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तो क्या गठबंधनों के लिए निर्णायक है आज का मतदान?

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अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net

सीमांचल:पिछले 33 दिनों से चल रही चुनावी जंग आज शाम पांच बजे थम जाएगी. 9 ज़िलों के 57 सीटों के लिए उम्मीदवारों के भविष्य भी ईवीएम क़ैद हो चुके होंगे. इनके भविष्य का फैसला 8 नवम्बर को होगा.

आज ख़त्म हो रहा बिहार विधानसभा चुनाव का पांचवा व आख़िरी चरण कई मायनों में महत्वपूर्ण है. राजनीतिक जानकार बताते हैं कि जो इस चरण में आगे निकल गया, समझो वह बहुत आगे निकल गया. शायद तब उसे गद्दी पर बैठने से कोई नहीं रोक पाएगा. यानी आज का मतदान बिहार की राजनीति की दिशा तय करने वाला है.


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जानकार यह भी मानकर चल रहे हैं कि यह चरण महागठबंधन के पक्ष में अधिक रहेगा, क्योंकि जिन सीटों पर आज मतदान हो रहा है, वहां मुस्लिम वोटरों की संख्या काफी अधिक है. आंकड़े बताते हैं कि आज की 57 सीटों में 27 सीटें ऐसी हैं, जहां मुसलमान मतदाता 25 फीसदी से भी अधिक हैं. और इन 27 सीटों में से 13 सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम वोटरों की तादाद 40 फीसद से ऊपर है.

लेकिन इन सबके बावजूद 2010 विधानसभा चुनाव के आंकड़े बताते हैं कि उस समय भाजपा ने इन 57 सीटों में से 23 सीटों पर अपना क़ब्ज़ा जमाया था. जदयू को 20 सीटें हासिल हुई थी (हालांकि फिलहाल जदयू के कब्जे में 25 सीटें हैं, क्योंकि राजनीतिक उठापटक में कई विधायक जदयू में शामिल हुए थे). जबकि राजद 8 और कांग्रेस 3 सीटों पर ही कामयाब हो सकी थी. तो वहीं लोजपा व एक निर्दलीय उम्मीदवार की झोली में एक-एक सीट गई थी.


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आंकड़े यह भी बताते हैं कि राजद को भले ही 8 सीटों पर जीत हासिल हुई हो, लेकिन वह 20 सीटों पर दूसरे स्थान पर थी और जदयू-भाजपा को टक्कर दे रहा थी. ज़्यादातर सीटों पर हार का अंतर भी काफी कम ही रहा था. 8 सीटों पर जदयू तो 8 सीटों पर कांग्रेस भी दूसरे स्थान पर रही थी. वहीं लोजपा 10 सीटों पर भाजपा-जदयू को टक्कर दे रही थी. एनसीपी भी 4 सीटों पर दूसरे स्थान पर नज़र आई.

एक तथ्य यह भी ध्यान में रखना ज़रूरी होगा कि तब जदयू व भाजपा एक साथ थे. तो राजद व लोजपा में भी गहरी दोस्ती थी. कांग्रेस अकेले के दम पर चुनाव लड़ रही थी. लेकिन अब समीकरण अलग है. जदयू, राजद व कांग्रेस जहां एक साथ हैं, तो वहीं लोजपा अब भाजपा के साथ है.

इतिहास की बात छोड़कर अब वर्तमान पर आते हैं. इस चरण में महागठबंधन की ओर से जदयू ने 25, राजद ने 20 और कांग्रेस ने 12 उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं, जबकि एनडीए की ओर से भाजपा ने 38, लोजपा ने 11, रालोसपा ने पांच और हम ने 3 प्रत्याशी खड़े किये हैं. वहीं इस क्षेत्र में पहली बार असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन और पप्पू यादव की पार्टी जन अधिकार लोकतांत्रिक भी पहली बार अपनी क़िस्मत की आज़माईश कर रही है. ओवैसी ने जहां सिर्फ 6 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं तो वहीं पप्पू यादव के 46 प्रत्याशी मैदान में हैं. इस बार यहां एनसीपी भी महागठबंधन से अलग होकर 12 विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव लड़ रही है. ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि ये तीनों किसका फायदा कराते हैं, और किसको नुक़सान पहुंचाते हैं.

सीमांचल में ओवैसी की पार्टी एमआईएम रणनीतिक रूप से सिर्फ 6 सीटों पर उतरी है तो यह भी सम्भव है कि उसे लाभ मिले. मुस्लिम मतदाताओं के वोट महागठबंधन और एमआईएम के बीच बंट जाने के आसार हैं. इस इलाके के सेकुलर विचारक लोगों को नीतीश कुमार के विकास कार्यों का हवाला देते हुए उन्हें 'जांचे-परखे'प्रत्याशी को वोट देने के लिए कह रहे हैं. करीब हफ्ते भर से अखबारों में आ रहे भाजपा के साम्प्रदायिक विज्ञापनों ने ध्रुवीकरण को जितना अंजाम दिया, उससे ज्यादा अपने खिलाफ़ माहौल तैयार कर दिया है. भाजपा के विकास कार्यों का हवाला देने वाले लोग अब यह कह रहे हैं कि भाजपा को यह दांव खेलना ही था तो वह विकास की बातें क्यों की जा रही हैं? ऐसे में यह देखना रोचक होगा कि मतदाता किस ओर जाते हैं?


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