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पूर्वांचल में स्वराज संवाद और नई थ्योरी का विस्तार

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By सिद्धांत मोहन, TwoCircles.net,

वाराणसी: आम आदमी पार्टी से निष्कासित किए गए नेता योगेन्द्र यादव और प्रो. आनंद कुमार ने पिछले दिनों स्वराज संवाद नाम से एक मुहिम की शुरुआत गुड़गांव से की. कई शहरों से घुमते-फिरते यह मुहिम आज बनारस आ पहुंची. लक्ष्य था, पूर्वांचल के किसान, उनकी समस्याएं और उनके ज़रिए वैकल्पिक राजनीति की दशा और दिशा पर विचार.
सोचने पर मालूम होता है कि वैकल्पिक राजनीति पर बातचीत बहुत दिनों से चल रही है. मजेदार यह होता है कि बात वैकल्पिक राजनीति से शुरू होकर राजनीतिक विकल्प पर ख़त्म हो जाती है. वोटर अनाप-शनाप मानक गढ़ने लगते हैं और उन्हीं मानकों पर तौलने-तौलाने का खेल शुरू हो जाता है.

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लेकिन जैसा योगेन्द्र यादव और प्रो. आनंद कुमार के एजेंडे से लगता है, वे किसी पुराने और पिटी वैकल्पिक राजनीति की बात नहीं करते हैं. योगेन्द्र यादव खुद बिना नाम लिए कहते हैं, ‘अब लोग कांग्रेस-भाजपा के विकल्प के रूप में उभरे एक तीसरे विकल्प से भी नाराज़ होने लगे हैं, हमें उस बैरियर से भी आगे निकलने की बात करनी होगी.’

बनारस में आयोजित स्वराज संवाद के नए अध्याय में बुनकरों और किसानों के समुदायों की बातें सामने आयीं. बनारस के पास के गांव में किसान बनाम कोकाकोला प्लांट की लड़ाई का ज़िक्र करते हुए बहुतेरे समाजवादी और वामपंथी नेताओं ने यह कहा कि पिछली लड़ाईयां जीती जा चुकी हैं, अब आगे के संघर्षों के साथ खड़ा होना है.

कमोबेश सभी वक्ता यही कह रहे थे कि बनारस के हालातों और उसकी संस्कृति का मखौल नरेंद्र मोदी की वजह से हुआ है. गंगा को एक रिसोर्स की तरह डील किया जा रहा है, यमुना और सोन के हालातों पर किसी ने कोई ध्यान देना ज़रूरी नहीं समझा.

इस पूरे समाजवादी-से दीखते सेटअप को एजेंडे पर लाते हुए ‘आप’ के पूर्व नेता प्रो. आनंद कुमार ने कहा, ‘हमने किसानों और समाज के पिछड़े व मेहनतकश वर्ग को समस्याओं को सुनने और उन्हें सुलझाने के लिए इस मंच की नींव रखी है. इस संवाद को सार्थक बनाने के लिए जिले, क़स्बे, तहसील और हर छोटे-छोटे स्तर पर भ्रष्टाचार और हक की लड़ाई हम शुरू करेंगे. प्रशांत भूषण की मदद से हम उन मुद्दों को देश के सर्वोच्च तक रखेंगे. हर स्तर पर स्वराज केंद्र की स्थापना होगी.’ एजेंडे को और विस्तार देते हुए प्रो. आनंद कुमार ने कहा, ‘हमें शिक्षा स्वराज के साथ विचार निर्माण की ज़रुरत है.’

प्रो. आनंद कुमार बनारस से ताल्लुक रखते हैं. उन्हें पता है कि यदि बनारसी लहजे में बात की जाए तो जनता उनकी ओर रीझ सकती है. वे बनारसी में आरोप लगाते हुए कहते हैं, ‘फुल पैंट के नीचे खाकी हाफ पैंट पहनने वाला आज BHU का कुलपति बन जाता है. काशी हिन्दू विश्वविद्यालय अब तोड़ा जा रहा है. गांधी अध्ययन संस्थान भी अधिग्रहण के चलते अपने औचित्य से दूर भिटक गया है. शिक्षा मंत्री निरक्षर हो तो समझ में भी आता है, लेकिन यदि निरक्षर होने के साथ-साथ अहंकारी भी हो तो भारी गड़बड़ है.’

कालेधन की उलटबांसियों के मद्देनज़र आनंद कुमार कहते हैं, ‘अब कोई कालेधन की बात नहीं करता है. रामदेव और जनरल वी.के. सिंह भी चुप हो गए हैं. और तो और, हमारे कन्धों पर चढ़कर जिन्होंने भ्रष्टाचारियों के खिलाफ लड़ाई लड़ कर ख्याति पाई, वे भी चुप हैं. राजनीति में आने के बाद नेता अपने मुद्दों से क्यों भटक जाते हैं?’

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अब योगेन्द्र यादव की बोलने की बारी आती है. पोस्टर पर अक्षरों के अलावा कुछ भी नहीं है. न किसी का चेहरा न कोई चिन्ह. योगेन्द्र यादव जब भी बोलते हैं तो उनके विरोधी भी उन्हें सुनते हैं. वे व्यक्ति-पूजा के खिलाफ बोलना शुरू करते हैं, ‘सार्वजनिक जीवन में एक अश्लील-सी परम्परा चल गयी है कि किसी संघर्ष या एजेंडे का परिचय किसी चेहरे से ही होगा. मुझे अच्छा लगा कि यहां किसी पोस्टर में किसी का चेहरा नहीं है. इस समय भारत की सभी पार्टियां व्यक्ति-पूजा से ग्रस्त होकर ही तबाह हो रही हैं.’

मोदी के विकास मॉडल पर बात करते हुए योगेन्द्र यादव कहते हैं, ‘मोदी क्या कर रहे हैं, उस पर बात करने के बजाय मोदी-मॉडल पर बात करनी होगी, उसके स्थानीय स्वरुप को समझना होगा. हमने एक साल में लोकतांत्रिक संस्थाओं में अच्छा-खासा क्षय देखा है. हर स्तर पर लोकतांत्रिक स्वायत्तता ख़त्म हो गयी है. मंत्रियों को जो दुर्गति अभी हो रही है, वैसी कुछ-कुछ दुर्गति इंदिरा गांधी के वक़्त हुई थी.’

वे संसदीय कार्यप्रणाली पर बात करते हुए बताते हैं, ‘केंद्र सरकार को पता है कि हर बिल को राज्यसभा में पास कराने की ज़रुरत है लेकिन वे वहाँ अल्पमत में हैं. तो संसदीय कार्यप्रणाली से खिलवाड़ करते हुए अब राज्यसभा को बाईपास करने की कोशिश हो रही है ताकि भूमि-अधिग्रहण बिल को आसानी से पास कराया जा सके. सच है कि एक साल में कोई भ्रष्टाचार सामने नहीं आया और कोई दंगा नहीं हुआ. लेकिन क्या यह कोई सूचकांक है कि इस देश के प्रधानमंत्री ने एक साल में कोई भ्रष्टाचार नहीं किया और कोई दंगे नहीं करवाए. यहां CVC और CAG दोनों के हाथ बाँध दिए गए हैं, भ्रष्टाचार होगा तो भी सामने नहीं आएगा.’

धार्मिक समीकरणों पर योगेन्द्र यादव कहते हैं, ‘ध्यान देंगे तो मालूम होगा कि दंगे हो रहे हैं. बड़े नहीं कई छोटे-छोटे दंगे हो रहे हैं. हरियाणा में हुआ. पूर्वी उत्तर प्रदेश में कई समय से छिटपुट दंगे हो रहे हैं. आपके लोकल पुलिस स्टेशन का एसएचओ तय करेगा कि आपके अधिकार क्या हों?’

इन सभी समस्याओं के समाधान के रूप में यादव कहते हैं, ‘पुरानी सेकुलर प्रोग्रेसिव राजनीति से आप मोदी-मॉडल का विरोध नहीं कर सकते हैं. पुराने वामपंथी या कांग्रेसी या समाजवादी ढर्रे से कोई विरोध या बदलाव नहीं हो सकता है. एकदम छोटे-छोटे मुद्दे उठाकर बात करनी होगी. इस देश में 60% किसान हैं, चोट करने का यही समय है. नहीं तो देर हो जाएगी. इस देश को कम से कम 5000 राजनैतिक साधु चाहिएं.’

योगेन्द्र यादव एक लम्बे वक़्त से समाजवादी विचारधारा से जुड़े रहे हैं. समाजवाद को लेकर अलग से पूछे गए प्रश्न में योगेन्द्र यादव TwoCircles.Net से कहते हैं, ‘आप अखिलेश यादव व मुलायम सिंह यादव पर समाजवादी होने का आरोप न लगाएं. उनके तिकड़म मोदी और कांग्रेस सरीखे ही हैं. वे उतने ही पूंजीवादी और पूंजी के लिए समझौते करने वाले हैं, जितनी पुरानी सरकारे थीं. वे ‘समाजवाद’ का अर्थ नहीं समझते. समाजवाद के मौजूदा अर्थ से यह आन्दोलन नहीं चलेगा. उसे 21वीं सदी के बदलाव से गुज़रना होगा.’

एजेंडे को और विस्तार देते हुए योगेन्द्र कहते हैं, ‘हम 13 जून से अपनी यात्रा शुरू करेंगे. अगले दो महीनों में हर गांव में जाने की योजना है. किसान को उसका अधिकार समझाने की आवश्यकता है. फिर दस अगस्त को हम संसद कूच करेंगे और सरकार से सवाल करेंगे कि इस देश के किसानों के लिए उसकी असल नीयत क्या है?’

अरविन्द केजरीवाल अन्ना आन्दोलन से निकलकर आए हैं. केजरीवाल ने आम आदमी की ज़रूरतों और उसकी तमाम अवधारणाओं को भुनाकर सत्ता हासिल की है. लेकिन जो एक सबसे बड़ी कूटनीतिक चूक केजरीवाल ने की, वह ये कि उन्होंने किसानों और अन्य वर्किंग क्लास को भुला दिया. ऐसे में संभावना है कि यह छूटी हुई भीड़ योगेन्द्र यादव और आनंद कुमार के स्वराज संवाद से जुड़कर मदद करें. लोकतंत्र में जाहिरा तौर पर हर जनांदोलन राजनीतिक सेटअप में परिणत होता है, योगेन्द्र यादव ऐसी किसी संभावना से इनकार भी नहीं करते हैं. वे समझते हैं कि पिछली गलतियों के लिए माफी मांगकर और आगे के लिए सही दिशा में प्लानिंग से ही काम होगा.


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