TwoCircles.net Staff Reporter
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय ने मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित डॉ. संदीप पांडे को नक्सली होने और नक्सली गतिविधियों को बढ़ावा देने के आरोप में आईआईटी से कार्यमुक्त कर दिया है.
लेकिन डॉ. संदीप पांडे का साफ तौर पर कहना है कि –‘इसके पीछे राष्ट्रीय स्वयंसवेक संघ का हाथ है.’ वो बीएचयू के कुलपति प्रो. जीसी त्रिपाठी और डीन धनंजय पांडे को सीधे तौर पर संघ का व्यक्ति बताते हैं.
वो बीएचयू-आईआईटी से हटाए जाने को लेकर उन पर देशद्रोही, नक्सली और प्रतिबंधित निर्भया कांड की सीडी छात्रों के बीच दिखाने के आरोपों को बेबुनियाद बताते हैं. उनका कहना है कि क्लास में प्रतिबंधित निर्भया कांड की सीडी दिखाने के पहले ही क्षेत्रीय लंका थाने की पुलिस और बीएचयू के चीफ़ प्रॉक्टर के हस्तक्षेप के चलते उसे नहीं दिखाया गया था.
उनका कहना है, -‘जो मेरे साथ हुआ वह ग़लत हुआ, लेकिन यह बीएचयू प्रशासन का अपना अधिकार है. इसके लिए मैं कोई आंदोलन नहीं करने जा रहा हूं, लेकिन मैं 8 जनवरी को बनारस जा रहा हूँ.’
दूसरी तरफ़ संदीप पांडे पर लगे आरोपों के बारे में बीएचयू-आईआईटी निदेशक प्रो. राजीव सैंगल ने कुछ भी कहने से इनकार कर दिया है. उनका बस इतना कहना है कि –‘संदीप पांडे को हटाने का फ़ैसला बोर्ड ऑफ़ गवर्नर की मीटिंग में लिया गया है. मैं इस पर नहीं बोल सकता.’
दरअसल, पांडे वाराणसी स्थित बीएचयू-आईआईटी में विज़िटिंग फ़ैकल्टी के बतौर कैमिकल, मेकेनिकल और सिरेमिक इंजीनियरिंग में कंट्रोल सिस्टम सहित अन्य विषयों पर पिछले ढाई साल से पढ़ा रहे थे. लेकिन नए साल की पहली तारीख को ही बीएचयू-आईआईटी प्रशासन ने उनसे उनका पाठयक्रम वापस लेकर पढ़ाने से मना कर दिया.
इन सबके बीच यहां के छात्रों सहित इस मसले पर लखनउ की सामाजिक संस्था ‘रिहाई मंच’ ने अब आन्दोलन छेड़ने का मन बना लिया है.
रिहाई मंच के मसीउद्दीन संजरी का कहना है कि ‘गांधीवादी नेता संदीप पांडे को बनारस बीएचयू से बर्खास्त किए जाने के पीछे असल कारण नक्सली होना या राष्ट्र विरोधी होना नहीं है, बल्कि देश के शिक्षण संस्थानों के भगवाकरण अभियान का हिस्सा है.’
उनका कहना है कि –‘देश की साम्प्रदायिक और फांसीवादी विचारधारा ने राष्ट्रवाद के मुखौटे में (जो सदा से उसका हथियार रहा है) स्पष्ट रेखा खींच दी है, जिसके अनुसार देश के नीच जाति के कहे जाने वाले वर्ग के गरीबों और मज़लूमों के साथ कारपोरेट जगत एवं राज्य की क्रूरता के खिलाफ़ आवाज़ उठाने वाले उनके रास्ते के सबसे बड़े कांटा हैं और वह उन्हें किसी कीमत पर बर्दाश्त नहीं करेंगे.’
वो कहते हैं कि –‘संदीप पांडे ने राज्य के भय अभियान की परवाह किए बिना हर तरह का जोखिम उठाते हुए आतंकवाद और माओवाद के नाम पर निर्दोशों के ऊपर किए जाने वाले अत्याचारों के खिलाफ़ मज़बूती से आवाज़ उठाई है. अपनी सादगी के लिए विख्यात संदीप पांडे ने उस समय आज़मगढ़ का दौरा किया था, जब पूरा मीडिया इस जनपद को 'आतंकवाद की नर्सरी'बताने के लिए अपनी ऊर्जा लगा रहा था. अंधविश्वास और गैर वैज्ञानिक सोच के खिलाफ़ उनकी सक्रियता ने साम्प्रदायिक एंव फासीवादी शक्तियों को दुश्मन बना दिया था.’
संजरी के मुताबिक़ –‘बहुमुखी प्रतिभा के धनी इस मानवतावादी को गेस्ट फैकल्टी के बतौर काम करने से रोक कर उसके जनपक्षधर अभियान को कमज़ोर करने का सपना पालने वाले अपने मक़सद में कभी कामयाब नहीं हो पाएंगे. हकीक़त तो यह है कि इस बर्खास्तगी से उनको अपने मानवतावादी अभियान को गति देने और वैज्ञानिक चेतना के प्रकाश को फैलाने का पहले से ज्यादा समय मिलेगा.’
संजरी कहते हैं कि –‘संदीप पांडे लिंगभेद के खिलाफ़ सशक्त आवाज़ हैं. उन्होंने नारी को देवी कहने का ढोंग भले ही नहीं किया लेकिन जब भी देश की निर्भयाओं का उत्पीड़न हुआ तो वह उसके प्रतिरोध में मैदान में नज़र आए. बीएचयू प्रशासन को मालूम होना चाहिए कि जिसकी तस्वीरों से तुम्हें डर लगता है संदीप पांडे उसके लिए मैदान में लड़ता है.’