अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
मुज़फ्फ़रपुर:यहां से तक़रीबन 35 किलोमीटर दूर सीतामढ़ी ज़िला के ‘गेटवे’ के रूप में जाना जाने वाले रून्नी-सैदपुर में इस बार चुनावी जंग काफी दिलचस्प है. वर्तमान विधायक का टिकट कट जाने की वजह से उन्होंने बाग़ी रूख अख़्तियार कर लिया है और सपा से टिकट से चुनावी जंग में कूद गई हैं.
दरअसल, रून्नी और सैदपुर दो अलग-अलग गांव हैं. जिन्हें मिलाकर इसे रून्नी-सैदपुर के नाम से जाना जाता है. हमेशा बाढ़ का आना इस क्षेत्र की खास पहचान है. यहां के बालूशाही की भी अपनी पहचान है. लोग बताते हैं कि यहां की बालूशाही पूरे भारत में पसंद की जाती है. लेकिन इस बार चुनाव में मतदाता किसे पसंद करेंगे, यह अभी तक तय नहीं हो पाया है. स्थानीय लोगों के मुताबिक़ यहां लड़ाई त्रिकोणीय है और इसका फ़ायदा महागठबंधन को मिलने की अधिक संभावना है.
रक्सिया गांव के रहने वाले सब्बू बताते हैं, ‘यहां अभी सब अपने-अपने प्रचार अभियान में जुटे हुए हैं. आखिरी दिन ही तय होगा कि किसकी लहर अधिक है. वैसे यहां लोगों का झुकाव राजद की तरफ़ अधिक है.’ लेकिन सब्बू आगे यह भी बताते हैं कि अगर यहां आखिर में हिन्दू-मुस्लिम वाली बात हुई तो लोग बीजेपी के साथ चले जाएंगे, नहीं तो टक्कर में सपा प्रत्याशी भी हैं.
रून्नी-सैदपुर मध्य पंचायत के सरपंच संजय चौधरी का कहना है, ‘हम एनडीए गठबंधन को वोट क्यों दें? यहां रालोसपा का सांसद है. आज तक कभी इस क्षेत्र में आए भी नहीं. सच तो यह है कि लोग उसे पहचानते भी नहीं हैं.’ संजय सवाल करते हुए आगे कहते हैं, ‘क्या पीएम मोदी अब पंचायत चुनाव का भी प्रचार करेंगे? देश का पीएम ऐसा नहीं होना चाहिए.’
किसान शंकर चौधरी का कहना है, ‘गांव-समाज का आदमी जहां वोट करेगा, मैं भी वहीं वोट करूंगा. वैसे इस वोट से हम गरीबों का फ़ायदा ही क्या है? हमें तो सिर्फ़ कुदाल ही चलाना है.’
19 वर्षीय अजय कुमार पहली बार वोट डालेंगे. अजय का कहना है, ‘हम वोट तो मोदी जी को देखेंगे, लेकिन सीएम तो नीतिश कुमार ही को बनना चाहिए और वही बनेंगे.’
रक्सिया गांव के ही मो. अताउर बताते हैं, ‘यहां का मुसलमान नीतिश कुमार को ही वोट करता है.’ लेकिन जब कोई मुसलमान चुनाव में खड़ा हो जाए तब? उनके अनुसार तब भी नीतिश कुमार या लालू को ही वोट देता है. मुस्लिम नेता को कोई नहीं देता. उसे यहां वोट-कटवा कहते हैं. लोग बोलते हैं कि पता नहीं, ये वोट-कटवा कहां से आ गया.'
रेयाज़ हैदर ख़ान का कहना है, ‘यहां अभी तक लड़ाई राजद की मंगीता देवी और सपा की गुड्डी देवी के बीच है. रालोसपा के पंकज मिश्रा की छवि यहां थोड़ी खराब है. उनके साथ लोकल न होने का भी मुद्दा है. शराबी होने का भी आरोप है. महिलाएं तो शायद ही उन्हें वोट करें.’
दरअसल, रून्नी-सैदपुर का यह क्षेत्र 33 एवं नानपुर का 5 पंचायत को मिलाकर बनाया गया है. यहां कुल मतदाताओं की संख्या लगभग सवा 2 लाख है. गैर सरकारी सूत्रों के अनुसार इस क्षेत्र में भूमिहार मतदाताओं की संख्या करीब 36 हजार, यादव 31 हजार, वैश्य 25 हजार, मुस्लिम 21 हजार, पिछड़े वर्ग की संख्या 26 हजार है. जबकि दलित व महादलित की संख्या भी निर्णायक बतायी जाती है.
स्पष्ट रहे कि 2010 में जदयू की गुड्डी देवी ने राजद के राम शत्रुघन राय 10759 वोटों के अंतर से हराया था. अक्टूबर 2005 में भी इन्होंने ही जीत हासिल की थी, जबकि इससे पहले यह सीट राजद के भोला राय के पास थी. वो लगातार यहां 15 सालों से चुनाव जीतते आए हैं.
लेकिन इस बार जदयू के गुड्डी देवी का टिकट काटकर राजद के मंगीता देवी को दे दिया गया, जिससे गुड्डी देवी ने बाग़ी रूख अख़्तियार कर लिया. पहले निर्दलीय चुनाव लड़ने का प्लान बना, फिर वो मुलायम सिंह की पार्टी सपा में शामिल होकर चुनावी ताल ठोंक रही हैं.
अगर पूरे सीतामढ़ी ज़िले की बात की जाए तो यहां 8 विधानसभा क्षेत्र हैं. 2010 में यहां के 4 सीटों पर जदयू तो 4 सीटों पर भाजपा ने अपनी जीत का परचम लहराया था. तब जदयू भाजपा के साथ हुआ करती थी. अगर राजद की बात करें तो वो 5 सीटों पर काफी कम वोटों के अंतर से दूसरे स्थान पर थी. एक पर कांग्रेस भी भाजपा को टक्कर दे रही थी. लोजपा 2 सीटों पर दूसरी पर थी. तब लोजपा लालू यादव के साथ थी और कांग्रेस अकेले तमाम सीटों पर ताल ठोंक रही थी. लेकिन अब समीकरण बदल चुका है. लोजपा जहां भाजपा के साथ है तो वहीं जदयू-राजद-कांग्रेस तीनों एक साथ हैं. ऐसे में महागठबंधन को फायदा मिलने की अधिक संभवाना दिख रही है.
पिछले विधानसभा चुनाव में यहां मतदान का प्रतिशत 50.41 रहा था. इस बार इसमें इज़ाफ़ा की गुंज़ाईश अधिक नज़र आ रही है. यहां चुनाव चौथे चरण यानी 1 नवम्बर को है. फिलहाल जंग जारी है.