Afroz Alam Sahil, TwoCircles.net
ज़िन्दगी बचाने वाली दवाओं के दाम भी मोदी राज में सिर चढ़कर बोल रहे हैं. हैरानी की बात है कि जिन दवाओं की क़ीमत बेहद सस्ती होनी चाहिए, उनमें भी लगातार इज़ाफ़ा दर इज़ाफ़ा होता जा रहा है.
एक ख़बर के मुताबिक़ मोदी सरकार ने पिछले हफ्ते 74 दवाओं पर आयात शुल्क में छूट ख़त्म करने का फैसला किया है. इनमें जीवन रक्षक दवाओं के साथ कैंसर और डायबिटीज की दवाएं भी शामिल हैं.
इस नए आदेश के मुताबिक़ कैंसर और जीवन रक्षक दवाओं पर 22% शुल्क लगेगा. विश्लेषकों की माने तो इससे दवाएं 22 से 35% तक महंगी हो जाएंगी. जबकि इससे पूर्व की यूपीए सरकार ने 2013 में ‘नई ड्रग प्राइस कंट्रोल ऑर्डर’ को लागू किया था, जिससे उम्मीद की गई थी कि अब 348 जीवन रक्षक दवाओं की कीमत 80 फीसदी घट जाएगी. कैंसर और एंटिबायोटिक दवाएं भी 50 से 80 फीसदी सस्ती हो जाएंगी. कुछ दवाएं सस्ती भी हुईं. लेकिन वर्तमान मोदी सरकार में दवाओं की क़ीमतों में खूब इज़ाफ़ा हो रहा है.
यह इज़ाफ़ा उस सरकार के दौर में हो रहा है, जो गरीबों के उत्थान के मक़सद से आई थी. जबकि पीएम मोदी यह सच्चाई जानते हैं कि महंगी दवाओं के कारण देश के करोड़ों लोग हर साल गरीबी रेखा के नीचे जा रहे हैं.
रिसर्च एजेंसी अर्नेस्ट एंड यंग व भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग महासंघ (फिक्की) की ओर से कुछ सालों पहले जारी की गई एक रिपोर्ट बताती है कि देश की बीमार स्वास्थ्य व्यवस्था प्रत्येक साल तीन करोड़ साठ लाख लोगों को गरीब बना रही है.
2008 में किए गए एक अध्ययन के आधार पर जारी इस रिपोर्ट में सबसे चौंकाने वाला तथ्य यह है कि स्वास्थ्य सेवाओं से संबंधित खर्च के कारण भारत की आबादी का लगभग 3 फीसदी हिस्सा हर साल गरीबी रेखा के नीचे फिसल जाता है. यानी एक ओर जहां सरकार गरीबी ख़त्म करने की बात कर रही है, वहीं स्वास्थ्य सेवाओं पर ध्यान नहीं देने के कारण देश में गरीबी लगातार बढ़ रही है.
जबकि इन गरीबों की क़ीमत पर दवा कम्पनियां लगातार अमीर हो रही हैं. कोरपोरेट मामलों के मंत्रालय द्वारा दवाओं के सम्बन्ध में कराए गए शोध में यह पाया गया कि देश-विदेश की जानी-मानी दवा कंपनियां भारतीय बाज़ार में 203% से 1123% तक मुनाफ़ा कमा रही हैं. और इस खेल में कम्पनियों के साथ-साथ डॉक्टर्स, हॉस्पीटल व दवा दुकानदार भी शामिल हैं.
लेकिन इस खेल-तमाशे की एक बड़ी वज़ह बीजेपी के चंदे की सूची में छिपी हुई है. ये चौंकाने वाली बात है कि लोकसभा चुनाव के पहले बीजेपी को अधिकतर चंदा बड़ी-बड़ी दवा कम्पनियों से ही हासिल हुआ है. अब इसी मलाईदार चंदे के एवज़ में ये कम्पनियां जीवन-रक्षक दवाओं तक की क़ीमतें बढ़ाकर आम आदमी की ज़िन्दगी से खेल रही हैं और सरकार हाथ पर हाथ धरे तमाशा देख रही है.
हालांकि इस खेल में कांग्रेस भी ज़्यादा पीछे नहीं है. यानी आम आदमी की बात करने वाले राहुल गांधी भी गरीब-बीमार लोगों के पैसे से ही अपना करियर चमका रहे हैं.
इधर ग़रीबों के नाम पर मोदी सरकार ने न सिर्फ़ वोट बटोरे, बल्कि ‘मन की बात’ जैसे कार्यक्रमों में भी वे इसकी मार्केटिंग करते नहीं थकते हैं. मगर हक़ीक़त कुछ और ही है. यह हक़ीक़त इस ख़तरनाक सच से पर्दा हटाती है कि जब सरकारें ही आम आदमी के हितों से खिलवाड़ करने लगे तो बड़ी-बड़ी दवा कम्पनियों के हाथों में स्वाभाविक तौर पर गला काटने की तलवार आ जाती है.
TwoCircles.netको चुनाव आयोग से मिले दस्तावेज़ के मुताबिक देश के कई दवा कम्पनियां देश के दोनों बड़ी राजनीतिक पार्टियों को चंदा देती हैं, ताकि उनकी मनमानी वो खामोश ही रहे. सिर्फ दवा कम्पनियां ही नहीं, बल्कि डॉक्टर्स और दवा दुकानदार भी दानदाताओं की सूची में शामिल हैं. राजनीतिक दलों को चंदा देने वाली दवा कम्पनियों के कुछ नाम आप नीचे की सूची में देख सकते हैं.
यह तो वो रक़म है जो दवा कम्पनियों ने घोषित तौर पर राजनीतिक दलों को दी है. अब आप खुद ही अंदाज़ा लगा लीजिए कि अपनी मनमानी जारी रखने के लिए दवा कम्पनियां पीछे के दरवाज़े कितना पैसा इन राजनीतिक दलों को पहुंचाती होंगी?