अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
बिहार के ऐतिहासिक महत्व वाला ज़िला रोहतास में जहां शेरशाह सूरी का मक़बरा है, वहीं रोहतासगढ़ का क़िला भी पूरे भारत में प्रसिद्ध है. लेकिन इस बार बिहार के विधानसभा चुनाव में यहां कौन क़िला फ़तह करेगा और किसका मक़बरा तैयार होगा, किसी को नहीं पता...
सबने अपनी-अपनी क्षमता के मुताबिक़ यहां अपनी पूरी ताक़त झोंक दी है. पीएम नरेन्द्र मोदी इस ज़िला में भी अपनी सभा कर चुके हैं. अमित शाह सारे विधानसभा क्षेत्रों का लगातार चक्कर काट रहे हैं. वहीं महागठबंधन भी इस काम में पीछे नहीं है. सीएम नीतिश कुमार इस ज़िले का कई दौरा कर चुके हैं.
स्थानीय लोग बताते हैं कि बताते हैं कि इस ज़िला लोग अब तक विकास नहीं, बल्कि जज़्बात पर वोट करते आए हैं. कभी कोई निर्दलीय ‘मुसलमान हटाओ’ के नारे पर जीत जाता है. तो कभी कोई लोगों को तरह-तरह के लालच देकर सत्ता की चाबी हासिल कर लेता है. इस बार भी यहां चुनाव ऐसे ही चल रहा है. कोई खुद को पीएम मोदी से बड़ा बता रहा है, तो खुद को सीएम पद का उम्मीदवार...
अगर आंकड़ों की बात करें तो इस ज़िले में कुल 7 विधानसभा सीट है. पिछले चुनाव यानी 2010 में यहां जदयू ने 4 सीटों पर जीत हासिल की थी. वहीं बीजेपी के झोली में 2 सीटें आई थीं. एक सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार ने बाज़ी मारी थी, जिन्होंने अब खुद की अपनी पार्टी बना ली है, जिसका नाम है राष्ट्र सेवा दल. यहां यह भी स्पष्ट रहे कि 2010 का यह चुनाव जदयू-बीजेपी साथ मिलकर लड़े थे.
गौर करने वाली बात यह भी है कि लालू प्रसाद यादव की पार्टी राजद 6 सीटों पर दूसरे नंबर पर रहा था. एक सीट लोजपा दूसरे नंबर पर थी. उस समय राजद-लोजपा दोनों साथ मिलकर चुनाव लड़े थे. लेकिन अब समीकरण बदल चुका है.
रोहतास ज़िले का सासाराम सीट पर बीजेपी का क़ब्ज़ा है. जवाहर प्रसाद यहां के विधायक हैं. ये यहां से 6 बार चुनाव जीत चुके हैं. लेकिन अब क्षेत्र के लोगों को लगता है कि परिवर्तन ज़रुरी है. राजद से अशोक कुमार व राष्ट्र सेवा दल की नेता व डेहरी की विधायक ज्योति रश्मि टक्कर देती नज़र आ रही है.
महेश कुमार बताते हैं कि –‘विधायक जी ने किसानों के लिए कोई खास काम आज तक नहीं किया है. इस बार हम किसान उन्हें वोट नहीं देने वाले.’ वहीं रामेश्वर प्रसाद का भी कहना है कि –‘अब परिवर्तन ज़रूरी है. नए चेहरों को भी मौक़ा दिया जाना चाहिए. विधायक जी ने शहर को जलजमाव व जाम की समस्या से निजात नहीं दिला सकें’ डेहरी विधानसभा भी यहां का सबसे चर्चित सीट है. पिछले दो बार से यहां निर्दलीय उम्मीदवार बाज़ी मार रहे हैं. 2005 में यहां से प्रदीप कुमार जोशी चुनाव जीते थे तो 2010 में उनकी पत्नि ज्योति रश्मि ने यहां अपना जीत दर्ज करवाया था. ज्योति रश्मि अब सासाराम से चुनाव लड़ रही है. तो उनके पति एक बार फिर यहां अपनी क़िस्मत की आज़माईश करते नज़र आ रहे हैं. राजद से यहां मुक़ाबले में इलियास हुसैन है तो वहीं एनडीए गठबंधन की ओर से रालोसपा ने जितेन्द्र कुमार उर्फ रिंकु सोनी को मैदान में उतारा है.
यहां के भी मतदाता अब परिवर्तन चाहते हैं. अमित का स्पष्ट तौर पर कहना है कि –‘लगातार दो बार हिन्दू-मुस्लिम का कार्ड खेलकर जोशी जी चुनाव जीत रहे हैं. लेकिन अब ऐसा नहीं चलेगा. जनता उनकी चाल समझ चुकी है. परिवर्तन तय है.’ वहीं सुलेमान का आरोप है कि –‘यहां के विधायक एक मानसिक रोगी की तरह हैं. उनके इस रोग का अंदाज़ा इस बात से ही लगा सकते हैं कि वो सार्वजनिक सभा में कहते हैं कि मुसलमान वोट नहीं चाहिए. कई बार सभा में खुद को पीएम मोदी से उपर बता चुके हैं.’
दिनारा की लड़ाई भी काफी ज़बरदस्त है. यहां कुल 17 उम्मीदवार मैदान में हैं. बीजेपी से यहां राजेन्द्र प्रसाद सिंह पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं. गया के विधायक प्रेम कुमार की तरह इनके भी समर्थकों का मानना है कि अगर बिहार में एनडीए गठबंधन की सरकार बनी तो राजेन्द्र प्रसाद सिंह ही मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान होंगे. जदयू से यहां जय कुमार सिंह मुक़ाबले में हैं.
इन सबके बीच राजनीतिक पार्टियां यहां अपना साम्प्रदायिक कार्ड भी खूब खेल रही हैं. पिछले 3 महीनों में कई साम्प्रदायिक तनाव फैलाने वाले मामले सामने आ चुके हैं. ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि मतदाता किस तरह का परिवर्तन करते हैं. किसे जीत का सेहरा पहनाते हैं और किसे पूरी तरह से नकारते हैं. इस ज़िला में मतदान दूसरे चरण यानी 16 अक्टूबर को होने वाला है.