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देश के एक ग़रीब मज़दूर का पीएम मोदी के नाम पत्र

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TwoCircles.net News Desk

प्रिय मोदी जी!

इस देश का एक नागरिक होने के नाते यह मेरा कर्त्तव्य है कि मैं अपने माननीय प्रधानमंत्री जी को देश की हालत से अवगत कराउं, क्यूंकि वह देश में कम होते हैं. देश के विकास के लिए अक्सर विदेश का दौरा करते हैं. काश! यह सारी मेहनत हमारे पहले के प्रधामंत्री भी किये होते, तो आज हमारे वर्त्तमान प्रधानमंत्री जी को इतनी मेहनत न करनी पड़ती.

मैं दिल्ली अपने कुछ निजी काम से आया तो पता चला कि जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के छात्रों ने हमारे देश के विरोध में नारे लगायें. मुझे गुस्सा आया और सीधा वहां गया. लोगों से मिलना शुरू किया. अपनी बात बताई कि ‘देश विकास के रास्ते पर चल रहा है, फिर आप ऐसा क्यों कर रहे हैं.’

यह सारे छात्र हम पर टूट पड़े. कहा –कौन सा विकास? कैसा विकास? और शुरू हुआ वाद-विवाद… मैंने अपनी सुनाई क्योंकि मुझे विकास चाहिए था, पर उनकी भी सुनी. वह बोले –

हमें आज़ादी चाहिए भूख से. लोग यहां भूखे मर रहे हैं. क्योंकि ग़रीब पर महंगाई की मार किसानों की आत्म-हत्या. पेट्रोल का दाम. दाल तो 150 रूपये किलो. लेकिन मोबाइल 251 रूपये में. क्या ग़रीब मोबाइल से पेट भरेगा?

रेल का किराया बढ़ाकर बुलेट ट्रेन चलेगी. गरीब कहाँ जायेगा?

मोदी जी! ये सब बातें करते-करते कुछ नारे भी लग रहे थे –हमें आज़ादी चाहिए... हमें आज़ादी चाहिए...

मैंने सोचा यह काहे की आज़ादी मांग रहे हैं. आज़ाद तो हम 67 साल पहले ही हो चुके हैं. यह बच्चे हैं तो शायद इन्हें मालूम नहीं... या स्कूल के मास्टर ने या इनके माता-पिता ने इन्हें बताया ही न हो.

आरक्षण की बातें भी हुई. गुजरात के पटेल आंदोलन में हज़ारों-करोड़ की देश की सम्पति लूटी. अब जाट आंदोलन में 2 से 3 हज़ार करोड़ की संपत्ति नष्ट हो चुकी है. इन सबके आड़ में यह ग़रीबों के आरक्षण को हटाना चाहते हैं. यह एक गन्दी राजनीति है. यहां तो सही मानो में पूरा का पूरा कन्फ़्यूज़ कर गएं. यह बच्चा सब तो चच्चा की तरह बात करता है. यह आंदोलन में राजनीति काहे का, ज़रा इस पर भी प्रधानमंत्री जी नज़र रखियेगा.

एक ढाबा में खाने गए तो वहां सबके मुंह पर सुना कन्हैया कुनार, उमर खालिद, अनिर्बाण भट्टाचार्य... ज़रा मैंने उत्सुकता से पूछा –यह कौन लोग हैं? भाई यहां के मास्टर हैं क्या? बोले –नए मास्टरमाईंड हैं. मैंने पूछा –यह क्या होता है? बोलें –टीवी नहीं देखते क्या? हम बोले –ग़रीब हूं. मज़दूर आदमी टीवी कहां से खरीदूं? और मज़दूरी करके थका हरा सो जाता हूं. पर हां! जब हम ट्रेन से आ रहे थे तो मालूम हुआ कि टीवी पर जंग चल रही है. बड़ा कन्फ्यूज़न में हूं. सुना था कि मैदान में जंग होती है लेकिन यह टीवी पर जंग... मेरी उत्सुकता और बड़ी फिर तो ऐसी कहानी सुनी कि लगा सरदार भगत सिंह जी का आत्मा यहीं कहीं भटक रही हैं हमने कहा –भाई हम भी उन लोगों से मिलना चाहते हैं. बोले –वह कन्हैया तो जेल में हैं. उसके साथी लोग यहाँ हैं. आप मिल सकते हैं.

मेरे मन में एक बात जगी. यह तो हमारी मज़दूरों की लड़ाई, ग़रीबों की लड़ाई लड़ रहे हैं. हम कन्हैया के साथियों से मिलने के लिए निकल पड़े. एक जगह दिखा बहुत सारा लोग फोटो ले रहे हैं. हमें लगा यहां मुफ्त में फोटो खींचा रहा है. शायद इसलिए भीड़ है. दिल्ली में हमने कभी भी फोटो नहीं खिंचवाए थे. हम हु वहां पहुंच गए. बाद में मालूम हुआ कि कन्हैया के साथी भी यहीं हैं. मास्टर लोग भी थे. हम बड़ी मुश्किल से अंदर घुसे. अनिर्बाण दिखा. साधारण सा मरियल सा लगता है. माता-पिता ने इसे सही से खिलाया-पिलाया नहीं. हम दूर से देखते रहे. उसके पिता आये. बोले –बेटा हमें तुम पर गर्व है. तुम ग़रीबों की, मज़दूरों की लड़ाई लड़ रहे हो. अंत में जीत तुम्हारी होगी.

मेरे आंखों में आंसू आ गए. यह लोग मेरी लड़ाई लड़ रहे हैं और लोग इन्हें देशद्रोही कह रहे हैं. मोदी जी एक ग़रीब-मज़दुर की दिल की आवाज़ है. आप तक ज़रूर पहुंचे कि यह कैसे देशद्रोही हो सकते हैं. हाथ में क़लम लेकर देश का निर्माण होता है. वह यह सब बच्चे करेंगे विकास. होगा ज़रूर होगा...

अभी ये सब सोच ही रहा था कि उमर खालिद दिखा. यह भी एक ग़रीब का बच्चा. शरीर पर मांस नहीं और ग़रीबों की समस्या, आदिवासियों की समस्या, दलितों की लड़ाई, यह कमज़ोर बच्चे कैसे लड़ेंगे. मैं इसके क़रीब गया और अपने पोटली से एक-एक लिट्टी निकाली और दोनों को देकर कहा –मैं मोदी जी को जो हम सबके प्रिय प्रधानमंत्री हैं उनको सब बताउंगा. आप सब तो मेरा भविष्य हो.

मेरे प्रिय मोदी जी! उम्मीद है कि आप मेरी बात ज़रूर सुन सकते हैं और सबको साथ लेकर इस देश का विकास भी कर सकते हैं.

देश का एक ग़रीब मज़दूर


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