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असहिष्णुता की बहस में कूदे एनडीए के मुस्लिम सांसद, कहा भाजपा जिम्मेदार

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By TCN News,

नई दिल्ली:देश में असहिष्णुता पर जारी बहस अब एक क़दम और आगे बढ़ गयी है. अब तक इस बहस में सत्तारूढ़ पार्टी का आरोप था कि देश में असहिष्णुता का हव्वा विपक्षी पार्टी खड़ा कर रही है, जबकि देश में कहीं भी ऐसा है नहीं. लेकिन अब उन्हीं के सांसद चौधरी महबूब अली क़ैसर ने सरकार की मुश्किलें और बढ़ा दी हैं और फिर से विपक्ष को भी बोलने का मौक़ा दे दिया है.


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चौधरी महबूब अली कैसर ने अपने बयान में कहा है कि बिहार चुनाव में हार के लिए भाजपा के कट्टर छवि वाले नेताओं और संघ प्रमुख के बयान जिम्मेदार हैं. गौहत्या पर जिस तरह की बयानबाजी हुई, वह काफी निराशाजनक थी.

उन्होंने कहा, ‘सबका साथ –सबका विकास हमारा नारा है, लेकिन इसे साबित भी करना होगा. इस देश में 90 फीसदी हिन्दू भी सेकुलर हैं और एक फीसदी लोगों के इस तरह के बयान से नुक़सान होता है. इसलिए इस तरह के बयान चाहे किसी भी तरफ़ से आते हो, सबकी निंदा करनी चाहिए. इस तरह के बयान अल्पसंख्यकों के साथ-साथ हिन्दूओं को भी बुरे लगते हैं.’

लोजपा सांसद चौधरी महबूब अली कैसर ने असहिष्णुता के मसले पर पीएम मोदी से हस्तक्षेप की मांग की है.

चौधरी महबूब अली कैसर के इस बयान के आते ही बिहार में जदयू भी इस मसले पर मैदान में कूद पड़ी है. जदयू प्रवक्ता डॉ. निहोरा प्रसाद यादव ने कहा है कि एनडीए के सांसद चौधरी महबूब अली कैसर द्वारा देश में बढ़ रहे असहिष्णुता पर उठाये गए सवाल भले ही भाजपा को नागवार लगे, पर सच्चाई वही है जो कैसर कह रहे हैं. इस सवाल पर लोजपा अध्यक्ष एव केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान को भी अपनी स्थिति स्पष्ट करना चाहिए.

उन्होंने आगे कहा, ‘देश में कई महीनों से इस तरह के सवाल उठ रहे हैं पर इसकी तह में जाने के बजाय भाजपा व्यक्तिगत टिप्पणी करके इसे दबाने का प्रयास कर रही है. दबाने से समस्याओं का समाधान नहीं हो जाता, बल्कि ऐसी भावनाओं को और मज़बूती मिलती है.’

निहोरा प्रसाद यादव ने कहा है कि सरकार की संवैधानिक ज़िम्मेदारी भी बनती है कि देश का कोई वर्ग, धर्म और समुदाय उनके सरकार और दल के नेताओं के व्यवहार से आहत न हो, पर यहां तो यदि कोई सही बात कह रहा है तो उसे मुसलमान, ईसाई और दलित एवं सरकार विरोधी होने के नज़रिये से देखा जा रहा है. जब तक शासक वर्ग का नज़रिया इस प्रकार रहेगा, देश में असहिष्णुता और बढ़ेगा. शासन को इन वर्गो को मुसलमान, ईसाई दलित और सरकार विरोधी होने के नज़रिये से न देखकर देश के नागरिक के रूप में देखना चाहिये.’


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