्थापक हैं. उन्हें खासतौर पर बिहार में शैक्षिक रूप से पिछड़े ज़िला किशनगंज के लोगों में शिक्षा की अलख जगाने के प्रयासों के लिए जाना जाता है. वो 2003 में भारत की ओर से नोबेल शांति पुरस्कार के नामित किया गया था. भारत सरकार ने 1991 में उन्हें पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया. इसके अलावा शिक्षा के क्षेत्र में सेवाओं के लिए उन्हें जवाहरलाल नेहरू एजुकेशन पुरस्कार से सम्मानित किया गया.


अम्बेडकर विश्वविद्यालय के कुलपति और प्राॅक्टर पर मुक़दमा दर्ज करने की मांग

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By TwoCircles.net Staff Reporter

लखनऊ:बाबासाहब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय में स्वर्ण छात्रों द्वारा नरेंद्र मोदी के खिलाफ नारेबाज़ी करने वालों के खिलाफ प्रदर्शन करने का मामला सामने आया है. सामाजिक संगठन रिहाई मंच ने इसे विश्वविद्यालय प्रशासन का संघ परिवार के दलित विरोधी एजेंडे के सामने झुकना करार दिया है. अपुष्ट खबरें यह भी आ रही हैं कि आन्दोलनकारी छात्रों को ज़रूरी सुविधाओं से दूर रखा जा रहा है और उनकी आवाज़ को निरंतर दबाने के प्रयास हो रहे हैं.

इस बाबत मंच ने चेतावनी दी है कि अगर विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा मोदी का विरोध करने वाले छात्रों की डिग्री देने में आनाकानी की गई या उन्हें किसी भी तरह से परेशान किया गया तो मंच की अगुआई में एक बड़ा आन्दोलन चलाया जाएगा.

Protest against Modi

(Photo Courtesy: Indian Express)

मंच के प्रवक्ता शाहनवाज आलम ने कहा, 'जिस तरह अम्बेडकर विश्वविद्यालय के प्राॅक्टर कमल जायसवाल और डीएसडब्लू रिपुसूदन सिंह ने ‘मोदी गो बैक’ का नारा लगाने वाले दलित छात्रों के खिलाफ स्वर्ण जागरण मंच का बैनर लगाया और एबीवीपी से जुड़े दलित विरोधी तत्वों को बुलवाकर दलित छात्रों के खिलाफ प्रदर्शन किया, इससे यह साबित होता है कि विश्वविद्यालय प्रशासन मनु का दलित विरोधी एजेंडा लागू करने पर उतारू है.'

दलित विरोधी आयोजन की स्वीकृति देने वाले कुलपति प्रो. आरसी सोबती, प्रॉक्टर और डीएसडब्लू को तत्काल निलम्बित करने की मांग करते हुए मंच ने इन तीनों समेत वहां मौजूद छात्रों की शिनाख्त कर उन पर दलित एक्ट के तहत मुकदमा चलाने की मांग की है.

ज्ञात हो कि विश्वविद्यालय के प्राॅक्टर कमल जायसवाल ने कहा था यदि प्रधानमंत्री का विरोध नहीं हुआ होता तो मोदी विश्वविद्यालय को कुछ दे कर जाते. बकौल, एक्टिविस्ट राजीव यादव, यह बात कमल जायसवाल के लालची स्वभाव को दर्शाती है. उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालयों की भूमिका चरित्र निर्माण की होनी चाहिए जो छात्रों को अपने अधिकारों और इंसाफ की रक्षा के लिए आवाज उठाने की सीख दे ना कि उन्हें लालची और दलाल बनाए.

बीबीएयू में दलितों के 50 प्रतिशत आरक्षण में कटौती कर पिछड़ों को देने की बहस शुरू हो चुकी है. जबकि बीबीएयू में दलितों को 50 प्रतिशत आरक्षण संवैधानिक प्रावधान के तहत दिया जाता है जिसे किसी भी कीमत पर नहीं खत्म किया जा सकता. प्रॉक्टर कमल जायसवाल द्वारा छात्रों की काउंसिलिंग करने की खबरें सामने आ रही हैं, जिस पर राजीव यादव ने कहा कि कांउसिलिंग की जरूरत कमल जायसवाल जैसे लोगों को है जो दलित विरोधी मनुवादी कुंठा से ग्रस्त हैं.

अभी तक इस मामले में दलित छात्रों के खिलाफ कोई बड़ी कार्रवाई सामने नहीं आ सकी है. लेकिन मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि यदि विश्वविद्यालय की कोई ऐसी मंशा भी है, तो हैदराबाद विश्वविद्यालय के सन्दर्भ में उठे बवाल के शोर में प्रशासन कोई ऐसा कदम नहीं उठाएगा.

‘सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है’ राम प्रसाद बिस्मिल की रचना नहीं...

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Afroz Alam Sahil, TwoCircles.net

राम प्रसाद बिस्मिल ने गाया तो ये ग़ज़ल अमर हो गई. लेकिन बहुत कम लोगों को पता है कि ‘सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है...’ को गाने वाले बिस्मिल थे, लेकिन इसके लिखने वाले बिस्मिल नहीं, बिस्मिल अज़ीमाबादी थे.

राम प्रसाद बिस्मिल और अशफ़ाक़ुल्लाह ख़ान पर शोध व पुस्तक लिख चुके उत्तर प्रदेश में रहने वाले सुधीर विद्यार्थी का कहना है –‘सरफ़रोशी की तमन्ना को राम प्रसाद बिस्मिल ने गाया ज़रूर था, पर ये रचना बिस्मिल अज़ीमाबादी की है. यह बात खुद राम प्रसाद बिस्मिल के दोस्त, भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रान्तिकारी तथा सिद्धहस्त लेखक मन्मथनाथ गुप्त कई बार लिख चुके हैं. काफी साल पहले रविवार नामक पत्रिका में उनका ये लेख छप भी चुका है.’

पटना स्थित जाने माने इतिहासकार प्रोफ़ेसर इम्तियाज़ भी बताते हैं कि यह ग़ज़ल बिस्मिल अज़ीमाबादी की ही है. वो बताते हैं कि उनके एक दोस्त स्व. रिज़वान अहमद इस ग़ज़ल पर रिसर्च कर चुके हैं, जिसे कई क़िस्तों में उन्होंने अपने अपने अख़बार अज़ीमाबाद एक्सप्रेस में प्रकाशित किया था.

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, सेन्टर फॉर अडवांस स्टडी इन हिस्ट्री के एसोशिएट प्रोफेसर मुहम्मद सज्जाद का भी कहना है कि उनके नज़र से आज तक कोई भी ऐसा सरकारी दस्तावेज़ नहीं गुज़रा जिसमें यह कहा गया हो कि यह ग़ज़ल राम प्रसाद बिस्मिल ने लिखा है.

Bismil Azimabadi

बिस्मिल अज़ीमाबादी के पोते मनव्वर हसन बताते हैं कि ये ग़ज़ल आज़ादी के लड़ाई के वक़्त काज़ी अब्दुल गफ़्फ़ार की पत्रिका ‘सबाह’ में 1922 में छपी, तो अंग्रेज़ी हुकूमत तिलमिला गई. एडिटर ने दादा क ख़त लिखा कि ब्रिटिश हुकूमत ने प्रकाशन को ज़ब्त कर लिया है.

हसन बात-बात में अनगिनत सबूत गिनाने लगते हैं कि कैसे यह ग़ज़ल उनके दादा बिस्मिल अज़ीमाबादी की है.

उनके मुताबिक इस ग़ज़ल को बिस्मिल अज़ीमाबादी ने 1921 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में पढ़ा था, जब वो सिर्फ 20 साल के थे.

वो बताते हैं कि जब उन्होंने यह ग़ज़ल लिखा था, तो अपने उस्ताद शाद अज़ीमाबादी से सुधार भी करवाया था. जिस कागज़ पर उन्होंने यह नज़्म लिखी, आज भी उसकी नक़ल उनके पास मौजूद है. और उसकी मूल कॉपी पटना के ख़ुदाबख्श लाईब्रेरी में शाद अज़ीमाबादी के सुधार के साथ आज भी मौजूद है.

Bismil Azimabadi

हसन बताते हैं कि ‘बिस्मिल अज़ीमाबादी के साथ एक शाम’ नाम से एक रिकॉर्डिंग (टेप नम्बर -80) आज भी ख़ुदाबख्स लाईब्रेरी में है. इसमें लाईब्रेरी के पूर्व निदेशक आबिद रज़ा बेदार का बिस्मिल अज़ीमाबादी से लिया गया इंटरव्यू है. बातचीत में न केवल बिस्मिल अज़ीमाबादी ने अपनी ग़ज़ल का खुलासा किया है, बल्कि उसे गाया भी है.

वो यह भी बताते हैं कि बिस्मिल अज़ीमाबादी का ग़ज़ल संग्रह ‘हिकायत-ए-हस्ती’ भी ख़ुदाबख्श लाईब्रेरी में मौजूद है. उसमें 11 मिसरे की यह नज़्म छपी है. बिहार उर्दू अकादमी के आर्थिक सहयोग से इसका प्रथम संस्करण 1980 में छपा था.

उनके मुताबिक़ बिहार बोर्ड के बीटीसी की नवीं क्लास में पढ़ाई जाने वाली उर्दू की पुस्तक ‘दरख्शां’ में भी लिखा गया है कि इस ग़ज़ल के लिखने वाले बिस्मिल अज़ीमाबादी हैं.

बिस्मिल अज़ीमाबादी के नाती आदिल हसन आज़ाद का कहना है कि वो सिर्फ एक शायर नहीं, बल्कि स्वतंत्रता सेनानी भी थे, लेकिन सरकार ने उनकी ओर कभी भी कोई ध्यान नहीं दिया. आज उनके नाम से बिहार में एक सड़क तक नहीं है. जल्द ही वो इसके लिए एक मुहिम का आगाज़ करेंगे.

दरअसल, इस ग़ज़ल का देश की आज़ादी की लड़ाई में एक अहम योगदान रहा है. बल्कि यह ग़ज़ल देशभक्त राम प्रसाद बिस्मिल की ज़ुबान पर हर वक़्त रहता था. 1927 में सूली पर चढ़ते समय भी यह ग़ज़ल उनकी ज़ुबान पर था. बिस्मिल के इंक़लाबी साथी जेल से पुलिस की लारी में जाते हुए, कोर्ट में मजिस्ट्रेट को चिढ़ाते हुए और लौटकर जेल आते हुए कोरस के रूप में इस ग़ज़ल को गाया करते थे.

कौन थे बिस्मिल अज़ीमाबादी

बिस्मिल अज़ीमाबादी का असल नाम सैय्यद शाह मोहम्मद हसन था. वो 1901 में पटना से 30 किमी दूर हरदास बिगहा गांव में पैदा हुए थे. लेकिन एक-दो साल के अंदर ही अपने पिता सैय्यद शाह आले हसन की मौत के बाद वो अपने नाना के घर पटना सिटी आ गए, जिसे लोग उस समय अज़ीमबाद के नाम से जानते थे. जब उन्होंने शायरी शुरू की तो अपना नाम बिस्मिल अज़ीमाबादी रख लिया, और उसी नाम से उन्हें पूरी दुनिया जानती है.

बिस्मिल अज़ीमाबादी की लिखी असल ग़ज़ल :

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाजू-ए-क़ातिल में है
ऐ शहीदे मुल्क व मिल्लत मैं तेरे उपर निसार
ले तेरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफ़िल में है
वाए क़िस्मत पांव की ऐ ज़ुअफ़े कुछ चलती नहीं
कारवां अपना अभी तक पहली ही मंज़िल में है
रह रवे राह-ए-मुहब्बत! रह न जाना राह में
लज़्ज़त-ए-सहरा नूर दी दूरी मंज़िल में है
शौक़ से राह-ए-मुहब्बत की मुसीबत झेल ले
इक ख़ुशी का राज़ पनहा जादा-ए-मंज़िल में है
आज फिर मक़तल में क़ातिल कह रहा है बार-बार
आएं वो शौक़-ए-शहादत जिन जिन के दिल में है
मरने वालो आओ, अब गर्दन कटाओ शौक़ से
ये ग़नीमत वक़्त है ख़ंजर कफ़-ए-क़ातिल में है
मानए इज़हार तुम को है हया, हम को अदब
कुछ तुम्हारे दिल के अंदर कुछ हमारे दिल में है
मैकदा सुनसान, खम उल्टे पड़े हैं, जाम चूर
सरंगूं बैठा है साक़ी जो तेरी महफ़िल में है
वक़्त आने दे दिखा देंगे तुझको ऐ आसमां
हम अभी से क्या बताएं क्या हमारे दिल में है
अब न अगले वलवले हैं और न अरमानों की भीड़
सिर्फ़ मिट जाने की इक हसरत दिले बिस्मलमें है.

बिस्मिल अज़ीमाबादी के ग़ज़लों के कुछ शेर, जिन्हें उन्होंने मुल्क के बंटवारे के समय लिखा था

बयाबान-ए-जनों में शाम-ए-ग़रबत जब सताया की
मुझे रह रह कर ऐ सुबह वतन तू याद आया की

आज़ादी ने बाज़ू भी सलामत नहीं रखे
ऐ ताक़त-ए-परवाज़ तुझे लाए कहां से

कहां क़रार है कहने को दिल क़रार में है
जो थी ख़िज़ां में वही कैफ़ियत बहार में है

चमन को लग गई किसकी नज़र खुदा जाने
चमन रहा न रहे वो चमन के अफ़साने

पूछा भी है कभी आप ने कुछ हाल हमारा
देखा भी है कभी आके मुहब्बत की नज़र से
किस हाल में हो, कैसे हो, क्या करते हो बिस्मिल
मरते हो कि जीते हो ज़माने के असर से...

“कहां तमाम हुई दास्तान बिस्मिल की
बहुत सी बात तो कहने को रह गई ऐ दोस्त”

क्यों विवादित हैं इस साल के पद्म पुरस्कार

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By TwoCircles.net Staff Reporter

नई दिल्ली: गणतंत्र दिवस के साथ ही हर साल पद्म पुरस्कारों से सम्मानित हस्तियों का उल्लेख भी होता आया है. यह सम्मान तीन श्रेणियों यानी पद्म विभूषण, पद्म भूषण और पद्म श्री में दिया जाता है.

सम्मानित द्वारा किए गए योगदान के परिप्रेक्ष्य में किसी एक श्रेणी का चुनाव होता है, जिसका ऐलान हर साल 25 जनवरी को किया जाता है.

साल 2015 पुरस्कारों की वापसी और दक्षिणपंथी राजनीति के तनावग्रस्त माहौल में रहा. 40 से भी ज्यादा लेखकों ने भारत सरकार की संस्था साहित्य अकादमी को अपने पुरस्कार वापिस कर दिए. लेखकों द्वारा चलाई गयी मुहिम देश में व्याप्त 'असहिष्णुता'की बहस का एक अध्याय थी. पश्चिमी देशों के लेखकों और विचारकों ने लेखकों की इस मुहिम को सही और ज़रूरी हस्तक्षेप बताया.

हालांकि बाद में लेखकों की यह मुहिम सिर्फ लेखकों के न रहकर फ़िल्मी हस्तियों, कलाकारों, अर्थशास्त्रियों और वैज्ञानिकों की भी हो गयी. जिसके बाद इस पूरे हस्तक्षेप का विस्तार एक व्यापक स्तर तक हुआ.

इस हस्तक्षेप के जवाब में भाजपा सांसद किरण खेर के पति और अभिनेता अनुपम खेर ने एक मार्च निकाला जिसमें कई लोगों ने हिस्सा लिया. दिल्ली में निकाले गए इस मार्च का मंतव्य सरकार की छवि को 'साफ़-सुथरा'रखना था.

इस साल अनुपम खेर को पद्म विभूषण दिया गया. अनुपम खेर के साथ लोक गायिका मालिनी अवस्थी और फिल्मकार मधुर भंडारकर भी अनुपम खेर द्वारा प्रायोजित मार्च का हिस्सा थे. उन्हें भी पद्म पुरस्कारों से नवाज़ा गया.

ऐसा नहीं है कि इन तीन नामों ने सरकार की साख़ को बचाने का प्रयास किया तो इन्हें पद्म सम्मान दिए गए. साल 2016 के अन्य पुरस्कारों पर भी सोशल मीडिया और खबरों में सवाल उठ रहे हैं.

उद्योगपति धीरूभाई अम्बानी को मरणोपरांत पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया है. सोशल मीडिया पर यह चर्चा आम है कि मुकेश अम्बानी से करीबी के चलते प्रधानमंत्री ने धीरूभाई अम्बानी को यह पुरस्कार दिया है. अन्यथा धीरूभाई अम्बानी ने खुद के लिए धन क्कामाने के अलावा कोई भी कार्य लोकहित में नहीं किया, जिससे उन्हें दिया गया यह पद्म सम्मान चरितार्थ हो सके.

हालांकि यह पहली बार नहीं है कि केंद्र सरकार ने पद्म पुरस्कारों का बेजा इस्तेमाल अपने व्यक्तिगत मंशाओं को साधने के लिए किया है. कांग्रेसनीत पूर्ववर्ती सरकार ने भी कई ऐसे लोगों को पुरस्कार दिए, जिनके कार्य इन सम्मानों के योग्य नहीं थे.

भाजपा ने रामोजी राव को साहित्य एवं पत्रकारिता के क्षेत्र में पद्म विभूषण से सम्मानित किया है. रामोजी हैदराबाद में स्थित रामोजी फिल्म सिटी के मालिक हैं. पत्रकारिता में रामोजी का बहुत उल्लेखनीय योगदान नहीं है. रामोजी राव साल 2000 में भी तत्कालीन भाजपा सरकार के अंतर्गत राष्ट्रीय फिल्म से नवाज़ा गया था.

बहरहाल, कुल मिलाकर कुल 112 लोगों की सूची है. पद्म पुरस्कार राष्ट्रपति द्वारा मार्च/अप्रैल में राष्ट्रपति भवन में आयोजित किए जाने वाले समारोह में प्रदान किए जाते हैं. सूची में 10 पद्म विभूषण, 19 पद्म भूषण तथा 83 पद्मश्री पुरस्तार प्राप्त करने वालों के नाम संलग्न हैं. इनमें 19 महिलाएं तथा 10 व्यक्ति विदेशी, एनआरआई, पीआईओ हैं.

List of Padma Awardee

List of Padma Awardee

List of Padma Awardee

List of Padma Awardee

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सूफिया ने हमेशा दिलों को जोड़ने, अमन और भाईचारे का सन्देश दिया है: सैय्यद मोहम्मद अशरफ़ किछौछवी

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TwoCircles.net News Desk

रामपुर :नफ़रत को कभी नफ़रत से नहीं हटाया जा सकता. हज़रत महबूब-ए-इलाही ने कहा है कि ‘यदि राह में कांटे बिछाने वालों को कांटे बिछाकर जवाब दिया जाए तो पूरी दुनिया कांटों से भर जाएगी.’

हज़रत बाबा फरीदगंज शकर को किसी ने कैंची दी तो आपने कहा कि मुझे कैंची नहीं, सुई चाहिए क्योंकि मेरा काम काटने का नहीं, बल्कि जोड़ने का है. यही कारण है कि सूफिया के पास बिना धर्म व जाति के भेदभाव के लोग आते रहे हैं और निर्देश पाते रहे और आज भी हर धर्म और समुदाय के लोग उनके आस्ताने पर पहुंचकर लाभान्वित हो रहे हैं.

इन विचारों को सैफनी, रामपुर में आयोजित जश्न-ए-ग़ौसुलवरा में ‘ऑल इंडिया उलेमा व मशाईख बोर्ड’ के संस्थापक और अध्यक्ष सैय्यद मोहम्मद अशरफ़ किछौछवी ने व्यक्त किया.

Ashraf Kichauchwi

लोगों में फैली ग़लतफ़हमी को दूर करते हुए उन्होंने कहा कि –‘ऐसा नहीं है कि सूफी आलिम नहीं होता, क्योंकि अल्लाह किसी जाहिल को दोस्त नहीं रखता. हर सूफी आलिम व फ़क़ीह होता है. यह अलग बात है कि फ़कीरी उसकी इल्मी शोहरत पर पर हावी हो जाती है. वालियों के इमाम हज़रत गौसे आज़म ने जहां एक तरफ़ तरीक़त व मारेफ़त के जौहर बिखेरे, वहीं दूसरी ओर इल्म और फ़िक़ह से भी लोगों को फैज़ पहुँचाया.

हज़रत मौलाना ने कहा कि –‘कल भी सूफिया ने इल्मी और रूहानी प्यास बुझाई है और आज भी जब दुनिया वैश्विक संकट का शिकार नज़र आ रही है तो तसव्वुफ़ का रास्ता खोजा जा रहा है.’

उन्होंने घोषणा की कि –‘वैश्विक संकट के समाधान की खोज में दुनिया भर के उलेमा, मशाईख और दानिश्वर 20 मार्च को दिल्ली के रामलीला मैदान में इकट्ठा होकर वैश्विक संकट के समाधान की खोज भी करेंगे और सार्वजनिक बैठक में इसकी घोषणा भी करेंगे.’

गणत्रंत दिवस पर एएमयू ओल्ड बॉयज ने स्कूल गोद लिया

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TwoCircles.net News Desk

पटना :अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) ओल्ड बॉयज़ एसोशिएसन बिहार ने 67वें गणतंत्र दिवस को एक खास अंदाज़ में मनाया. संगठन ने देश के गणतंत्र दिवस के शुभ अवसर पर गरीब बच्चों के लिए एक स्कूल को गोद लिया.

ओल्ड बॉयज एसोशिएसन के सचिव डॉ० अरशद हक़ ने बताया कि उनके संगठन ने पटना के फुलवारीशरीफ़ में नौसा इलाक़े में सर सैय्यद लिटरेसी स्कूल का शुभारंभ किया जिसमें गरीब बच्चों को मुफ्त शिक्षा दी जाएगी.

Sir Syed Literacy School

उन्होंने बताया कि इस अवसर पर एसोशिएसन के सदस्य श्री पियूष नंदन ने स्कूल को 21000 रुपए का अनुदान दिया. इससे पहले गणतंत्र दिवस के अवसर पर एसोशिएसन ने फ्रेज़र रोड में स्थित कैपिटल टावर कार्यालय में अध्यक्ष इंजीनियर आमिर हसन ने राष्ट्रीय ध्वज फहराया.

इस अवसर पर महासचिव डॉ० अरशद हक़ के साथ-साथ अधिवक्ता नदीम सिराज, राशिद हसन, परवेज़ अहमद, रफ़ी अहमद, पियूष नंदन, डॉ० इर्शादुल हक़, मुशीर आलम, क़ासिम रज़ा आदि मौजूद थे.

Sir Syed Literacy School

समारोह में उपस्थित लोगों ने मौन रखकर इंसान स्कूल के संस्थापक पद्मश्री डॉ० सैयद हसन को श्रद्धांज़लि दी.

देश के लिए खून का आख़िरी क़तरा भी बहा देंगे : शाही इमाम

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TwoCircles.net News Desk

लुधियाना :‘बड़ी कुर्बानियों के बाद भारत के लोगों को यह आज़ादी हासिल हुई है. ऐसे में हर भारतीय के दिल में देश-प्रेम का जज़्बा जवान रहना चाहिए. हमें देश के सम्मान और सुरक्षा के लिए दुश्मन के सामने हमेशा डट कर खड़े रहना होगा. ज़रूरत पड़ी तो मैं अपने देश के ख़ातिर अपने खून का आख़िरी क़तरा भी बहा दुंगा.’

यह बातें 26 जनवरी गणतंत्र दिवस के अवसर पर ऐतिहासिक जामा मस्जिद लुधियाना के मुख्य द्वार पर पंजाब के शाही इमाम मौलाना हबीब उर रहमान सानी लुधियानवीं ने तिंरगा झंडा फहराने के बाद अपने संबोधन में कहा.

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इस मौके पर लोगों को संबोधित करते हुए शाही इमाम ने कहा कि –‘आज का दिन हमें अंग्रेजी साम्राज्य के समय देश में पूर्ण स्वराज स्थापित करने के लिए शुरू किए गए संघर्ष की भी याद दिलवाता है. इस संघर्ष में हर तबक़े के लोग बराबर के हिस्सेदार रहे हैं. खासतौर पर मुसलमानों का योगदान अद्वितीय है.’

इस मौके पर नायब शाही इमाम मौलाना उसमान रहमानी, कारी अल्ताफ उर रहमान, परमजीत सिंह, रजनीश वर्मा, देश बंधु, गुलाम हसन कैसर, रामेश भाटिया, देव दत्त, गुरमीत सिंह पुजारा, बबलू खान, सिकंदर अली, शाहनवाज़ अहमद खान, आजाद अली व शाही इमाम के मुख्य सचिव मुहम्मद मुस्तकीम आदि मौजूद थे.

सपा के पूर्व सांसद का आरोप –‘मुझे मेरी पार्टी ने हरवाया!’

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TwoCircles.net Staff Reporter

सम्भल :समाजवादी पार्टी के सीनियर नेता डॉ. शफ़ीक़ुर्रहमान बर्क़ ने एक सनसनीखेज़ खुलासा किया है. उनका दावा है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में उनकी हार की वजह कोई और नहीं, बल्कि उनकी खुद की ही पार्टी थी.

TwoCircles.net से एक ख़ास बातचीत के दौरान बसपा व सपा से चार बार सांसद का चुनाव जीत चुके डॉ. शफ़ीक़ुर्रहमान बर्क़ ने यह आरोप लगाया कि उनकी खुद की पार्टी ने बीजेपी के साथ मिलीभगत कर उनकी हार सुनिश्चित कर दी. ऐसे में यह आरोप इसलिए भी और ज़्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि समाजवादी पार्टी पर पहले भी बीजेपी के साथ मिलभगत के आरोप लगते रहे हैं.

डॉ. शफ़ीक़ुर्रहमान बर्क़ ने स्पष्ट तौर पर कहा कि –‘यहां मुझे ज़बरदस्ती हरवाया गया है. समाजवादी पार्टी का मैं कैंडीडेट था और सपा ही मुझे हरवा रही थी. यहां के एमएलए-मंत्री, संगठन सब मिलकर मुझे हरवा रहे थे, लेकिन पार्टी ने कोई एक्शन नहीं लिया.’

बर्क़ ने हालांकि यह साफ़ नहीं किया कि उनका अगला क़दम क्या होगा?

आगे वो क्या करेंगे? इस सवाल पर वो हंसकर टालते हुए कहते हैं कि –‘don’t want to say something about this…’

मगर डॉ. बर्क़ ने अपने इस बयान से सियासी हलचल ज़रूर मता दी है. अब देखने वाली बात यह है कि उनके इस बयान पर समाजवादी पार्टी क्या प्रतिक्रिया देती है...

स्पष्ट रहे हैं कि 85 साल के डॉ. शफ़ीक़ुर्रहमान बर्क़ संभल सीट से चार बार (1974, 1977, 1985, और 1989) उत्तर प्रदेश विधानसभा के विधायक रह चुके हैं. 1990-91 में वो यूपी के कैबिनेट मंत्री थे. उसके बाद 11वीं, 12वीं, 14वीं व 15वीं लोकसभा चुनाव में इस ज़िला से जीत दर्ज करके सांसद भी बने. डॉ. बर्क़ संभल के दीपासराय इलाक़े में रहते हैं.


‘AMU व JMI के ‘अल्पसंख्यक दर्जे’ को छीनना मुस्लिम समाज को उच्च शिक्षा के मामले में ‘यतीम’ बनाने जैसा’ –मायावती

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TwoCircles.net News Desk

लखनऊ :अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) और जामिया मिल्लिया इस्लामिया (जामिया) के अल्पसंख्यक दर्जा के मसले पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल, उत्तरप्रदेश के कैबिनेट मंत्री आज़म ख़ान, राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के बाद अब बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के राष्ट्रीय अध्यक्षा बहन मायावती ने भी केन्द्र के मोदी सरकार को चेताया है.

गुरूवार को बीएसपी कार्यालय, लखनऊ में एक प्रेस कांफ्रेस को संबोधित करते हुए कहा कि –‘एएमयू व जामिया के ‘अल्पसंख्यक दर्जे’ को छीनना मुस्लिम समाज के उच्च शिक्षा के मामले में ‘यतीम’ बनाने जैसा है. बीएसपी इन दोनों विश्वविद्यालयों के अल्पसंख्यक दर्जा को छीनने के क़दम को ग़लत, अनुचित व षड़यन्त्रकारी मानती है और इसके सख्त खिलाफ़ है.’

Photo Courtesy : http://www.thehindu.com

मायावती ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि –‘केन्द्र की वर्तमान भाजपा सरकार खासकर ‘एएमयू व जामिया’ को उसकी स्थापित मान्यता व पहचान के विरूद्ध जाकर इन दोनों ही उच्च शिक्षण संस्थानों को काफी संघर्ष के बाद मिले अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा छीनकर एक प्रकार से यहाँ देश के धार्मिक अल्पसंख्यक के छात्रों को ’’यतीम’’ बनाने की पूरी-पूरी कोशिश में लगी हुई है, जबकि केन्द्र सरकार का यह घोर साम्प्रदायिकता से प्रेरित अति-निन्दनीय क़दम है. ऐसी संकीर्ण सोच से देश की प्रतिष्ठा (मान-मर्यादा) भी प्रभावित होती है.’

मायावती के मुताबिक़ –‘केन्द्र की भाजपा सरकार का यह प्रयास वास्तव में पूरे तौर से राजनीति से भी प्रेरित लगता है ताकि कुछ ही महीनों के बाद खासकर उत्तरप्रदेश में होने वाले विधानसभा आम-चुनाव में वोटों को जाति व मज़हब के नाम पर बाँटकर यहां अपने साथ-साथ सपा का भी उल्लू सीधा किया जा सके.’

मायावती का कहना है कि –‘एएमयू व जामिया के अल्पसंख्यक दर्जे के विरूद्ध अपने फैसले के पीछे जो बात भाजपा सरकार कह रही है वह वास्तव में कोई ठोस तर्क नहीं है.’

मायावती ने बताया कि –‘भाजपा का इस सम्बन्ध में यह कहना कि एएमयू व जामिया इन दोनों संस्थानों का अल्पसंख्यक का दर्जा समाप्त होने से फिर वहां देश के दलितों व अन्य पिछड़ों को शिक्षा प्राप्त करने में काफी सहायता मिलेगी, लेकिन हमारी पार्टी बीजेपी के इस तर्क से कतई भी सहमत नहीं है.

आगे उन्होंने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि –‘इस सम्बन्ध में हमारी पार्टी का यह कहना है कि अपने देश में मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई व बौद्ध आदि ये सभी धार्मिक अल्पसंख्यक समाज के लोग ज्यादातर यहां अपने इसी ही देश के मूल-निवासी हैं.’

वंचितों के तालीम के मसीहा पद्मश्री डॉ. सैय्यद हसन

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By Afroz Alam Sahil, TwoCircles.net

सदी के महान शिक्षाविद डॉ ज़ाकिर हुसैन ने कभी कहा था -

‘हमारे देश को गर्म खून नहीं चाहिए जो हमारी गर्दन से रिसे, बल्कि माथे का पसीना चाहिए जो साल के बारहों महीने बहता रहे. अच्छे काम, गंभीर काम करने की ज़रूरत है. किसान की टूटी हुई झोपड़ियों से, कारीगर की अंधेरी छत से और एक गांव के बेकार स्कूल से हमारे भविष्य या बनेंगे या तो बिगड़ेंगे. राजनीतिक झगड़ों को एक या दो दिन में सभा-सम्मेलन करके सुलझाना मुमकिन है, लेकिन वह जगहें जिन्हें हमने लक्षित किया है, वह सदियों से हमारे भाग्य का केन्द्र रही हैं. इन क्षेत्रों में काम करने के लिए धैर्य और दृढ़ता चाहिए. यह मेहनत का और बिना नतीज़ों वाला काम है. इसका नतीजा जल्दी आने वाला नहीं है. लेकिन हां, जो देर तक इस रास्ते पर काम करेगा, उसे सकारात्मक परिणाम ज़रूर मिलेंगे.’

ज़ाकिर हुसैन के इस कथन पर देश व सरकार ने चाहे अमल किया हो या न किया हो, लेकिन ज़ाकिर हुसैन के शागिर्द रहे पदमश्री डॉ. सैय्यद हसन ने इस बात की गांठ ज़रूर बांध ली थी.

भारत में ऐसे बहुत सारे ‘गुदड़ी के लाल’ हैं, जो संसार के तमाम सुख-सुविधाओं को त्याग चुपचाप एक कोने में रहकर अपना काम करते रहते हैं. इनका जितना कम नाम होता है, उनका काम उतना ही महान, उतना ही लोकोपकारी.

इन्हीं नामों में से एक नाम है –डॉ. सैय्यद हसन... यह वो नाम है, जो गरीबों, पिछड़ों और बेसहारों के लिए उम्मीद के सूरज जैसा है.
दरअसल, डॉ. हसन एक ऐसी शख़्सियत थे, जिन्होंने अपनी सारी उम्र, अपनी सम्पूर्ण प्रतिभा और अपने सारे संसाधन गरीबों, पिछड़ों, मज़लूमों व खासकर मुसलमानों की तालीम की ख़ातिर खर्च कर दी.

डॉ. हसन का जन्म 30 सितम्बर, 1924 में बिहार के जहानाबाद में हुआ था. 10 साल की उम्र में वे दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया आ गए. जामिया से ही उर्दू मीडियम में मैट्रिक की तालीम हासिल की. फिर बारहवीं व ग्रेजुएशन की पढ़ाई भी उन्होंने जामिया से ही हासिल की. जामिया में वे ज़ाकिर हुसैन के ख़ास शागिर्दों में से एक थे.

यू-ट्यूब पर मौजूद एक इंटरव्यू में डॉ. हसन बताते हैं, ‘जब वे छठी क्लास में थे तो ‘उर्दू की छठी किताब’ पढ़ी थी. जो उस समय दर्स-ए-उस्मानिया, हैदराबाद से छपी थी. किताब का पहला सबक़ ‘वसूले-इल्म और गैरों की जद्दोजहद’ था. इस सबक़ में बताया गया था कि जापान देश तरक़्क़ी पर क्यों है? उसकी एक बड़ी वजह ये है कि उनके नौजवान बड़ी तादाद में विदेश जाते हैं. विदेश जाकर वहां तालीम व अपने काम का तजुर्बा हासिल करके वापस आकर अपने देश की सेवा में लग जाते हैं.’

वो आगे बताते हैं, ‘हमने सोचा कि जब जापान का युवा यह कर सकता है तो फिर हिन्दुस्तान का नौजवान यह क्यों नहीं कर सकता? और कोई करे या न करे, मैं भी तो हिन्दुस्तानी हूं. मैं ही क्यों न करूं? यह ख़्याल मेरे मन में 1938 में ही आ गया था. उस समय मैं छठी क्लास का स्टूडेन्ट था.’

डॉ. हसन यह भी बताते हैं कि उर्दू की यह किताब रामलाल वर्मा ने लिखी थी. ऐसे में सबको समझ लेना चाहिए कि ये उर्दू हिन्दू-मुसलमानों दोनों के लिए एक है.

डॉ. हसन खेल-कूद में काफी आगे रहे. उन्होंने स्पोर्ट्स में जामिया को न सिर्फ़ रिप्रेजेन्ट किया, बल्कि बाद में वो स्पोर्ट्स के इंचार्ज भी रहे. इतना ही नहीं, इनकी सलाहियतों को देखते हुए इन्हें जामिया के प्राईमरी स्कूल का हेडमास्टर भी बना दिया गया.

वे आगे बताते हैं, ‘आज़ादी के बाद मुझे जामिया की ओर से पुर्णिया भेजा गया. मैंने यहां के गरीबी व बदहाली को क़रीब से देखा. इसलिए 1951 में ही फैसला कर लिया था कि किशनगंज में एक स्कूल खोलूंगा. लेकिन यह बात छठी क्लास से ही दिलोदिमाग़ में बैठी थी कि विदेश जाउंगा और वापस आकर अपने देश की सेवा करूंगा. तभी अचानक 1954 में लिंकन यूनिवर्सिटी से स्कॉलरशिप का लेटर आ गया.’

डॉ. हसन के मुताबिक़ वे अमेरिका में 10 साल तक रहे. लेकिन कभी भी रेसिडेंसियल वीज़ा या सीटिजनशिप के लिए अप्लाई नहीं किया. अपने स्टूडेन्ट वीज़ा का ही नवीनीकरण करवाते रहे.

वे आगे बताते हैं, ‘अमेरिका में एसिस्टेंटशिप और फेलोशिप के सहारे पढ़ता और पढ़ाता रहा. वहां बेस्ट टीचर का अवार्ड भी मिला. लेकिन अमेरिका के कारबोनडेल स्थित यूनिवर्सिटी से पीएचईडी की डिग्री मिलते ही मैं अमेरिका से सीधे किशनगंज पहुंच गया.’

किशनगंज में काम करना डॉ. हसन के लिए इतना आसान नहीं था. लेकिन अपने उस्ताद डॉ. ज़ाकिर हुसैन की बातों से वो हमेशा प्रेरणा लेते रहे. डॉ. ज़ाकिर हुसैन ने कभी अर्थशास्त्र की क्लास में पढ़ाया था –‘Start from nothing, character is your asset…’

डॉ. हसन ने शिक्षा के क्षेत्र में अपना काम शुरू किया. शैक्षणिक रूप से पिछड़े इस जिले में शिक्षा की अलख जगाने का बीड़ा उठाते हुए 14 नवंबर 1966 को इंसान स्कूल की स्थापना की. हालांकि उन्हें इसके लिए कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा.

वे अपने इंटरव्यू में बताते हैं, ‘यहां के लोग मुझे सीआईए और पाकिस्तान का एजेन्ट समझते थे. सरकार ने भी मेरे पीछे सीआईडी लगा रखी थी. कई बार लोगों ने स्कूल में आग भी लगायी. लेकिन ऊपरवाले की मेहरबानी देखिए... सरकार ने मुझे फिर सेन्ट्रल एडवाईज़री बोर्ड का सदस्य बना दिया. 1986-96 तक मैं बोर्ड का सदस्य रहा. तब जाकर लोगों ने मुझ पर थोड़ा-बहुत ऐतबार करना शुरू किया.’

डॉ. हसन बताते हैं, ‘मैं पॉलिटिकल साईंस का स्टूडेन्ट हूं. मगर सियासत से हमेशा दूर रहा. कभी भी राजनीति में जाने की दिलचस्पी नहीं हुई. कभी किसी मंत्री को मैंने खुद से नहीं बुलाया और न ही मिलने गया...’

सैय्यद भाई के नाम से मशहूर डॉ. सैय्यद हसन एक भारतीय शिक्षाविद्, मानवतावादी और इंसान स्कूल के संस्थापक थे. 2003 में भारत की ओर से नोबेल शांति पुरस्कार के लिए उन्हें नामित किया गया था. भारत सरकार ने 1991 में उन्हें पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया. इसके अलावा शिक्षा के क्षेत्र में सेवाओं के लिए उन्हें जवाहरलाल नेहरू एजुकेशन पुरस्कार से सम्मानित किया गया थे.

डॉ. हसन की शोहरत का आलम यह था कि वे सिर्फ़ देश ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी अपने प्रगतिशील विचारों के लिए मशहूर थे. तालीम की रोशनी बांटने वाली जमातों की उन पर ख़ास नज़र थी. उन्हें अमेरिका से कप्पा डेल्टा फी की ओर से दो बार अवार्ड मिला, 1980 में नेहरू लिट्रेसी अवार्ड, 1990 में नेशनल इंट्रिगेशन अवार्ड और वर्ष 1991 में भारत सरकार के द्वारा पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित किए गए. 2002 में नेशनल इंट्रिगेशन अवार्ड मीडिया ग्रुप, 2005 में उर्दू वेलफेयर सोसायटी द्वारा लाइफ टाइम सोशल वेलफेयर बोर्ड, 2007 में नेहरू युवा केंद्र द्वारा लाइफ टाइम इंस्पीरेशनल ओनर, 2008 में शिक्षा भारती पुरस्कार के अलावा बैंकॉक में इंटरनेशनल एचीवेंट अवार्ड, बिहार सरकार द्वारा बिहार गौरव अवार्ड एवं अमेरिका में भी उन्हें कई अवार्ड से नवाजा गया.

और इन सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि आज उनके इस इंसान स्कूल से पढ़े हुए छात्र पूरी दुनिया में फैले हुए हैं. जो न सिर्फ देश में बल्कि पूरी दुनिया में अपना नाम रोशन कर रहे हैं. वे बड़े-बड़े ओहदों पर काम कर रहे हैं. जबकि यह सब कभी डॉ. हसन के 'झोपड़ियों का शहर'में रहा करते थे. जिन्हें तराश कर डॉ. हसन हीरा बनाने का काम किया.

डॉ. हसन ने कभी एक इंटरव्यू में कहा था –‘पहले deserve करो, फिर desire रखो.’ हमारी नई नस्ल के लिए डॉ. हसन एक सबक़ की तरह हैं. हर पल, हर लम्हा उनसे सीखने की ज़ररूत है. खासतौर पर तालीम के मैदान में काम करने की ज़रूरत है, क्योंकि डॉ. हसन का कहना था ‘जहालत दूर होने से ही गुरबत दूर हो सकती है...’

आज डॉ. हसन हम सबके बीच में नहीं हैं, लेकिन आज के ऐसे दौर में जब शिक्षा लगातार दौलतमंदों की जागीर बनती जा रही है, डॉ. हसन की कोशिशों का एक नायाब उदाहरण हमारे सामने खुद-ब-खुद आ जाती है. उन्होंने आने वाली पीढ़ी को तालीम से जोड़ने के ख़ातिर नींव मज़बूत करने का बेहद अहम काम किया. उनके योगदान को कभी भी भुलाया नहीं जा सकता है.

ऐसे में राज्य से लेकर केन्द्र सरकार तक - जो शिक्षा को आख़िरी आदमी तक पहुंचाने का दावा तो करती हैं, मगर हक़ीक़त में पत्ता भी हिलता नज़र नहीं आता - को डॉ. हसन की कोशिशों से सीखने की ज़रूरत है, क्योंकि ये सवाल हम सबका नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के मुस्तक़बिल का भी है.






मुज़फ्फरनगर: दंगा पीड़ित किशोरी का बलात्कार, पीटे गए परिजन

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By TwoCircles.net Staff Reporter

मुज़फ्फरनगर:इस शहद के बदनाम दंगे अभी थमने का नाम नहीं ले थे कि एक और घटना ने उत्तर प्रदेश में हो रही वारदातों की फेहरिस्त में अपनी जगह बना ली है. उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फरनगर में एक नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार का मुद्दा सामने आया है.

साल 2013 के दंगों के बाद सरकारी पुनर्वास के अंतर्गत बसाए गए परिवार की एक चौदह वर्षीया लड़की के साथ अंबेटा गांव के युवकों ने यौन दुराचार किया है. पीडिता के परिजनों ने जब इस घटना का विरोध किया तो आरोपितों ने परिजनों की भी पिटाई कर दी है.

जानकारी के मुताबिक़ नाबालिग किशोरी खेत में गयी थी जहां पहले से मौजूद तीन युवकों ने उसके साथ सामूहिक बलात्कार को अंजाम दिया. घटना के बाद लड़की बेहोशी की हालत में पायी गयी.

क्षेत्राधिकारी एनपी सिंह ने बताया कि पुलिस ने भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (बी) के साथ विभिन्न धाराओं के तहत तीन आरोपितों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है. और आरोपी फरार हैं.

इस मामले में यह देखना भी शायद ज़रूरी हो कि पूरी घटना में तथ्यात्मक सचाई कितनी है, क्योंकि पिछली बार भी मुज़फ्फरनगर और अन्य जगहों पर दंगे कुछ अफवाहों के आधार पर फैलाए गए थे.

मुसलमानों की असल समस्या सियासी जागरूकता का अभाव - रिहाई मंच

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By TCN News

गोण्डा/लखनऊ:गोण्डा में रिहाई मंच के सम्मेलन को संबोधित करते हुए संगठन के अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने कहा है, 'आतंकवाद के नाम पर बेगुनाह मुस्लिम नौजवानों को फंसाने की साज़िशें फिर से शुरू हो रही हैं. केंद्र और राज्यों की सरकारें इस फ़िराक में दिखाई दे रही हैं. इसी साजिश के तहत पिछले दिनों सम्भल से बेगुनाह नौजवानों को अलकायदा के नाम पर तो लखनऊ समेत देश के दूसरे हिस्सों से आईएस के नाम पर पकड़ा जा रहा है.'समाजवादी पार्टी के मुस्लिम नेताओं की चुप्पी पर सवाल उठाते हुए शुऐब ने कहा कि इन मंत्रियों का ऐसा चेहरा शर्मनाक है. जरूरी है कि इस चुनौती का सामना करने के लिए इन्साफपसंद अवाम संगठित हो.


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जुबैर खान का कहना है कि इंसाफ के बिना लोकतंत्र नहीं चल सकता. रिहाई मंच इंसाफ के लिए संघर्ष करते हुए लोकतंत्र को बचाने का काम कर रहा है. यह आंदोलन जितना व्यापक होगा लोकतंत्र उतना ही मजबूत होगा.

शोधछात्र अनिल यादव को मुज़फ्फरनगर के संघ कार्यालय में बंदी बनाने और उन्हें प्रताड़ित करने के सवाल पर यह बात सामने आ रही है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने कथित घिनौने विचारों को छुपाने के लिए छात्रों तक को प्रताड़ित करने पर उतारू हो गया है.

मंच के ही नेता शकील कुरैशी ने कहा कि इस देश व प्रदेश में अब तक की तमाम सरकारों ने मुसलमानों को कुछ दिया तो नहीं उलटा जीवित रहने के मौलिक अधिकारों को भी उनसे छीनने का प्रयास कर रही हैं. सरकार चाहे जिसकी हो, कभी सांप्रदायिक हिंसा के बहाने तो कभी आतंकवाद के बहाने मुसलमानों का उत्पीड़न जारी है. एक षडयंत्र के तहत मुसलमानों की इस हालत के लिए उनकी अशिक्षा और बेरोजगारी को ही जिम्मेदार बताया जा रहा है, जबकि इस समस्या की असल वजह मुसलमानों में सियासी जागरुकता का न होना है. अल्पसंख्यकों में सियासी जागरुकता लाकर लोकतंत्र को मजबूत करने के आंदोलन का नाम रिहाई मंच है.

इंसाफ अभियान के महासचिव और इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र नेता दिनेश चौधरी ने कहा, 'इस दौर में सबसे ज्यादा हमले दलितों और मुसलमानों पर हैं. लेकिन ब्राहमणवाद के खिलाफ नारा लगाने वाली पार्टी जहां उसी सवर्णवादी एजेण्डे को लागू कर रही है तो वहीं साप्रदायिकता से लड़ने के नाम पर मुसलमानों को वोट बटोरकर सत्ता में आई सपा ने अपने कार्यकाल में यूपी में दंगाईयों को खुली छूट देकर सबसे ज्यादा सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं को अंजाम दिलाया.'

रिहाई मंच के प्रवक्ता शाहनवाज आलम और राजीव यादव ने कहा कि खुफिया एजेंसियों के सांप्रदायिक खेल को मुस्लिम समाज अब धीरे-धीरे समझने लगा है और अब वह डरने के बजाय लड़ने के लिए तैयार हो रहा है. रिहाई मंच की अपील है कि भविष्य की राजनीति को बदलने और बदलाव की बयार को और संगठित करने के लिए आमजन अपने यहां रिहाई मंच की कमेटियों को कायम करें.

'आप'विधायक पहुंचे संजरपुर, बटला एनकाउंटर पर उठाए सवाल

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Afroz Alam Sahil, TwoCircles.net

संजरपुर:आज़मगढ़ के संजरपुर पहुंचे आम आदमी पार्टी के ओखला विधायक अमानतुल्लाह ख़ान ने बटला हाउस एनकाउंटर में सलाखों के पीछे सड़ रहे नौजवानों की ख़ातिर इंसाफ़ का नारा बुलंद किया.

अमानतुल्लाह ख़ान ने सोमवार को आज़मगढ़ के संजरपुर इलाक़े में पहुंचकर ‘आतंकवाद’ के नाम पर गिरफ़्तार नौजवानों के परिजनों से मुलाक़ात की. खास बात यह है कि ये नौजवान ओखला के बटला हाउस इलाक़े में ही रह रहे थे, जब इन्हें ‘आतंक से कनेक्शन’ के आरोप में दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल ने उठाकर सलाखों के पीछे डाल दिया. तब से अब तक न मुक़दमों में कोई ठोस नतीजे आए हैं और न ही किसी ने इनको इंसाफ़ दिलाने में कोई खास पहल की है.

आम आदमी पार्टी के विधायक अमानतुल्लाह ख़ान ने भरोसा दिलाया कि वे न सिर्फ़ इस मुद्दे को उठाते रहेंगे, बल्कि देश में आतंकवाद के नाम पर हो रही फ़र्ज़ी गिरफ़्तारियों के ख़िलाफ़ एक देशव्यापी आन्दोलन भी जल्द ही आरंभ करेंगे.

Amanatullah Khan in Azamgarh

इस मुलाक़ात में यहां लोगों को अमानतुल्लाह ख़ान ने सुप्रीम कोर्ट के डी.के. बासु गाईडलाइन्स से भी रूबरू कराया और इस बात की भी जानकारी दी कि वो पहले भी आतंकवाद के नाम पर फ़र्ज़ी गिरफ़्तारियों व बटला हाउस एनकाउंटर पर आवाज़ उठाते रहे हैं. दिल्ली विधानसभा के सदन में भी इसके बारे में आवाज़ बुलंद कर चुके हैं और आज फिर आप सबसे वादा करता हूं कि आगे भी इस मसले पर आवाज़ उठाता रहुंगा.

उन्होंने कहा कि –‘खुफिया एजेन्सी बेक़सूरों को पकड़कर ज़बरदस्ती आतंकी बना देते हैं. जबकि यह हक़ किसी को नहीं है, न मीडिया को और न पुलिस को’

आगे उन्होंने कहा कि –‘अब कहीं न कहीं से आवाज़ ज़रूर उठनी चाहिए. शुरूआत संजरपुर से हो, फिर जिस जगह से बेक़सूर नौजवानों को उठाते हैं, वहीं जाकर एक जलसा किया जाए.’

उन्होंने सवालिया अंदाज़ में कहा कि –‘क्या हमें खुली हवा में सांस लेने का अधिकार नहीं है? हम कब तक सबूत देते रहेंगे कि हम इस मुल्क से मुहब्बत करते हैं? हम कब तक सबूत दें कि हम वफ़ादार हैं, आंतकवादी नहीं.’

आगे उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार इस मसले के समाधान के लिए जल्द से जल्द एक कमिटी गठित करें, जो इस बात की जांच करे कि आतंकवाद के नाम पर जो भी गिरफ़्तारियां हो रही हैं, वो सच में सही या नहीं? इस जांच की तय समय-सीमा भी हो, और वो अधिक से अधिक एक साल होना चाहिए.

पीड़ित परिवारों की ओर से शादाब अहमद उर्फ मिस्टर भाई ने अपनी बातों को रखते हुए कहा कि –‘दिल्ली में आप की सरकार है. अपने अधिकार-क्षेत्र में रहते हुए वो दिल्ली के जेलों पर ध्यान दें कि क्यों वहां जेल मैन्युअल फॉलो नहीं हो रहे हैं? क्यों जेलों में मुसलमानों पर हमले बढ़े हैं? इस पर कुछ किए जाने की ज़रूरत है. साथ ही दिल्ली सरकार यह भी यक़ीनी बनाए कि कम से कम जेल के अंदर आतंक के आरोप में पकड़े गए नौजवान महफ़ूज़ रहें.’

वहीं मसीहुद्दीन संजरी ने बताया कि –‘खुफ़िया विभाग फिर से आज़मगढ़ को टारगेट करने की कोशिशें लगातार कर रही है. ऐसे में हमारे तमाम उलेमा व रहनुमाओं को अपने सारे मसलकी मसलों को भूलकर एक हो जाना चाहिए.’

इस बैठक में यहां के सामाजिक कार्यकर्ता तारिक़ शफ़ीक़ ने अमानतुल्लाह ख़ान के सामने यह बात रखी कि वो दिल्ली सरकार के सामने यह मांग उठाएं कि जब दिल्ली सरकार 1984 के सिक्ख दंगों के मामले में एसआईटी का गठन कर चुकी है तो फिर बटला हाउस के मामले में एसआईटी का गठन करने से क्यों कतरा रही है. जबकि बटला हाउस एनकाउंटर के मामले में खुद मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल मानते हैं कि यह एनकाउंटर फ़र्ज़ी है. इस सिलसिले में वो कई बार बयान भी दे चुके हैं.

स्पष्ट रहे कि आज़मगढ़ को मीडिया ने जिस तरीक़े से पेन्ट किया है कि वो ‘आतंकगढ़’ के तौर पर जाना जाने लगा है, लेकिन यहां आकर मालूम पड़ता है कि हक़ीक़त दूसरी भी हो सकती है. ज़रूरत निष्पक्ष और समय सीमा के भीतर जांच व इंसाफ़ की प्रक्रिया को पूरी करने की है. आम आदमी पार्टी के विधायक अमानतुल्लाह ख़ान ने जिस मुद्दे को आवाज़ दी है, उसे निश्चित तौर पर आगे ले जाने की है. अब आगे देखना दिलचस्प होगा कि उनकी पार्टी उनके इस क़दम पर क्या प्रतिक्रिया देती है.

सैय्यद हसन की याद में नज़्म

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आह सय्यद हसन!

(अपने उस्ताद मुहतरम जनाब सय्यद हसन साहब, को मनज़ूम खिराज-ए-अक़ीदत)>

By नदीम ज़फर जिलानी

हर शख़्स सोगवार है, हर आँख अश्कबार,
ग़ुंचे, लिपट के फूलों से रोते हैं बार-बार,

उस बाग़बाँ के जाने का मातम चमन में है,
बंजर ज़मीं को जिसने बनाया था लाला-ज़ार,

दुन्या को दे रहा था जो इंसानियत का दर्स,
ख़ामोश हो गया वही, दरवेश-ए- ख़ाकसार I


Dr. Hasan in USA 1

मोहलत मिली न सय्यद-ए-आली-मुक़ाम को,
अपने चमन की देखी न पच्चास्वीं बहार *

रौशन किया अँधेरे में तालीम का चिराग़,
मानी न जिसकी लौ ने कभी आँधियों से हार I

बे-लौस मुल्क-व-क़ौम की ख़िदमत में था मगन,
शौक़-ए-नमूद-व-नाम, न सौदा-ए-इश्तेहार!

उस "शख़्सियत-तराश"के फ़न का सुबूत हैं,
बे-मायह पत्थरों से जो निकले हैं शाहकार!

थी सादगी मिज़ाज में अज़मत ख़याल में,
अपनी ख़ुदी की उस पे हक़ीक़त थी आशकार I

"जन्नत ख़ुदा के बन्दों की ख़िदमत का है सिला,
अपना हो या के ग़ैर, लुटाओ सभी पे प्यार"

"काँटे अगर हटाते चलें रास्तों से हम,
धरती बनेगी अपनी गुलिस्तान-ए-खुशगवार" I

"मेराज आदमी की है, इंसान बन सके",
'सय्यद हसन'ने है दिया पैग़ाम यादगार !!

बेदार करके क़ौम को अब सो गया है वो,
उसकी तड़प को आख़िरश आ ही गया क़रार !

बुझने न पाएँ उस ने जलाये हैं जो दिए,
इस रौशनी को अब हमें रखना है बरक़रार !!

(नदीम ज़फर जिलानी, मैनचेस्टर, इंग्लैंड में डॉक्टर हैं. उनसे nzjilani@gmail.comपर संपर्क किया जा सकता है.)

रोहित वेमुला के नाम मार डाले गए एक होनहार का ख़त

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By ए मिरसाब, TwoCircles.net

देश में हैदराबाद विश्वविद्यालय के छात्र रोहित वेमुला की मृत्यु के बाद एक शोक और आक्रोश का मिश्रित माहौल है. विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा निकाले जाने के बाद उससे पैदा हुई परिस्थितियों के चलते 26 साल एक रोहित को आत्मह्त्या करनी पड़ी.

लेकिन यह कोई पहली घटना नहीं थी जिसमें शिक्षा और सामाजिकता के पिछड़े तबके से ताल्लुक रखने वाला कोई होनहार इस देश और युवाओं को छोड़कर चला गया. ऐसी घटनाओं में देश के अग्रणी समाज का नाहक दखल और उसके खौफ़नाक परिणाम मुख्य कारण होते हैं.

Rohith Vemula

पुणे के आईटी कंपनी में काम करने वाले मोहसिन सादिक़ शेख़ की ह्त्या भी ऐसी ही एक घटना थी. कट्टरपंथी हिन्दूवादी संगठनों द्वारा मोहसिन सादिक़ शेख़ की हत्या के बाद लगभग ऐसे ही फलसफे सामने आए जैसा रोहित वेमुला की (आत्म)ह्त्या के बाद.

2 जून 2014 को सोलापुर के 24 वर्षीय मोहसिन सादिक़ शेख़ को कट्टरपंथी संगठन हिन्दू राष्ट्र सेना ने उस वक़्त मार दिया गया जब वह रात नौ बजे मस्जिद से नमाज़ अता करने के बाद वापिस लेत रहा था. मोहसिन की ह्त्या के बारे में यह तथ्य प्रचलित हैं कि हिन्दू राष्ट्र सेना के सदस्यों ने मोहसिन के चेहरे पर दाढ़ी देखने के बाद उसे मारने का निर्णय लिया.

अब मोहसिन हम सबके बीच नहीं है. मोहसिन के पास यह मौक़ा भी नहीं था कि वह अपना अंतिम पत्र लिख सके. कि वह ये न लिख सका कि ‘आखिर में बस यह ख़त लिख पा रहा हूं.’ इसे एक बहाने के तरह लेते हुए मैंने जो कुछ लिखा है, वह ‘रोहित वेमुला के नाम मोहसिन सादिक़ शेख़ का ख़त’ है.

प्यारे रोहित,

मुझे ख़ासा गम है कि तुमने इस रास्ते को चुना. लेकिन मुझे कहीं न कहीं यह लगता है कि तुम अपनी मौत के बाद उस उपलब्धि के मिलने पर संतुष्ट हो, जो शायद तुम्हें जीते-जी न मिलती. तुम्हारे जाने के बाद समाज के सभी धर्मों और सभी वर्गों में भेदभाव और सत्तात्मक वर्णव्यवस्था के खिलाफ आन्दोलन हो रहे हैं.

मुझे भी विज्ञान, प्रकृति और तारों-ग्रहों-नक्षत्रों से प्यार था, ठीक तुम्हारी तरह. लेकिन मुझ पर मेरे परिवार की जिम्मेदारियां भी थीं. मैंने अपने सपनों को अपने परिवार से पीछे रखा. ऐसा परिवार, जिसमें तमाम रोगों से जूझता एक बाप, एक बूढ़ी मां और सपने देखने वाला एक छोटा भाई था. उनके जीवन में कुछ बेहतर हो सके, वे अच्छे से जी सकें, यही मेरे जीवन का लक्ष्य था. लेकिन सच कह रहा हूं कि मुझे नहीं पता था कि इस समाज में ऐसे लोग भी हैं जिनमें लोगों के लिए नफ़रत भरी है और उस नफ़रत के तहत वे मुझ जैसे लोगों का खून भी बहा सकते हैं.

इंसान के अस्तित्त्व के बारे में तुमने लिखा था कि वह गिरकर फौरी पहचान और संभावनाओं तक सिमटी रह गयी है. तुम्हारा यह लिखना 18 महीनों पहले ही सही साबित हो गया था जब मुझे कट्टरपंथियों ने सिर्फ़ एक दाढ़ी से खफ़ा होकर मार दिया था. पीटे जाने और जान से मार दिए जाने तक तो मुझे पता ही नहीं था कि मेरी गलती क्या थी?

इसे मेरा दुर्भाग्य ही कहेंगे कि मेरी मौत के बाद देश में कोई भी प्रदर्शन, धरना या अनशन नहीं हुए. बहसें भी ज्यादा नहीं हुईं. यदि यह सब हुआ होता तो शायद हैदराबाद विश्वविद्यालय में ऐसे माहौल न पनपे होते और तुम्हें भी खुद को ख़त्म कर देने की ज़रुरत नहीं पड़ी होती.

तुम्हें डर था कि आखिरी रास्ता तय करने के बाद लोग तुम्हें डरपोक और कायर कहेंगे. लेकिन मेरा भरोसा करना कि लोगों ने मुझे उस वक़्त बहादुर या निडर भी नहीं कहा था जब आस्था के लिए रखी गयी दाढ़ी के चलते मैं मार दिया गया.

तुमने एक ख़त लिखा. तुम्हारी मौत की बाद भी वह ख़त पूरे भूगोल में गूंज रहा है, उसके कई संस्करण लोग पढ़-सुन रहे हैं. लेकिन मरने से पहले मैं अपने परिवार को अपने एटीएम का पिन तक नहीं बता सका. यह भी नहीं कि मैंने किस-किससे पैसे उधार लिए हैं?

तुम्हारी मौत के पांच दिनों बाद जब प्रधानमंत्री ने तुम्हारी माँ के लिए सहानुभूति प्रकट की तो तुम्हारी घटना को एक भरमाने वाली तवज्जो मिली. लेकिन यह कचोटता है कि जब मेरी मौत हुई तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चुप थे. ऐसे चुप जैसे मेरी कोई मां ही न हो, ऐसे चुप जैसे मैं भारत का नागरिक ही न था.

ग़नीमत है कि तुम्हारे मरने के बाद आंध्र प्रदेश की सरकार ने तुम्हारी माँ और भाई को नौकरी देने का वादा किया है. लेकिन मेरे बाद चीज़ें उतनी अच्छी नहीं रहीं. मेरे बाद महाराष्ट्र सरकार पत्थर के बुत में तब्दील हो गयी. पृथ्वीराज चव्हाण द्वारा मेरे भाई को नौकरी देने का किया गया वादा भी नकार में तब्दील हो गया.

तुम्हारा ख़त पढ़ने के बाद मैं रो रहा हूं.

मुझे यह मौक़ा ही नहीं मिला कि मैं अपने परिवार से कह सकूं कि मेरे जाने के बाद सरकार से मिलने वाली किसी भी सहायता को स्वीकार मत करना और अपनी गरिमा बनाए रखना.

मेरा यह मानना है, बल्कि मैं ऐसी ख्वाहिश भी रखता हूं कि तुम्हारा त्याग हमारे समाज को एक चेतना से भरे. ऐसी चेतना, जिसके आगोश में कोई भी होनहार अपना जीवन न गँवाए. तुम्हें हमेशा विजेता की तरह देखा जाए न कि किसी शिकार की तरह.

मैं अपने मरने से पहले तो नहीं कर पाया लेकिन अब इस ख़त को पढने वाले लोगों से अपील करता हूं कि वे मेरे परिवार के साथ खड़े हों. वे मेरे परिवार की मदद करें ताकि रोजाना मेरी मौत का गम उन्हें अंधेरे की ओर न ले जाए.

मैं उनसे यह भी कहता हूं कि वे तुम्हारे व्यक्तित्व और तुम्हारे ख़त को सिर्फ किसी दोषी को सजा दिलवाने के लिए इस्तेमाल न करें. यह जनचेतना का आधार बने. यह एक उजाला बने जिसमें यह देखा जा सके कि मैं और तुम समाज के किसी दबाव या दमन के अंधेरे में नहीं मरे.

तुम्हारा,
मोहसिन सादिक़ शेख़


सिमी से संबंध के आरोप में गिरफ़्तार 5 मुस्लिम नौजवान बाइज़्ज़त बरी

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TwoCircles.net News Desk

स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ़ इंडिया यानी ‘सिमी’ एक बार फिर ख़बरों में हैं. मीडिया में आने वाली ख़बरों के मुताबिक़ इस्लामिक स्टेट (आईएस) का भारतीय मॉडयूल मृत पड़े संगठन इंडियन मुजाहिदीन और सिमी के तत्वों द्वारा चलाया जा रहा है.

वहीं दूसरी तरफ़ यह भी ख़बर है कि बीते दिनों पानीपत स्टेशन पर खाली खड़े पैसेंजर ट्रेन में कम तीव्रता के बम धमाकों में 2013 में मध्यप्रदेश की जेल से फ़रार हुए प्रतिबंधित छात्र संगठन सिमी के सदस्यों का हाथ हो सकता है. यह बात राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने जीआरपी हरियाणा के अधिकारियों को दी है.

अंग्रेज़ी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस ने जीआरपी सूत्रों के हवाले से बताया है कि एनआईए ने पानीपत विस्फोट की जांच के बाद अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पानीपत धमाकों में जो सैंपल्स मिले हैं, वैसी चीजें सिमी द्वारा इस्तेमाल की जाती है.

इस ख़बर को अधिकतर हिन्दी मीडिया ने प्रमुखता के साथ प्रकाशित किया है. लेकिन हम यहां एक ऐसी ख़बर आपके सामने रख रहे हैं, जिसे एक-दो उर्दू अख़बारों को छोड़कर किसी भी अख़बार या वेबसाईट ने यह ख़बर प्रकाशित नहीं की है.

यह ख़बर सिमी से संबंध रखने के आरोप में गिरफ़्तार हुए 5 नौजवानों के बाइज़्ज़त बरी होने की है.

स्पष्ट रहे कि 2006 में मुम्बई में होने वाले सिलसिलेवार बम धमाकों में मुम्बई क्राईम ब्रांच ने 13 अगस्त 2006 को शहर के अलग-अलग इलाक़ों से पांच मुस्लिम नौजवानों को गिरफ़्तार किया था. इन पांचों नौजवानों पर प्रतिबंधित संगठन सिमी से संबंध रखने और ग़ैर-क़ानूनी सरगर्मियों में संलिप्त होने का आरोप लगाया गया.

लेकिन अब मंगलवार को स्थानीय अदालत ने पांचों आरोपित नौजवानों, इरफ़ान सैय्यद, नजीब बकाली, फ़िरोज़ घासवाला, मोहम्मद अली चीपा और इमरान अंसारी को बाइज़्ज़त बरी कर दिया है.

चीफ़ मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट महेश आर. नाटो ने इन पांचों मुस्लिम नौजवानों को बरी करने का आदेश सुनाते हुए यह स्पष्ट किया कि इन आरोपियों के विरुद्ध पुलिस के पास कोई सबूत नहीं थे और न ही पुलिस कोई आरोप साबित कर पाई.

इस मामले की पैरवी एडवोकेट सत्याराम गौड़, इशरत अली ख़ान, तहूर ख़ान पठान, जमाल ख़ान और एडवोकेट आफ़ताब कुरैशी कर रहे थे.

अदालत के इस फैसले पर जमीअत-ए-उलेमा-ए-हिन्द (महाराष्ट्र) के अध्यक्ष मौलाना नदीम सिद्दिक़ी ने खुशी का इज़हार करते हुए कहा कि –‘यह सच्चाई की जीत है.’

शहीद-ए-आज़म भगत सिंह से क्यों डरता है आरएसएस?

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TwoCircles.net News Desk

नई दिल्ली :आज़ादी के मुजाहिदों में सितारों की तरह चमकने वाली देश और दुनिया में प्रख्यात क्रन्तिकारी युवा दिलों की धड़कन शहीद-ए-आज़म भगत सिंह का नाम भी अब मोदी सरकार को नहीं जंच रहा है.

केंद्र के बड़े संस्थानों में संघ से सम्बंधित लोगों को बिठाने के बाद 2007 में केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित और पंजाब और हरियाणा सरकारों ने 2009 और 2010 में विधानसभा से चंडीगढ़ एयरपोर्ट का नाम "शहीद-ए-आज़म भगत सिंह एयरपोर्ट"पारित किया था, लेकिन अभी की खट्टर की हरियाणा सरकार ने फैसला कर आरएसएस से सम्बंधित मंगल सेन के नाम का एलान किया है, जिससे देश के युवा छात्र और शहीदों का परिवार ग़ुस्से में है. लेकिन सरकार टस से मस होने को तैयार नहीं है. हालांकि इस मामले से संबधित मांग-पत्र देश के राष्ट्रपति को भी सौंपा गया है.

Bhagat Singh Action Committee

मुजाहिद-ए-आज़ादी के इस अपमान को लेकर प्रो. चमन लाल और भगत सिंह के भांजे प्रो. जगमोहन सिंह की सरपरस्ती में एक नए आंदोलन "एक्शन कमिटी फॉर भगत सिंह एयरपोर्ट"का गठन हुआ है. इस तहरीक के लिए युवा नेता अमीक़ जामेई को कन्वीनर और भगत सिंह के भाई के पोते और युवा नेता अभितेज सिंह संधु और कांग्रेस के युवा लीडर शहज़ाद पूनावाला को को-कन्वीनर चुना गया चुना गया है.

इस मसले को लेकर हुए एक बैठक में एक्शन कमिटी के को-कन्वीनर भगत सिंह के भाई के पोते और युवा नेता अभितेज सिंह संधु ने कहा कि –‘यदि हमारी मांगे नहीं मानी गयी तो चंडीगढ़ अंतर्राष्ट्रीय चंडीगढ़ एयरपोर्ट पर उड़ान भरने नहीं दी जाएगी.’

उन्होंने कहा कि –‘पाकिस्तान के युवाओं-सरकार द्वारा शादमान चौक का नाम शहीद-ए-आज़म भगत सिंह की याद में रखने की मुखालिफ़त जमात-उद-दावा करे तो समझ में आता है, लेकिन अपने मुल्क में शहीद-ए-आज़म भगत सिंह का आरएसएस क्यों विरोध कर कोई और नाम क्यों दे रही है?’

आंदोलन के अग्रणी नेता धीरज गाबा का कहना है कि –‘दरअसल सरकार नहीं चाह रही है कि देश में उस शहीद-ए-आज़म भगत सिंह को युवा जाने, जिन्होंने सोशलिस्ट, सेक्यूलर मुल्क व शोषण-विहीन देश का सपना देखा था. जिन्होंने शोषित वर्ग को शोषण के खिलाफ़ इंक़ेलाब का हथियार थमाया था. जिसने 23 साल की उम्र में किसान मज़दूर और कामगार को ग़ुलामी की बेड़ियां तोड़ने का हुनर दिया दिया था.’

वहीं TwoCircles.net से बातचीत में कन्वीनर अमीक़ जामेई ने बताया कि –‘सरकार अगर जल्दी ही होश में नहीं आई तो इस मसले को लेकर 25 फरवरी को दिल्ली के जंतर-मंतर पर हज़ारों की संख्या में एकत्रित होकर संसद का घेराओ करेंगे. इसके लिए एक्शन कमेटी राजनैतिक दलों व सामाजिक संगठनों से मुलाक़ात कर समर्थन हासिल कर रही है.’

अमीक़ के मुताबिक़ एक्शन कमेटी राजनैतिक दलों के अलावा देश के तमाम प्रगतिशील छात्र-युवा और सामाजिक जन-संगठनों से संपर्क कर रही है और उनसे आह्वान कर रही है कि वो इस आंदोलन की अगुवाई करें. इतना ही नहीं, एक्शन कमेटी कॉलेज स्कूल में जाकर जागरूकता अभियान भी चलाएगी.

सुत्रों की माने तो अन्ना हज़ारे भी शहीदों के इस अपमान को लेकर आंदोलन में कूद सकते हैं.

आज भी ख़ौफ़ज़दा है आज़मगढ़ का संजरपुर

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Afroz Alam Sahil, TwoCircles.net

आज़मगढ़ के संजरपुर में घुसते हुए कहीं से भी नहीं लगता कि यह अलग गांव है. वैसे ही चौड़ी सड़कें, लहलहाती फ़सलें, मिठाई की दुकानें, बाज़ार में दुकानदारों का शोर, खेल के मैदानों में क्रिकेट टूर्नामेंट खेलते नौजवान और इस खेल को देखने के लिए हज़ारों की भीड़…

Sanjarpur

यानी सबकुछ वैसा ही है, जैसा किसी बड़े गांव में होता है. बल्कि कुछ मामलों में संजरपुर देश के बाक़ी गांव से काफ़ी आगे मालूम पड़ता है. यहां बात करने पर लोग भी बड़ी बेतकल्लुफ़ी से जवाब देते हैं. कहीं से भी यह नहीं लगता कि यहां लगभग 8 साल पहले कुछ असामान्य हुआ था.

लेकिन हम जैसे ही संजरपुर के भीतरी हिस्सों में दाख़िल होते हैं. इस गांव के माथे पर लगे दाग़ का असर भी महसूस होने लगता है. छिपी हुई हक़ीक़त आंखों में चुभने लगती है. संजरपुर की हक़ीक़त यही है कि यहां का युवा आज भी ख़ौफ़ व दहशत के माहौल में उम्र काट रहे हैं. यहां के बुजुर्ग अपने उन बच्चों के बारे में बेहद फ़िक्रमंद और डरे हुए हैं, जो ‘आतंक’ के ‘कनेक्शन’ में पकड़े गए और सालों से अदालत के फैसले के इंतज़ार में जेल के सलाखों के पीछे सड़ रहे हैं.

Sanjarpur

स्पष्ट रहे कि आज़मगढ़ के 2 लड़के बटला हाउस ‘एनकाउंटर’ में मारे गए. उसके बाद कुल 15 लड़के गिरफ़्तार हुए. पहले 7 फ़रार थे, लेकिन 2012 में एनआईए ने एक एफ़आईआर में दो को और फ़रार घोषित किया. संजरपुर की विडंबना ये है कि बटला हाउस ‘एनकाउंटर’ में जितने युवक मारे गए, उसके बाद जितने पकड़े गए और जितने फ़रार बताए गए हैं उनमे से अधिकांश यहीं के रहने वाले हैं.

पीड़ित परिवार से जुड़े शादाब अहमद उर्फ मिस्टर भाई TwoCircles.netसे एक लंबी बातचीत में बताते हैं कि –‘पहले जब केस दिल्ली के तीस हज़ारी कोर्ट में था, तब उसकी रफ़्तार तेज़ थी, लेकिन एक साल पहले जबसे स्पेशल सेल से जुड़े केसों को पटियाला कोर्ट में शिफ्ट कर दिया गया है, तब से हमारे केस की रफ़्तार काफी धीमी हो गई है.’

वो बताते हैं कि –‘सुनवाई की रफ़्तार इतनी धीमी है कि फैसले की उम्मीद दूर-दूर तक नज़र नहीं आ रही है.’ उनके मुताबिक़ अभी 300 से 400 गवाहियां होनी बाक़ी हैं.

मिस्टर भाई सीने में दबे अपने ग़म को छिपाने के लिए चेहरे पर हर समय मुस्कुराहट रखते हैं, लेकिन बात करते हुए उनके सीने का दर्द साफ़ झलक रहा है. उनके दर्द का अंदाज़ा आप इस बात से ही लगा सकते हैं कि जहां एक तरफ़ छोटा लड़का सैफ़ जेल के सलाखों के पीछे बंद है, वहीं बड़ा लड़का डॉक्टर शाहनवाज़ फ़रार बताया जा रहा है. एक तरफ़ बेटा सैफ़ सलाखों के अंदर पुलिस का ‘टार्चर’ झेल रहा है, तो बाहर पिता समाज व खुफिया विभाग व पुलिस का ‘टार्चर’ झेल रहे हैं.

यह कहानी सिर्फ़ सैफ़ के परिवार की ही नहीं है. बल्कि संजरपुर में कई ऐसे परिवार हैं, जिनके घर के युवाओं के ख़िलाफ़ दिल्ली, अहमदाबाद और जयपुर में हुए बम धमाकों में हाथ होने के आरोप है.

मो. शाकिर जो फ़रार घोषित हुए बड़ा साजिद के भाई हैं, का कहना है कि –‘बार-बार साजिद के मरने की ख़बरें अख़बारों में आती हैं, तो कम से कम पुलिस उसकी लाश को ही हमें सौंफ देती, ताकि हमें तसल्ली तो हो जाती.’

वहीं मो. राशिद जो फ़रार घोषित हुए मो. खालिद के बड़े भाई हैं, बताते हैं कि –‘खालिद का तो कुछ अता-पता नहीं है, लेकिन अख़बारों में इसके कभी यहां कभी वहां होने की ख़बरें छपती रहती हैं. अभी ख़बर आई थी कि वो सीरिया में हैं. अब आप ही सोचिए, अगर वो पुलिस की गिरफ़्त में नहीं होता तो घर से सम्पर्क तो ज़रूर करता.’

संजरपुर की हालत यह है कि इस गांव के लोगों को आतंक के ठप्पे के चलते वो बुनियादी हक़ व हक़ूक़ भी नसीब नहीं है, जो इस देश के आम नागरिकों को हासिल है. आज भी यहां के युवक पासपोर्ट के ख़ातिर तरस रहे हैं. राशन कार्ड से लेकर वोटर आईडी कार्ड तक बनवाने में इन्हें अपनी ज़ेहनियत साबित करने के लिए तमाम तरह के सबूतों की दरकार होती है. क्योंकि सरकारी एजेंसियां इन्हें हमेशा शक की निगाह से देखती हैं.

सामाजिक कार्यकर्ता मसीहुद्दीन संजरी बताते हैं कि –‘जिन परिवारों के बच्चों के नाम किसी भी रूप में तथाकथित ‘आतंक’ के साथ जुड़ गया है, उनके यहां पासपोर्ट बनना लगभग नामुमकिन सा है. लेकिन उसके अलावा यहां के अन्य लोगों से भी एक्सट्रा डॉक्यूमेंट्स मांगे जाते हैं, जो आमतौर पर दूसरे ज़िलों में नहीं मांगा जाता’

संजरी बताते हैं कि –‘आज भी देश के अन्य भागों में आज़मगढ़ के बच्चों को परेशान किया जाता है. यहां के बच्चों का तालीम काफी ज़्यादा मुतासिर हुआ है. अब कोई भी अपने बच्चों को पढ़ने के लिए बाहर भेजना नहीं चाहता. वहीं रोज़गार भी खासा असर पड़ा है. युवाओं में बेरोज़गारी बढ़ी है. पासपोर्ट न बनने की वजह से कोई विदेश भी नहीं जा पा रहा है.’

हैरानी इस बात की है कि इनके हक़ में शोर करने वाली तमाम आवाज़े भी अब ख़ामोश हो चुकी हैं. न कोई इन्हें देखने आता है और न कोई इन्हें सुनने आता है. दूसरी तरफ़ आईएस जैसी आसमानी आफ़त इनके उपर साये की तरह मंडराने लगी है. क्योंकि खुफ़िया एजेंसिया इस ‘आफ़त’ को इनके सर पर मढ़ने की क़वायद में जुट चुकी हैं. अख़बार के रंगीन पन्नों में अभी से इन साज़िश की बू साफ़ दिखाई दे रही है.

Sanjarpur

संजरी बताते हैं कि –‘एक बार फिर आज़मगढ़ को बदनाम करने की साज़िशें सामने आने लगी हैं. हिन्दी अख़बारों में आज़मगढ़ से संबंधित तरह-तरह की ख़बरें आ रही हैं. 2015 -सितम्बर के महीने में यह ख़बर यहां के अख़बारों में आई कि आज़मगढ़ का एक लड़का आईएस के लिए लड़ रहा है, पर अब वो वापस आना चाहता है. जब इस संबंध में यहां के अधिकारियों से सम्पर्क किया गया तो उन्होंने इस बात से इंकार दिया कि किसी ने उनसे कोई सम्पर्क किया है. अख़बार में छपे इस ख़बर की पुष्टि अब तक नहीं हो पाई है कि वो लड़का कौन है? आज़मगढ़ में कहां का रहने वाला है?’

संजरपुर के बुजुर्गों की विडंबना यह है कि उन्हें जिस न्याय-तंत्र से उम्मीद है, उसकी रफ़्तार इतनी धीमी है कि उन्होंने यह उम्मीद भी छोड़ दिया है कि उनके ज़िन्दा रहते अदालत का कोई फैसला आ पाएगा.

मीडिया की ‘मोदी-भक्ति’: कांग्रेस के ‘सफ़ाया’ के लिए ओवैसी का लिया सहारा!

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Afroz Alam Sahil, TwoCircles.net

आज के डिटीजल दुनिया में यदि ‘मैग्गी जर्नलिज़्म’ का उदाहरण देखना है तो अकबरूद्दीन ओवैसी के बयान पर भारतीय मीडिया के इस ख़बर को देखिए...

Screen Shot of IBN7 Website

आईबीएन-7 की वेबसाईट http://khabar.ibnlive.com/ने अपने ख़बर में ओवैसी व नरेन्द्र मोदी को दोस्त बताते हुए लिखा है कि –‘ एमआईएम और नरेंद्र मोदी मिलकर कांग्रेस को देश से उखाड़ फेंकेंगे.’

इस वेबसाईट ने अपनी ख़बर में लिखा है कि –‘अपने भाषण के अंत में अकबरुद्दीन ने यह हैरान कर देने वाला बयान दिया. उन्होंने कहा, 'कांग्रेसी नेता गांधी परिवार के गुलाम हैं. नरेंद्र मोदी के साथ मिलकर मैं सारे देश से कांग्रेस को साफ करूंगा.'’

Screen Shot of IBN7 Website

आगे इस ख़बर में यह भी लिखा गया है कि –‘पूरी सभा में अकबरुद्दीन ने कांग्रेस पर ही हमला किया. सीनियर कांग्रेसी नेता हनुमंत राव ने इसकी निंदा की है. राव ने कहा कि ओवैसी का बीजेपी के साथ छुपा हुआ गठबंधन है. बता दें कि महाराष्ट्र और बिहार में एमआईएम पर बीजेपी के साथ होने का आरोप लग चुका है.’

ये ख़बर CNN IBN की अंग्रेज़ी वेबसाइट http://www.ibnlive.com/ने भी किया है.

Screen Shot of CNN IBN Website

यह पूरी ख़बर ग्रेटर हैदराबाद म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन (जीएचएमसी) चुनाव के मद्देनज़र 30 जनवरी को मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिमीन (मजलिस) की बाबा नगर में हुई आम जनसभा में ओवैसी द्वारा दिए गए भाषण के वीडियो के हवाले से लिखा गया है.

लेकिन जब आप 1 घंटे 08 मिनट के इस पूरे वीडियो को सुनेंगे तो पाएंगे कि इस ख़बर में कोई सच्चाई नहीं है. सच तो यह है कि अकरूद्दीन ओवैसी ने ‘नरेंद्र मोदी के साथ मिलकर मैं सारे देश से कांग्रेस को साफ करूंगा.’ नहीं कहा, बल्कि वीडियो में 55:35 मिनट पर यह कहा कि –‘बड़ी धूम से नरेन्द्र मोदी के साथ इस कांग्रेस का जनाज़ा भी उठाऊंगा.’

इस जुमले के फौरन बाद ओवैसी ने मोदी को निशाने पर लिया और आरएसएस का जमकर मज़ाक उड़ाया. अकरूद्दीन इतने पर भी नहीं रूके. आगे यह भी कहा कि –‘मैं बीफ़ खाता हूं और खाता रहुंगा. मज़े में कोई कम्प्रमाइज़ नहीं कर सकता.’

आईबीएन की ख़बर में भले लिखा हो कि अकबरूद्दीन ने सिर्फ कांग्रेस पर हमला बोला, लेकिन सच तो यह है कि अकरूद्दीन के निशाने पर सबसे पहले मोदी ही रहें. अकबरूद्दीन ने पीएम मोदी का जमकर मज़ाक उड़ाया.

अकबरूद्दीन ओवैसी ने मोदी का मज़ाक उड़ाते हुए बोला कि –‘पीएम में कोई क़ाबलियत नहीं, कुछ भी सलाहियत नहीं, कुछ भी जानकारी नहीं... सिर्फ़ एक ही क़ाबलियत है कि ये शख़्स 2002 में गुजरात को जलता हुआ देखता रहा, खामोश रहा, जलाने वालों को खुली छूट दी और मैं तो ये कहूंगा कि गुजरात को जलाने का ज़िम्मेदार कोई है तो वो नरेन्द्र मोदी है.’

हालांकि अकबरूद्दीन के निशाने पर कांग्रेस भी रही. अपने भाषण में अकबरूद्दीन ने यह भी कहा कि –‘वो कोख जिसने भारतीय जनता पार्टी को जन्म दिया, उस कोख भी कांग्रेस का था. ऐसा औलाद जन्म देने से बेहतर था कि तु (कांग्रेस) बांझ ही रहती...’

अकबरूद्दीन ओवैसी ने अपने भाषण में सोनिया गांधी को ‘इटली की गुड़िया’ तो पीएम नरेन्द्र मोदी को ‘ज़ालिम’ और ‘छिछोरा’ भी बताया है.

आतंकवाद के आरोप में गिरफ़्तार इक़बाल आठ साल बाद बाईज़्ज़त बरी

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TwoCircles.net Staff Reporter

लखनऊ :आज से आठ साल पहले दिल्ली क्राईम ब्रांच ने 21 मई 2008 को नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के क़रीब से हूजी के जिस तथाकथित आतंकी ‘मो. इक़बाल’ को गिरफ़्तार किया था, उसे गुरूवार को लखनऊ के विशेष अदालत ने बाइज़्ज़त बरी कर दिया है.

Mohd. Iqbal

स्पष्ट रहे कि थाना वजीरगंज, लखनऊ अपराध संख्या 281/2007 में निरुद्ध शामली निवासी इक़बाल पुत्र मुहम्मद असरा, के ऊपर आईपीसी 307, 121, 121ए, 122, 124ए, यूएपीए 16, 18, 20, 23 के तहत मुक़दमा में पंजीकृत किया गया था. इतना ही नहीं, इक़बाल के ऊपर लखनऊ के अलावा दिल्ली में भी आतंकवाद का आरोप था, जिसमें वह पहले ही बरी हो चुके थे.

इक़बाल आज जिस मुक़दमें में दोषमुक्त हुए हैं, उसमें उन पर आरोप यह था कि वह जलालुद्दीन व नौशाद के साथ 23 जून 2007 में लखनऊ में आतंकी वारदात करने आए थे. हालांकि इससे पहले अक्टूबर 2015 में इस मुकदमें में इकबाल के सहअभियुक्त भी रिहा हो चुके हैं.

लखनऊ की सामाजिक संस्था रिहाई मंच ने आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाह मुहम्मद इक़बाल की आठ साल के बाद हुई इस रिहाई को वादा-खिलाफ़ सपा सरकार के मुंह पर तमाचा बताया है.

रिहाई मंच के अध्यक्ष एडवोकेट शुऐब के मुताबिक़ मो. इक़बाल का नाम तब्दील करके एटीएस ने इसका नाम अब्दुर रहमान रखा था. इसी नाम से उन्होंने मुक़दमा दर्ज कराया था. मो. इक़बाल को अब्दुर रहमान बनाकर अदालत में पेश किया गया था.

मंच के प्रवक्ता राजीव यादव ने बताया कि 21 मई 2008 को दिल्ली से इक़बाल की गिरफ्तारी में मोहन चन्द्र शर्मा व संजीव यादव जैसे दिल्ली स्पेशल सेल के अधिकारी थे. जिन्होंने उस वक्त कहा था कि आतंकी संगठन हूजी से जुड़ा इक़बाल ने राजधानी में जनकपुरी में विस्फोटक व अन्य पदार्थ छिपाए हैं और उसने पाकिस्तान में ट्रेनिंग ली थी.

उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि –‘बाटला हाऊस फ़र्जी मुठभेड़ में अपने ही पुलिस के साथियों द्वारा मारे गए मोहन चन्द्र शर्मा तो नहीं हैं, पर संजीव यादव से ज़रूर पूछताछ करनी चाहिए कि इक़बाल के पास से उन्होंने जो 3 किलो आरडीएक्स बरामद दिखाया था, वह उनके पास कहां से आया था. उन्हें किसी आतंकी संगठन ने आरडीएक्स दिया था खुफिया विभाग ने.’

राजीव यादव ने कहा कि इक़बाल से पास से जो विस्फोटक बरामदगी दिल्ली स्पेशल सेल ने दिखाई थी, उसके अनुसार जिस व्यक्ति ने इक़बाल को वह दिया था, उसे दिल्ली की एक कोर्ट ने अपने फैसले में एक काल्पनिक शख्स बताया था. उसी काल्पनिक शख्स के नाम पर तारिक़ कासमी की भी गिरफ्तारी का पुलिस ने दावा किया था.

उन्होंने कहा कि आतंकवाद के नाम पर हुई बेगुनाहों की रिहाई के बाद यह साबित हो जाता है कि आईबी मुस्लिमों के खिलाफ़ एक संगठित आतंकी संस्था के बतौर काम कर रही है. इन रिहाइयों पर आईबी चीफ़ को स्पष्टीकरण देना चाहिए.

रिहाई मंच के प्रवक्ता शाहनवाज आलम का कहना है कि –‘अब समय आ गया है कि खुद सुप्रीम कोर्ट दिल्ली स्पेशल सेल के खिलाफ़ अपनी निगरानी में आतंकवाद के मामलों में उसके द्वारा की गई गिरफ्तारियों की जांच कराए, क्योंकि दिल्ली स्पेशल के दावे अनगिनत मामले अदालतों द्वारा खारिज किए जा चुके हैं.’

उन्होंने दिल्ली स्पेशल को सरकार और आईबी संरक्षित आतंकी संगठन क़रार देते हुए कहा कि कश्मीरी लियाकत शाह को फंसाने के मामले में तो एनआईए ने दिल्ली स्पेशल सेल के अधिकारियों के खिलाफ़ कार्रवाई की सिफारिश तक की है. जिसमें उसने पाया था कि लियाकत शाह को फंसाने के लिए दिल्ली स्पेशल सेल ने अपने ही एक मुख़बिर साबिर खान पठान से लियाकत के पास से विस्फोटक दिखाने की कहानी गढ़ी थी. यहां यह जानना भी दिलचस्प होगा कि दिल्ली स्पेशल सेल का यह मुख़बिर ‘फ़रार’ चल रहा है.

उन्होंने कहा कि जब दिल्ली स्पेशल सेल से जुड़े तत्व ही आतंकी घटनाओं में शामिल पाए जा रहे हैं और अदालत में उसे पेश करने के बजाए दिल्ली स्पेशल सेल उसे फ़रार बता रही है तब दिल्ली स्पेशल और उसके अधिकारियों द्वारा आतंकवाद के मामलों में की जा रही गिरफ्तारियों पर अदालतें कैसे भरोसा कर ले रही हैं.

वहीं राजीव यादव का कहना है कि इक़बाल की रिहाई सिर्फ यूपी पुलिस द्वारा संगठित रूप से मुसलमानों को आतंकवाद में फंसाने का सुबूत नहीं है, बल्कि यह संगठित आतंकी गिरोह दिल्ली स्पेशल सेल की मुसलमानों को फंसाने की पूरी रणनीति का पर्दाफाश करती है.

उन्होंने आरोप लगाया कि दिल्ली स्पेशल सेल पूरे देश में राज्यों के संप्रभुता को धता बताते हुए बेगुनाहों को अपने ‘टॅार्चर सेंटर’ में रखकर जब किसी राजनेता का क़द बढ़ाना होता है तब किसी मुस्लिम युवा को दिल्ली स्टेशन से गिरफ्तार दिखा देती है.

उन्होंने बताया कि इक़बाल ने यह संदेह जाहिर किया है कि उसके शरीर में चिप लगाई गई है. जो एक अलग से जांच का विषय है.

गौरतलब है कि मंगलवार को मुम्बई के स्थानीय अदालत ने भी 2006 में मुम्बई में होने वाले सिलसिलेवार बम धमाकों में मुम्बई क्राईम ब्रांच द्वारा 13 अगस्त 2006 को शहर के अलग-अलग इलाक़ों से सिमी के नाम पर गिरफ़्तार पांच मुस्लिम नौजवानों, इरफ़ान सैय्यद, नजीब बकाली, फ़िरोज़ घासवाला, मोहम्मद अली चीपा और इमरान अंसारी को बाइज़्ज़त बरी किया है.

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