सिद्धांत मोहन, TwoCircles.net
पटना:आज का दिन बिहार के निवासियों के लिए रोज़ की सुबह ही है. उनका मुख्यमंत्री नहीं बदला. जिस दल को वे समर्थन देते हैं, वह दल नहीं बदला. नीतीश कुमार के लिए भी यह दिन नहीं बदला है. लेकिन यह दिन सिर्फ दो दलों या दो लोगों के लिए बदला है, राजद या लालू यादव और भाजपा या अमित शाह. लालू की बात फिर कभी, अभी हारी हुई भाजपा और उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह पर बातें.
साल 2014 जिस कदर भाजपा के लिए अच्छा और शुभ साबित हुआ, उसे देखकर लगा कि भगवा रंग धीरे-धीरे समूचे देश पर छा जाएगा. पहले लोकसभा चुनाव और फिर दो-दो राज्यों के विधानसभा चुनाव, जहां बिना किसी संदेह के भाजपा विजयी रही. लेकिन 2015 शुरू होते-होते भाजपा का विजय रथ सबसे पहले तब रुका जब अरविन्द केजरीवाल की ‘आम आदमी पार्टी’ ने दिल्ली विधानसभा चुनावों में 70 विधानसभा सीटों में से सिर्फ 3 सीटें भाजपा को लेने दीं, शेष सभी 67 सीटों पर ‘केजरीवाल-कंपनी’ ने झंडा फहरा दिया.
सितम्बर से बिहार में चल रही चुनावी गहमागहमी रविवार 8 नवम्बर को महागठबंधन के हाथों एनडीए की करारी हार के साथ ख़त्म हुई. जहां सभी चैनल यह दावा कर रहे थे कि बिहार में एनडीए और महागठबंधन में कांटे की लड़ाई होगी और जीतने वाला बेहद कम वोटों के अंतर से जीतेगा, वहीँ इन सभी कयासों को धता बताते हुए महागठबंधन ने दोपहर्र होते-होते यह स्पष्ट कर दिया कि बिहार में उनकी ही सरकार बनेगी. लालू-नीतीश की पत्रकार वार्ता में यह भी साफ़ हो गया कि बजाय इस तथ्य के कि राजद को जदयू से भी अधिक मत मिले हैं, महागठबंधन बरकरार रहेगा और नीतीश ही मुख्यमंत्री होंगे.
भाजपा की हार का ठीकरा खुद अमित शाह ने रामविलास पासवान के सिर फोड़ा है, वहीं भाजपा का करीबी माने जाने वाले समाचार चैनल जी न्यूज़ ने भाजपा को छोड़ राजग गठबंधन के तीनों दलों को दोषी ठहरा दिया है. लेकिन चुनावी कार्रवाई और प्रक्रिया को देखते हुए भाजपा को हार की तरफ धकेलने का श्रेय सिर्फ एक व्यक्ति को जाता है, अमित शाह. अमित शाह के राज में भाजपा ने पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र और जम्मू-कश्मीर में जीत दर्ज की, लेकिन गठबंधनों पर बनी इन सरकारों का प्रतिफल बिहार में नहीं नज़र आया.
जहां बिहार एनडीए में भाजपा जैसी शक्तिशाली पार्टी के अलावा लोजपा, रालोसपा और हम जैसी नयी पार्टी व छोटी पार्टियों को शामिल करना एक गलत फैसला था, उससे भी ज्यादा भयानक गलत फैसला बिहार में ग्राउंड वर्कर की कमी थी.
TwoCircles.net की टीम ने चुनाव में पूरा वक़्त बिहार में गुज़ारा है. इस चुनाव में ऐसा कोई भी ऐसा स्थानीय शख्स मिलना नामुमकिन था, जिस पर पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी भरोसा करती हो. बिहार में एनडीए को दिशा देने के लिए ज़ाहिर था कि सुशील कुमार मोदी को भरसक जगह दी जा सकती थी. लेकिन पटना स्थित भाजपा कार्यालय जाने पर यह साफ़ हो जाता था कि बिहार में भाजपा अधिकतर मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की टीम के भरोसे चल रही है. व्यापमं मामले में विवादित बयान देने और हाल में ही शाहरूख़ खान के खिलाफ़ ट्वीट करने वाले कैलाश विजयवर्गीय बिहार में चुनाव की कमान सम्हालते देखे गए. हमसे बातचीत में कैलाश विजयवर्गीय ने यह कहा कि बिहार में भाजपा पूरी तरह से मजबूत है, लेकिन मौजूदा नतीजे कुछ और ही कहते हैं. ज़ाहिर है कि इस चुनाव में यदि एनडीए के पास वोट मांगने के लिए एक भी बड़ा और स्थानीय चेहरा होता तो आज की यह बाजी बिलकुल पलट सकती थी.
बिहार के ग्राउंड सर्वे के दौरान लोगों ने यह बात स्वीकार की थी कि नीतीश ने अच्छा काम किया है, लेकिन अब किसी नए को आना चाहिए. लेकिन जनता को यह ‘नया’ चेहरा मुहैया कराने में भाजपा पूरी तरह से विफल है. चुनाव के दौरान भाजपा के पटना स्थित कार्यालय में जश्न का माहौल रहता था लेकिन राजद और जद(यू) के दफ्तर मरघट सरीखे लगते थे. एकबानगी यह लगता था कि महागठबंधन यह जंग पहले ही हार चुका है, लेकिन यह बाद की तफ्तीश में पता चला कि एक तरफ जहां भाजपा हेडक्वार्टर स्थापित करके काम को अंजाम देना चाहती है, वहीँ राजद और जद(यू) जैसे समाजवादी दल ज़मीन पर ज्यादा वक़्त देते हैं.
इस चुनाव के बाबत यह बात भी कई बार उठकर आ रही है कि संभवतः अमित शाह को पूर्वी राज्यों की राजनीति के बारे में कोई ज्ञान नहीं है. हम इस बात की तस्दीक नहीं करते लेकिन दिल्ली और बिहार के चुनावों के नतीजे कुछ और ही कहते हैं. चुनाव के आखिरी दौर में जिस तरह से भाजपा ने साम्प्रदायिकता का खेल खेलना शुरू कर दिया, उससे यह भी ज़ाहिर हो गया कि भाजपा एक हारी हुई लड़ाई लड़ रही थी.
ऐसे में भाजपा को एक ऐसे नेतृत्व की दरकार है, जो गुजरात या मध्य प्रदेश के अलावा भी अन्य राज्यों की परिस्थितियों को भी समझे. अमित शाह इस मामले में किंचित अक्षम नज़र आ रहे हैं. कल दोपहर 12 बजे भाजपा के संसदीय बोर्ड की मीटिंग है, इस मीटिंग में लोजपा और ‘हम’ पर हार का ठीकरा फोड़ा जाएगा लेकिन उसके बाद भी खुद की लगभग 50 प्रतिशत सीटों पर जीत दर्ज करने वाली भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह की जवाबदेही बनी रहेगी.