अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
पटना: बिहार चुनाव का रणक्षेत्र तैयार हो चुका है. जंग के लिए सब अपनी तलवार पर धार चढ़ा चुके हैं क्योंकि लड़ाई इस बार ‘बिहारी अस्मिता’ की है. एक तरफ़ महागठबंधन के सिरमौर नीतिश कुमार हैं, तो वहीं भाजपा बिहार की 'अस्मिता'की जंग दो गुजराती चेहरों के दम पर लड़ रही है.
फिलहाल असल लड़ाई को छोड़कर विज्ञापनों की लड़ाई की बात करते हैं. यह विज्ञापन वॉर भी बेहद दिलचस्प है. हालांकि आरंभ से ही इस युद्ध में महागठबंधन हारता हुआ ही नज़र आ रहा है. आलम तो यह है कि जदयू कार्यालय के परिसर में भी मोदी के ही होर्डिंग्स लगे हैं.
खैर, शुरू से ही बिहार में होर्डिंग्स में नरेन्द्र मोदी की जीत-हार होती रही है, उसके बावजूद उनके बराबर किसी भाजपा नेता ने खड़े होने की हिम्मत नहीं जुटाई. मोदी अकेले बिहार के नेताओं को ऊंगली दिखाकर दहाड़ते नज़र आए. फिर जब नितीश कुमार ने अपने होर्डिंग्स के ज़रिए दहाड़ा तो सारे पोस्टरों से पीएम मोदी गायब हो गए और नीतीश के स्लोगन ‘बिहार में बहार है...’ का जवाब कुछ इस प्रकार दिया जाने लगा - ‘हत्या और लूट हो रही दिन रात है. हां भैया बिहार में बहार है...’
‘स्वाभिमान रैली’ ने नीतीश के उत्साह को और दुगुना किया. नीतिश ने भी आंकड़ों के सहारे बीजेपी के विज्ञापनों का जवाब दिया. फिर से भाजपा के लोगों को लगा कि इससे काम नहीं बनने वाला है. ऐसे में फिर से मोदी को वापस मैदान में उतरना पड़ा. रातों-रात शहर के पोस्टर-बैनर बदल दिए गए. पर इस बार विज्ञापन की तस्वीरों में पीएम मोदी हारते हुए नज़र आ रहे थे. मोदी की मुद्रा बदल गई थी. इस बार के पोस्टर व होर्डिंग्स में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दोनों हाथ जोड़े हुए थे.
लेकिन अब पार्टी अध्यक्ष अमित शाह खुद '180 प्लस मिशन'का सपना लिए इलेक्शन कैंपेन की कमान संभालने पटना पहुंच चुके हैं. होटल मौर्या में खूब माथापच्ची हुई. कैंपेन स्ट्रैटजी तैयार की गयी और बताया गया कि बिहार के लिए जो नीतियां बनाई जा रही है, वह पिछले साल लोकसभा चुनाव के दौरान उत्तर प्रदेश के लिए बनाई गई नीतियों से भी ज्यादा कारगर है. लेकिन एक संकट खड़ा हुआ कि बिहार के ज़्यादातर लोग तो अमित शाह को जानते ही नहीं. बस फिर क्या था. रातों-रात पीएम मोदी को उतार कर खुद अमित शाह पीएम मोदी के कंधे से कंधा मिलाकर बग़ल में खड़े हो गए.
एनडीए गठबंधन के नेताओं का भी ख्याल रखा गया. उनकी शिकायत थी कि भाजपा बार-बार ‘अबकी बार –भाजपा सरकार’ क्यों कह रही है. इसलिए इस बार होर्डिंग्स से सरकार की बात ही गायब है. बल्कि लड़ाई ‘बदलिए सरकार –बदलिए बिहार’ के नारे पर लड़ी जा रही है.
इतना ही नहीं, अमित शाह गांव-देहातों में अपनी पहचान बनाने के लिए खुद को बिहार का बताने में भी नहीं कतरा रहे हैं. मोबाईल संदेशों के द्वारा लोगों को जोड़ने की कोशिश लगातार चल रहा है. इस मोबाइल संदेश में लिखा है –‘मैं अमित शाह, आपका राष्ट्रीय अध्यक्ष, बिहार से आपको प्रणाम करता हूं. आईए साथ मिलकर नए बिहार की नींव रखें....’
हालांकि बिहार के बाजपा नेताओं का कहना है कि बस अमित शाह बिहार में अपनी पहचान बना लें, लेकिन प्रचार की कमान तो पूरी तरह से मोदी के ही हाथ में रहने वाली है. मोदी अकेले 20 से 22 बड़ी जनसभाओं को संबोधित करेंगे. यानी इससे स्पष्ट है कि बिहार की अस्मिता की जंग भाजपा इन दो गुजराती चेहरों के दम पर ही लड़ेगी.
ऐसे में लालू प्रसाद यादव को भी मौक़ा मिला गया है. वो चुटकी लेते हुए कहते हैं, ‘मुख्यमंत्री नीतीश कुमार महागठबंधन के दूल्हा हैं, भाजपा बताए कि उनकी बारात का दूल्हा कौन है. या दूल्हा भी विदेश से एक्सपोर्ट किया जाएगा...’ उधर नीतीश कुमार का भी कहना है कि बिहार को ठेठ बिहारी ही चलाएगा, सभी बाहरी को विदा कर देंगे.