अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
गरीबी, बेचारगी, मायूसी, क़त्ल, चोरी, डकैती, भ्रष्टाचार, बात बात पर रिश्वत और नेताओं के झूठे वादे व आश्वासन... कई भोजपुरी धुनों के बीच से उभरती 'बिहार नाही सुधरी...'की सुरीली धुन.
आंखें खुलीं तो नीचे देखा. मेरी सीट पर छः-सात 'पॉलिटिकली मोटीवेटेड'लोगों का जमावड़ा लगा हुआ था. लोग अपनी-अपनी बातों को अपने-अपने अंदाज़ में रख रहे थे. कोई मोदी भक्ति में लीन था तो कोई नितीश के गुणगान में. तो एक दूसरे जनाब लालू राज की खूबियों को बता रहे थे. सोशल सेक्योरिटी और न जाने क्या-क्या?
सच पूछिए तो टीवी के प्राइम टाइम में चलने वाली चीखपुकार वाली डिबेट से यह डिबेट कहीं लाख गुना बेहतर लग रहा था मुझे.
ख़ैर सबके पास खुद की दलीलें थी. अपनी-अपनी बातें. एक जनाब - जिनका झुकाव मुझे शुरू से ही मोदी की तरफ ज्यादा लग रहा था - ने 'डीएनए'वाले मुद्दे पर बहस छेड़ दी. बोले, 'अजब लोग हैं बिहार के. इतना भी नहीं समझते कि सबका डीएनए अलग अलग होता है लेकिन फिर भी नितीश के बहकावे में आकर उतावले हो रहे हैं. उधर लालू की करामात देखिए, बोल रहे हैं कि यदुवंशियों का अपमान हुआ है. इसी बहाने अपने यादव भाईयों को एक कर रहे हैं और मुल्लों की तो बात ही छोड़िए. उनको विकास से क्या लेना-देना? उनको बस मांस मिलते रहना चाहिए और मदरसे चलते रहें. बस इससे अधिक तो बेचारे कुछ सोच भी नहीं पाते.'
एक दूसरे जनाब काफी देर से चुप थे. उनको अपना पूरा समर्थन देते बोलने लगे कि सच कहते हैं मोदी जी. 'ई साला सारा प्रॉब्लम हम बिहारी लोगों के डीएनए में ही है. अब आप ही देखिए ना. दो रूपये बिजली का बिल नहीं देते पर जनरेटर में पैसे फूंकना अच्छा लगता है. ट्रेन में टिकट नहीं लेते लेकिन जुर्माना देना भला मालूम पड़ता है. आदत पड़ गई है हमारी भ्रष्टाचार करने व करवाने की. मोदी जी आएंगे तो कम से कम लोगों की ये सोच ज़रूर बदल देंगे.'
मैं पूरी सजगता से ऊपर अपनी सीट पर पड़े-पड़े उन सबकी बातें सुन रहा था. एक पल के लिए लगा कि इनके तरह हर आदमी सोचने लगे तो बिहार वाकई सुधर सकता है. हालांकि मेरे ज़ेहन में यह सवाल भी बार-बार आ रहा था कि मोदी बिहार के लोगों की मानसिकता कैसे बदल देंगे. ऐसे अनगिनत सवाल भी मेरे ज़ेहन में आने शुरू ही हुए थे कि टी.टी. साहब आ गए. हम सब ने अपना-अपना टिकट चेक करा लिया. जब उन साहब की बारी आई जो काफी ज़िम्मेदार नागरिक की तरह बोल रहे थे तो पता चला कि बगैर टिकट के हैं. टिकट मांगने पर बड़ी शान से बोले, 'स्टाफ'
फिर टीटी को कहने लगे कि फलां नेता का रिश्तेदार हूं. लीजिए फोन पर बात कर लीजिए पर टीटी साहब पूरी तरह से भड़क गए. पूरे गुस्से के साथ उन्हें बोगी से बाहर निकाल दिया गया.
मैं मन ही मन मुस्कुरा रहा था. मैं मुस्कुराते-मुस्कुराते फिर से सो गया. सपने में 'बिहार नाही सुधरी'की मधुर धुन मुझे मजा दे रही थी.