अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
पीएम नरेन्द्र मोदी ने मानो कुबेर का खज़ाना खोल दिया है. इस खज़ाने का ऐलान होते ही रामू काका इतने परेशान हो गए कि रात भर उन्हें नींद नहीं आ सकी. उन्हें बार-बार यही सवाल परेशान कर रहा था कि ये सवा लाख करोड़ कितना होता है. सुन्ना जोड़-जोड़ कर परेशान थे. किसी तरह उन्होंने अपनी रात काटी. सुबह-सुबह घर के पास के चाय की दुकान पर पहुंच गए. क़िस्मत उनकी अच्छी थी कि इलाक़े के दो नेता भी वहीं बेगारी काटते हुए मिल गए....
रामू काका ने पूछा, ‘आप तो दिन भर में इहां कै कप चाय पी जाते हैं. आपको तो मालूम ही होगा... ई सवा लाख करोड़ केतना होता है?’
नेता जी के लिए इससे बेहतर मौक़ा कहां मिलता. बोलने लगे, ‘जेहिया से सरकार बनवाओगे न हमार, ओहिया से ले के अगला पांच साल तक रोज़ ट्रक पर रोज़ लदाते रहेगा रूपइय्या तबहो बचले रहेगा. एतना होता है सवा लाख करोड़ रूपइय्या...’
इस पर दूसरे नेता जी भड़क गए. कहने लगे, ‘अइसा ना समझा दो एकरा कि मन में नोट गिनते-गिनते ‘नोटा’ ही दबाकर चला आए...’
बिहार में सिर्फ रामू काका ही नहीं हैं. परेशान रहने वालों की एक लंबी फ़ेहरिस्त है. केन्द्रीय सूचना व संचार मंत्री रविशंकर प्रसाद परेशान जनता की भावनाओं को नहीं समझ पा रहे हैं. काश! अगर समझ पाते तो यह बयान कभी नहीं देते, ‘तीन लोगों को छोड़ पूरा बिहार खुश है.’
इस पैकेज को समझने के लिए जनता की परेशानी अभी सुलझी नहीं है कि हमारे पूर्व उप-मुख्यमंत्री का यह बयान ‘पीएम ने दिया आज़ादी के बाद का सबसे बड़ा पैकेज’ लोगों की चिंता को और बढ़ा देता है. लोग सोचने लगे हैं कि इतना बड़ा पैकेज हम रखेंगे कहां? कहीं किसी दूसरे राज्य के गुंडों या नेताओं की नज़र पड़ गई तो? तो रविशंकर का बयान फिर से लोगों को परेशान कर देता है, ‘उस सवा लाख करोड़ की चौकीदारी भी करनी होगी.’ पर जनता परेशान है कि इतने बड़े पैकेज की चौकीदारी करेगा कौन? क्या बिहारी की नीयत अच्छी नहीं है?
तभी चौकीदार की शक़्ल में चम्पारण का एक ‘निकम्मा’ सांसद उठ खड़ा होता है. ये वही सांसद हैं जिन्होंने आज तक अपनी सांसद निधि का खाता भी नहीं खोला है और न ही विकास का कोई कार्य करा पाने में खुद को सक्षम साबित कर पाए हैं. लेकिन फटाफट प्रेस कांफ्रेस कर बयान जारी कर देते हैं, ‘नीतीश जी! पैसा-पैसा कह रहे थे, अब करें विकास... मोदी जी ने इतना पैसा दे दिया है कि बिहार का काया पलट सकता है.’
महागठबंधन भी परेशान है. बयान दे देकर इसे ‘जुमलाबाज़ी’ बताते-बताते परेशान है. वहीं भाजपा नेता भी परेशान हैं कि आख़िर यह सवा लाख होता केतना होता है... अब परेशानी में खूब बयानबाज़ी हो रही है. शायद ये परेशानी का नतीजा ही है कि भाजपा नेता मोदी जी को धनराज कुबेर से कम नहीं बता रहे हैं. जनता को बिहार जैसे ‘बीमारू’ राज्य को सोने की चिड़िया में तब्दील कर देने का ख्वाब दिखाया जा रहा है. और सवा लाख करोड़ की सौगात का इस क़दर प्रचार किया जा रहा है कि मानों ये भारी-भरकम धन राशि बिहार के एक-एक जनता के बैंक अकाउंट में जमा हो गई है, और आने वाली 56 पीढ़ियों को अब काम करने की कोई ज़रूरत नहीं रह गई है.
पर असल परेशानी यह है कि बीजेपी नेता यह सोचने लगे हैं कि यदि पार्टी जीतती है तो सवा लाख करोड़ की धन-राशि बिहार की क़िस्मत बदले ना बदले, उनके नसीब ज़रूर बदल देगी. पैसा भारत सरकार का है, मगर बिहार में भाजपा के एक-एक नेता को ऐसा महसूस हो रहा है कि उनके पुरखों ने यह पैसा आज़ादी से पहले ज़मीन में गाड़कर रखा था, अब समय आ गया है कि ज़मीन खोदकर घड़ा फोड़कर सारे पैसे निकाल लिए जाएं.