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मीडिया के रिमोट से चलता भारतीय मुसलमानों का भविष्य

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By भंवर मेघवंशी

उत्तर प्रदेश के एक स्वयंभू हिन्दू महासभाई कमलेश तिवारी द्वारा हज़रत मोहम्मद को अपमानित करने वाली टिप्पणी करने के विरोध में हुए देशव्यापी प्रदर्शन के कुछ अध्याय राजस्थान के भी विभिन्न शहरों में भी हुए. साम्प्रदायिक रूप से अतिसंवेदनशील मालपुरा कस्बे में भी मुस्लिम युवाओं ने अपने बुजुर्गों की मनाही के बावजूद एक प्रतिरोध जलसा आयोजित किया. हालांकि शहर काजी और क़ौम के बुजुर्गों ने बिना मशवरे के कोई भी रैली निकालने से युवाओं को रोकने की भरपूर असफल कोशिश की जैसा कि मालपुरा के निवासी वयोवृद्ध इक़बाल दादा बताते हैं, ‘हमने उन्हें मना कर दिया था और शहर काज़ी ने भी इंकार कर दिया था, मगर रसूल की शान के खिलाफ़ की गई अत्यंत गंदी टिप्पणी से युवा इतने अधिक आक्रोशित थे कि वे काज़ी तक को हटाने की बात करने लगे थे.’

अंतत: मालपुरा के युवाओं की अगुवाई में 11 दिसम्बर को एक रैली जामा मस्जिद से शुरू हो कोर्ट होते हुए तहसीलदार को ज्ञापन देने पहुंची. शांतिपूर्ण तरीक़े से ज्ञापन दे दिया गया, मगर दूसरे दिन सोशल मीडिया में वायरल हुए एक वीडियो के मुताबिक़ रैली से लौटते हुये मुस्लिम नवयुवकों ने 'आरएसएस –मुर्दाबाद'तथा 'आईएसआईएस –जिन्दाबाद'के नारे लगाए. जब मुस्लिम समाज के सभ्य लोगों को पुलिस के समक्ष यह वीडियो दिखाया गया तो उन्हें पहले तो यक़ीन ही नहीं हुआ, फिर उन्होंने अपने बच्चों की इस तरह की हरकत के लिये तुरंत माफ़ी मांग ली और मामले को तूल नहीं देने का आग्रह किया ताकि सौहार्द बरक़रार रहे.

मगर मालपुरा के हिन्दुववादी संगठन इस मांग पर अड़ गए कि प्रदर्शनकारियों के खिलाफ़ मुक़दमा दर्ज कर उनको तुरंत गिरफ्तार किया जाए. सूबे में सत्तारूढ़ विचारधारा के राजनीतिक दबाव के चलते किसी व्यक्ति विशेष द्वारा बनाए गये वीडियो को आधार बनाकर मुक़दमा दर्ज कर लिया गया तथा सलीमुद्दीन रंगरेज, फिरोज पटवा, वसीम,शाहिद, शाकिर, अमान तथा वसीम सलीम सहित 7 लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया.

गिरफ्तार किये गये 60 वर्षीय राशन डीलर सलीमुद्दीन के बेटे नईम अख्तर का कहना है, ‘मेरे वालिद एक ज़मीन के सौदे के सिलसिले में कोर्ट गए थे, वे रैली में शरीक़ नहीं थे, मगर पुलिस कहती है कि उनका चेहरा वीडियो में दिख रहा है. इसलिए उन्हें गिरफ्तार किया गया है.’

मालपुरा के मुस्लिम समुदाय का आरोप है कि पुलिस जान-बूझकर बेगुनाहों को पकड़ रही है. इतना ही नहीं, बल्कि धरपकड़ अभियान के दौरान सादात मोहल्ले में पुलिस द्वारा मुस्लिम औरतों के साथ निर्मम मारपीट और बदसलूकी भी की गई है.

पुलिस दमन की शिकार 50 वर्षीय बिस्मिल्ला कहती हैं, 'हम बहुत सारी महिलायें कुरान पढ़कर लौट रही थी, तब घरों में घुसते हुये मर्द पुलिसकर्मियों ने हमें मारा. वह चल फिरने में असहाय महसूस कर रही है. सना, जमीला, फहमीदा, नसीम आदि महिलाओं पर भी पुलिस ने लाठियां भांजी. किसी को चोटी पकड़ कर घसीटा तो किसी को पैरों और जांघों पर मारा एवं भद्दी गालियां देकर अपमानित किया.'

पुलिस तीन औरतों –फ़रजाना, साजिदा और आरिफ़ा को पुलिस पर पथराव करने और राजकार्य में बाधा उत्पन्न करने के जुर्म में गिरफ्तार कर ले गई. जहां से फ़रजाना को शांतिभंग के आरोप में पाबंद कर देर रात छोड़ दिया गया, वहीं आरिफ़ा और साजिदा को जेल भेज दिया गया.

उल्लेखनीय है कि मालपुरा में आतंकवादी संगठनों के पक्ष में कथित नारे लगाने के वीडियो को वायरल किए जाने के बाद राज्य भर में इसकी प्रतिक्रिया हुई. हिन्दुत्ववादी संगठनों ने कुछ जगहों पर इसके विरोध में ज्ञापन भी दिये और देश-विरोधी तत्वों पर अंकुश लगाने की मांग की. जो वीडियो लोगों को उपलब्ध है, उसे देखने पर ऐसा लगता है कि वापस लौटती रैली में नारे लगाते एक युवक समूह पर ये नारे ऊपर से एडिट करके लगाए गये है. क्योंकि नारों की ध्वनि और रैली में चल रहे लोगों के मध्य कोई तारतम्य ही नहीं दिखाई पड़ता है.

प्रदर्शनस्थल के दुकानदारों का जवाब भी स्पष्ट नहीं है. दुकानदार'यह तो कहते हैं कि मालपुरा में पाकिस्तान ज़िन्दाबाद के नारे आम बात हैं. मगर ऐसे नारे कब और कहां लगते हैं तथा उस दिन क्या उन्होंने आईएसआईएस के पक्ष में नारे सुने थे? इसका जवाब वे नहीं देते. इतना भर कहते है कि शायद आगे जाकर लगाये हों या कोर्ट में लगाकर आये हों.

विचारयोग्य बात यह है कि ज्ञापन के दिन ना किसी समाचार पत्र, ना किसी टीवी चैनल और ना ही गुप्तचर एजेंसियों और ना ही पुलिस या प्रशासन को ये नारे सुनाई पड़े. लेकिन अगले दिन अचानक एक वीडियो जिसकी प्रमाणिकता ही संदिग्ध है, उसे आधार बनाकर पुलिस मालपुरा के मुस्लिम समाज को देशप्रेम के तराजू पर तौलने लगती है तथा उनमें देशभक्ति की मात्रा कम पाती है और फिर गिरफ्तारियों के नाम पर दमन और दशहत का जो दौर चलता है, वह दिन-ब-दिन बढ़ता जाता है. हालात इतने भयावह हो जाते है कि लोग अपने आशियानों पर ताले लगाकर दर-दर भागने को मजबूर हो जाते हैं.

मालपुरा का घटनाक्रम चर्चा में ही था कि एक बड़े समाचार पत्र में दौसा के हलवाई मोहल्ले के निवासी 'खलील के घर की छत पर पाकिस्तानी झण्डा'फहराये जाने की सनसनीखेज़ ख़बर प्रकाशित हो जाती है. खलील को तो प्रथमदृष्टया देशद्रोही घोषित करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी गई. मगर दौसा के मुस्लिम समाज ने पूरी निर्भिकता से इस शरारत का मुंह तोड़ जवाब दिया और पुलिस तथा प्रशासन को बुलाकर स्पष्ट किया कि यह चांद तारा युक्त हरा झण्डा इस्लाम का है, ना कि पाकिस्तान का!

पुलिस अधीक्षक गौरव यादव को इस उन्माद फैलाने वाली हरकत करने की घटना पर स्पष्टीकरण देना पड़ा तथा उन्होनें माना कि यह गंभीर चूक हुई है. एक धार्मिक झण्डे को दुश्मन देश का ध्वज बताना शरारत है. मुस्लिम समुदाय की मांग पर चार मीडियाकर्मियों के विरूद्ध मुक़दमा दर्ज किया गया और ख़बर लिखने वाले पत्रकार को गिरफ्तार कर लिया गया. ख़बर प्रकाशित करने वाले मीडिया समूह ने इसे पुलिस की नाकामी करार देते हुये स्पष्ट किया कि उनकी ख़बर का आधार पुलिस द्वारा दी गई सूचना ही थी. पुलिस ने अपनी असफलता छिपाने की गरज से मीडिया के लोगों को बलि का बकरा बना दिया है.

जैसा कि इन दिनों ईद मिलादुन्नबी की तैयारियों के चलते घरों पर चांद-तारे वाला हरा झण्डा लगभग हर जगह लगा हुआ दिखाई पड़ जाता है. उसे पाकिस्तानी झण्डे के साथ घालमेल करके मुसलमानों के खिलाफ़ दुष्प्रचार का अभियान चलाया जा रहा है.

भीलवाड़ा में पिछले दिनों एक मुस्लिम तंज़ीम के जलसे के बाद ऐसी ही अफ़वाह उड़ाते एक शख्स को मैंने जब चुनौती दी कि वह साबित करे कि ज़िला कलक्ट्रेट पर प्रदर्शन में पाकिस्तानी झण्डा लहराया गया है, तो वह माफी मांगने लगा. इसी तरह फलौदी में पाक झण्डे फहराने सम्बंधी वीडियो होने का दावा कर रहे एक व्यक्ति से वीडियो मांगा गया तो उसने ऐसा कोई वीडियो होने से ही इंकार कर दिया.

ऐसे में सवाल उठता है कि कौन लोग है जो संगठित रूप से 'पाकिस्तानी झण्डे'के होने का ग़लत प्रचार कर रहे है. यह निश्चित रूप से वही अफ़वाह गिरोह है, जो हर बात को उन्माद फैलाने और दंगा कराने में इस्तेमाल करने में महारत हासिल कर चुका है.

इन कथित राष्ट्रप्रेमियों को मीडिया की बेसिरपैर की ख़बरें खाद पानी मुहैया करवाती रहती है. भारत का कारपोरेट नियंत्रित जातिवादी मीडिया लव जिहाद, इस्लामी आतंकवाद, गौ-ह्त्या, पाकिस्तानी झण्डा, सैन्य जासूसी और आतंकी नेटवर्क के जुमलों के आधार पर चटपटी ख़बरें परोस कर मुस्लिम समुदाय के विरूद्ध नफ़रत फैलाने के विश्वव्यापी अभियान का हिस्सा बन रहा है.

आतंकवाद की गैर-जिम्मेदाराना पत्रकारिता का स्वयं का चरित्र ही अपने आप में किसी आतंकवाद से कम नहीं दिखाई पड़ता है. हद तो यह है कि हर पकड़ा ग़या 'संदिग्ध'मुस्लिम अगले दिन 'दुर्दांत आतंकी 'घोषित कर दिया जाता है और उसका नाम 'अल-क़ायदा''इंडियन मुजाहिद्दीन''तालिबान'अथवा 'इस्लामिक स्टेट'से जोड़ दिया जाता है.

आश्चर्य तो तब होता है जब मीडिया गिरफ्तार संदिग्ध को उपरोक्त में किसी एक आतंकी नेटवर्क का कमांडर घोषित करके ऐसी ख़बरें प्रसारित व प्रकाशित करता है, जैसे कि सारी जांच मीडियाकर्मियों के समक्ष ही हुई हो. अपराध सिद्ध होने से पूर्व ही किसी को आतंकी घोषित किये जाने की यह मीडिया ट्रायल एक पूरे समुदाय को शक के दायरे में ले आई है. इसका दुष्परिणाम यह हो रहा है कि आज इस्लाम और आतंकवाद को एक साथ देखा जाने लगा है. इसी दुष्प्रचार का नतीजा है कि आज हर दाढ़ी और टोपी वाला शख्स लोगों की नजरों में 'संदिग्ध आतंकी 'के रूप में चुभने लगा है.

हाल ही में जयपुर में इण्डियन ऑयल कार्पोरेशन के मार्केटिंग मैनेजर सिराजुद्दीन को 'एन्टी टेरेरिस्ट स्क्वॉयड'ने आईएसआईएस के नेटवर्क का हिस्सा होने के आरोप में गिरफ्तार किया. मीडिया के लिये यह एक महान उपलब्धि का क्षण बन गया. पल-पल की ख़बरें परोसी जाने लगी "आतंकी नेटवर्क का सरगना सिराजुद्दीन यहां रहता था, यह करता था, वह करता था. सोशल मीडिया के ज़रिये 13 देशों के चार लाख लोगों से जुड़ा था. अजमेर के कई युवाओं के सम्पर्क में था. सुबह मिस्र, इंडोनेशिया जैसे देशों में रिपोर्ट भेजता था, तो शाम को खाड़ी देशों तथा दक्षिणी अफ्रिकी देशों को रिपोर्ट भेजता था. फिदायनी दस्ते तैयार कर रहा था."

दस दिन आतंक की ख़बरों का बाजार गर्म रहा. सिराजुद्दीन को इस्लामिक स्टेट का एशिया कमाण्डर घोषित कर दिया गया, जबकि जांच जारी है और जांच एजेन्सियों की ओर से इस तरह की जानकारियों का कोई ऑफिशियल बयान जारी नहीं हुआ है.

गिरफ्तार किए गये मोहम्मद सिराजुद्दीन के पिता गुलबर्गा कर्नाटक निवासी मोहम्मद सरवर कहते हैं, ‘उनका बेटा पक्का वतनपरस्त है, वह अपने मुल्क के खिलाफ़ कुछ भी नहीं कर सकता है.’ सिराजुद्दीन की पत्नि यास्मीन के मुताबिक़ उसने कभी भी सिराजुद्दीन को कुछ भी रहस्यमय हरकत करते हुए नहीं देखा, वह एक नेक धार्मिक मुसलमान के नाते लोगों की सहायता करने वाला इंसान है.

सचाई क्या है, इसके बारे में कुछ भी कयास लगाना अभी जल्दबाजी ही होगी और हमारी खुफिया एजेन्सियों, पुलिस और आतंकरोधी दस्तों का जो पूर्वाग्रह युक्त साम्प्रदायिक व संवेदनहीन चरित्र है, उसमें न्याय या सत्य के प्रकटीकरण की उम्मीद सिर्फ एक मृगतृष्णा ही है. यह देखा गया है कि इस तरह के ज्यादातर मामलों में बरसों बाद 'कथित आतंकवादी'बरी कर दिये जाते है, मगर तब तक उनकी जवानी बुढ़ापा बन जाती है. परिवार तबाह हो चुके होते हैं.

कुछ अरसे से पढ़े लिखे, सुशिक्षित,आईटी एक्सपर्ट भारतीय मुसलमान नौजवान खुफिया एजेन्सियों और आतंकवादी समूहों के निशाने पर हैं. उन्हें पूर्वनियोजित योजना के तहत तबाह किया जा रहा है. इस तबाही या दमन चक्र के विरूद्ध उठने वाली कोई भी आवाज देशद्रोह मान ली जा रही है. इसलिए राष्ट्र राज्य से भयभीत अल्पसंख्यक समूह अब बोलने से भी परहेज़ करने लगा है और बहुसंख्यक तबका मीडियाजनित प्रोपेगंडा का शिकार होकर राज्य प्रायोजित दमन को 'उचित'मानने लगा है, जो अत्यंत निराशाजनक स्थिति है.

राजस्थान के गोपालगढ़ में मुस्लिम नरसंहार के आरोपी खुलेआम विचरण करते है. नौगांवा का होनहार मुस्लिम छात्र आरिफ़ - जिसे पुलिस ने घर में घुसकर एके-47 से भून डाला -के हत्यारे पुलिसकर्मियों को सज़ा नहीं मिलती है. भीलवाड़ा के इस्लामुद्दीन नामक नौजवान की जघन्य हत्या करने वाले हत्यारों का पता भी नहीं चलता है.

गौ भक्तों द्वारा पीट-पीट कर मार डाले गये डीडवाना के गफूर मियां के परिवार की सलामती की कोई चिन्ता नहीं करता है. हर दिन होने वाली साम्प्रदायिक वारदातों की आड़ में मुस्लिमों को लक्षित कर दमन चक्र निर्बाध रूप से जारी है. कहीं भी कोई सुनवाई नहीं है. लोग थाना, कोर्ट कचहरियों में चक्कर काटते-काटते बेबसी के कगार पर हैं और उपर से शौर्य-दिवस के जंगी प्रदर्शनों में 'संघ में आई शान –मियांजी जाओ पाकिस्तान'या 'अब भारत में रहना है तो हिन्दू बनकर रहना होगा'जैसे नारे ज़ख्मों पर नमक छिड़क रहे हैं.

गंभीरता से सोचने की ज़रूरत है कि कहीं हम अमेरिका जैसे देशों के बिछाये जाल में तो नहीं फंसते जा रहे है? हमारा अमेरिकी प्रेम हमें डुबो भी सकता है. स्थिति यह होती जा रही है कि वाशिंगटन ही पूरा विमर्श तय कर रहा है. इस्लामिक आतंकवाद जैसी शब्दावली से लेकर किनसे लड़ना है और कब लड़ना है? ईराक से लेकर अफ़गानिस्तान तक और सीरिया से लेकर लीबिया तक आतंकी समूहों का निर्माण, उनके सरंक्षण –संवर्धन में अमेरिका की हथियार इंडस्ट्री और सत्ता सब लगे हुए हैं. वैश्विक वर्चस्व की इस लड़ाई में पश्चिम का नया दुश्मन मुसलमान है. मगर भारतीय राष्ट्र राज्य के लिए मुसलमान दुश्मन नहीं है. वे राष्ट्र निर्माण के सारथी हैं. उनसे दुश्मनों जैसा सलूक बंद होना चाहिए. उनके देशप्रेम पर सवालिया निशान लगाने की प्रवृति से पार पाना होगा. झण्डा, दाढ़ी, टोपी, मदरसे,आबादी, मांसाहार जैसे कृत्रिम मुद्दे बनाकर किया जा रहा उनका दमन रोकना होगा. उन्हें न्याय और समानता के साथ अवसरों में समान रूप से भागीदार बनाना होगा, ताकि हम एक शांतिपूर्ण तथा सुरक्षित विकसित राष्ट्र का स्वप्न पूरा कर सकें.

[लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं. उनसे bhanwarmeghwanshi@gmail.comपर सम्पर्क किया जा सकता है.]


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