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रोशन होने से पहले ही बुझने लगी अल्पसंख्यक मंत्रालय की ‘नई रोशनी’

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Afroz Alam Sahil, TwoCircles.net

मोदी बजट आ चुका है. बड़े-बड़े ऐलान किए जा चुके हैं. पुरानी बोतल में नई शराब भरी जा चुकी है. अलग-अलग स्कीमों के लिए फंड्स का आवंटन किया जा चुका है. यानी बजट की तमाम रस्म-अदाएगी अब मुकम्मल हो चुकी है.

मगर सवाल वही है कि अल्पसंख्यकों के हक़ में चल रही स्कीमों का हश्र इस नए वित्तीय साल में क्या होगा? क्योंकि इससे पहले भी अल्पसंख्यकों के नाम पर चलने वाले स्कीमों पर जो फंड्स आवंटित किए गए, वो सिर्फ़ कागज़ों में ही दिखाई पड़ते हैं. हक़ीक़त में न तो वो फंड्स खर्च हुए हैं और न उससे अल्पसंख्यकों को कोई खास फायदा मिलता नज़र आ रहा है.

यह क़िस्सा साल दर साल चला आ रहा है. सवाल यह है कि जो फंड्स आवंटित किए जाते हैं. क्या वो उन स्कीमों पर खर्च भी होते हैं? और अगर होते हैं, तो उससे क्या तब्दीली होती है? और उस ‘तब्दीली’ में कितनी सच्चाई और कितना झूठ है? इसी हक़ीक़त और फसाने को लेकर TwoCircles.netएक सीरीज़ शुरू कर रही है.

आज की कहानी अल्पसंख्यक महिलाओं में लीडरशीप डेवलपमेंट को लेकर सरकार द्वारा शुरू किए गए ‘अल्पसंख्यक महिला नेतृत्व विकास स्कीम’ (Scheme for Leadership Development of Minority Women) की है, जिसे मोदी सरकार ने ‘नई रोशनी’ के नाम से प्रचारित किया.

Nai Roshni

‘नई रोशनी’ को लेकर मोदी सरकार का दावा है कि ये अल्पसंख्यक महिलाओं की ज़िन्दगी में उम्मीद की नई किरण फैला रही है. लेकिन यह दावा कागज़ों पर ही नस्त-नाबूद होता या यूं कहें कि दम तोड़ता नज़र आ रहा है.

मोदी सरकार का दावा है कि इस ‘नई रोशनी’ स्कीम के तहत 2014-15 के दौरान 24 राज्यों में 71 हज़ार से अधिक अल्पसंख्यक महिलाओं को प्रशिक्षित किया गया है. वहीं वर्ष 2015-16 के दौरान मंत्रालय ने अक्टूबर तक 22,750 महिलाओं के प्रशिक्षण की मंजूरी दी है. इस संख्या में इज़ाफ़े के लिए वर्ष 2015-16 में मंत्रालय ने ऑनलाइन आवेदन प्रबंधन प्रणाली (ओएएमएस) की शुरूआत की है, ताकि प्रक्रिया पारदर्शी हो और बिना किसी विलम्ब के स्वीकृति प्रदान की जा सके.

लेकिन TwoCircles.netके पास मौजूद दस्तावेज़ बताते हैं कि वर्ष 2015-16 में इस स्कीम के तहत 15 करोड़ का बजट रखा गया, लेकिन जून 2015 तक सिर्फ 1.23 करोड़ ही आवंटित किया गया, जिसके खर्च हो जाने का दावा अल्पसंख्यक मंत्रालय कर रही है.

साल 2014-15 में 14 करोड़ का बजट आवंटित किया गया था और सरकार का दावा है कि 13.99 करोड़ रूपये खर्च कर दिया गया.

साल 2013-14 में इस स्कीम के तहत 15 करोड़ का बजट रखा गया था. जिसमें 14.74 करोड़ आवंटित किया गया और 11.95 करोड़ खर्च भी हुआ.

साल 2012-13 में इस स्कीम के लिए 15 करोड़ का बजट रखा गया, लेकिन जारी किए गया सिर्फ 12.80 करोड़ रूपये और इसमें से सिर्फ 10.45 करोड़ ही खर्च किया जा सका.

हालांकि इससे पहले की कहानी थोड़ी अलग है. साल 2011-12 में 15 करोड़ का बजट रखा गया लेकिन रिलीज़ सिर्फ़ 4 लाख ही किया गया. उसी तरह साल 2010-11 में भी 15 करोड़ का बजट रखा गया, जबकि रिलीज़ 5 करोड़ किया गया. यही नहीं, साल 2009-10 में यह बजट 8 करोड़ का था और 8 करोड़ रूपये रिलीज़ भी किया गया. पर जब खर्च की बात आती है तो शुन्य बटा सन्नाटा… सारा धन रखा का रखा ही रह गया. यही हाल साल 2010-11 और साल 2011-12 का भी रहा.

यह है कागज़ों की कहानी... जब हक़ीक़त के धरातल पर खर्च हुए इन आंकड़ों का जायज़ा लेते हैं तो मालूम पड़ता है कि इन अल्पसंख्यक महिलाओं के नेतृत्व विकास के नाम पर लाभ ऐसे संस्थान उठा रहे हैं, जिनका अल्पसंख्यकों के उत्थान से शायद ही कोई खास मतलब हो.

TwoCircles.netके पास साल 2014-15 में गैर-सरकारी संगठनों को दिए गए फंड्स व नाम की सूची भी मौजूद है. हैरानी की बात यह है कि इस सूची में दो-चार संस्थाओं को छोड़कर बाकी किसी भी संस्था का संबंध अल्पसंख्यक समुदाय से नहीं है.

इतना ही नहीं, ऑनलाईन ऐसी कई ख़बरें मौजूद हैं, जिसमें अल्पसंख्यक महिलाओं के ट्रेनिंग प्रोग्राम को सरस्वती वंदना से आरंभ किया गया. मेरठ के शोभित यूनिवर्सिटी की एक ख़बर नीचे देखी जा सकती है.

Nai Roshni

इस संबंध में पटना की सामाजिक कार्यकर्ता शाईस्ता अली से बात करने पर वो बताती हैं कि ज़्यादातर राज्यों में मैंने खुद देखा है कि यह प्रोग्राम महज़ खानापूर्ति के लिए किया जा रहा है. बस कुछ महिलाओं को एकत्रित करके फोटो खिंचा लिया जाता है. इस तरह से यह ‘नई रोशनी’ एक दिखावा व सरकारी खानापूर्ति के सिवा कुछ नहीं है.

स्पष्ट रहे कि ‘अल्पसंख्यक महिला नेतृत्व विकास स्कीम’ शुरूआत सबसे पहले महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने 2007-08 में अल्पसंख्यक समुदाय की महिलाओं में नेतृत्व क्षमता के विकास, आजीविका एवं सशक्तिकरण के उद्देश्य से किया था. जनवरी 2010 में यह योजना अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय के अधीन चली गई. 2012-13 में इस स्कीम को ‘नई रोशनी’ का नाम दिया गया.

इस ‘नई रोशनी’ का असल मक़सद अल्पसंख्यक महिलाओं को ज्ञान, उपकरण और तकनीक से लैस करके उन्हें अधिकार सम्पन्न बनाना है. इस स्कीम का क्रियान्वयन गैर-सरकारी संगठनों, सिविल सोसायटी, न्यास के ज़रिए किया जा रहा है. इस स्कीम के तहत अल्पसंख्यक महिलाओं को एक सप्ताह का प्रशिक्षण दिया जाता है. यह प्रशिक्षण महिलाओं की शिक्षा, स्वास्थ्य एवं स्वच्छता, महिलाओं के क़ानूनी अधिकार, वित्तीय साक्षरता, डिजीटल साक्षरता, स्वच्छ भारत, जीवन कौशल और सामाजिक सरोकार से संबंधित विभिन्न क्षेत्रों में नेतृत्व करने के लिए सक्षम बनाने के लिए है, ताकि अल्पसंख्यक महिलाएं भी इस ई-युग में बाकियों के साथ क़दम से क़दम मिलाकर चल सकें.

लेकिन इन तमाम सरकारी दावों के बाद सच्चाई यही है कि इस स्कीम का फायदा फिलहाल अल्पसंख्यक महिलाओं को मिलता दिखाई नहीं दे रहा है. हालांकि इस स्कीम के तहत इस बार के भी बजट में 15 करोड़ का फंड आवंटित किया गया है.

हैरानी की बात यह है कि ‘नई रोशनी’ ही नहीं, बल्कि अल्पसंख्यकों के नाम पर शुरू किए गए दूसरे स्कीम भी इसी बीमारी से पीड़ित नज़र आ रही हैं. और इसका कोई हाल-फिलहाल इलाज नज़र नहीं आ रहा है.


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