Quantcast
Channel: TwoCircles.net - हिन्दी
Viewing all articles
Browse latest Browse all 597

बेतिया : इस बार होगी कांटे की लड़ाई!

$
0
0

अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net

पश्चिम चम्पारण का ज़िला मुख्यालय की बेतिया विधानसभा सीट पर इस बार कांटे की लड़ाई नज़र आ रही है. एनडीए गठबंधन के साथ-साथ महागठबंधन के नेताओं ने भी अपनी पूरी ताक़त यहां झोंक दी है. महागठबंधन व स्थानीय नेताओं का स्पष्ट तौर पर कहना है कि –अभी नहीं तो कभी नहीं...

दरअसल, बेतिया बिहार के पश्चिमी चंपारण ज़िले का एक अहम शहर है. यह पश्चिमी चंपारण ज़िला का मुख्यालय भी है. कहा जाता है कि ब्रिटिश शासनकाल में ‘बेतिया राज’ भारत की दूसरी सबसे बड़ी ज़मींदारी थी. उस समय अंग्रेज़ों को 20 लाख रूपये तक लगान में मिलता था.

आज़ादी के बाद भी यह शहर देश के लिए काफी अहम रहा. कभी जवाहरलाल नेहरू तक ने कहा था कि यह शहर भारत के महानगर वाला शहर हो सकता है. 1974 के संपूर्ण क्रांति में भी बेतिया की अहम भुमिका थी. लेकिन लोग बताते हैं कि जेपी आन्दोलन के बाद से इस शहर की हालत बेहतर होने के बजाए लगातार बिगड़ती रही. गांधी के इस ज़मीन पर गांधी के हत्यारे ही काबिज़ हो गए. गांधी से जुड़े धरोहरों को भी धीरे-धीरे ख़त्म कर दिया गया. कभी इस ज़मीन पर जनसंघ यहां सक्रिय हुआ करती है. लेकिन अब यहां बीजेपी का राज है.

b1

1996 से बेतिया लोकसभा सीट पर बीजेपी की जीत हो रही है. बस 2004 में यहां राजद जीत पाई थी. फिर से यह लोकसभा सीट बीजेपी को ही चली गई. उसी प्रकार सन् 2000 से यहां के विधानसभा पर भी बीजेपी की रेणु देवी ही क़ाबिज़ हैं.

स्पष्ट रहे कि 2010 विधानसभा चुनाव में यहां रेणु देवी ने निर्दलीय उम्मीदवार अनिल कुमार झा को 28,789 वोटों से हराया था. अनिल झा अब जदयू हैं और कांग्रेस के प्रत्याशी मदन मोहन तिवारी के लिए इस बार मेहनत कर रहे हैं, जबकि मदन मोहन तिवारी 2010 में तीसरे नम्बर पर थे.

पन्नालाल राकेश कुमार का मानना है कि इस बार यहां बीजेपी का जीतना काफी मुश्किल है. वो बताते हैं कि –‘इस बार जातिय समीकरण महागठबंधन के साथ है. ऐसे में कांग्रेस का पलड़ा भारी दिख रहा है. इस बार बीजेपी धाराशाई हो सकती है.’

वहीं तारिक़ अनवर का कहना है –‘अभी नहीं तो कभी नहीं... इस बार बीजेपी का हारना लगभग तय है. यहां के सारे मुसलमान और यादव के साथ-साथ दलित व पिछड़े भी कांग्रेस प्रत्याशी के साथ हैं.’ स्पष्ट रहे कि यहां लगभग 27 फीसदी मुस्लिम वोटर्स हैं. वहीं लगभग 12 फीसदी दलित वोटर्स भी हैं. यादव व पिछड़े समुदाय के वोटर्स की भी अच्छी-खासी तादाद है.

b2

लेकिन सोनू का कहना है कि चाहे लोग कुछ बी कर लें, लेकिन जीत तो यहां से बीजेपी की ही होगी. वहीं अजय प्रकाश का कहना है कि रेणु देवी व उसके भाई के आतंक से लोग परेशान हो चुके हैं, इसिलए इस बार यहां परिवर्तन तय है. खुद बीजेपी के नेता इस बार अंदर ही अंदर उनके ख़िलाफ़ हैं.

विजय दूबे का कहना है कि रेणु देवी ने ज़्यादा काम भले ही न किया हो. लेकिन बेतिया के विकास पर उनका सदा ध्यान रहा है. यहां की जनता इस बार फिर विकास के नाम उन्हें ही वोट करेगी. उनकी जीत तय है. जो भी चुनावी मुद्दे होंगे, रेणु देवी जीत के बाद सब दूर कर देंगी.

b4

चुनावी मुद्दा के तौर यहां मेडिकल कॉलेज एक अहम मुद्दा है. 2007 में ही मेडिकल कॉलेज की स्थापना हो गई, एमसीआई से स्वीकृति भी मिल गई. पढ़ाई भी चालू है. लेकिन अब तक कॉलेज के भवन के लिए एक भी ईंट नहीं जोड़ा जा सका है. बेरोजगारी भी यहां के लोगों के लिए एक अहम मुद्दा है. जिला मुख्यालय बेतिया में पिछले दस सालों में एक भी नए उद्योग धंधे नहीं लग सके. जिसके कारण युवकों को रोजगार के लिए दूसरे राज्यों में पलायन करना पड़ रहा है.

हालांकि बेतिया के वोटर्स काफी सजग और जागरूक हैं. हमेशा से वैचारिक स्वतंत्रता से अपनी महत्वकांक्षा के आधार पर फैसला लेते रहे हैं. यही कारण है कि पिछले विधानसभा में यहां मतदान का प्रतिशत 55.26 रहा और इस बार इसमें और इज़ाफ़ा होने की उम्मीद है. यहां 16 उम्मीदवार मैदान में हैं. लड़ाई में विजय का सेहरा किसके सर होगा,ये 8 नवम्बर को आने वाला नतीजा ही बताएगा.

बेतिया से ताल ठोंकने वाले उम्मीदवार

kkkkkk

Viewing all articles
Browse latest Browse all 597

Trending Articles