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मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के नाम खुला पत्र

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मोहम्मद ज़ाकिर रियाज़,

माननीय मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव,

मैं यह ख़त उत्तर प्रदेश का एक नागरिक और मुस्लिम होने की हैसियत से आपको लिख रहा हूं. मुख्यमंत्री जी, 2012 का विधानसभा चुनाव हमारे लिए काफी प्रसन्नता का विषय रहा था. हमने खुशियां मनाई थीं क्योंकि हमारे प्रदेश को एक उच्च शिक्षित युवा मुख्यमंत्री मिला था. आपसे बहुत कुछ नया करने की अपेक्षाएं थी. हमें भरोसा था कि आप पारंपरिक राजनीतिक रिवाज़ों से हटकर कुछ अलग करेंगे और प्रदेश की जनता के हित में फैसले लेंगे. लेकिन ऐसे किसी दिन की हम सिर्फ कल्पना ही कर पाए. हालांकि वह बदलाव का दिन तो हमें देखना नसीब नहीं हुआ लेकिन हमें आपकी सरकार ने नए जख्म देने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी.

(Courtesy: indianexpress)

माननीय मुख्यमंत्री जी, भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था कि “एक राज्य की सभ्यता और अपने नागरिकों की देखभाल के स्तर को मापने के लिए पता करो कि वह राज्य अपने अल्पसंख्यकों के साथ कैसा बर्ताव करता है”.बापू के इस कथन के आधार पर उत्तर प्रदेश में आपकी सरकार का रिपोर्ट कार्ड बनाया जाए तो आपकी सरकार बुरी तरह से अनुत्तीर्ण हो चुकी है.

जस्टिस विष्णु सहाय ने मुज़फ्फरनगर दंगों में भाजपा के साथ-साथ आपकी पार्टी को भी कुसूरवार ठहराया है. इसके अलावा डीएसपी ज़ियाउल हक की हत्या, खालिद मुजाहिद की हिरासत में हत्या, हाशिमपुरा दंगों में इन्साफ की मांग करने वालो पर फर्जी मुक़दमे, पिछले तीन सालों में हुए दो सौ से अधिक छोटे-बड़े सांप्रदायिक दंगे और पिछले दो दिन में कानपुर और दादरी में हुयी हत्याएं जो सिर्फ मुसलमान होने की वजह की गयी हैं, यह सब राज्य की सुरक्षा व्यवस्था और सरकार के अल्पसंख्यकों के प्रति उदासीन रवैये को ज़ाहिर करने के लिए काफी हैं.

दादरी की घटना बेहद विचलित कर देने वाली है. इस घटना में पुलिस का मुजरिमों को पकड़ने से पहले गोश्त को फॉरेंसिक जांच के लिए भेजना भी अल्पसंख्यकों के प्रति इसी उदासीनता और असंवेदनशीलता का हिस्सा है. मुझे नहीं मालूम कि ऐसे दर्दनाक क़त्ल के बारे में जानने के बाद आपको कैसा लगा होगा? लेकिन मैंने जबसे यह खबर पढ़ी मेरा अपने काम में मन न लग सका और घर लौटते ही आपके लिए यह पत्र लिखने बैठ गया.

हम अपने पिता जी के घर लौटने में देर हो जाने से ही विचलित हो जाते हैं तब एक बेटी के सामने उसके बाप को पीट-पीट कर मार देना कैसा होता होगा मुख्यमंत्री जी? इसको महसूस करने के लिए कभी अपनी पत्नी और बच्चों से पूछियेगा कि कभी आपके साथ ऐसा कोई हादसा हो जाए (मेरी दुआ है कि ऐसा हादसा किसी परिवार के साथ न हो) तब उन्हें कैसा महसूस होगा. अपनी आंखों के सामने किसी अपने को भीड़ के हाथों दर्दनाक मौत मरते हुए देखना कैसा होता होगा, सोचियेगा मुख्यमंत्री जी?

मुख्यमंत्री जी ऐसी घटनाओं से हम मुसलमानों को बार-बार यह महसूस कराया जाता है कि हमारी जान की कीमत किसी जानवर से भी बेहद कम है. आज के दौर में हमें अपने ही देश में बेगाना बना दिया गया है. जब जो जहां चाहता है भीड़ इकठ्ठा करता है और एक झूठा इलज़ाम काफी होता है हमारे ऊपर बर्बरता के लिए.

मुख्यमंत्री जी, शिकायतों की फेहरिस्त इतनी हैं कि लिखने में दिन गुज़र जाए लेकिन अभी सिर्फ आपसे एक गुज़ारिश करूंगा. आप जाइएगा अखलाक़ के घर दादरी में. आप अखलाक़ को वापस तो नहीं ला सकते लेकिन उसकी बेटी और पत्नी की आंखों में आखें डाल कर उनसे इन्साफ दिलाने का वादा कीजियेगा. यह सबसे आसान काम होगा जो आप इन्साफ दिलाने की दिशा में कर सकते हैं. उम्मीद है आप जायेंगे और एक निभाने वाला वादा करेंगे उस अभागी बेटी से जिसने अपने बाप को अपनी आंखों के सामने दर्दनाक मौत मरते देखा है.

उत्तर प्रदेश का एक आम मुसलमान नागरिक
मोहम्मद ज़ाकिर रियाज़


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