By TwoCircles.net staff reporter,
नई दिल्ली: अभी अपना एक साल भी न पूरा कर पायी केन्द्र सरकार अपनी घोषणाओं, फैसलों और तमाम प्रस्तावों के चलते संकटकाल से गुजरने लगी है. पार्टी के नेताओं और सहयोगी संगठनों के पदाधिकारियों तमाम बयानों के काले बादलों से मोदी सरकार बाहर आ ही नहीं पायी थी कि नए मुद्दे में सरकार की गर्दन जकड़ती नज़र आ रही है.
मालूम है कि नया मुद्दा सरकार के नव-प्रस्तावित भूमि-अधिग्रहण बिल से जुड़ा हुआ है. यह बड़ी बात न होती यदि सरकार सिर्फ़ विपक्ष के निशाने पर होती, लेकिन सरकार इस समय देश लाखों-करोड़ों किसानों के निशाने पर है. जंतर-मंतर अब फ़िर से ‘जंतर-मंतर’ दिखने लगा है. प्रदर्शन और विरोध – यह केन्द्र सरकार का देश की जनता से पहला सीधा सामना है. मुसीबतें इतने पर खत्म हो जातीं तो बला कम होती, सरकार के सहयोगी दलों अकाली दल और शिवसेना ने भी आंखें तरेर दी हैं.
(Courtesy: Times Now)
कमोबेश अधिकतर पार्टियों ने सरकार द्वारा पेश किए जा रहे इस बिल के मसविदे को ‘किसान-विरोधी’ बताया है. यह भी जानने की बात है कि इन पार्टियों ने बीते समय में भाजपा को समर्थन दिया है. शिवसेना ने एनडीए की बिल सम्बन्धी मीटिंग में भाग न लेते हुए कहा कि मीटिंग में हिस्सा न लेने का मतलब यह नही है कि वे सरकार के साथ नहीं है. पार्टी के संजय राउत ने कहा, ‘.....लेकिन हम किसानों के खिलाफ़ भी नहीं है. हम पार्टी के भीतर मशविरा करने के बाद सभी को अपनी राय से अवगत करा देंगे.’ शिरोमणी अकाली दल ने मीटिंग में मौजूद रहते हुए बिल की खामियों से भाजपा नेताओं को अवगत कराया और अपनी असहमति दर्ज कराई.
जंतर-मंतर पर मौजूद जनसमूह के समर्थन में अरविन्द केजरीवाल ने कहा, ‘यदि यह बिल पास हो जाता है तो निश्चित रूप से सरकार बड़ी कंपनियों और प्रॉपर्टी डीलरों के लिए दलाल घोषित हो जाएगी. हम इस बिल का विरोध करते हैं. सरकार को अभी भी सबक ले लेना चाहिए. मई 2014 में इतने भारी बहुमत से जीतकर आई सरकार को मुश्किल से 8-9 महीनों में ही दिल्ली में इतनी बुरी हार का सामना करना पड़ा, सरकार अब नहीं चेतेगी तो कब चेतेगी?’
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के साथ उनके राजनीतिक गॉडफादर अन्ना हजारे भी मौजूद हैं. अन्ना हजारे पिछली यूपीए सरकार के समय जनलोकपाल और भ्रष्टाचार को लेकर हुई रैली और प्रदर्शनों के दौरान प्रकाश में आए थे. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी भाजपा को अलर्ट करने की कोशिश की है कि बिल के मौजूदा मसविदे के चलते सरकार को राज्यों के विधानसभा चुनावों में हार का सामना करना पड़ सकता है.
इतना सबकुछ हो जाने के बाद भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने आठ सदस्यी कमेटी का गठन किया, जिसका काम इस अधिग्रहण बिल पर किसानों से राय लेना है. हालांकि इस कमेटी का गठन भी पार्टी के भीतर उठे भूचाल के दो दिनों बाद किया गया, जिससे इस मामले में सरकार की नींद का साफ़ पता चलता है. पूर्व केन्द्रीय मंत्री सत्यपाल मालिक की अध्यक्षता और अन्य सात सांसदों वाली यह कमेटी बिल के मुद्दे पर किसानों और अन्य संगठनों से बात करेगी.
इस बिल को लागू होने से पहले इसे लोकसभा और राज्यसभा दोनों में पारित होना होगा. लोकसभा में बिल पास कराना भाजपा के लिए आसान होगा लेकिन राज्यसभा में अल्पसंख्यक होने के चलते भाजपा को बिल पास कराने में नाकों चने चबाने पड़ सकते हैं. इस बिल को लेकर भाजपा की जल्दबाज़ी भी साफ़ है क्योंकि केन्द्र सरकार को आने वाले दिनों में रेल बजट व आम बजट भी पेश करना होगा.
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