अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
पटना:बिहार में चुनाव से पहले ही भाजपा ने अपने रंग और तेवर दिखाने शुरू कर दिए हैं. पार्टी अपने सहयोगियों के साथ ही नहीं है. जो सहयोगी दल इस चुनावी महाभारत में भाजपा के साथ कंधे से कंधा जोड़कर खड़े हैं, पार्टी ने उन्हीं को खारिज कर दिया है. पार्टी की किसी भी प्रचार सामाग्री में सहयोगी दलों का दूर-दूर तक कोई ज़िक्र नहीं है.
यानी इरादा बेहद साफ़ है कि अगर चुनाव जीते तो सारा श्रेय भाजपा का. यहां तक कि सरकार में भी सिर्फ़ भाजपा ही भाजपा होगी और अगर बाज़ी हाथ से निकल गई तो कारण गिनाने के नाम पर कई कंधे तलाश लिए जाएंगे.
बिहार में राजनीतिक सोच-समझ रखने वाले लोगों का सवाल है कि जिस तरह से महागठबंधन की ‘स्वाभिमान रैली’ में तीनों पार्टियों ने मिलकर अपने-अपने बैनर-पोस्टर-होर्डिंग लगाए थे, वैसा भाजपा की ‘परिवर्तन रैली’ में देखने को क्यों नहीं मिल रहा है. भाजपा के हर प्रचार में मोदी और ‘अबकी बार भाजपा सरकार’ क्यों?
यही सवाल लोजपा व रालोसपा के कार्यकर्ताओं के ज़ेहन में भी है. बल्कि लोजपा प्रदेश अध्यक्ष पशुपति कुमार पारस व रालोसपा प्रदेश अध्यक्ष डॉ. अरुण कुमार भाजपा के ‘अबकी बार, भाजपा सरकार’ पर आपत्ति भी जता चुके हैं. ये दोनों कह चुके हैं कि ‘इसमें एनडीए गायब है और अगर यही स्थिति रही तो एनडीए की जड़ें कमज़ोर होंगी.’ रालोसपा अध्यक्ष यह भी आरोप लगा चुके हैं कि ‘परिवर्तन यात्रा’ में हमारे कार्यकर्ताओं की उपेक्षा हो रही है.
हैरानी की बात तो यह है कि घटक दलों के नेताओं को भी भाजपा अपनी पार्टी में लेने से हिचक नहीं रही है. लोजपा को अपने पार्टी में रहे पूर्व सांसद साबिर अली के साथ-साथ पूर्व मंत्री नरेन्द्र सिंह के दोनों विधायक पुत्रों से परहेज है. हालांकि नरेन्द्र सिंह के विधायक पुत्र अजय प्रताप और सुमित कुमार सिंह अब मांझी के खेमे में हैं और हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा के टिकट पर चुनाव के मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे हैं. वहीं लोजपा को वैशाली के राजेश सिंह को भाजपा में शामिल किए जाने पर भी आपत्ति है क्योंकि राजेश सिंह वैशाली में लोजपा के ख़िलाफ़ ही चुनाव लड़े थे. पूर्व विधायक महेश्वर सिंह को लोजपा ने पार्टी से निकाला था पर अब वह भी भाजपा में शामिल हैं.
रालोसपा को भी इस बात पर ऐतराज़ है कि भाजपा दूसरे दलों के नेताओं अपनी पार्टी में ले रही है तो कोई बात नहीं लेकिन रालोसपा किसी नेता को अपने दल में शामिल कर रहा है तो भाजपा को आपत्ति क्यों हो रही है? स्पष्ट रहे कि पूर्व मंत्री गौतम सिंह के रालोसपा में शामिल होने पर भाजपा सांसद सीग्रीवाल ने आपत्ति जताई थी.
भाजपा कार्यकर्ता दूसरे दलों के कार्यकर्ताओं को अपने साथ देखना पसंद नहीं कर रहे हैं. उनका मानना है कि इनकी वजह से हमारी उपेक्षा हो रही है. तीन दिन पूर्व परिवर्तन यात्रा के क्रम में रविवार को मुज़फ्फ़रपुर में सुशील मोदी को स्थानीय पार्टी नेताओं व कार्यकर्ताओं के विरोध का सामना करना पड़ा. कार्यकर्ताओं ने सुशील मोदी पर टिकट बेचने का आरोप भी लगाते हुए ‘वापस जाओ, बिहार को दिल्ली नहीं बनाओ’ के नारे भी लगाये. करीब आधा घंटा तक उन्हें कार्यकर्ताओं के रोष का सामना करना पड़ा.
एनडीए के सहयोगी दलों की यह भी शिकायत है कि भाजपा उन्हें खास तवज्जों नहीं दे रही है. ऐसे में लड़ाई अब सीटों के बंटवारे को लेकर भी हो सकती है. इधर बुधवार को एक कार्यक्रम में पार्टी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष व बेतिया विधायक रेणू देवी ने स्पष्ट कर दिया है कि पार्टी 160-170 सीटों पर चुनाव लड़ेगी.
बिहार के चुनावी पंडितों की माने तो भाजपा मोदी की अगुवाई में दिनों-दिन निरंकुश होती जा रही है. पार्टी के भीतर से ही ऐसी आवाज़ें उठती रही हैं. आडवाणी का तानाशाही के दिनों की याद दिलाना इसका नमूना है. बिहार चुनाव भी इसी निरंकुशता और तानाशाही से भरी गणित का नमूना बनकर सामने आ रहा है.