By TwoCircles.net staff reporter,
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1. अल्पसंख्यकों को लेकर गृहमंत्री की मंसूबे क्या हैं
आजकल भारत के गृहमंत्री राजनाथ सिंह अल्पसंख्यकों को लेकर खासी चर्चा में हैं. मीडिया में लगातार तीन-चार दिनों से वे मुस्लिमों, आतंकवाद और अल्पसंख्यकों की अन्य दिक्कतों को लेकर चर्चा करते देखे जा रहे हैं. अब उन्होंने ‘धर्म-परिवर्तन’ पर राष्ट्रीय स्तर का संवाद आयोजित कराने का प्रस्ताव रख दिया है. नई दिल्ली में आयोजित राज्यों के अल्पसंख्यक आयोगों की एकदिनीं कॉन्फ्रेंस में राजनाथ सिंह ने यह बात रखी है. यह कहते हुए कि भाजपा ने ही धर्म-परिवर्तन के खिलाफ़ कानून की सबसे ज़्यादा पैरवी की है, राजनाथ सिंह ने यह ज़ाहिर किया कि क्या समाज की प्रक्रिया धर्म-परिवर्तन के खिलाफ़ नहीं चल सकती है? मज़ेदार बात यह है कि उन्होंने घर-वापसी का नाम आते ही यह कह दिया कि अल्पसंख्यकों से असुरक्षा की भावना कम करने के लिए मैं सब कुछ करूंगा लेकिन सबकुछ सरकार तो नहीं कर सकती है.इस प्रस्तावित राष्ट्रीय संवाद में क्या होगा, इसका अंदाज़ इसी से लगाया जा सकता है कि गृहमंत्री ने यह प्रस्ताव रखते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के ‘उदारवादी और सर्वधर्म समभाव एजेंडे’ का भी हवाला दिया.
साभार (राजपूताना.कॉम)
2. कश्मीर के नए निजाम अब क्या करेंगे
जमू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव-प्रचार से लेकर सरकार के गठन के बाद तक, दो मुद्दे लगातार गरम रहे. एक, धारा 370 और दूसरा, अफस्पा. इतनी उठापटक और उहापोह के बाद जम्मू-कश्मीर के पीडीपी-भाजपा सरकार ने ऐलान किया है कि जल्द से जल्द घाटी से अफस्पा का कानून वापिस लिया जाएगा. मुख्यमंत्री ने अपने बयान में कहा, ‘संवेदनशील इलाकों को चिन्हित करके धीरे-धीरे अफस्पा का कानून वापिस ले लिया जाएगा. उन इलाकों पर ध्यान दिया जाएगा जहां पिछले लंबे समय से कोई आतंकी गतिविधियां नहीं हुई हैं.’ कानूनन तौर पर अफस्पा द्वारा सुरक्षा बलों को बिना किसी वारंट के संवेदनशील इलाकों में सर्च ऑपरेशन करने का अधिकार मिलता है, लेकिन अफस्पा की सचाई फर्जी मुठभेड़, बलात्कार, लूटपाट और अत्याचार पर जाकर रूकती है. मुफ्ती सरकार के राज में अफस्पा झेल रहे घाटी के बाशिंदों का क्या होगा, इसका अंदाज़ मुफ्ती साहब की अगली बात से ही लग जाता है. अफस्पा को वापिस लेने की बात के साथ उन्होंने अगली बात कही कि उनकी सरकार ज़मीन पर सेना की मौजूदगी के खिलाफ़ नहीं है, लेकिन वे चाहते हैं कि सेना सुरक्षित और शांत इलाकों से चली जाए.
3. 66A और अभिव्यक्ति की आज़ादी
लोकतंत्र में ऐसा बहुत बार हुआ है कि किसी दिन आप पूरे वैचारिक दृष्टिकोण से फेसबुक पर कोई पोस्ट लिखें या कुछ शब्दों से मिलाकर एक ट्वीट करें और कुछ घंटों में आपको गिरफ़्तार करने आपके दरवाज़े पर पुलिस आ पहुंचे. लेकिन अब आज के बाद ऐसा नहीं होगा. आज सर्वोच्च न्यायालय में आईटी एक्ट की धारा 66A पर सुनवाई हुई. सुप्रीम कोर्ट ने 66A को नकार दिया और कहा कि यह कानून लोकतंत्र के दो स्तंभों, खुलेपन और अभिव्यक्ति की आज़ादी, के खिलाफ़ है.लेकिन यह जानना ज़रूरी है कि अब प्रशासन अपनी मर्ज़ी से लिखने वाले को गिरफ़्तार नहीं कर सकता लेकिन शिकायतों पर कार्यवाही ज़रूर हो सकती है. आईटी एक्ट का यह सेक्शन पुलिस प्रशासन को यह छूट देता है कि वह किसी ऑनलाइन पोस्ट पर व्यक्ति को गिरफ़्तार कर उसे तीन साल का कारावास दे दे. इस अधिनियम के खिलाफ़ याचिका दायर करने में कानून की छात्रा श्रेया सिंघल और विवादित बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन शामिल हैं. केन्द्र सरकार ने इस अधिनियम की पैरवी की है, जिसके कारण भी ज़ाहिर हैं. इस याचिका को श्रेया सिंघल ने तब दायर किया था जब मुम्बई पुलिस ने उन दो छात्राओं को गिरफ़्तार कर लिया था, जिन्होंने शिवसेना सुप्रीमो बाल ठाकरे के खिलाफ़ फेसबुक पोस्ट डाली थी. बुद्धिजीवियों को आशा है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद लिबरल विचारधारा वालों को थोड़ी राहत मिलेगी.
4. कौन चला रहा सरकार को
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मौजूदा परिप्रेक्ष्य का अकेला ऐसा संगठन है, जो खुद यह घोषणा करता है कि वह राजनैतिक संगठन नहीं है लेकिन भारत की मौजूदा राजनीति में सबसे ज़्यादा हस्तक्षेप करने वाला दल बन गया है. लोग कहने लगे हैं कि सरकार भाजपा नहीं, संघ चला रहा है. सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ ने भी हाल में यही कहा था. यह कहना-सुनना तब और सही लगने लगता है, जब संघ सरकार को नसीहतें देते दिखता है. अब बीते कल को ही भूमि-अधिग्रहण बिल पर संघ ने भाजपा को नसीहतें दे डाली हैं. उन्होंने कहा है कि सरकार की छवि किसान-विरोधी न हो. इसके पहले भी संघ ने भाजपा से एक दफ़ा कहा था कि भूमि-अधिग्रहण बिल पर उठे बवाल के चलते भाजपा को राज्यों के चुनावों में हार का सामना करना पड़ सकता है. अब देखना है कि ‘विकास की आग़’ में कूद रही भाजपा संघ की नसीहतों पर कितना अमल करती है.
5. पाकिस्तान दिवस पर हिन्दुस्तान में घमासान
देखकर लगता है कि नई दिल्ली में आयोजित पाकिस्तान दिवस परेड को लेकर पाकिस्तान से ज़्यादा हिन्दुस्तान में खबरों का बाज़ार गर्म है. कश्मीर की मुफ़्ती सरकार द्वारा रिहा किये गए अलगाववादी नेता मसरत आलम को पाकिस्तान दिवस में आने का न्यौता भेजा गया. कयासों को तोड़ते हुए मसरत आलम ने पाकिस्तान दिवस में न जाने का फ़ैसला लिया. मसरत आलम को छोड़कर यासीन मलिक, मीरवाइज़ उमर फ़ारुक और सैयद अली शाह गिलानी जैसे अलगाववादी नेता इस आयोजन में शामिल हुए. अब राष्ट्रवादी केन्द्र सरकार के विदेश राज्यमंत्री जनरल वी.के. सिंह को भी न्यौता भेजा गया. वी.के. सिंह गए भी, लोगों से मुलाक़ातें भी कीं लेकिन आकर ट्वीट कर दिया ‘डिसगस्ट’ यानी ‘नाराजगी से भरा’, फ़िर उन्होंने अपनी नाराज़गी को अपने कर्तव्य से जोड़ दिया. मीडिया में प्रचलित है कि कि वी.के. सिंह सिर्फ़ दस-पन्द्रह मिनटों के लिए सभा में शामिल हुए थे और वे जितनी भी देर थे, चेहरे पर एक नाराज़गी लिए हुए थे. लेकिन चश्मदीद बता रहे हैं कि वी.के. सिंह जितनी देर भी समारोह में मौजूद थे, बड़े खुश दिख रहे थे.