सिद्धांत मोहन, TwoCircles.Net
पटना/ नई दिल्ली: बिहार में विधानसभा चुनाव के संभावित समय का ऐलान होते ही अब सारी रणनीतियां रंग दिखाने लगी हैं. पुराने समीकरण, जो अब तक सिर्फ क़यास तक ही सीमित थे, पूरे पुख्ता रूप में सामने आने लगे हैं.
ऐसे में अब कयासों को सबसे पहले विराम देने का काम बिहार के अपदस्थ मुख्यमंत्री और चुनाव के बाद तथाकथित महादलित मूवमेंट के झंडाबरदार जीतनराम मांझी ने भगवा चोला ओढ़ लिया है. नरेंद्र मोदी और अमित शाह से कई मुलाकातों और भाजपा के बिहार प्रकोष्ठ की तरफ से आ रहे बयानों के बाद से यह तय हो चुका था कि मांझी अपनी डूबती नाव को सम्हालने के लिए बड़ा सांगठनिक फेरबदल कर सकते हैं.
जीतनराम मांझी (फोटो क्रेडिट: इंडिया टुडे)
लेकिन बीते कल को अमित शाह से मुलाक़ात के बाद यह घोषणा सामने आ गयी कि जीतनराम मांझी एनडीए को समर्थन देंगे. ऐसे में यह साफ़ है कि बिहार में भाजपा उपेन्द्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक्समता पार्टी, रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी और जीतनराम मांझी की हिन्दुतान आवाम मोर्चा के भरोसे लालू-नीतीश गठजोड़ को नाकाम करने के प्रयास में जुटेगी.
मीटिंग के बाद प्रेस से बातचीत में जीतनराम मांझी ने कहा, ‘बिहार की जनता इस गठबंधन (लालू-नीतीश) को किसी भी हाल में सफल नहीं होने देगी. 16 जून को हमारी पार्टी के नेताओं की मीटिंग में रणनीति पर विचार होगा. हमें लालू-नीतीश गठबंधन को सफल होने से रोकने के लिए पूरी ताकत से लड़ना होगा.’
मांझी ने यह जानकारी दी कि बिहार में मिलकर चुनाव लड़ने पर दोनों दल एक हुए हैं, लेकिन सीटों के बंटवारे को लेकर कोई भी स्थिति स्पष्ट नहीं है. सूत्रों के हवाले से आ रही खबरों की मानें तो 50 सीटों की मांग कर रहे मांझी को भाजपा 25-30 सीटें देना चाह रही है.
इस वक़्त बिहार में लगभग 22 फीसद मत महादलितों का है. इस वोटबैंक को साधने के लिए भाजपा जीतनराम मांझी का सहारा ले रही है. लेकिन यहां यह बात ध्यान देने योग्य है कि नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल(यूनाईटेड) का एक व्यापक आधार यह वोटबैंक रहा है. जदयू के लालू यादव से जुड़ने के बाद भाजपा-मांझी के गठजोड़ को सरकार के निर्माण के लिए बहुत मेहनत करनी होगी.
मांझी का भाजपा के साथ जाना एक बड़ा मुद्दा हो सकता है क्योंकि पिछले कुछ दिनों से लालू यादव द्वारा जीतनराम मांझी को साधे जाने के प्रयासों की खबरें भी सामने आ रही थीं. नीतीश कुमार भी जानते हैं कि मांझी की इस खेमेबंदी से वोटों का बंटवारा होगा, ऐसे में उन्हें एक अच्छा-खासा नुकसान झेलना पड़ सकता है. अब दलित वोटों को साधने के लिए नीतीश-लालू को नयी रणनीति पर कार्य करना होगा.
मांझी बिहार की राजनीति के आवारा पतंग सरीखे हैं. उनकी डोर साधे रखना कठिन काम है. भाजपा को उनकी तल्खी याद रखनी होगी, जो उन्होंने अपने मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान दिखाई थी. मांझी ने कहा भी है कि उनकी तैयारी सभी 243 विधानसभा सीटों पर लड़ने की है, लेकिन वे पहले अपनी कोर कमेटी की मीटिंग में फैसला लेंगे. ऐसे में भाजपा के लिए मांझी ख़ुशी और शंका दोनों का विषय हैं.
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