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भागलपुर दंगे से संबंधित 11 तथ्य, जिसे आपको ज़रूर जानना चाहिए...

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By TwoCircles.net Staff Reporter,

1. सरकारी आंकड़ों के हिसाब से भागलपुर दंगों में मृतकों की संख्या लगभग एक हजार दर्शायी गयी है, जबकि नागरिक अधिकार संगठनों, अख़बारों व स्थानीय नागरिकों के मुताबिक मृतकों की संख्या तकरीबन 2000 है. भागलपुर के गांधी शांति प्रतिष्ठान व जमात-ए-इस्लामी द्वारा 1256 मृतकों की सूची जिला प्रशासन को सौंपी गयी थी. इसके उलट जितने भी जांच आयोगों की रिपोर्ट सामने आयी है, उनमें मृतकों की वास्तविक संख्या को सामने लाने से बचना, उन जांच आयोगों की रिपोर्ट पर सवालिया निशान खड़ा करता है.

2. विभिन्न स्रोतों से प्राप्त रिपोर्ट व ज़मीनी आंकलन के अनुसार तक़रीबन 50 हजार परिवार विस्थापित हुए. इसके बरक्स राहत व पुनर्वास कार्य नगण्य हैं. 25 साल के बाद भी सरकारों की तरफ़ से इनके मुकम्मल पुनर्वास के लिए न्यूनतम प्रयास भी नहीं किये गए. भागलपुर दंगे के कुछ समय के बाद टाटा की तरफ़ से केवल दो गांव में पीडि़तों के पुनर्वास हेतु कॉलनियों का निर्माण किया गया. और उसमें भी समुचित प्रबंधन की कोई व्यवस्था सामने नहीं आयी.

3. भागलपुर के साथ-साथ बिहार के अन्य हिस्सों में 1989-90 में हुई सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं का सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक पृष्ठभूमि में सारगर्भित विश्लेषण को किसी भी जांच रिपोर्ट में सामने नहीं लाया जाना दरअसल वास्तविक अपराधियों व संगठनकर्ताओं को बचाने का सुनियोजित प्रयास मालूम पड़ता है. अखबारों, नागरिक संगठनों व आम नागरिकों के मुताबिक सरकारों द्वारा इन्हें संरक्षण दिया गया, महिमामंडन किया गया और महत्वपूर्ण ओहदे प्रदान किए गए.

4. भागलपुर सांप्रदायिक हिंसा के बाद भागलपुर की डेमोग्राफी में काफी बदलाव देखने में आया. असुरक्षा, सरकारी उदासीनता, अपराधियों-दंगाइयों पर सख्त क़दम न उठाये जाने के चलते दंगा प्रभावित इलाके की मुस्लिम आबादी को अपने ठिकाने व आशियाने बदलने को मजबूर होना पड़ा है. उन्हें मजबूरन औने-पौने दाम पर अपनी ज़मीन, अपने घर व अन्य परिसंपत्तियों को बेचना पड़ा है और बहुत सारी जगहों पर आज भी अनधिकृत कब्ज़ाधरियों का कब्जा है. ज्यादातर दंगा पीडि़तों के अनुसार उनको अपनी ज़मीनें उन्हीं लोगों को बेचनी पड़ी है, जो दंगे में शामिल थे.

5. भागलपुर दंगे को लेकर जो भी सरकारी या जांच आयोगों की रिपोर्ट आयी है, उन सबों ने तत्कालीन डीएम, एसपी को जिम्मेदार ठहराया है. कामेश्वर यादव, रतन मंडल, महादेव सिंह सरीखे लोगों के नाम चिन्हित किए गए हैं, लेकिन इन अधिकारियों पर कोई कार्यवाही नहीं हुई, उलटे उन्हें प्रोन्नति दी जाती रही है. दंगे के मुख्य संगठनकर्ताओं को विभिन्न राजनीतिक दलों की ओर से अपने भीतर समाहित करने की निर्लज्ज कोशिशें तक हुयी हैं.

6. दंगे के कुछ समय के बाद दंगा पीडि़तों को सरकार की तरफ़ से जो अनुदान दिए गए, उसको कालांतर से लोन में तब्दील कर दिया गया. जिसके चलते कई लोगों पर आपराधिक मुक़दमे तक दर्ज हुए और जेल भी जाना पड़ा. इसी मामले में कई लोगों की सदमे से मौत तक हो गयी. इन दंगा पीडि़तों ने लोन से मुक्ति के लिए लंबा संघर्ष किया जिसमें हिंदु व मुसलमान दोनों शामिल थे. 25 साल के बाद आज कई सारे दंगे पीडि़त हैं जो आज भी गबन ग्रस्तता के शिकार हैं और सर्टिफिकेट केस झेलने को अभिशप्त हैं.

7. भागलपुर का सिल्क उद्योग दंगे के बाद से ही पूरी तरह तबाह हो गया. 600 पावरलूम और 1700 हैंडलूम दंगे की आग में पूरी तरह से स्वाहा हो गये और हजारों मजदूरों, बुनकरों की आजीविका छिन गयी. इन 25 वर्षों में सिल्क सिटी के पुनर्उत्थान के लिए कुछ भी नहीं किया गया. आज भी सारे कारीगर बाहर रोजी-रोटी तलाशने को मजबूर हैं.

8. भागलपुर दंगे को लेकर सामने आयी विभिन्न जांच रिपोर्ट में दंगे के प्रमुख साजिशकर्ताओं व संगठनकर्ताओं व धनदाताओं का उल्लेख न आना, इस बात को दर्शाता है कि जांच आयोग दंगे की इन घटनाओं को स्वतःस्फूर्त घटना-प्रतिघटना के रूप में लेता है. इससे उलट दंगा पूर्व एक महीने के अख़बारों की कतरनों से यह उजागर होता है कि योजना व संगठित तरीके से बड़ी तैयारी के साथ सांप्रदायिक घटनाओं को अंजाम दिया गया.

9. शिलापूजन के माध्यम से पूरे मुल्क में सांप्रदायिक उन्माद का वातावरण निर्मित किया जा रहा था. भागलपुर की संवेदनशीलता के मद्देनजर जिस प्रशासनिक सतर्कता की ज़रूरत व तैयारी की आवश्यकता थी, उसका घोर अभाव भागलपुर में दिखायी दिया. यदि शुरू में ही डीएम-एसपी की ओर से सख्ती बरती जाती तो इस बात की संभावना थी कि दंगे की आग को फैलने से रोका जा सकता था. फिर भागलपुर दंगे को लेकर गठित पहला जांच आयोग की रिपोर्ट पर सरकार की ओर से अगर ईमानदार प्रयास और कार्यवाही होती तो दूसरे आयोग की कोई ज़रूरत ही नहीं थी. दूसरे आयोग को जिसे 6 महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपनी थी, ने तकरीबन 9 वर्ष के बाद रिपोर्ट सरकार को सौंपी. रिपोर्ट के स्वरूप और नीतीश सरकार द्वारा पिछले दस वर्षों में इस संदर्भ में उठाये गये क़दम यह दर्शाता है कि भाजपा एवं संघ परिवार को बचाने के लिए ही दूसरे आयोग का गठन किया गया था.

10. दंगे के बाद सरकार द्वारा किसी भी किस्म के पुनर्वास न होने के चलते मुस्लिम आबादी जिले के अलग-अलग हिस्सों में तंग, संकीर्ण स्लमों में रहने के लिए मजबूर हैं, जहां राज्य द्वारा उपलब्ध करायी जाने वाली मूलभूत बुनियादी सुविधायें सड़क, बिजली, पानी, स्कूल पूरी तरह से नदारद हैं.

11. मुआवजे, पेंशन, पुनर्वास और दर्ज मुक़दमे को लेकर आज भी दंगा पीडि़त परेशान हैं, लेकिन समुचित जन शिकायत निवारण कोषांग तक कार्यरत नहीं है.

यह तथ्य आज पटना में जारी ‘25 साल बाद भी इंसाफ से वंचित भागलपुर’ से लिए गए हैं. यह रिपोर्ट शरद जायसवाल के नेतृत्व में कई महीनों तक की गयी कड़ी मिहनत का परिणाम है. टीम वर्क में डॉ. मुकेश, रिंकू आदि की महत्वपूर्ण भूमिका रही है.


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