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बनारस में बलवा, बग़ावत और कर्फ्यू – 1

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गोदौलिया चौराहे पर आन्दोलनकारियों से मोर्चा लेती पुलिस

सिद्धांत मोहन, TwoCircles.net

वाराणसी: नरेंद्र मोदी की संसदीय सीट वाराणसी के लिए बीता कल बेहद शर्मनाक और भयावह रहा. 5 अक्टूबर के दिन शाम चार बजे शहर के बीचोंबीच स्थित टाउनहाल के मैदान से हिन्दू संतों के साथ-साथ, विहिप, हिन्दू युवा वाहिनी, शिव सेना, संघ और कांग्रेस के नेताओं का एक विरोध मार्च निकला. यह विरोध मार्च पहले से ही प्रस्तावित था. इसके बारे में प्रशासन को पूरी जानकारी दे दी गयी थी. इस जुलूस की पहली कतार में भावी शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद, महानद बालकदास, भाजपा विधायक रवीन्द्र जायसवाल, पूर्व विधायक श्यामदेव राय चौधरी, कांग्रेस के विधायक और लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के प्रतिद्वंदी रहे अजय राय और पूर्व कांग्रेसी सांसद राजेश मिश्रा मौजूद था. इसके साथ-साथ हिन्दू युवा वाहिनी, भारतीय जनता युवा मोर्चा, सनातन संस्था, विश्व हिन्दू परिषद्, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और शिवसेना जैसे बहुतेरे संगठन जुड़े हुए थे.

इस विरोध मार्च के उद्देश्य के बाबत जो कहा गया, उसका आशय यह था कि 22 सितम्बर को संतों पर हुए लाठीचार्ज ( पढ़ें यह रिपोर्ट ) का एक अहिंसक विरोध करना है, जिसके साथ-साथ यह भी एक उद्देश्य था कि मूर्ति विसर्जन पर मचे बवाल से जनता और प्रशासन को सही-सही अवगत कराया जा सके. मार्च शुरू होने के पहले स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने मंच से कहा कि हमने प्रशासन से कह रखा है कि, ‘यदि कोई भी गड़बड़ी होती है तो उसकी जिम्मेदारी मैं लेता हूं.’ स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने यह भी कहा कि वे इस मार्च में चलने वाली भीड़ से अपील करते हैं कि वे न तो प्रशासन के खिलाफ नारे लगाएं और न ही कोई ऐसी हरक़त करें. उन्होंने बताया कि ‘धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो, प्राणियों में सद्भावना हो, विश्व का कल्याण हो’, बस इतना ही नारा लगाया जाए.

अविमुक्तेश्वरानंद के कथनों और विचारों को कट्टर हिंदूवादी भीड़ से उतना समर्थन तो मिल ही रहा था साथ में सेकुलर कहे जाने वाले लोगों – जैसे अजय राय, राजेश मिश्र – से भी भरपूर समर्थन मिल रहा था. बहरहाल, करीब 5 लाख लोगों – जिनमें अधिकतर युवा थे – का हुजूम लेकर यह मार्च निकल पड़ा. शहर का पक्का महाल कहे जाने वाले मोहल्ले से जब यह विरोध जुलूस निकल रहा था तो सबसे आगे बाबा विश्वनाथ की मूर्ति चल रही थी, उसके पीछे संत समाज और फिर तमाम संगठनों के लोग और अनुयायी.

संक्षेप में बताते चलें कि पिछले साल इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दायर की गई एक याचिका पर यह फैसला सुनाया था कि पर्यावरण की दृष्टि से गंगा में सभी प्रतिमाओं पर रोक लगाई जाए. प्रशासन को विसर्जन की वैकल्पिक व्यवस्था करने के लिए एक साल का समय दिया गया, लेकिन इस साल यानी 2015 से सभी किस्म की मूर्ति स्थापनाओं को गंगा में प्रवाहित न करने देने की सख्त हिदायत दी गयी. इसी मामले को लेकर 22 सितम्बर को अपनी मांगों को लेकर अड़े संतों और अनुयायियों पर पुलिस ने आधी रात लाठीचार्ज कर दिया, जिसके विरोध में इस जुलूस का आयोजन किया गया था. संतों ने कई दफा इस्तीफे और लिखित माफीनामे की मांग की जिसे प्रशासन ने सीधे-सीधे नकार दिया.

शहर, जो इसके लिए कभी नहीं जाना जाता था

‘जब-जब हिन्दू का खून जलेगा, तब-तब भारत देश जलेगा’, ‘मूर्ति विसर्जन कहां करोगे, गंगा में करेंगे बस गंगा में करेंगे’, ‘जिस हिन्दू का खून न खौला, खून नहीं वो पानी है’, जैसे नारे हर जगह गूँज रहे थे. स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का सुझाया नारा ‘धर्म की जय हो....’ बार-बार ‘गौ-ह्त्या बंद हो’ तक पहुंच जा रहा था. पूरे जुलूस में एक भी महिला नहीं थी. जगह-जगह पीने के पानी के पैकेट बंट रहे थे. कुछेक लोग शराब पिए हुए थे. बिना किसी धैर्य के यह जुलूस आगे बढ़ रहा था. योजना थी कि शहर के महत्त्वपूर्ण चौक गोदौलिया पर पहुंचे के बाद स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद भीड़ को संबोधित करेंगे.

महज़ दो-ढाई किलोमीटर का सफ़र तय करने के बाद गोदौलिया चौराहे पर संतों की भीड़ - जिसमें सिर्फ संत नहीं कम से कम 5 लाख युवा मौजूद थे - की तरफ से पत्थर और चप्पल फेंके जाने लगे. देखते ही देखते पुलिस की तीन गाड़ियां जलने लगीं. पास में ही बसे अस्तबल में खड़ी लगभग चार दुपहिया गाड़ियां भी जलने लगीं. जब मीडिया का अमला इस आगजनी की तस्वीर खींचने पहुंचा तो आगजनी कर रहे लोगों ने जलते हुए बांस से उन्हें डराने की कोशिश की.

इसके बाद पुलिस ने भीड़ के इस अराजक रुख को मैनेज करने के लिए आंसू गैस के गोले-हथगोले दागे. आंसूगैस के साथ-साथ रबर की गोलियां भी दागी गयीं. आंसूगैस के कम से कम 50 राउंड गोदौलिया चौराहे से हर दिशा में फायर किए गए. पुलिस और भीड़ के बीच में एक लम्बे वक़्त तक ऐसी स्थिति बनी हुई थी कि पंद्रह से बीस पुलिस के जवान चौराहे पर सिमटे हुए थे और चारों दिशाओं से भीड़ चप्पल और पत्थर फेंक रही थी. टियर गैस से स्थिति को काबू में करने के प्रयास जब लगभग असफलता की ओर बढ़ चले थे, उसी वक़्त पीएसी की एक टुकड़ी मौके पर पहुंच गयी. पीएसी के मौके पर पहुंचने के बाद एक हलके दर्जे का लाठीचार्ज किया गया. इस लाठीचार्ज के बाद भी भीड़ को काबू में करने में आंशिक सफलता ही मिली क्योंकि लाठीचार्ज किए जाने से लोग काफी ज्यादा उग्र हो गए थे.

इस पूरी नोंकझोंक के बीच हिन्दू अनुयायियों की ओर से कई बार प्रयास किए गए कि वे शान्तिपूर्ण ढंग से आगे बढ़ते रहें. हालांकि यह भी याद रखा जाना चाहिए कि ऐसे प्रयास करने वाले सौ में से पच्चीस ही होते हैं. लेकिन जब भी कोई प्रयास सफल होता दिख रहा था, पुलिस आंसू गैस के गोले दाग दे रही थी. पुलिस की स्थिति देखते हुए लग रहा था कि वे किसी भी संवाद की जगह खाली नहीं छोड़ना चाह रहे थे. भीड़ को देखते हुए लग रहा था कि वह पिछली लाठीचार्ज का बदला ज़रूर लेना चाह रही है.

भीड़ एक

इस पूरे समयक्रम में पुलिस से भारी चूक हुई, जिसमें पुलिस ने एक मीडियाकर्मी पर लाठीचार्ज कर दिया. इस लाठीचार्ज के बाद मौके पर मौजूद मीडियाकर्मी के बर्ताव और भीड़ के बर्ताव में कोई फ़र्क नहीं रह गया. तमाम मीडियाकर्मी ‘जिला-प्रशासन’ व ‘प्रदेश-प्रशासन’ के खिलाफ नारेबाजी करने लगे. बाद में तथ्य खुलकर सामने आया कि पीएसी के एक जवान ने जलते हुए बड़े कपडे को उठाकर दुपहिया वाहन के ऊपर रख दिया था, जिसे एक फोटोग्राफर ने अपने कैमरे में कैद कर लिया था. बस इसी घटना के बाद पुलिस ने भी अमुक फोटोग्राफर पर भी डंडे बरसा दिए. इस बात के पुख्ता सुबूत भी नहीं मौजूद हैं क्योंकि पुलिस का तर्क है कि अमुक पत्रकार भी उन्मादी भीड़ की तरह बर्ताव करते हुए पुलिस पर पत्थर फेंक रहा था.


भीड़ दो


भीड़ तीन


गोदौलिया चौराहे पर आगजनी के बाद हमें धमकाने पहुंचता नवयुवक
गोदौलिया चौराहे पर आगजनी के बाद हमें धमकाने पहुंचता नवयुवक


कर्फ्यू के बाद शाम सात बजे की तस्वीर
कर्फ्यू के बाद शाम सात बजे की तस्वीर


बनारस के बीचोंबीच मचे उपद्रव के बाद के बाद उठता धुआँ
बनारस के बीचोंबीच मचे उपद्रव के बाद के बाद उठता धुआँ


पदयात्रा शुरू होने के पहले मंच पर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती, महंत बालकदास व अन्य
पदयात्रा शुरू होने के पहले मंच पर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती, महंत बालकदास व अन्य

बहरहाल, स्थिति को नियंत्रण में रखने के लिए नगर प्रशासन ने शहर के पांच बड़े थाना क्षेत्रों में दो घंटे के लिए कर्फ्यू लगा दिया था, जिसे रात ढ़लने के पहले हटा लिया गया था. वाराणसी जिलाधिकारी राजमणि यादव ने कहा कि स्थिति को काबू में करने के लिए कर्फ्यू लगाने का निर्णय सही था. राजकीय चिकित्सालय में पुलिस द्वारा पीटे गए लोग और लोगों द्वारा पीटी गयी पुलिस, दोनों ही पक्ष अपना इलाज करवा रहे हैं. बनारस में जो हुआ, उसे अयोध्या के राममंदिर आन्दोलन के बाद अब तक के सबसे बड़े हिन्दू मूवमेंट की नींव पड़ती है. आज से बनारस में जगह-जगह रामलीलाएं शुरू होने वाली हैं. महीने भर तमाम किस्म के त्यौहार पड़ते रहेंगे. बीच में मुहर्रम भी पड़ेगा. इस कड़ी का अगला भाग आने के पहले यह सोचना ज़रूरी है कि यह शहर किस ओर बढ़ रहा है?


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