Went to school, never came back(Courtesy: thenewstribe.com)
डॉक्टर नदीम ज़फर जिलानी, मेनचेस्टर, इंगलैंड
चलो अब दफ़्न करते हैं,
हंसी को, मुस्कराहट को,
शरारत, गुदगुदी को,
क़हक़हों को, खिलखिलाहट को,
किताबों से भरा बस्ता लिए
क़दमों की आहट को
चलो अब दफ़्न करते हैं,
वोह नन्हीं कोंपलें,
ग़ुंचे अभी जो खिल नहीं पाए,
हवा के बे रहम हाथों ने
जिन को नोच डाला है!
गुलों की पाएमाली का यह मंज़र कौन पूछे
किस शुजा’अत का हवाला है?
चलो अब दफ़्न करते हैं,
चिरागों को, दियों को,
रौशनी की हर अलामत को
ख़ता, मासूमियत,
जुर्म’ओ सज़ा
हुक्मे शरीयत को
कि इस नफरत गज़ीदा शहर में
लफ्ज़-ए -मुहब्बत को!
चलो अब दफ़्न करते हैं!!