सिद्धांत मोहन, TwoCircles.net
वाराणसी:देश में दिनोंदिन माहौल ऐसा होता जा रहा है, जिससे लगातार एक अनुभूति मजबूत होती जा रही है कि अगले ही क्षण कुछ घट जाएगा. मीडिया और राजनीति में इस बात को लेकर एकतरफा और बेमक़सद बहस हो रही है कि क्या देश में असहिष्णुता बढ़ गयी है.
अब जहां इस तरह के निर्णय भी लिए जाने लगे हैं कि किसकी थाली में क्या होना चाहिए और क्या नहीं, ऐसे में हिन्दू कट्टरपंथियों के लिए दादरी के मोहम्मद अखलाक़ का मारा जाना बड़ी बात नहीं होगी. वायुसेना में कार्यरत मोहम्मद अखलाक़ के बेटे को टीवी की बहसों में हर बार यह साबित करना पड़ रहा है कि वह भी भारत का नागरिक है.
‘बीफ’ यानी ‘गोमांस’ की उठा विवाद अब ज्यादा व्यापक रूप ले चुका है. इस बहस ने एक और बड़ी बहस को जन्म दे दिया है, जिसके उत्तर में साहित्यकार, फिल्मकार और वैज्ञानिक अपने-अपने पुरस्कार वापिस करने लगे हैं. महाराष्ट्र की सरकार ने सबसे पहले गोमांस की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया, लेकिन वहीँ महाराष्ट्र से सटे गोवा में गोमांस की कटाई और बिक्री धड़ल्ले से जारी है. गोवा में धार्मिक आस्थाओं के ऊपर विदेशी सैलानियों से होने वाली कमाई ज्यादा वजन रखती है, इसलिए दोहरी राजनीति का एक कुशल परिचय देते हुए गोवा की भाजपा सरकार ने देश में उठे बवाल के बावजूद अपने राज्य में बीफ पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया.
कास्ट ऑन द मेन्यू कार्ड.
सनद रहे कि बीत रहा साल 2015 आपकी-हमारी थाली से उठी हिंसा से चिन्हित किया जाएगा. टाटा इन्स्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज़, मुंबई के कुछ मीडिया छात्रों द्वारा एक फिल्म बनाई गयी है. फिल्म का नाम है ‘कास्ट ऑन द मेन्यू कार्ड’. शीर्षक से ज़ाहिर है कि यह फिल्म कई संगठनों को नहीं पचेगी. खबरें यह भी हैं कि इस फिल्म के सार्वजनिक प्रदर्शन की मांग को कई जगहों पर रद्द कर दिया गया. लेकिन खुशखबरी यह है कि फिल्म मुफ्त में यूट्यूब पर उपलब्ध है.
फिल्म में अल्पसंख्यकों से बात की गयी है. यहां ज़ाहिर होता है कि मुंबई जैसे महानगर में भी भोजन के नाम पर किस तरीके से धर्म के आधार पर छुआछूत पसरा हुआ है. फिल्म में बात कर रहे जानकार कह रहे हैं कि कोई क्या खा रहा है, इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ना चाहिए? फिल्म में बीच-बीच में कई सारे उद्धरण आते हैं, जहां कई लोगों के माध्यम से यह कहा जा रहा है कि गाय को लेकर की जा रही बहस कितनी गैर-ज़रूरी है?
बहरहाल, फिल्म का लिंक नीचे है. एक बार भी यह मालूम नहीं होता कि फिल्म छात्रों ने बनायी है. इसे वक़्त रहते देख लें, असहिष्णुता के दौर में कोई गारंटी नहीं है.