TwoCircles.net News Desk
नई दिल्ली:‘भारत का संविधान अमेरिका से भी बेहतर है. अमेरिका में लोगों को भोजन या शिक्षा का अधिकार नहीं है. लेकिन भारत का संविधान यहां के लोगों को शिक्षा और भोजन का अधिकार देता है. लेकिन असल समस्या यह है कि सरकार इन योजनाओं को लागू करने में ढिलाई बरतती है. ऐसे में इस देश में सामाजिक कार्य करने वाले लोगों व संस्थाओं की ज़रुरत बढ़ जाती है. हालांकि भारत में सामाजिक कार्य अब धीरे-धीरे ख़त्म हो रहे हैं. मुझे लगता है कि जनकल्याण की सही परिभाषा ही कहीं खो गयी है. जहां तक लोगों की बात है तो वे अपने ऐश व आराम पर बेइंतहा खर्च कर सकते हैं, लेकिन ज़रूरतमंद की मदद करने के लिए वे तैयार ही नहीं होते हैं.’
यह बातें बुधवार को दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया में आयोजित व्याख्यान में अमेरीकी संस्था ‘इन्डियन मुस्लिम रिलीफ़ एंड चैरिटीज़’ (IMRC) के संस्थापक व निदेशक मंज़ूर ग़ोरी ने कहा. यह व्याख्यान ‘भारतीय मुस्लिम, सामाजिक कार्य और जनकल्याण’ विषय पर केन्द्रित था.
अपने सामाजिक कार्य की शुरुआत के बारे में बात करते हुए मंज़ूर ग़ोरी ने कहा कि -‘1983 में हुए असम के ‘नेल्ली क़त्लेआम’ के समय मैंने इस काम की शुरुआत की. घटना के तुरंत बाद मैं असम पहुंच गया और कार्य में जुट गया. उस दफ़ा पहली बार मुझे समाज की समस्याओं का पता लगा. उसके बाद से लेकर आज तक मैंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.’
हालांकि मंज़ूर ग़ोरी बताते हैं कि –‘अब भारत बदल चुका है. 50 साल पहले मैंने जिस भारत को देखा है, वो अब नहीं है. आख़िर क्यों?’
जामिया के सोशल वर्क विभाग के छात्रों को भारतीय मुस्लिम समुदाय की सामाजिक और आर्थिक स्थिति के बारे में बताते हुए मंज़ूर ग़ोरी ने यह सलाह दी कि वे सच्चर कमेटी की रिपोर्ट को ख़याल में रखते हुए भारतीय मुस्लिमों की हालत में सुधार के लिए समाज कार्य में अधिक से अधिक हिस्सा लें.
उन्होंने कहा, ‘युवा इस देश की रीढ़ की हड्डी हैं. इस देश में ज़रूरी आर्थिक और सामजिक बदलाव लाने के लिए युवाओं को जनकल्याण के कार्यक्रमों में भागीदारी दिखानी चाहिए.’
ऐसे प्रयासों और कार्यक्रमों की कमी पर ध्यान दिलाते हुए मंज़ूर ग़ोरी ने कहा कि लोगों की जिम्मेदारी बनती है कि वे आगे आएं और गरीब और वंचित तबकों के लिए काम करें.
मुस्लिम समुदाय को ज़कात देने के लिए प्रेरित करते हुए मंज़ूर ग़ोरी ने कहा कि मुस्लिमों का यह दान उनके समुदाय की भलाई में ही मदद करेगा. इसके बाद उन्होंने छात्रों को IMRC के कामकाज़ के बारे में बताया और स्वास्थ्य व शिक्षा के क्षेत्र में किए जाने वाले प्रयासों से रूबरू कराया.
स्पष्ट रहे कि IMRC पिछले 35 सालों से सामाजिक कार्य कर रही है. इस संस्था की नींव साल 1981 में रखी गयी थी. तब से आज तक अमरीका की यह चैरिटेबल संस्था अन्य लगभग 100 संस्थाओं के साथ मिलकर देश के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में कई किस्म के कार्यक्रम चला रही है. संस्था का उद्देश्य ज़रूरतमंद तबके को शिक्षा, आपातकालीन सेवाएं, स्वास्थ्य व न्यायसम्बंधी ज़रूरतें, खाना और छत की ज़रूरतें मुहैया कराना है. असम दंगे 2012, मुज़फ्फ़रनगर दंगे 2013, 2014 की कश्मीर बाढ़ और 2015 की चेन्नई बाढ़ के वक़्त संस्था ने घरों-घरों तक जाकर लोगों को ज़रूरी सेवाएं प्रदान की हैं.