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‘उत्पीड़न के खिलाफ़ संगीतकार’ का आगाज़

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By TwoCircles.net staff reporter,

वाराणसी: मानवाधिकार जननिगरानी समिति, जनमित्र न्यास, व डेनिश इंस्टिट्यूट अगेंस्ट टॉर्चर(डिग्निटी) के संयुक्त तत्वावधान में न्यायमूर्ति स्व. रंगनाथ मिश्रा की स्मृति में एक द्विवर्षीय अभियान ‘उत्पीड़न के खिलाफ़ संगीतकार’ की शुरुआत वाराणसी से की गयी.

कार्यक्रम के प्रवेशसत्र की शुरुआत हाल में ही गुज़री बनारस घराने की मशहूर नृत्यांगना सितारा देवी को श्रद्धांजलि देने के साथ हुई. इसके बाद बनारस के गाँव में बालविवाह के खिलाफ़ लड़ाई लड़ रही और लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देने वाली दो लड़कियों यास्मीन और नंदिनी को सम्मानित कर उनके अवदानों से लोगों को परिचित कराया गया.


अभियान का आगाज़ करते बनारस घराने के विकास म हाराज, प्रभाष महाराज व अभिषेक महाराज
अभियान का आगाज़ करते बनारस घराने के विकास महाराज, प्रभाष महाराज व अभिषेक महाराज

इस कार्यक्रम की रूपरेखा पर बात करते हुए मानवाधिकार जननिगरानी समिति के डॉ. लेनिन रघुवंशी ने कहा, ‘हमारा प्रश्न साफ़ है कि क्या हम अहिंसा पर आधारित समाज के रचना कर सकते हैं? घृणा से घृणा को कौन खत्म कर पाया है? इसके लिए भारत, अफ़गानिस्तान, अमरीका, इराक़ और इस जैसे कई उदाहरण हमारे सामने पड़े हैं. कहीं सफलता नहीं मिली. फाशीवाद, दक्षिणपंथ और बेबुनियादी हिंसा के खिलाफ़ लड़ाई के लिए ज़रूरी सकारात्मक बल कला व संगीत के अलावा कहीं नहीं मिल सकता है.”

संगीत की ही आवश्यकता और कार्यक्रम के भविष्य को प्रकाशित करते हुए डॉ. लेनिन ने कहा, ‘हमें एक बैलेंस की ज़रूरत है. किसी भी बायस्नेस से लड़ाई मुमकिन नहीं है. अपने सामाजिक बैलेंस को बरकरार रखते हुए ही हम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, अल-क़ायदा, आईएसआईएस, अमरीकी ताकतों और बाक़ी सभी कट्टरपंथी ताकतों के खिलाफ़ लड़ सकते हैं. इस लड़ाई में हमें संगीत ही वह आधार दे सकता है, जिसकी हमें ज़रूरत है. हर समाज में गलतियां हुई हैं, उन गलतियों के समर्थन और विरोध में हिंसा हुई है. हमें हिंसा का प्रचार रोकना है और इस नए बदलाव के लिए संगीत बेहद ज़रूरी है. अगले दो सालों में इस कार्यक्रम को पचास-साठ शहरों में ले जाने की हमारी योजना है.’


यास्मीन और नंदिनी को सम्मानित करते मानवाध िकार संगठनों के सदस्य
यास्मीन और नंदिनी को सम्मानित करते मानवाधिकार संगठनों के सदस्य

बनारस घराने के प्रसिद्ध सरोद वादक और यश भारती सम्मान से सम्मानित विकास महाराज और उनके पुत्रों प्रभाष महाराज और अभिषेक महाराज की तिकड़ी ने इस लम्बी लड़ाई में संगीत की महत्ता को बताया, फ़िर अपने सरोद-सितार की संगत से जो सन्देश देना चाहा, वह लगभग साफ़ और सफल होता दिखा.

अनुपस्थित होने में नाकाम रहे इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायाधीश अमर शरण ने इस आयोजन के लिए सभी संस्थाओं को शुभकामनाएं दी.


नया हिंदुत्ववादी एजेंडा – इस्लाम के साथ लड़ाई इतिहास की सबसे लम्बी लड़ाई होगी

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By मो. रेयाज़, TwoCircles.net,

नई दिल्ली: दिल्ली में हाल ही में संपन्न हुए विश्व हिन्दू कांग्रेस में निकलकर आई जिस रोचक बात ने भिन्न-भिन्न समुदायों का ध्यानाकर्षण किया है, वह है हिन्दू समाज के खतरे के लिए जिम्मेदार कारक.. इस कांग्रेस के दौरान लोगों को बांटे गए पर्चे से यह बात सामने निकल आ रही है कि हिन्दू समाज को पाँच ‘M’ से ख़तरा है. इन पांच M का मतलब भी साफ़ है; मार्क्सवाद, मैकालेवाद, मिशनरी, मैटेरियलिज्म और मुस्लिम अतिवाद.

यह बातें उक्त कांग्रेस के अवसर पर बांटे गए पर्चों में लिखी हैं. साथ ही साथ इन पर्चों में यह भी बताने की एकतरफा कोशिश की गयी है कि क्यों यह पांच कारक हिन्दू समाज के लिए खतरे की भांति कार्य कर रहे हैं. ज्ञात हो कि इस कार्यक्रम के प्रायोजकों में देश के कई अग्रणी व्यापारी समुदायशामिल थे.

यह विवादास्पद पर्चा TCN को उन पत्रकारों द्वारा मिला, जो यह कार्यक्रम की कवरेज में व्यस्त थे. दिनांक 21 से 23 नवंबर तक चले इस कांग्रेस में इस पर्चे को बांटा गया. रोचक बात यह है कि इस पर्चे के ऊपर एक दानवी पंजानुमा चिन्ह बना है, जिसकी व्याख्या करते हुए पर्चे में कहा गया है कि यह पांच ‘M’ मायासुर दानव के पंजे की पांच उँगलियों के समान हैं. और इस दानव का सिर्फ़ एक ही ध्येय है, धर्म के पैर काट देना.

पर्चे में आगे कहा जा रहा है कि ‘कभी इस दानव के पंजा हिन्दू समुदाय पर कभी गुरिल्ला के रूप में हमला करता है तो कभी जिहादी के रूप में. और जब यह दो उंगलियां अपना काम करने में व्यस्त होती हैं, तो अन्य उंगलियां सांस्कृतिक मोर्चे पर ‘किस ऑफ़ लव’ सरीखे प्रहार करती हैं.’

सभी कारकों पर बारी-बारी आते हुए संक्षिप्त और एकतरफा चर्चा का माहौल पर्चे में बनाया गया है. मार्क्सवाद के बारे में कठोर टिप्पणी करते हुए कहा गया है कि ‘यह पंजे के अंगूठे की तरह है, जिसने कई तरीके की नामाकूल(जिसकी जगह पर्चे में गाली का इस्तेमाल किया गया है) औलादों – जैसे, साम्यवादी, समाजवादी, लिबरल, माओवादी, अराजकतावादी और वामपंथ के कई रूपों – को जन्म दिया है. वामपंथियों का लक्ष्य सिर्फ़ संस्थानों पर कब्जे जमाने का है, जहां से वे अपने खतरनाक मंसूबों को जन्म दे सकें.’

वामपंथी एजेंडे के हिन्दुत्ववादी स्वरूप के साथ आगे बढ़ते हुए पर्चे में लिखा गया है कि ‘चाहे शिक्षा का क्षेत्र हो, पत्रकारिता हो या कोई भी अन्य क्षेत्र, हर क्षेत्र में वामपंथियों ने घुसपैठ की और अपना कब्ज़ा जमा लिया. वामपंथी समाज का सिर्फ़ एक ही काम है, हिन्दू समाज की हरेक मोर्चे पर धुलाई करना और प्रकारांतर से यह साबित करना कि मुसलमान सेकुलर है, जबकि हिन्दू साम्प्रदायिक.’

इसके बाद मैकाले की नीतियों को आड़े हाथों लेते हुए पर्चे में लिखा गया है कि ‘देश में जो कुछ भी हुआ, वह पश्चिमी देशों को खुश करने के लिए हुआ. शिक्षा, आर्थिक मॉडल, संविधान का स्वरूप, हरेक वर्ग का इन्फ्रास्ट्रक्चर, स्वास्थ्य सुविधाएं और बाकी सभी कुछ पश्चिम देशों में हो रही चीज़ों की कार्बन कॉपी है. देश में इस तरीके के बदलावों का सबसे बड़ा नुकसान हिंदुत्व को हुआ क्योंकि हिन्दू संस्कृति, इतिहास, समाज और अध्यात्म को पश्चिम के साथ तराजू में रख नकार दिया गया.’

ईसाई समुदाय के बढ़ते प्रभुत्व और शिक्षा व रहन-सहन पर प्रश्नांकन करते हुए पर्चे में कहा गया है कि ‘ईसाई एशिया के मुस्लिम व वामपंथी देशों में दिल जीतने की कोशिश में लगे हुए हैं. साथ ही साथ धर्म परिवर्तन कराके वे अपनी संख्या भी बढ़ा रहे हैं, जिसके लिए हिन्दू राष्ट्र उनका सबसे मुफ़ीद ठिकाना है.’

पर्चे में आगे लिखा गया है कि ‘अंग्रेज़ी माध्यम की शिक्षा, फैशन के नित नए तरीकों, टेलीविज़न और फ़िल्मों ने लोगों को खुद के समाज के खिलाफ़ ही लाकर खड़ा कर दिया है. ये चीज़ें युवा पीढ़ी को स्वार्थ, अहंकार, दंभ और अपनी संस्कृति के प्रति घृणा से भर दे रही हैं. समलैंगिकता, पैसे की होड़ और अन्य दूसरी चीज़ें इसी पद्धति का नतीज़ा हैं.’

इस्लाम पर आते हुए पर्चे की भाषा फ़िर से उसी स्वर में चली जाती है, जहां वह मार्क्सवाद पर बात करते वक्त थी. पर्चे में कहा गया है कि ‘इस्लाम का मकसद मुस्लिमों का ब्रेनवाश कर, उन्हें ब्लैकमेल कर, डरा-धमकाकर उन्हें जिहादी बनाना है. दूसरे अर्थों में इस्लाम का मकसद है कि हिन्दू समाज को रास्ते से हटा देना ताकिइस्लामी ताकतों की कदमताल का रास्ता और पुख्ता हो सके. सारे मंचों का उपयोग हिन्दू राष्ट्रवाद के एजेंडे को दबाने के लिए किया जा रहा है. इसके लिए इस्लाम भारत के सर्वधर्म प्रभुता की छवि का दोहन कर रहा है. इस्लाम के साथ लड़ाई इतिहास की सबसे लम्बी लड़ाई होगी.’

इन पर्चों और इन पर लिखी बातों का समाज पर क्या असर होगा, इसका अंदाज़ लगा पाना अभी मुमकिन नहीं है. भाजपा के शीर्ष नेताओं, विश्व हिन्दू परिषद् और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शीर्ष पदाधिकारियों की उपस्थिति में यह कार्यक्रम संपन्न हुआ था, जिसके स्वागत भाषण में अशोक सिंघल ने कहा था कि पृथ्वीराज चौहान के लगभग ८०० साल बाद स्वाभिमानी हिन्दू ने सत्ता में वापसी की है.




(अनुवाद: सिद्धान्त मोहन)

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क्या नजमा हेपतुल्ला ने दबाव में चुना मुस्लिमविहीन आदर्श ग्राम?

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By मो. इस्माइल खां, TwoCircles.net,

भोपाल: नरेन्द्र मोदी सरकार की वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री नजमा हेपतुल्ला ने जब फंदा कलां गाँव को प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना के अंतर्गत ‘गोद’ लिया, उस वक्त भी यह अन्य द्वारा किये जा रहे तड़क-भड़क से भरे आयोजनों सरीखा लग रहा था. लेकिन इस गाँव को गोद लिए जाने की पीछे की सचाई से यदि रू-ब-रू हुआ जाए तो इस बात का भान हो आता है कि भगवा समाज में मुस्लिम समुदाय की क्या हैसियत रह गयी है, वह भी उस वक्त जब कबिनेट का एक वरिष्ठ मंत्री भी इस समुदाय से ताल्लुक रखता है.

बीते 27 नवंबर को केन्द्रीय अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री नजमा हेपतुल्ला ने यहां से 23 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गाँव फंदा कलां को गोद लिया. जब एक तरफ़ गाँव को गोद लेने-लिवाने का जश्न मनाया जा रहा था, उस वक्त कोलू खेड़ी गाँव – जहां नजमा हेपतुल्ला का पैतृक निवास भी मौजूद है – के लोग खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे थे. मुस्लिम आबादी से सिंचित गाँव कोलू खेड़ी के लोग कहते हैं कि ‘उनके गाँव को इसलिए गोद नहीं लिया गया क्योंकि इस इलाके की आबादी संघ को रास नहीं आयी.’


Kolu Kheda

नजमा हेपतुल्ला से बात करने की कोशिशें विफल हुईं लेकिन उनके भतीजे ने कहा कि ‘यदि नजमा जी अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री हैं, तो यह ज़रूरी तो नहीं कि वे अल्पसंख्यक समुदाय के आबादी वाले गाँव को ही गोद लें.’

कोलू खेड़ी गाँव के सरपंच मोहम्मद रईस के अनुसार नजमा हेपतुल्ला के कार्यालय द्वारा आदर्श ग्राम योजना के तहत गोद लेने के लिए पहले कोलू खेड़ी गाँव को वरीयता दी गयी, लेकिन बाद में अन्य गाँव को गोद ले लिया गया. रईस कहते हैं, ‘तीन महीनों पहले नजमा जी के ऑफिस से तीन अधिकारी यहां आए थे. मैं उनको पूरा गाँव दिखाने ले गया था. उन्होंने सड़कों, व्यवस्थाओं, सीवेज के निष्कासन और आँगनबाड़ी कार्यों का जायज़ा लिया था. उन्होंने वायदा किया कि गाँव को गोद लेने की प्रक्रिया को जल्द अंजाम दे दिया जाएगा. लेकिन 15 दिनों पहले हमें यह खबर मिली कि उन्होंने ऐन वक्त इस गाँव को गोद न लेकर पड़ोस के किसी गाँव को गोद ले लिया.’

मोहम्मद रईस ने दावा किया कि श्रीमती हेपतुल्ला अभी भी साल में एक बार अपने पैतृक गाँव आती हैं और पहले से वे इस गाँव को मुख्य सड़क से जोड़ने के लिए सड़क के निर्माण के लिए ज़ोर दे रही थी.

यह पूछने पर कि नजमा हेपतुल्ला ने पड़ोस के दूसरे गाँव को गोद क्यों लिया, रईस कहते हैं, ‘इसका जवाब सिर्फ़ शर्मा जी ही दे सकते हैं क्योंकि वे ही नजमा जी को फंदा कलां ले गए थे.’ यहां जानकारी के लिए बता दें कि शर्मा जी से आशय इस क्षेत्र के विधायक रामेश्वर शर्मा से है.


Kolu Kheda

मध्य प्रदेश भाजपा के अल्पसंख्यक सेल के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि ‘रामेश्वर शर्मा ने मुख्यमंत्री कार्यालय के संपर्कों की मदद से नजमा जी पर मुस्लिम आबादी वाले गाँव को गोद न लेने का दबाव बनाया. इसके बाद इस पूरी योजना का केन्द्र पड़ोस के गाँव में स्थापित हो गया, जहां मुस्लिम आबादी न के बराबर है.’

स्थानीय लोगों का कहना है कि गोद लिए गए गाँव फंदा कलां की 4000 की आबादी में सिर्फ़ तीन मुस्लिम परिवार हैं, जो वैसे भी घुमंतू कामगार हैं. जबकि कोलू खेड़ी गाँव की 3000 की आबादी में 35 प्रतिशत हिस्सा मुस्लिमों का है.


Ms. Heptullah's ancestral farm land in Kolu Khedi
कोलू खेड़ी गाँव स्थित नजमा हेपतुल्ला की पुश्तैनी ज़मीन

भाजपा के अल्पसंख्यक सेल के नेता ने TCN से बातचीत में कहा कि, ‘जब एक कैबिनेट मिनिस्टर को स्थानीय नेता के दबाव में काम करना पड़ रहा है, तो आप अंदाज़ लगा सकते हैं कि हम पार्टी में किस हाल में काम करते होंगे.’

हाल ही में गरबा के उत्सवों में मुसलमानों के प्रवेश के खिलाफ़ प्रदर्शन कर रामेश्वर शर्मा ने खबरों में जगह बनायी थी. ज्ञात हो कि रामेश्वर शर्मा ने यह भी बार-बार कहा था कि मुस्लिमों को यदि हिन्दू उत्सवों या त्यौहारों में शिरकत करनी है तो उन्हें गाय का पेशाब पीना पड़ेगा.


Ms. Najma Heptullah along with MLA Rameshwar Sharma at village adoption ceremony.
आदर्श ग्राम योजना के क्रियान्वन के दौरान विधायक रामेश्वर शर्मा व अन्य के साथ नजमा हेपतुल्ला

कोलू खेड़ी के नागरिकों का कहना है कि इस मामले का सिर्फ़ यह आधार नहीं है कि इस गाँव की करीबी नजमा जी से है, बल्कि तथ्य यह है कि फंदा कलां के मुक़ाबिले कोलू खेड़ी कहीं ज़्यादा अविकसित है. कोलू खेड़ी और फंदा कलां गाँवों का मुआयना करने के बाद स्थिति साफ़ हो ही जाती है और इस बात का भी भान हो जाता है कि किस गाँव को विकास की ज़्यादा ज़रूरत है.

पठारी मैदान और जंगली झीलों के बीच मौजूद कोलू खेड़ी गाँव में न पक्की सड़क और न ही सीवर की समुचित व्यवस्था. घरों के दरवाजों के सामने खुले हुए सीवर और ड्रेन-लाईनें मौजूद हैं. साथ ही साथ पूरे गाँव की आबादी के लिए सिर्फ़ एक प्राइमरी स्कूल है


Open drain infront of primary school
गाँव कोलू खेड़ी के प्राथमिक विद्यालय के सामने बहता खुला नाला

इसके उलट यदि फंदा कलां का अवलोकन करें तो यह एक ऐसा गाँव है, जो मुख्य हाइवे और सेहोर शहर के बाईपास के बीच स्थित है. यहां के लोग इसे व्यापार केन्द्र कहते हैं. फंदा कलां के ब्लॉक विकास अधिकारी की मानें तो यहां एक अस्पताल है, चार प्राइमरी स्कूल हैं, एक हाईस्कूल और 500 मीटर में फैला हुआ एक बाज़ार है. यदि नजमा हेपतुल्ला की योजनाएं काम कर जाती हैं तो इस इलाके में एक कन्या महाविद्यालय, कृषि विज्ञान व तकनीकी केन्द्र, गोबर गैस संयंत्र, फ़ूड पैकिंग और जैविक खेती के केन्द्र भी होंगे.

चाय की दुकान चलाने वाले पवन कहते हैं कि फंदा कलां एक ब्लॉक स्तरीय गाँव है जबकि कोलू खेड़ी एक खांटी ग्रामीण परिवेश का गाँव है. पवन की बात में बात मिलाते हुए एक अन्य स्थानीय जावेद खान कहते हैं, ‘नजमा जी को अपना पैतृक गाँव गोद लेना चाहिए था, जिसे विकास की ज़्यादा ज़रूरत है. लेकिन हम सब जानते हैं कि इस तरह के सभी फैसलों में राजनीतिक दखलअंदाजी का अपना हाथ होता है.’


Panchayat point.
ग्राम पंचायत

प्रदेश भाजपा के नेता और नजमा हेपतुल्ला के भतीजे अल्तमाश अली मानते हैं कि कोलू खेड़ी नजमा जी का पैतृक गाँव है और उनके पिता स्वर्गीय सैयद यूसुफ़ अली की ज़मीन अभी भी वहां मौजूद है. लेकिन अली यह भी कहते हैं कि ‘नजमा जी के लिए सारे गाँव बराबर हैं.’

अली ने बात को पुख्ता करते हुए कहा कि विधायक रामेश्वर शर्मा के सुझाव पर ही नजमा जी ने फंदा कलां का चुनाव किया. वे बताते हैं कि ‘शर्मा जी दिल्ली गए और उन्होंने गाँवों का सुझाव दिया. इन गाँवों में से नजमा जी ने उस गाँव का चुनाव किया, जहां विकास कार्यों की ज़्यादा ज़रूरत थी.’ फंदा कलां की मुस्लिम आबादी के बारे में पूछे जाने पर अली कहते हैं कि ‘यह बहुत संतोषजनक नहीं है, लेकिन यह भी ज़रूरी नहीं कि अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री अल्पसंख्यक बहुलता वाला गाँव ही गोद ले.’

अली आगे कहते हैं कि ‘आदर्श ग्राम का चुनाव राज्यसभा की सदस्यता की जिम्मेदारी के तहत हुआ है. इसका नजमा जी के मंत्रालय से कोई लेना-देना नहीं है. यह उनका अपना व्यक्तिगत चुनाव था, न कि कोई मंत्रालयी फ़ैसला.’

इन सबके उलट नजमा के पैतृक गाँव कोलू खेड़ी के गाँव के लोग इन दलीलों को सुनने को तैयार नहीं हैं और वे नजमा हेपतुल्ला का सामना करने के लिया तैयार हैं. वे कहते हैं ‘जब भी वे गाँव का मुआयना करने आएँगी, तब हम नजमा जी से प्रश्न करेंगे कि उन्होंने अपने ही गाँव के लोगों को धोखा क्यों दिया?’

स्लाईडशो:

(अनुवाद: सिद्धान्त मोहन)

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‘जनता दल’ के अवतरण में अल्पसंख्यक समुदाय की निर्णायक भूमिका

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By सिद्धान्त मोहन, TwoCircles.net,

नई दिल्ली : आज नरेन्द्र मोदी और भाजपा के विजय रथ पर लगाम लगाने के लिए जनता दल के पुनर्गठन और सक्रिय राजनीति में साझा रूप से प्रवेश करने के कयासों को पुख्ता कर दिया गया. सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के साथ हुई बैठक में सपा, राजद, जदयू, जदस और आईएनएलडी ने फ़िर से एक होकर जनता दल को उसकी पुरानी शक्ल लौटाने का प्रयास करने का वादा किया.

सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव आज इन सभी दलों के मुखियाओं के साथ नई दिल्ली स्थित अपने आवास पर मीटिंग कर रहे थे. सूत्रों के मुताबिक इस नवगठित जनता दल का नाम ‘समाजवादी जनता दल’ रखा जा रहा है, जिसका मुखिया सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव को बनाया जाएगा. इस मीटिंग में जनता दल यूनाटेड के अध्यक्ष शरद यादव और नीतिश कुमार, राष्ट्रीय जनता दल के लालू प्रसाद यादव, जनता दल (एस) के एचडी देवगौड़ा, इंडियन नेशनल लोकदल के दुष्यंत चौटाला, समाजवादी जनता पार्टी के कमल मोरारका तथा समाजवादी पार्टी के रामगोपाल यादव और शिवपाल यादव ने भाग लिया.



जनता परिवार (file photo, साभार - Niticentral.com)

मीटिंग के बाद नीतीश कुमार ने संवाददाताओं से बातचीत में कहा कि सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव के निमंत्रण व आह्वान पर हम सभी जुटे. उन्होंने कहा कि ‘साथ में काम करने को सहमति पहले ही हो गयी थी. अब हमने मुलायम जी को सभी को एक दल में समेटने का दायित्व सौंपा है. हम एक दल बनने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं.’

चुनाव के वक्त तीसरे मोर्चे के गठन की बात ज़ोर पर थी लेकिन दलों की आपसी सहमति में यह तय किया गया कि मोर्चा बनाए जाने पर दलों की आपसी एकता की कोई गारंटी नहीं रहती है. जनता और वोटर को लगता रहता है कि कोई भी दल अपने फ़ायदे के लिए कभी भी मोर्चे को छोड़कर जा सकता है. सन् 1989 में जनता परिवार के विघटन के बाद कई बार तीसरे मोर्चे और जनता दल के पुनर्गठन के मौके आए लेकिन आपसी मतों में भिन्नता और कुशल नेतृत्व के अभाव के चलते उन मौकों पर कोई सफलता हासिल नहीं हुई.

मोर्चे के रूप में इन दलों में अब तक तीन बार मिलाप हुआ – 1989 में राष्ट्रीय मोर्चा के रूप में जो सन् 1991 तक चला, फ़िर 1991 से 1996 तक संयुक्त मोर्चा के रूप में और अंतिम बार 2008 में यूएनपीए के रूप में. लेकिन राजनीतिक जंग के हरेक मोर्चे पर यह मिलाप कमोबेश विफल ही नज़र आया.

बिहार के मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी पहले ही भाजपा से लड़ाई के लिए इस महागठबंधन की ज़रूरत पर बयान दे चुके हैं.

छः महीनों पहले संपन्न हुए लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की दुर्गति, जो राज्यों के विधानसभा चुनावों में अब तक जारी है, के बाद भाजपा के खिलाफ़ किसी मजबूत नेतृत्व की कमी लगातार बनी हुई है, जिसे अविलम्ब पूरा करना होगा. इस लिहाज़ से नवसंभावित जनता दल के सभी नेता मिलकर जनता को एक मजबूत विकल्प देने की तैयारी में दिख रहे हैं.

इसके अलावा एक और तथ्य है, जिस ओर ध्यान दिया जाना चाहिए क्योंकि राजद और सपा की करीबी का यह भी एक कारण हो सकता है. सूत्रों की मानें तो सपा प्रमुख के पौत्र तेज प्रताप के साथ राजद प्रमुख लालू यादव की बेटी की शादी तय होने की खबरों ने भी इस करीबी को बढ़ाने में संभावित मदद की है.

अल्पसंख्यकों का भरोसा:

पहले के समीकरण देखें तो कांग्रेस के बाद इन्हीं क्षेत्रीय पार्टियों को अल्पसंख्यकों और दलितों का समर्थन मिलता रहा है. ये पार्टियां जातिगत समीकरणों को भुनाकर राजनीति करने में माहिर हैं, चाहे वह उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोटों को सपा द्वारा अपने पक्ष में करना हो या बिहार में राजद द्वारा भी यही करना.

ऐसे में सम्भव है कि भाजपा की हुक्मरानी से असंतुष्ट अल्पसंख्यक समुदाय अपने विकास और दूसरी सम्भावनाओं के लिए इस संयुक्त समाजवादी जनता दल के ज़रिए अपना विकल्प तलाशने की कोशिश करेगा. उत्तर प्रदेश और बिहार की अल्पसंख्यक आबादी हाशिए से बाहर आने के लिए राष्ट्रीय पार्टियों की ओर देखती है, लेकिन कांग्रेस की पतली हालत ने उनके पास क्षेत्रीय पार्टियों के अलावा कोई विकल्प नहीं छोड़ा था.

इस लिहाज़ से उत्तर भारत व अन्य राज्यों को अपने ज़द में लेता यह जनता दल इस अल्पसंख्यक समुदाय को मौजूं विकल्प के रूप में उपलब्ध हो सकता है. लेकिन इसके लिए यह ज़रूरी है कि इनेलो की प्रो-जाट छवि को भी थोड़ा तोड़ा जाए ताकि पिछड़ी जातियों और अल्पसंख्यकों को इस मुहिम से जुड़ने में थोड़ी खाली जगह मिल सके. इसके साथ यह भी ज़रूरी है कि इस जनता दल को पूरे जोश और एकाग्रता से राजनीति के खांचे में रखा जाए ताकि वक्त दर वक्त इसके टूटकर बिखर जाने का खतरा न रहे.

चुनावी विश्लेषकों ने भी लोकसभा चुनाव में भाजपा को मिले भारी बहुमत के लिए अल्पसंख्यक, पिछड़ी जातियों और दलितों के वोटों के एक बड़े हिस्से का भाजपा में चले जाने को भी जिम्मेदार बताया था. जातीय राजनीति के फ़लक पर सक्रिय उत्तर प्रदेश और बिहार में बिना वोटबैंक साढ़े सरकार बना पाना लगभग दुर्लभ है. ऐसे में इस नवगठित जनता दल ने उस दिशा में कदम बढ़ाए हैं जिससे उनके हिस्से आने वाले सूबों के जातीय समीकरणों को साधा जा सके.

सूबों के उस्तादों का विलय:

इस गठबंधन पर यदि एक सरसरी निगाह डालें तो शामिल दलों की शक्ति का अंदाज़ भी लग जाता है. उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की यादवों, मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यकों पर मजबूत पकड़ है. जनता दल (यूनाइटेड) की बिहार के कुर्मी और दलित वोटों पर मजबूत पकड़ है और जदयू से बिहार के मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी अपने प्रो-दलितवादी वक्तव्यों के कारण लगातार सुर्ख़ियों में बने रहते हैं. बिहार सरकार को बाहर से समर्थन दे रही राष्ट्रीय जनता दल ने भी प्रदेश के मुस्लिमों और यादवों के बीच खुद की अच्छी साख स्थापित कर रखी है.

इसके बाद हरियाणा के जाट समुदाय के बीच मजबूत पकड़ रखने वाले इण्डियन नेशनल लोक दल और कर्नाटक के जनता दल (सेकुलर) को गिना जाए तो एक मजबूत समीकरण बनता दिख रहा है. इस स्थिति में उत्तर भारत के सभी प्रमुख राज्यों के साथ-साथ कर्नाटक और हरियाणा में राजनीतिक समीकरणों का एकदम नया रूप आने वाले समय में देखने को मिल सकता है.

सूत्रों के हवाले से आ रही खबर भाजपा को और चिंताग्रस्त कर सकती है कि संभवतः नवगठित जनता दल आगामी दिल्ली विधानसभा चुनाव में अरविन्द केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को सहयोग दे सकती है.

राज्यसभा का अंकगणित:

यदि चुनावों की बात न भी करें तो राज्यसभा में सांसदों की उपस्थिति से भी बाजी पलटती दिख रही है. वर्तमान में राज्यसभा में कांग्रेस के 68 सांसदों के मुक़ाबिले भाजपा के पास 43 सांसदों का साथ है. इस महागठबंधन के गठन के बाद शरद यादव खेमे में और 24 सांसदों के आवक की सम्भावना भी बनी है. यदि इस संख्या के साथ किसी सूरते-हाल में तृणमूल कांग्रेस और सीपीआई के क्रमशः 12 और 11 सांसदों ने भी साथ दे दिया, तो भाजपा के लिए किसी बिल को पास कराना गले की हड्डी सरीखा बन जाएगा.

इस मौके पर कांग्रेस के नेता शकील अहमद ने चुटकी लेते हुए कहा है कि पुराने समाजवादियों की एक विशेषता है कि वे एक दूसरे के बिना ज़्यादा दिन तक नहीं रह सकते, लेकिन इसके साथ कठोर सच यह भी है कि वे एक दूसरे के साथ एक साल से ज़्यादा नहीं रह सकते. भाजपा इस गठबंधन को मौक़ापरस्ती की तरह देख रही है. लेकिन अधिकांश राजनीतिक विश्लेषक इस बात से कमोबेश रूप से सहमत हैं कि इस गठबंधन के पूरे तरीके से रंग में आने के बाद भाजपा को मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है.

आगरा में ‘घर-वापसी’ या जबरन ‘घर-बदली’?

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By सिद्धान्त मोहन, TwoCircles.net,

भाजपा की मौजूदा सरकार में जो साम्प्रदायिक और सामुदायिक उठापटक देखने को मिल रहा है, उसका लगभग एक वीभत्स स्वरूप इस हफ़्ते की शुरुआत में आगरा में देखने को मिला जब यहां के 57 मुस्लिम परिवारों ने ‘पुरखों की घर-वापसी’ कार्यक्रम में अपना कथित धर्म-परिवर्तन कराकर हिन्दू धर्म स्वीकार कर लिया.

इस मामले की सरगर्मी में तब तक कोई विकास नहीं हुआ था जब तक यह खबर अखबारों में छप नहीं गयी. इसके बाद जिले में मुस्लिम समाज ने अपनी आपत्ति दर्ज करायी तो लोगों को मसले का पता चला.



अज्जू चौहान(दाहिने, भगवा अंगवस्त्र में) मुस्लिम समुदाय के सदस्यों के साथ धर्मान्तरण की प्रक्रिया को संयोजित करते हुए (साभार - द हिन्दू)

दरअसल हुआ यूं कि आगरा के थाना सदर के अंदर आने वाले इलाके देवरी रोड में सोमवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बजरंग दल के संयुक्त प्रयास धर्म जागरण समन्वय विभाग ने एक बड़े धर्म-परिवर्तन के ‘उत्सव’ को अंजाम दिया. इसे ‘पुरखों की घर-वापसी’ का नाम दिया गया. जानकारी के अनुसार इस धर्म-परिवर्तन कार्यक्रम में लगभग 57 मुस्लिम परिवारों के लगभग 270 सदस्यों ने भाग लिया. ब्राह्मणों द्वारा हवन कराकर और मंत्रोच्चार कराकर सभी मुस्लिमों को तिलक लगाया गया. सभी ने मंदिर में माथा टेककर प्रसाद प्राप्त किया और वापिस जाकर अपने घरों पर भगवा झण्डा लगा दिया. कानूनी तौर पर इस मामले की ज़मीनी हकीकत से लोग वाकिफ़ नहीं हैं, लेकिन फ़िर भी इस मामले के तूल पकड़ने के बाद यह मामला प्रथम दृष्टया प्रलोभन देकर धर्म परिवर्तन कराने का मालूम होता है.

हमने इस बाबत कार्यक्रम के संचालकों से बात करने की कोशिश की. लेकिन मामले की गर्माहट बढ़ने के बाद लगभग सभी संचालकों ने या तो फ़ोन उठाना बंद कर दिया या तो वे बातचीत से मुकरते रहे. फ़िर भी यदि सतही बातों को आधार बनाया जाए तो कार्यक्रम में भागीदारी करने वाले दक्षिणपंथी दल इस कार्यक्रम को और ज़्यादा बड़े स्तर पर करवाने की योजना पर काम कर रहे हैं.

बजरंग दल के संयोजक और कार्यक्रम से प्रमुख रूप से जुड़े अज्जू चौहान ने कहा, ‘मीडिया इसे धर्म-परिवर्तन का नाम दे रहा है, लेकिन यह घर-वापसी है. इन लोगों के परिवारों को 50-60 सालों पहले जबरन इस्लाम क़ुबूल करवा दिया गया था, लेकिन तब से ये लोग अपने घर्म में वापसी को लेकर विलाप कर रहे थे. हमने इनकी घर-वापसी कराई है, जो कहीं से गलत नहीं है.’

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रवक्ता मनमोहन ने भी इस मामले को धर्म-परिवर्तन के बजाय घर-वापसी का नाम दिया. संघ विचारक एमजी वैद्य ने कहा, ‘यह कनवर्ज़न नहीं री-कनवर्ज़न है. इन लोगों ने हिन्दू धर्म में वापसी की है, और हम इनका और ऐसे प्रयासों का स्वागत करते हैं.’

भाजपा सांसद और अपने विवादित बयानों के चलते सुर्ख़ियों में बने रहने वाले योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि आगामी 25 दिसम्बर, यानी क्रिसमस के दिन, वे अलीगढ़ में कम से कम 5000 ईसाईयों और मुसलमानों की ‘घर-वापसी’ की अगुवाई और स्वागत करेंगे. कयास लगाए जा रहे हैं कि इस आगामी धर्मांतरण के कार्यक्रम में लगभग 4000 ईसाईयों और 1000 मुस्लिमों के शिरकत करने की सम्भावना है.

योगी आदित्यनाथ के इस बयान से भाजपा के खेमे में मची खलबली साफ़ देखी जा सकती है. एक तरफ़ जब भाजपा खुद को दूर रखकर मुद्दे का कथित समर्थन कर रही थी, उसी समय भाजपा के सांसद के द्वारा आए बयान से न चाहते हुए भी भाजपा की संलिप्तता बढ़ गयी है. धर्म जागरण मंच के सदस्यों ने इस मुहिम को समर्थन दिया है और कहा है कि ऐसी मुहिम से हिन्दू धर्म व धर्मावलंबियों दोनों के गर्व में इज़ाफा होगा.

अब मुद्दा उठता है कि इस धर्म-परिवर्तन की पृष्ठभूमि की ओर रुख करने पर कौन-सी बातें सामने आती हैं? जिस दिन, यानी सोमवार, धर्मांतरण की प्रक्रिया संपन्न हुई, उस दिन धर्मांतरण करा चुके इस्माईल ने कहा, ‘हमने अपनी मर्ज़ी से हिन्दू धर्म क़ुबूल किया है और इसमें किसी का कोई दबाव नहीं है.’ सोमवार को दिए जा रहे इन बयानों के बाद मंगलवार को वही इस्माईल यह कहने लगे कि ‘यह धर्मान्तरण का काम धोखे से किया गया है. हमें इसकी कोई जानकारी नहीं थी.’ पश्चिम बंगाल के बसीहर इलाके से ताल्लुक रखने वाले इस्माईल ने बताया कि वे 12 साल पहले पश्चिम बंगाल से यहां आए थे. वे बताते हैं, ‘करीब 15 दिनों पहले बजरंग दल और भाजपा नेता उनके पास आए थे और कहा था कि कुछ पूजा-पाठ कराना है. इसके बदले वे उन्हें बीपीएल और प्लॉट दिलवाने का वादा कर गए थे.’ पाठकों को यह बता देना आवश्यक है कि इस्माईल ही वह व्यक्ति थे, जिन्होंने इस धर्मांतरण के पूजा-पाठ सम्बन्धी कार्यक्रमों के बाद लोगों के बीच प्रसाद बांटा था.

इस्माईल के बात से कमोबेश यह तो साफ़ हो ही जाता है कि इस घटना के पीछे के मंसूबे क्या हैं? यह कुल मिलाकर धार्मिक भावनाओं को बरगलाने का अनुचित और गैर-कानूनी प्रयास है, जिसके मकसद बेहद अस्पष्ट और संभावित रूप से खतरनाक हो सकते हैं.

धर्मांतरण कराने वाले एक अन्य सदस्य अब्दुल रहमान गाज़ी ने हमसे बातचीत में कहा, ‘हम लोगों को बाद में पता चला कि हमारा धर्मांतरण कर दिया गया है. हमें पहले कहा गया था कि एक अलां-फलां कार्यक्रम है उसके बाद हम सभी के राशन-कार्ड और आधार-कार्ड बनवा दिए जाएंगे. हम उसी फेर में वहां चले गए, जिसके बाद हमें मीडिया से पता चला कि हमारा धर्मांतरण कर दिया गया है.’

धर्म-परिवर्तन की शिकार मुनीरा ने बताया, ‘उन्हें कहा गया कि चलो, सिर्फ़ फोटो खिंचवाना है. उसके बाद बीपीएल, आधार कार्ड और तुम्हारे नाम प्लॉट की रजिस्ट्री हो जाएगी.’ मुनीरा ने आगे बताया, ‘हम चले गए. वहां काली जी की मूर्ति के सामने बहुत पूजा-पाठ हो रहा था. हम सब डर गए थे इसलिए हमने उस वक्त कुछ नहीं बोला. हमसे हवन और पूजा-पाठ करने को कहा गया, हमने किसी भी बात पर कोई भी आपत्ति नहीं की. बाद में हमें खबरों से पता चला कि हमारा धर्म-परिवर्तन करा दिया गया है.’ मुनीरा आगे कहती हैं, ‘हम लोग अभी भी क़ुरआन पढ़ रहे हैं और नमाज़ अता कर रहे हैं.’

इस धर्मान्तरण का शिकार हुए कई अन्य मुस्लिम भी यह कह रहे थे कि बीपीएल, एपीएल, पहचान-पत्र बनवाने और प्लॉट दिलवाने के नाम पर इन कार्यकर्ताओं ने हमारा धर्म परिवर्तन कराया. ऐसे में यह बजरंग दल और संघ के दावों पर सवाल उठना लाज़िम है कि यह ‘घर-वापसी’ का कार्यक्रम था या जबरन ‘घर-बदली’ का.

तथाकथित जबरन धर्म परिवर्तन के शिकार मुस्लिमों की हालत पर गौर करें तो यह तो प्रथम-दृष्टया साफ़ हो जाता है कि ये लोग बेहद गरीब पृष्ठभूमि से आते हैं. दिहाड़ी मजदूरी और अन्य छोटे-मोटे काम इनकी आजीविका के साधन हैं. कहा तो यह भी जा रहा है कि ये मुस्लिम परिवार बांग्लादेश से आए थे लेकिन इस बात के पुख्ता होने में अभी घोर संदेह भी है. इन बातों से यह तो साफ़ हो जाता है कि संघ और बजरंग दल ने इन परिवारों को क्यों चुना? वे माली हालत से मजबूत और पढ़े-लिखे समुदाय के पास नहीं जा सकते थे क्योंकि भारत के कानून और इन हिंदूवादी संगठनों के इतिहास से वाकिफ़ यह तबका मामले की असलियत को बिना किसी देर के भांप जाता.

हिन्दू धर्म परिवर्तन की तकनीकी समस्याओं पर हमने वाराणसी के प्रख्यात कर्मकांडी पं. मुकुंद उपाध्याय से बात की. उन्होंने कहा, ‘किसी भी धर्म से हिन्दू धर्म में परिवर्तित होने की प्रक्रिया बेहद आसान और सर्वविदित है. इसमें इच्छुक को संकल्प लेना होता है कि वह बिना किसी दबाव में सभी देवताओं, नक्षत्रों और ग्रहों की गवाही में हिन्दू धर्म क़ुबूल करता है.’ पं. उपाध्याय ने समस्याओं पर बात करते हुए कहा, ‘इसमें यह जान लेना सबसे ज़रूरी है कि यदि धर्मांतरण किसी प्रलोभन या दबाव में किया गया है तो यह किसी भी नज़रिए से शास्त्र-सम्मत और न्याय-सम्मत नहीं है क्योंकि संकल्प के सिद्धान्त इच्छुक व्यक्ति पर लागू ही नहीं होते.’

इस मामले के बाद आगरा का मुस्लिम समाज बेहद आक्रोश में है. कई मुस्लिम सदस्यों ने बुधवार को मंटोला चौक पर जाम लगा दिया और जिला-प्रशासन से कानूनी कार्यवाही की मांग करने लगे. जिला प्रशासन ने पहले जाम लगाकर विरोध-प्रदर्शन कर रहे इन लोगों को बातचीत से शान्त कराने की कोशिश की, फ़िर भी इन्हें अपनी मांग से न डिगता हुआ और प्रदेश सरकार का रुख देखकर प्रशासन ने सदर थाने में आरोपितों के खिलाफ़ एफ.आई.आर दर्ज़ कराई, जिसके बाद की कानूनी कार्यवाही अभी भी अपेक्षित है.

कैथोलिक सेकुलर फोरम और जमात-ए-इस्लामी हिंद ने इस घटना पर अपनी कड़ी आपत्ति जतायी है. उन्होंने अपनी तरफ़ से जारी की गयी रिलीज़ में कहा है कि यह सरासर धोखाधड़ी और कानूनी जुर्म है. आरएसएस पहले भी ऐसे कामों को अंजाम देती रही है और यह उन्हीं प्रयासों का हिस्सा है.

ऐसा नहीं है कि सिर्फ़ मुस्लिम समुदाय इस बात से खफ़ा है, हिंदूवादी संगठनों ने भी लगभग मोर्चा कस लिया है. शिवसेना के आगरा जिला प्रमुख वीनू लवानिया ने कहा है कि यदि हिंदूवादी संगठनों के खिलाफ़ कोई कार्यवाही हुई तो वे सड़कों पर उतर आएंगे. हिंदूवादी संगठनों के खिलाफ़ कोई कार्यवाही करने से पहले ईसाई संगठनों के खिलाफ़ कार्यवाही की जाए क्योंकि वे भी कई तरीकों से धर्मांतरण कराते रहे हैं.

भाजपा के आगरा महानगर अध्यक्ष नागेन्द्र दूबे ने तो पहले बात करने में आनाकानी की. फ़िर उन्होंने कहा कि ‘भाजपा किसी भी तरीके के धर्मांतरण कार्यक्रमों में हिस्सेदार नहीं है. लेकिन मैं अभी भी कहता हूं कि यदि कोई व्यक्ति स्वेच्छा से कोई भी धर्म स्वीकार करता है, तो उसका स्वागत किया जाना चाहिए.’ यह पूछने पर कि क्या धर्म-परिवर्तन के शिकार लोगों के आरोप गलत हैं, दूबे जी कहते हैं, ‘अब गलत क्या तो सही क्या? वे किसी के दबाव और भय के कारण ऐसा कह रहे हैं.’

आगरा में धर्मांतरण पर सियासत और धर्म-सभाओं ने अपने रंग दिखाने शुरू कर दिए हैं. जहां एक ओर हिन्दू संत-महंत इसे सही ठहरा रहे हैं, वहीं मुस्लिम धर्म गुरु व सियासतदार कानूनी कार्यवाही की मांग कर रहे हैं. जमीयत उलेमा-ए-हिंद के राष्ट्रीय महासचिव मौलाना महमूद मदनी दावा करते हुए कहते हैं, ‘मुसलमान ऐसा कतई नहीं कर सकता है. उसे अपने मज़हब से शिक़ायत नहीं है. मुस्लिम समुदाय ही क्यों, कोई भी समुदाय भला ऐसा अपनी मर्ज़ी से क्यों करेगा? यह लालच देकर कराया गया काम है. यह कानूनी तंत्र के खिलाफ़ जाकर किया गया काम है. इस पर बिना देरी के ध्यान देने की और दोषियों को सजा देने की ज़रूरत है.’

माकपा के नेता सीताराम येचुरी और बहुजन समाजवादी पार्टी की नेत्री मायावती ने संसद में भाजपा सरकार और संघ को आड़े हाथों लिया तो संघ की नीतियों के खिलाफ़ लंबे समय से मोर्चा खोले कांग्रेस के दिग्विजय सिंह ने भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. बात जब जवाबदेही पर आई तो भाजपा के उपाध्यक्ष और प्रवक्ता मुख्तार अब्बास नकवी के यह कहकर पल्ला झाड़ लिया कि ‘यह प्रदेश सरकार की जिम्मेदारी है. यह मामला राज्य की कानून-व्यवस्था से जुड़ा हुआ है. केन्द्र सरकार का इस घटना से कोई मतलब नहीं है.’

जानकारों के मुताबिक इस मुहिम से जुड़े संगठनों ने एक तीर से दो निशाने साधे हैं. एक तरफ़ यह कहकर कि ‘पहले ये लोग जबरन मुस्लिम बना दिए गए’, वे हिन्दू-अस्मिता और हिन्दू-गर्व जैसी भावनाओं को सतह पर ले आए. फ़िर इन परिवारों और सदस्यों का धर्म-परिवर्तन कराकर इन्होंने इन्हीं भावनाओं के साथ सहानुभूति और समर्थन प्राप्त किया. ऐसे में पूरा लक्ष्य देश की आबादी के 80.5 फ़ीसदी हिन्दुओं पर केंद्रित है. यह भी साफ़ है कि ऐसा भविष्य में होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र किया जा रहा है, ताकि हिन्दू वोटबैंक को भावनात्मक और संख्यात्मक रूप से मजबूत किया जा सके.

रिहाई मंच द्वारा 16 दिसम्बर को ‘अवैध गिरफ़्तारी विरोध दिवस’ का आह्वान

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By TCN News,

लखनऊ: शहीद मौलाना ख़ालिद मुजाहिद की अवैध गिरफ्तारी के विरोध में 16 दिसंबर 2014 को ‘अवैध गिरफ्तारी और इंसाफ की लड़ाई’ विषय पर लखनऊ प्रेस क्लब में सेमीनार आयोजित किया गया है. रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुऐब ने कहा है कि पुलिस हिरासत में क़त्ल कर दिए गए मौलाना ख़ालिद मुजाहिद को 16 दिसंबर 2007 को एसटीएफ-एटीएस और खुफिया एजेंसियों द्वारा जिस तरह अवैध तरीके से गिरफ्तार किया गया था, यह कार्यक्रम उसके खिलाफ़ आयोजित किया गया है.

आगामी 16 दिसंबर को लखनऊ प्रेस क्लब में दोपहर साढ़े ग्यारह बजे से आयोजित सेमिनार को अवैध गिरफ़्तारी विरोध दिवस के परिप्रेक्ष्य में रखा जा रहा है. मोहम्मद शुएब ने आगे कहा कि अवैध गिरफ्तारी के खिलाफ़ यह संघर्ष तब और भी ज़रूरी हो जाता है जब देश के हर एक कोने से अवैध गिरफ्तारियों की खबरों का आना आम हो और देश की जेलों में कुल कैदियों का 53 प्रतिशत हिस्सा मुसलमानों, दलितों और आदिवासियों का हो. आज देश में जिस तरह का परिदृश्य सामने है उसे देखकर लगता है कि देश के मुसलमान, दलित और आदिवासी व्यवस्था के चारा बन कर रह गए हैं और इन वर्गों के लिए इन्साफ केवल एक ‘दिवास्वप्न’ मात्र बन चुका है.



मौलाना ख़ालिद मुजाहिद

मौलाना ख़ालिद मुजाहिद की हिरासत में की गई हत्या के आरोपी एसटीएफ-एटीएस-आईबी के अधिकारियों के खिलाफ दर्ज मुकदमे में विवेचना अधिकारी द्वारा फाइनल रिपोर्ट लगाने की कोशिश को जिला न्यायालय बाराबंकी द्वारा यह कह कर अस्वीकार कर दिया था कि मामले की सही विवेचना नही की गई है और मामला उच्चाधिकारियों के खिलाफ़ है इसलिए क्लोजर रिपोर्ट खारिज की जाती है. इस बाबत मोहम्मद शुऐब ने कहा कि इससे यह बात पुख्ता हो जाती है कि विवेचना अधिकारी द्वारा इस मुकदमे में निष्पक्ष विवेचना की जगह आरोपी अफसरों को बचाने के प्रयास ही ज्यादा किए गए थे.

अब पुर्नविवेचना के तहत इस मुकदमें में 5 जनवरी 2015 को प्रगति रिपोर्ट अदालत द्वारा मांगी गई है. यही नहीं, इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने भी आगामी 19 जनवरी तक राज्य सरकार से इस मामले में की गई कार्यवाही की रिपोर्ट मांगी है. इसके बाद यह साफ हो जाता है कि इस प्रकरण में सरकार जानबूझ कर इंसाफ का कत्ल कर देने को आमादा है और ऐसी स्थिति में लोकतंत्र और इंसाफ के हक में रिहाई मंच अपने संघर्ष को जारी रखेगा.

मोहम्म्द शुऐब ने कहा कि आज जिस तरह से देश में वर्ण-व्यवस्था का दानव व्यापक पैमाने पर मौजूद है और देश के गरीब, आदिवासी, मुसलमान अपनी आबादी से ज़्यादा जेलों में सड़ रहे हैं, उसे देखते हुए यह साफ हो गया है कि देश के शासक वर्ग के लिए इन वर्गों की समस्याएं कोई मायने नही रखती हैं.

श्री शुऐब ने आगे कहा कि इन परिस्थितियों में रिहाई मंच इन वर्गों के इंसाफ के लिए अपनी लड़ाई जारी रखेगा और आम जनता से भारी से भारी मात्रा में इस सेमीनार में शरीक होने के लिए अपील करते हैं ताकि देश के लोकतंत्र को महफूज रखने की इस लड़ाई को और धार दी जा सके.

‘बे-मज़हब’ की फ़जीहत – आगरा में धर्म-संकट

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By सिद्धान्त मोहन, TwoCircles.net,

आगरा/ नई दिल्ली: आगरा में मुस्लिम समुदाय की कथित ‘घर-वापसी’ का मुद्दा धीरे-धीरे संसदीय कार्यवाही और केन्द्र सरकार के संचालन को आड़े हाथों लेता नज़र आ रहा है. इस मामले में अभी तक जो भी विकास हुआ है, उसे देखकर यही कहा जा सकता है कि खानापूरी और बहस का दौर पूरे शबाब पर है.

सूत्रों की मानें तो सदर थाने में दर्ज कराई गयी एफ.आई.आर. के मद्देनज़र कोई पुख्ता कार्यवाही अभी तक नहीं की गयी है. मुस्लिम समुदाय के लोग प्रशासन पर पक्षधरता का आरोप लगा रहे हैं, तो हिन्दू कट्टरपंथी उनके खिलाफ़ कार्यवाही होने पर ‘अंजाम देख लेने’ और ‘प्रदर्शन’ करने की धमकियां दे रहे हैं.


Forced conversion in Agra
वेदनगर स्थित मुस्लिमों की बस्ती (साभार - बीबीसी हिन्दी)

इस मामले में उत्तर प्रदेश अल्पसंख्यक आयोग के सदस्य सुहैल अय्यूब ने आगरा जिलाधिकारी और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक से रिपोर्ट तलब की है. सुहैल अय्यूब ने मीडिया से बातचीत के दौरान कहा, ‘हमने आगरा जिलाधिकारी और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक से इस मामले के बाबत तीन दिनों के भीतर रिपोर्ट सौंपने को कहा है.’ सुहैल अय्यूब ने यह भी कहा कि ज़मीनी हकीक़त का पता लगाने के लिए आयोग के सदस्य आगरा भी जाएंगे. उनकी आगरा आने की तारीखों का एक-दो दिनों में फ़ैसला हो जाएगा.

इस पूरे विवाद में हाशिए पर सिमटे पड़े पहलू पर किसी का ध्यान नहीं जा रहा है. जिन लोगों ने प्रलोभन और धोखे के साथ हिन्दू धर्म स्वीकार किया, उन लोगों की बातें न तो संसद में हो रही हैं और ना ही किसी प्रेस कॉन्फ्रेंस में. इन तकरीबन 300 लोगों को तो खुद नहीं पता कि क्या करें और कहां जाएं? वे मझधार में फंसी हुई नाव सरीखे हो गए हैं.
आगरा में आलम तो यह है कि उनकी बस्ती के लोग उन्हें मुस्लिम मानने को तैयार नहीं हैं, साथ ही साथ हिन्दू समाज भी उन्हें हिन्दू नहीं मान रहा है. इसी बस्ती के पास रहने वाले असलम कहते हैं, ‘वे लोग हमारे पास भी आए थे. हम लोग नहीं गए थे. किसी को भी जाने की ज़रूरत नहीं थी. अब मज़हब बदल लेने के बाद कोई भी हमारे साथ क्यों रहेगा?’ असलम चुटकी लेते हुए कहते हैं, ‘इनको तो प्लॉट मिल रहा था. अब तो इन्हें वहां चले जाना चाहिए.’
पास में ही रहने वाले हिन्दू परिवार के मुखिया रामरतन अग्रवाल कहते हैं, ‘हम क्यों मान लें कि वे हिन्दू हैं? वे हमेशा से मुस्लिम थे. आप आज जो भी हों, फ़िर कल आकर कहने लगे कि साहब हम तो आपके जैसे हैं और हमें अपनी जमात में शामिल कर लो, कोई भी क्यों करेगा. जिसने भी इनका धर्मांतरण कराया, ये तो उनकी जिम्मेदारी है कि इनके रहने खाने का प्रबंध करें.’

बात सिर्फ़ असलम या रामरतन जैसे संकुचित सोच वालों की नहीं है, आसपास के इलाकों के लगभग सभी लोग कमोबेश यही राय रखते हैं. इसके बाद रही-सही कसर आगरा के मौलवी समाज ने पूरी कर दी है. कई मौलवियो ने अपने बयानों से इन लोगों को दोराहे पर लाकर खड़ा कर दिया है. धर्म-परिवर्तन की घटना के बाद जब इन मुस्लिमों को पता चला कि वे मज़हबी स्तर पर ठगी का शिकार हुए हैं, तो इन लोगों ने मौलाना मसरूर रज़ा क़ादरी से जाकर माफ़ी माँगी. मौलाना क़ादरी ने इन्हें माफ़ तो कर दिया लेकिन बाकी मौलवियों ने आनाकानी की.

मौलवियों ने इन लोगों से कहा है कि ये लोग न तो हिन्दू हैं और न ही मुसलमान. इन्हें न तो अल्लाह माफ करेगा और न ही भगवान. दोराहे पर खड़े ये लोग अथाह निराशा से भरे हुए और हरेक उम्मीद पर दम भर रहे हैं. मौलवी समाज के कई लोगों ने बुधवार को इलाके का दौरा किया और इन लोगों को हिदायत भी दी. मौलवी मुदस्सिर खान ने इन लोगों से कहा, ‘आप लोगों को दोबारा निकाह करना होगा. दोबारा कलमा पढ़ना होगा. इस्लाम की अहम हिदायतों को मानना होगा. कुरआन दोबारा पढ़ना होगा. तभी आपको इस्लाम में वापिस लिया जा सकता है.’

रोचक बात ये है कि धर्मांतरण कराने वाले बजरंग दल और संघ के लोग अब मौके पर नज़र नहीं आ रहे हैं. इन लोगों से कथित तौर पर किये गए वादे भी अधूरे पड़े हैं. सही तरीके से देखा जाए तो ये बेघर, बे-पहचान और बे-मज़हब लोग दिनों-दिन ज़िंदगी से दो-चार हो रहे हैं. वेदनगर के बाशिंदे पुलिस और नेताओं के दबाव में अपने-अपने आशियाने छोड़कर जा रहे हैं. गुरूवार की सुबह पुलिस ने इन कबाड़ी लोगों के ठेकेदार इस्माईल को घर से उठा लिया. इस्माईल की पत्नी ने बातचीत में बताया, ‘पुलिसवाले कह रहे थे कि इन्हें पूछताछ के लिए ले जाया जा रहा है.’ यदि स्थानीय लोगों का भरोसा करें तो अब तक इस बस्ती से लगभग 10 परिवार जा चुके हैं, लेकिन प्रशासन का कहना है कि चूंकि ये लोग कबाड़ बीनने का काम करते हैं, इसलिए वे अपने काम पर निकल गए हैं.

ईसाई-सामाजिक अधिकारों के पक्षधर और जनकल्याण में समय व्यतीत करने वाले एनजीओ कैथोलिक सेकुलर फोरम(सीएसएफ) ने प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी से इस मामले में फ़ौरन कार्यवाही करने की मांग की है. सीएसएफ के सचिव जोसेफ़ डायस के अनुसार एनडीए की सरकार बनने के बाद ‘घर-वापसी’, धर्मांतरण और लव-जेहाद जैसे मुद्दे बेहद तेज़ी से सामने आ रहे हैं. देश की राजधानी दिल्ली में भी कुछ दिनों पहले चर्च पर पत्थर फेंके गए और उसे जला दिया गया. सीएसएफ ने 25 दिसम्बर को ‘ब्लैक क्रिसमस’ से जोड़ने का प्रयास करते हुए कहा है, ‘हम शांतिप्रिय हैं और धर्म चुनने की स्वतंत्रता का सम्मान करते हैं. लेकिन जिस तरह से यह मामला स्वाधीनता का कम और राजनीतिक ज़्यादा लग रहा है, हम इसकी भर्त्सना करते हैं.’


Forced conversion in Agra
अलीगढ़ में 25 दिसम्बर के मद्देनज़र बांटे गए पर्चे (साभार - एबीपी)

राष्ट्रीय उलमा काउंसिल के प्रदेश अध्यक्ष डा. निज़ामुद्दीन खान ने कहा कि, ‘बजरंग दाल और आरएसएस के कार्यकर्ताओं ने षड्यंत्र के तहत आगरा में बसे गरीब, नादान और कमज़ोर बंगाली मुस्लिम परिवारों को डरा-धमका कर और बीपीएल कार्ड, आधार कार्ड और ज़मीन का लालच देकर जिस प्रकार अपने धर्म से हटाकर हिन्दू बनाने की कोशिश की है, वह क़ानून और संविधान के विरुद्ध है. यह एक सघन अपराध है और साथ ही साथ साम्प्रदायिक एकता और भाई-चारे के लिए बहुत ही हानिकारक है.’ निज़ामुद्दीन खान ने यह भी कहा, ‘योगी आदित्यनाथ जिस प्रकार मुसलमानों के विरुद्ध आपत्तिजनक, भड़काऊ, अनर्गल व उत्तेजनात्मक बातें करते और खुले-आम धमकियाँ देते हैं, उससे दिन-प्रतिदिन पूर्वांचल में साम्प्रदायिक तनाव बढ़ता जा रहा है. अखिलेश सरकार को ज़रूरत है कि वे यथाशीघ्र योगी आदित्यनाथ पर लगाम लगाएं.’

ज़ाहिर है कि अल्पसंख्यक समुदाय का मायूसी और प्रतिरोध का यह स्वर नाजायज़ नहीं है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बजरंग दल के सदस्यों के बयानों से यह साफ़ पता चल जाता है कि ये दल इस धर्मान्तरण के कार्यक्रम को बतौर उपलब्धि देख रहे हैं. आगामी 25 दिसम्बर के दिन अलीगढ में इसी किस्म का एक और ‘घर-वापसी’ कार्यक्रम कराए जाने की योजना है, जिसमें संभवतः 4000 ईसाई व 1000 मुस्लिम शामिल हो सकते हैं. संघ और बजरंग दल के पदाधिकारियों के साथ भाजपा के जाने-पहचाने फायर-ब्रांड प्रचारक योगी आदित्यनाथ भी इस धर्मांतरण कार्यक्रम में शिरकत करेंगे.

आरएसएस के प्रांत प्रचारक राजेश्वर सिंह ने मीडिया से बातचीत में कहा, ‘इन धर्मांतरण कार्यक्रमों में औसतन 1000 परिवारों के धर्मपरिवर्तन पर संघ 50 लाख रूपए खर्च करता है. अकेले ब्रज प्रांत - जिसमें आगरा, फतेहपुर, मथुरा, फिरोजाबाद, मेरठ, मैनपुरी जैसे नगर शामिल हैं – में हमने लगभग 2.73 लाख लोगों की ‘घर-वापसी’ कराई है. इन पैसों का सबसे बड़ा हिस्सा ईंधन में खर्च हो जाता है, बाकी पूजा-पाठ संबंधी तैयारियों में.’ राजेश्वर सिंह ने टाइम्स से बातचीत में दावा किया था कि एक दिन गिरजाघरों की दीवारें गिर जाएंगी और भारत एक सम्पूर्ण हिन्दू राष्ट्र होगा. राजेश्वर सिंह ने यह दावा भी किया है कि ‘वे चर्चों और मस्जिदों की साजिशों को सफल नहीं होने देंगे और अगले दस सालों में वे भारत को एक सम्पूर्ण हिन्दू राष्ट्र बना देंगे.’ राजेश्वर सिंह समेत संघ के कई पदाधिकारियों ने दावा किया है कि संघ ने 50 से भी ज़्यादा गिरजाघरों का अधिग्रहण कर लिया है.

आगे की खबर है कि आगामी क्रिसमस को अलीगढ़ में होने वाले कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए अलीगढ़ में धर्म जागरण समिति की तरफ़ से पर्चे बांटे गए हैं. इस पर्चे पर मुख्य अपीलकर्ता की नाम पर राजेश्वर सिंह का नाम लिखा हुआ है. इस पर्चे पर लोगों से भारी मात्रा में सम्मिलित होने की अपील की गयी है. संघ के सदस्यों और कार्यकर्ताओं ने कहा है कि वे हर हाल में इस कार्यक्रम को सफल बनाएंगे, भले ही जिला प्रशासन उन्हें पहले से नियोजित जगह पर कार्यक्रम करने की अनुमति न दे.

देश की राजनीति का रुख करें तो संसद में विपक्षी दलों ने भाजपा सदस्यों की जवाबदेही को लेकर भयानक तूफ़ान खड़ा कर दिया है. संसदीय कार्यमंत्री वैंकेया नायडू ने सरकार का बचाव करते हुए कहा कि केन्द्र के साथ-साथ सभी राज्यों में भी धर्म-परिवर्तन को लेकर कानून होना चाहिए. लेकिन इसके साथ वैंकेया नायडू ने यह भी कह दिया कि उन्हें अपनी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पृष्ठभूमि पर गर्व है. इन बातों के साथ वैंकेया नायडू ने धर्म-परिवर्तन के कानून का रास्ता साफ़ तो कर दिया लेकिन उनकी बातों से कमोबेश यह भी ज़ाहिर हो रहा था कि सरकार इस मामले में कोई भी कार्यवाही करने को अभी तैयार नहीं है.

इण्डियन मुस्लिम यूनियम लीग के सांसद मोहम्मद बशीर ने भी प्रश्न पूछने के लिए नोटिस दी थी. उन्हें शून्यकाल का वक्त मिला था, लेकिन जब उनके प्रश्न पूछने की बारी आई तो सदन में भागवद्गीता को राष्ट्रीय ग्रन्थ बनाने की बात पर बहस होने लगी. धर्म-परिवर्तन से उठा मुद्दा पूरी तरह घूमकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके औचित्य पर आकर टिक गया. सदन में कोई भी प्रश्न ‘घर-वापसी’ से जुड़ा नहीं मालूम हो रहा था, सभी प्रश्न मूलतः आरएसएस को संबोधित थे. आम आदमी पार्टी के नेता भगवंत मान ने इस बाबत मौजूं सवाल उठाया कि जिन लोगों की ‘घर-वापसी’ हुई है, क्या उन लोगों के पास घर है?

मज़हब बदलने का सबसे बड़ा आधार तो गरीबी और ग़ुरबत है. एक धर्म से अन्य किसी धर्म का रास्ता अख्तियार करना कोई आसान काम नहीं है, अक़सर यह व्यक्तिगत मजबूरी और परेशानी की मद्देनज़र किया जाता है. वर्षों से चल रही पेंशन, रोजगार योजनाएं, घर-आवंटन की योजनाएं किस गर्त में जाती हैं, इसका पता तभी चलता है जब समाज का एक तबका वक्त के दरम्यान अपना गुज़र-बसर बेहद कठिनाई में करता है और इसी कमज़ोरी का फायदा राजनीति उठाती है.

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By TCN News,

लखनऊ: 12 दिसम्बर को मौलाना तारिक कासमी को आजमगढ़ के रानी की सराय से एसटीएफ द्वारा अवैध रूप से हिरासत में लिया गया था. आज उस अवैध हिरासत को सात वर्ष पूरे हो गए हैं. रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुऐब ने आज कहा कि, ‘आरडी निमेष कमीशन की रिपोर्ट में जब तारिक कासमी की गिरफ्तारी को ही संदिग्ध करार दे दिया गया है, ऐसे में प्रदेश सरकार द्वारा उस रिपोर्ट पर अमल न करना यह साफ ज़ाहिर करता है कि प्रदेश सरकार एसटीएफ-एटीएस और आईबी के अफसरों को बचाते हुए इंसाफ का कत्ल कर देने पर आमादा है.’

शुऐब ने आगे कहा, ‘प्रदेश सरकार आतंकवाद के नाम पर जेलों में कैद बेगुनाहों को रिहा करने की अपनी घोषणा से भी पीछे हट चुकी हैं.’ मोहम्मद शुऐब, जो खुद तारिक के वकील भी हैं, ने आगे कहा, ‘जेल में बंद तारिक कासमी ने अपनी अवैध गिरफ्तारी और प्रताड़ना के सात साल पूरे होने पर इंसाफ तथा जेल से रिहाई की मांग को लेकर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को एक पत्र लिखा है. इस पत्र में उन्होंने खुद को इंसाफ देते हुए दोषी पुलिस और एटीएस-एसटीएफ अफसरों पर कानूनी कारवाई की मांग की है. तारिक कासमी ने अपने पत्र में निमेष आयोग की रिपोर्ट को अमल में लाने की मांग भी है.’

तारिक कासमी द्वारा लिखे गए पत्र की स्कैन क ॉपी
तारिक कासमी द्वारा लिखे गए पत्र की स्कैन कॉपी

मोहम्मद शुऐब ने कहा कि तारिक कासमी द्वारा भेजे गए इस पत्र में आरडी निमेष कमीशन की उस रिपोर्ट का हवाला दिया गया है, जिसमें पुलिस की पूरी गिरफ्तारी पर ही सवाल उठाए गए है. उन्होंने कहा कि अगर आरडी निमेष कमीशन की रिपोर्ट पर प्रदेश सरकार ने वक्त रहते अमल कर लिया होता तो मौलाना खालिद मुजाहिद की हिरासत में हत्या नही हुई होती और उन्हें फर्जी तरीके से फंसाने वाले पुलिस अफसर आज जेलों में बंद होते. इस मामले में प्रदेश सरकार का रवैया इंसाफ के खिलाफ ही रहा है.

मोहम्मद शुऐब ने आगे कहा, ‘मौलाना खालिद मुजाहिद को पुलिस ने 16 दिसंबर को मडि़याहूं से अवैध तरीके से गिरफ्तार किया था. इस अवैध गिरफ्तारी के विरोध और इंसाफ के कातिलों पर कारवाई की मांग को लेकर 16 दिसंबर को रिहाई मंच द्वारा अवैध गिरफ्तारी विरोध दिवस मनाया जाएगा, जिसके तहत दोपहर 11:30 बजे से प्रेस क्लब लखनऊ में ‘अवैध गिरफ्तारी और इंसाफ की लड़ाई’ विषय पर एक सेमिनार का आयोजन होगा, जिसमें वरिष्ठ चिंतक मुद्राराक्षस, दिल्ली के वरिष्ठ पत्रकार प्रशान्त टंडन, साहित्यकार शिवमूर्ति तथा खालिद के चचा ज़हीर आलम फलाही बतौर वक्ता मौजूद रहेंगे.

तारीक कासमी द्वारा मुख्यमंत्री को लिखा गया पत्र :
सेवा में,
माननीय
मुख्यमंत्री जी
उ.प्र.

उचित माध्यम
श्रीमान् अधीक्षक महोदय जिला कारागार लखनऊ

विषयः STF द्वारा अपने अगवा किए जाने और झूठे और फर्जी केस लगाकर मुझ निर्दोष को जेल में निरुद्ध करके परेशान किए जाने की बरसी पर एहतिजाजी पत्र, और न्याय की गुहार

महोदय,
मुझे दिनांक 12-12-2007 को मेरे गृह जनपद आजमगढ़ के रानी की सराय चैक पोस्ट के पास से STF बनारस यूनिट के प्रभारी वीके सिंह एवं धनंजय मिश्रा और उनकी टीम द्वारा लगभग 12:30 बजे उस वक्त उठा लिया गया, जब मैं अपनी मोटर साइकिल से शेरवां सरायमीर में होने वाले धार्मिक समारोह (इज्तिमाह) की तैयारी के सिलसिले में जा रहा था मुझे गैर कानूनी हिरासत में रखकर सख्त टार्चर कर कई फर्जी केस लगा दिया गया, उप्र सरकार द्वारा निमेष कमीशन का गठन कर जांच भी करा ली गई, मगर मैं बेगुनाह होते हुए भी सात साल से जेल में निरुद्ध हूं. मुझे न्याय दिया जाए और आरडी निमेष कमीशन के सुझाव और सिफारिशों को लागू करते हुए उन्हें चिन्हित कर विधि अनुसार कार्यवाही किया जाए, जिन्होनें विधि विरुद्ध मुझे गैर कानूनी हिरासत में रख कर और झूठे अविडेन्स गढ़ कर, मुझे संगीन मुकदमों में फंसा दिया है मै अपनी न्याय प्रिय सरकार से उम्मीद रखता हुं कि सरकार अवश्य मेरे साथ न्याय करेगी और निमेष कमीशन की सिफारिशात को लागू करेगी, मुझे बाइज्जत रिहा करके असल दोषियों को गिरफ्तार कर कानूनी कार्य-वाही करेगी.

धन्यवाद.
प्रार्थी,
मुहम्मद तारिक कासमी
S/O श्री रियाज अहमद
उच्च सुरक्षा, C ब्लॉक-61
जिला कारागार लखनऊ
दिनांक- 12.12.2014


दलितों, आदिवासियों और मुस्लिमों को जेल ही दे पाया है हमारा लोकतंत्र – शिवमूर्ति

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By TCN News,

लखनऊ : रिहाई मंच के तत्वावधान में ‘अवैध गिरफ्तारी विरोध दिवस’ के तहत यूपी प्रेस क्लब लखनऊ में ‘अवैध गिरफ्तारियां और इंसाफ का संघर्ष’ विषयक सेमिनार का आयोजन किया गया.

सेमिनार को संबोधित करते हुए साहित्यकार शिवमूर्ति ने कहा, “आज जेलों में तमाम लोग 10-10 सालों से उन मामलों में बंद हैं, जिनमें अधिकतम सजा ही दो साल है. इनमें बड़ी संख्या दलितों, आदिवासियों और मुसलमानों की है. इससे साबित होता है कि पूरी व्यवस्था ही इन तबकों के खिलाफ है.” शिवमूर्ति ने आगे कहा, “सबसे शर्मनाक कि सामाजिक न्याय के नाम पर सत्ता में आई पार्टियों के शासन में भी यह सिर्फ जारी ही नहीं है बल्कि इनमें बढ़ोत्तरी ही हो रही है. खालिद का मामला इसका उदाहरण है. यह सिलसिला तभी रुकेगा जब मुसलमानों को आतंकवाद के नाम पर फंसाने और उन्हें फर्जी एंकाउंटरों में मारने वाले जेल भेजे जाएंगे जैसा कि गुजरात में देखने को मिला.”


दलितों, आदिवासियों और मुस्लिमों को जेल ही  दे पाया है हमारा लोकतंत्र – शिवमूर्ति

इस अवसर पर दिल्ली से आए वरिष्ठ पत्रकार प्रशांत टंडन ने कहा, “अवैध गिरफ्तारियों का सवाल सामान्य नहीं है. यह एक बिजनेस मॉडल है. इसका एक ग्लोबल स्ट्ररक्चर है और इसे समझने की ज़रूरत है. यह सवाल दरअसल देश के बहुसंख्यक आवाम से जुड़ा है. देश के 85 प्रतिशत लोगों की सत्ता में कोई भागीदारी नहीं है. वे कोई आवाज न उठाएं इसीलिए यह सब हथकंडे हैं.” इन गिरफ्तारियों के सामाजिक तन्त्र से रिश्ते को समझाते हुए उन्होंने कहा, “विचार तंत्र को नियंत्रित करने वाले संगठनों में अमीरों का कब्जा है. सारी लड़ाई इस लुटेरे आर्थिक तंत्र को वैधता प्रदान करने की कोशिशों से जुड़ी है. आज देश के दलित, आदिवासी और मुस्लिम समाज के लोगों का स्थान अपनी आबादी से अधिक जेलों में है. इसके लिए सिर्फ पुलिस ही नहीं बल्कि देश का राजनीतिक ढांचा भी जिम्मेदार है. पश्चिमी यूपी में जिस तरह दलितों और मुस्लिमों में सापंद्रायिक तनाव भड़काया जा रहा है ऐसे में दलितों को सोचना होगा कि जिस हिन्दुत्वादी अस्मिता के तहत वे कभी बसपा तो कभी भाजपा के साथ जाते हैं, उस राजनीति ने उन्हें क्या दिया?”

मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित सामाजिक कार्यकर्ता संदीप पाण्डेय ने इस ओर ध्यान दिलाया कि रिहाई मंच की इस लड़ाई ने सरकार पर एक दबाव बनाया और उसके बाद सरकार ने हर जिले में एक शासनादेश भेजा कि सांप्रदायिक सौहार्द्र के लिए बेगुनाह छोड़े जाएं. संदीप पाण्डेय ने कहा, “होना यह चाहिए था कि सरकार मामलों की पर्नविवेचना के बाद उनको छोडने की बात करती. इससे सरकार ने न्याय के इस सवाल को साम्प्रदायिक राजनीति के लिए इस्तेमाल करने की कोशिश की इसलिए निमेष कमीशन की रिपोर्ट पर अमल कराने के लिए संघर्ष जारी रखना होगा.”

रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुऐब ने कहा कि हम आतंकवादियों को छुड़ाने की बात नहीं करते बल्कि बेगुनाहों को छोड़ने की बात करते हैं. सरकार ने वादा किया था कि वह इन नौजवानों को छोड़ेगी और उनका पुर्नवास करेगी लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. अभी भी कई बरी लोग पुर्नवास की बाट जोह रहे हैं. रामपुर के जावेद उर्फ गुड्डू, ताज मोहम्मद, मकसूद बिजनौर के नासिर हुसैन और लखनऊ के मोहम्मद कलीम जैसे बेगुनाह बरी होने के बावजूद किसी भी तरह के पुर्नवास से वंचित है. शुऐब ने कहा, “पिछले दिनों बाराबंकी पुलिस द्वारा खालिद मुजहिद की हत्या पर की गई झूठी विवेचना को खारिज करते हुए न्यायालय ने इस मामले की जांच बाराबंकी एसपी को पुनः कराने का निर्देश दिया था. आज खालिद के चचा जहीर आलम फलाही ने उन्हें बताया कि आज उसे दरोगा ने उन्हें फोन किया था कि वे आकर अपनी गवाही दें. दोषपूर्ण विवेचक द्वारा पुनः विवेचना कराना न सिर्फ न्यायालय की अवमानना है, इससे यह भी साबित होता है कि यूपी की सपा सरकार किसी भी हाल में खालिद के हत्यारोपी पुलिस अधिकारी विक्रम सिंह, बृजलाल, मनोज कुमार झा व अन्य आईबी व पुलिस अधिकारियों को हर कीमत पर बचाना चाहती है. जिससे कि आतंकवाद के मामलों में पुलिस व आईबी के गठजोड़ से पर्दा न उठ सके.”

मौलाना खालिद मुजाहिद के चचेरे भाई शाहिद ने कहा, “पूरी दुनिया जानती है कि मेरे भाई को गलत तरीके से उठाया गया. निमेष रिपोर्ट भी इसकी तस्दीक करती है. लेकिन बावजूद इसके, उन्हें पांच साल तक जेल में रखा गया और आखिर में मार डाला गया. मुझे पूरा यकीन है कि इंसाफ के इस संघर्ष के कारण उनके हत्यारे जरूर जेल जाएंगे. सपा सरकार उनको बहुत दिनों तक बचा नहीं पाएगी.”

सामाजिक न्याय मंच के अध्यक्ष राघवेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा, “सवाल केवल खालिद की अवैध गिरफ्तारी का नहीं है, अवैध गिरफ्तारियां आज भी लगातार जारी हैं और व्यवस्था के लिए उनके अपने निहितार्थ हैं. ऐसी अवैध गिरफ्तारियां सत्ता को अपनी हुकूमत बचाए रखने के लिए जरूरी हैं ताकि आम जनता डरकर उनके खिलाफ़ आवाजें उठाना बंद कर दे.”

ट्रेड यूनियन नेता शिवाजी राय ने कहा कि पूंजीवाद के चरित्र में इस किस्म के अपराध होते हैं. यह सब इस व्यवस्था का अंग है. एपवा की नेता ताहिरा हसन ने कहा कि यदि खालिद बेगुनाह है तो फिर उस प्रताड़ना का जवाब कौन देगा जो उसे और उसके परिवार को मिली हैं.

कार्यक्रम में 6 सूत्रीय प्रस्ताव पारित किए गए –

1- मौलाना खालिद मुजाहिद की हत्या की विवेचना को प्रभावित करने वाले हत्यारोपी पुलिस अधिकारियों विक्रम सिंह, बृजलाल, मनोज कुमार झा, चिरंजीव नाथ सिन्हा आदि को तत्काल गिरफ्तार किया जाए.

2- अपने चुनावी वादे के मुताबिक सपा सरकार आतंकवाद के आरोपों से अदालतों से दोष मुक्त हुए मुस्लिम युवकों का पुर्नवास सुनिश्चित करे.

3- आतंकवाद के नाम पर कैद निर्दोषों को तत्काल रिहा किया जाए.

4- सपा सरकार अपने वादे के मुताबिक आरडी निमेष कमीशन की रिपोर्ट पर तत्काल अमल करे.

5- ‘लव जिहाद’ और ‘घर वापसी’ के नाम पर सांप्रदायिकता फैलाने वाले हिन्दुत्वादी संगठनों आरएसएस, बजरंग दल, विश्व हिन्दू परिषद सरीखे संगठनों पर तत्काल प्रतिबंध लगाते हुए उनके दोषी नेताओं को गिरफ्तार किया जाए.

6- आतंकवाद के नाम पर हुई घटनाओं की न्यायिक जांच कराई जाए, जिसके दायरे में खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों का लाया जाए.

अलीगढ़ में अभियान थमना और ‘घर-वापसी’ की रस्साकशी

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By सिद्धान्त मोहन, TwoCircles.net,

आगरा/अलीगढ़: “धर्मान्तरण अपराध है, ‘घर-वापसी’ नहीं”, यह कहना था भाजपा के सांसद योगी आदित्यनाथ का, जब वे किसी चुनावी मजलिस को संबोधित कर रहे थे. योगी आदित्यनाथ के इस बयान के कई अर्थ समझ में आते हैं. पिछले हफ़्ते उठे धर्मांतरण के बवाल के बाद जनता और विपक्ष सरकार से इस मामले पर जवाब मांग रही थी. नयी-नवेली सरकार से यह अपेक्षा भी की जा रही थी कि वह इस मामले में एक मजबूत पक्ष रखकर दोषियों पर उचित कार्रवाई करेगी.

सरकार और सदन में इस बात पर सहमति बनी कि धर्मांतरण के खिलाफ़ कानून बनाया जाएगा. हां, भारतीय समाज धर्मांतरण के लिए कानून की प्रतीक्षा कर रहा है. लेकिन जानकार कहते हैं कि सरकार आगरा धर्मान्तरण मामले में कोई भी कानूनी कार्रवाई करने से बच रही है, इसलिए वह ‘कानून बनाने’ का चोगा जनता और मीडिया के सामने रख दे रही है.



पुलिस की गिरफ्त में नन्द किशोर वाल्मीकि (साभार - जागरण)

बात सही भी है, यदि पूर्ण बहुमत से आई सरकार किसी ज्वलंत मुद्दे पर कार्रवाई करने से बचे तो उसके कई अर्थ निकलते नज़र आते हैं. यह तब और भी साफ़ हो जाता है जब भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आपसी रिश्ते स्पष्ट हों, और तब तो और भी जब लोकसभा स्पीकर सदन में आरएसएस को मुद्दा न बनाए जाने की बात करें और वैंकेया नायडू यह कहें कि मुझे अपने संघी होने पर गर्व है.

अभी तक की तो खबर यह है कि धर्म जागरण समिति, जिसने अलीगढ में एक बड़े पैमाने पर आगामी क्रिसमस को ‘घर-वापसी’ का कार्यक्रम तय किया था, ने घोषणा कर दी है कि यह कार्यक्रम रद्द कर दिया गया है. समिति के संयोजक बृजेश कंटक और जिला समन्वयक सत्य प्रकाश ने मीडिया को यह जानकारी दी. आगरा के जिलाधिकारी अभिषेक प्रकाश ने समिति के इस फैसले का स्वागत किया और कहा कि सवाल कार्यक्रम होने देने या न होने देने का है ही नहीं. यदि निजी स्तर पर भी कार्यक्रम किया जाता, उस हाल में भी हम इसे नहीं होने देते.

ज्ञात हो भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ ने भी इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए सहमति जताई थी. अलीगढ़ में कार्यक्रम के मद्देनज़र बंट रहे कार्डों और पर्चों में भी हर जगह बतौर मुख्य अतिथि योगी आदित्यनाथ का नाम लिखा है. अब इस मोड़ पर पहुंचने के बाद कार्यक्रम रद्द हो जाने के कई मानी हैं.

पहले तो यही बात अनिश्चित है कि क्या धर्म जागरण समिति ने कार्यक्रम रद्द किया है या उसे टाल दिया गया है? सूत्रों की मानें तो संघ के ऊपरी पंक्ति के दखल के बाद इस कार्यक्रम को स्थगित किया गया है, क्योंकि यह कार्यक्रम सरकार के गले की फांस बनता जा रहा था. लेकिन इन बातों के साथ यह भी सम्भावना ज़ोर पर है कि ऐन वक्त पर धर्मान्तरण सम्बन्धी दल पलटी मारकर कार्यक्रम को अंजाम दे सकते हैं.

अलीगढ़ में अब स्थगित हो चुके कार्यक्रम को लेकर एक बड़े स्तर की तैयारी चल रही थी. सूत्रों के मुताबिक धर्मांतरण के लिए एक मुख्य दल का गठन किया गया था. इस मुख्य दल के अलावा कई सहायक दलों का भी गठन किया गया था, ताकि धर्मांतरण के कार्यक्रम के मद्देनज़र यदि मुख्य दल किसी कानूनी कार्रवाई का शिकार हो जाता है तो सहायक दल उसकी जगह ले सकें. अलीगढ़ में कुछेक रोज़ पहले विहिप और संघ के नेताओं की बैठक भी हुई थी, जिसमें उन्होंने इस कार्यक्रम के दौरान उठ सकने वाली बाधाओं को पार करने पर बातचीत हुई थी.

लोगों को जुटाने के लिए ईसाईयों और मुस्लिमों को काम पर लगाया जा रहा था और संघ व बजरंग दल के कार्यकर्ता भी ज़मीनी स्तर पर लोगों के घर-घर जाकर उनसे मिल रहे थे. अपुष्ट खबर यह भी थी कि अलीगढ़ में इन नेताओं ने गोपनीय स्तर पर कई मीटिंग की थीं, जिनका प्रमुख एजेंडा मुहिम को सफल बनाने का था.

अब यह कार्यक्रम ठन्डे बस्ते में है, लेकिन सम्भावना अभी भी बनी हुई है इसलिए अलीगढ़ प्रशासन में व्यवस्था में कोई भी ढिलाई नहीं दी है और नगर में अभी भी निषेधाज्ञा लागू है.

आगरा ‘घर वापसी’ मामले में सदर थाने में दर्ज एफआईआर के अंतर्गत पुलिस ने मुख्य आरोपी नन्द किशोर वाल्मीकि को गिरफ़्तार कर लिया. ज्ञात हो नन्द किशोर एफआईआर दर्ज होने के बाद से ही फरार चल रहा था. 8 पुलिस टीमें कोर्ट के गैर-जमानती वारंट के साथ उसे लगभग पूरे ब्रज प्रांत में ढूंढ रही थी.

वाल्मीकि को ढूंढने के लिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लगभग हरेक प्रमुख हिंदूवादी नेता के घर पुलिस और खुफिया विभाग की ओर से दबिश भी दी गयी थी, जिसका संघ ने पुरज़ोर विरोध भी किया था. ‘घर-वापसी’ को लेकर उठे बवाल और सरकार के घेराव को धता बताने की नीयत से संघ, बजरंग दल, भाजयुमो, विहिप, हिन्दू जागरण मंच, संस्कार भारती, अभाविप के साथ-साथ भाजपा सदस्यों ने भी प्रदर्शन किया. वाल्मीकि पर 12 हज़ार रुपयों का इनाम भी रखा गया था. सदर थाने में वाल्मीकि पर 153 (बी), 415 और 417 के तहत प्राथमिकी दर्ज की गयी थी. पुलिस से बचने के लिए वाल्मीकि कासगंज, एटा, अलीगढ़ और आगरा जैसे इलाकों में शरण ले रहा था.

एसएसपी शलभ माथुर ने बताया कि वाल्मीकि के खिलाफ़ पहले भी आगरा के कई थानों में मुक़दमे दर्ज़ किए गए हैं. 2001 में वाल्मीकि के खिलाफ़ शराब तस्करी का मामला, 2002 में गैंगस्टर एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया गया. 2012 में वाल्मीकि ने पार्षद का चुनाव लड़ा लेकिन वह असफल हुआ. इस मामले में रोचक पहलू यह भी है कि ‘ऑन कैमरा’ दिख रहे बजरंग दल और संघ सदस्यों के खिलाफ़ अभी तक कोई भी कार्रवाई नहीं की गयी है. सूत्रों के मुताबिक वाल्मीकि ‘आसान शिकार’ है.

मनमोहन सिंह सरकार के बहाने ‘हनीमून’ पीरियड का राग अलापकर मौजूदा केन्द्र सरकार ने एक मुक़म्मिल वक्त अपने लिए सुरक्षित करने का प्रयास तो किया, लेकिन वह उसमें बेतरह नाकाम साबित हुई. केन्द्र सरकार, जो व्लादिमीर पुतिन और अन्य योजनाओं में लिप्त है, ने इस मामले में बयानी खानापूरिई तो की ही, साथ ही सरकार ने अपने मंत्रियों को सलाहियत भी दे दी कि आपने कुछ गलत नहीं किया है, आपको बचाव करने की कोई ज़रूरत नहीं है.



(Courtesy: The Hindu)

प्रश्न उठता है कि ‘गलत नहीं किया है’ का मतलब साफ़ अर्थों में क्या समझा जाए. सरकार और मंत्रियों ने पहले तो इस कार्यक्रम में भाजपा की संलिप्तता से इनकार कर दिया, लेकिन जब योगी आदित्यनाथ ने अपनी भाषा में बात रखनी शुरू की तो यह सम्बन्ध और संलिप्तता साफ़ हो गयी. कांग्रेस नेता शशि थरूर ने तो सदन में यहा सवाल तक उठा दिया कि प्रधानमंत्री की घर-वापसी कब होगी? दरअसल विपक्ष इस मामले में लगातार प्रधानमंत्री की जवाबदेही पर अड़ा हुआ है, संसद के दोनों सदनों में भाजपा के अन्य नेताओं ने जवाबदेही के तुष्टिकरण का काम किया है, लेकिन यह अभी तक अधूरा प्रयास ही है.

यह मामला इतना पेचीदा है कि सरकार की जवाबदेही और असल दोषियों पर कार्रवाई की ज़रूरत लगातार बनी हुई है. चाहे मुद्दा ‘धर्मांतरण’ का हो या ‘घर-वापसी’ का, यह प्रैक्टिस अपनी मर्ज़ी की पसंद का है. इसे थोपा नहीं जा सकता है, न ही इसके लिए लुभाया जा सकता है.

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“हमें सकारात्मक प्रयास करने होंगे” – कबीर पीस सेंटर एंड सेंटर फॉर हार्मोनी

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By TCN News,

वाराणसी : अल्पसंख्यकों के अधिकारों की पैरवी करने और उनके हक़ में खड़े होने की क़वायद को और मजबूत करने की नीयत से कल बनारस में एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया.

“पूरी दुनिया में आज अल्पसंख्यकों के अधिकारों एवं उनकी संस्कृति को दोयम दर्जे का समझने का चलन होता जा रहा है. उनके साथ न केवल भेद-भाव हो रहा है बल्कि जुल्म, ज़्यादती एवं मानवाधिकार हनन के मामले भी बढ़ते जा रहे हैं. हिन्दुस्तान बहुलतावादी संस्कृति का देश रहा है और इस देश ने वसुधैव कुटुम्बकम की परिभाषा में विश्वास किया है. लेकिन आज एकल संस्कृति तथा एकल धर्म अल्पसंख्यकों पर थोपा जा रहा है, जिससे हमारे संवैधानिक तथा धर्मनिरपेक्ष मूल्यों पर खतरा निरंतर बढ़ता जा रहा है. यदि समय रहते हम सचेत नहीं हुए तो अतिवादी ताकतें प्रजातंत्र के अस्तित्व के लिए खतरा बन जायेंगी. हमें इन प्रयासों को विफल करने के लिए सकारात्मक प्रयास करने होंगे.”

ये बातें कबीर पीस सेंटर एवं सेंटर फॉर हारमोनी एण्ड पीस द्वारा बड़ालालपुर में आयोजित संगोष्ठी में वक्ताओं द्वारा उठकर आईं.

ज़हीर अहमद ने कहा, “दुनिया भर में अल्पसंख्यकों ने, विशेषकर भारत में, अपने हुनर से मुल्क को सजाया-संवारा तथा इसके विकास में बहुमूल्य योगदान दिया पर आज उनका आर्थिक, सामाजिक एवं शैक्षिक स्तर निम्न है. इसमें सरकार तथा सरकार में बैठे हुए लोगों द्वारा उनके साथ किया जा रहा सौतेला व्यवहार महत्वपूर्ण कारक है.”

नाहिदा ने कहा कि अल्पसंख्यकों को अपनी राह के रोड़ों को खुद दूर करना होगा तथा शिक्षा ग्रहण कर सरकारी तथा गैर-सरकारी योजनाओं में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी. आपसी एकता को ज़रिया बनाकर सरकार पर दबाव भी बनाने की ज़रूरत है.

नाहिदा ने आगे कहा, “हमें ऐसे प्रतिनिधियों का चुनाव करना होगा जो जाति व धर्म से ऊपर उठकर सभी के विकास एवं समृद्धि की बात कर सकें, ना कि वर्ग एवं धर्म विशेष की.”

संगोष्ठी का संचालन डॉ. मोहम्मद आरिफ व धन्यवाद ज्ञापन मो. खालिद ने किया. संगोष्ठी में पेशावर में आतंकी घटना में मारे गए बच्चों के लिए दो मिनट का मौन रखा गया तथा इस तरह के घृणित आतंकी घटना की निंदा भी की गई.

ईसाई और मुस्लिम युद्ध के सबसे बड़े कारण हैं – अशोक सिंघल

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By TwoCircles.net staff reporter,

नई दिल्ली: अलीगढ़ में होने वाले ‘घर-वापसी’ कार्यक्रम के रुकने के बाद धर्मांतरण को लेकर मचा बवाल अभी भी थमने का नाम नहीं ले रहा है. अब विश्व हिन्दू परिषद् के नेता अशोक सिंघल ने ऐसा बयान दे दिया है, जो संभवतः एक बड़े विवाद को जन्म दे सकता है.

विहिप के अध्यक्ष अशोक सिंघल ने अपने ताज़ा बयान में कहा है कि, ‘ईसाईयों और मुस्लिमों के कारण ही दुनिया में युद्ध हो रहे हैं. जब उत्तर भारत का माहौल तनावग्रस्त हो, ऐसे मौकों पर इन बयानों से सामाजिक संतुलन बिगड़ने के आसार बने रहते हैं.’



अशोक सिंघल (TCN file photo)

मीडिया से बातचीत के दौरान अशोक सिंघल ने कहा कि, ‘हम धर्म-परिवर्तन करने नहीं, ह्रदय परिवर्तन करने निकले हैं. हम लोगों का दिल जीतने निकले हैं. हिन्दू धर्म का स्वभाव शान्ति का है.’ उन्होंने आगे कहा कि हिन्दू धर्म विश्व शान्ति का पक्षधर है. हमारा मकसद लोगों का धर्म-परिवर्तन करवाना कभी नहीं रहा है.

घर-वापसी के सन्दर्भ में सिंघल ने कहा है कि, ‘घर-वापसी का मतलब लोगों को उनके पूर्वजों से परिचित कराना है. हम हिंदुत्व की रखा के लिए कटिबद्ध हैं. हमें विश्वयुद्ध का खिलाड़ी न समझा जाए. दुनिया इस समय विश्वयुद्ध की कगार पर खड़ी है. हालात ऐसे बन रहे हैं कि जैसे मानो विश्वयुद्ध सामने हो. इस समय समूचा विश्व इस्लामिक आतंक के साए में है.’

एक कदम आगे जाते हुए उन्होंने कहा कि अभी तक धर्म और संस्कृति सरकार के गुलाम बने हुए थे लेकिन अब हिन्दू धर्म की रक्षा करने वाली सरकार आ गयी है.

इससे पहले संघ प्रमुख मोहन भागवत ने धर्म-परिवर्तन के लिए कहा था कि हमारा संगठन भूले-भटके हुए लोगों को वापिस लेकर आएगा. कोलकाता में विहिप के सम्मेलन में बोलते हुए संघ प्रमुख ने कहा था कि अब देखते ही देखते हिन्दू राष्ट्र के निर्माण का सपना पूरा हो जाएगा, इसमें अब ज़्यादा देर नहीं है. हिन्दू समाज अब जाग गया है और अब उसे किसी से भी डरने की ज़रूरत नहीं है.

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सरकार का सिरदर्द बना ‘घर-वापसी’ का टोटका

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By TwoCircles.net Staff reporter,

नई दिल्ली: घर-वापसी, जिसे हिन्दू दक्षिणपंथी दल धर्म-परिवर्तन कहने से बच रहे हैं, अब सरकार के लिए दोमुंहे सांप सरीखा बनता जा रहा है. एक ओर जहां भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने विपक्षी ‘सेकुलर’ दलों को धर्म-परिवर्तन कानून के खिलाफ़ करार दिया था, वहीं वे यह स्पष्ट कर पाने में असमर्थ रहे कि भाजपा ‘घर-वापसी’ को धर्म-परिवर्तन मानती है या नहीं.

जैसे-जैसे भाजपा के हाथ से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और विश्व हिन्दू परिषद् की लगाम छूटती जा रही है, वैसे-वैसे भाजपा और ज़्यादा गहरे में समाती नज़र आ रही है. संघ, विहिप और भाजपा के प्रमुखों के बयानों से यह तो साफ़ होता ही जा रहा है कि वे धर्म-परिवर्तन के लिए ‘कानून’ के लिए सरकार तत्पर है, लेकिन साथ में यह भी साफ़ होना ज़रूरी है कि सरकार ‘घर-वापसी’ को धर्म-परिवर्तन मानती है या नहीं.



(Courtesy: hindi.oneindia.com)

अमित शाह जिस समय धर्म-परिवर्तन कानून की पैरवी कर रहे थे, उस समय उनसे घर-वापसी को लेकर प्रश्न किया गया तो उन्होंने या कहकर प्रश्न को टाल दिया कि, ‘मामला अदालत में है, मैं इस पर कोई भी टिप्पणी नहीं करना चाहूंगा.’ उन्होंने यह कहा कि भाजपा ने धर्मांतरण पर अपना रुख साफ़ कर दिया है. कुछ लोग पार्टी को विकास के एजेंडे से भटकाने की तैयारी में हैं, लेकिन पार्टी या सरकार को उसके एजेंडे से कोई भटका नहीं सकता.

भाजपा के करीबी माने जाने वाले संगठन विश्व हिन्दू परिषद् के नेता प्रवीण तोगड़िया ने अपने ताज़े बयान में कह दिया है कि हम जल्द ही देश में हिन्दुओं को 82 प्रतिशत से 100 प्रतिशत तक ले जायेंगे. भोपाल में रैली को संबोधित करते हुए तोगड़िया ने कहा कि, ‘मुसलमानों को हज करने के लिए 22,000 रुपयों की सब्सिडी मिलती है, आप लोगों को महाकाल के दर्शन करने के लिए कितनी सब्सिडी मिलती है? क्या है आपकी औकात? शून्य.’

तोगड़िया ने यह भी कहा कि, ‘इस समय दुनिया में हिन्दुओं की आबादी 700 करोड़ होनी चाहिए थी, लेकिन अभी सिर्फ़ 100 करोड़ है. हमें विश्व को फ़िर से हिन्दू राष्ट्र बनाना होगा.’ विहिप के सचिव और संघ के पूर्व प्रचारक दिनेश गुप्ता ने कहा कि, हम हिन्दू हैं, हिन्दुस्तान हमारा है. हम यहां के मालिक़ हैं.’

इसके पहले संघ प्रमुख मोहन भागवत ने भी भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने और सभी को हिन्दू बनाने का बयान दिया था, जिससे गुबार और ज़्यादा बड़ा हो गया था.

संसद में फजीहत

इधर संसद का शीतकालीन सत्र खत्म होने की कगार पर है और उधर केन्द्र सरकार धर्मांतरण के मुद्दे पर एक चुप तो हज़ार चुप साधे बैठी है. विपक्षी दलों ने सरकार को आड़े हाथों ले लिया है. सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने जहां नरेन्द्र मोदी को वादाखिलाफ़ी करने, काले-धन के वादे से भटकने और ‘घर-वापसी’ पर बयान न देने का आरोप लगाया, वहीं तृणमूल के सांसद डेरेक ओ’ब्रायन ने मोदी पर यह ताना कस दिया कि सदन में आने के लिए छप्पन इंच का सीना नहीं, चार इंच का दिल चाहिए. सीताराम येचुरी ने मोहन भागवत के बयान पर चर्चा कराने का आग्रह सदन से किया है.

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पेशावर

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Went to school, never came back(Courtesy: thenewstribe.com)

डॉक्टर नदीम ज़फर जिलानी, मेनचेस्टर, इंगलैंड

चलो अब दफ़्न करते हैं,
हंसी को, मुस्कराहट को,
शरारत, गुदगुदी को,
क़हक़हों को, खिलखिलाहट को,
किताबों से भरा बस्ता लिए
क़दमों की आहट को
चलो अब दफ़्न करते हैं,
वोह नन्हीं कोंपलें,
ग़ुंचे अभी जो खिल नहीं पाए,
हवा के बे रहम हाथों ने
जिन को नोच डाला है!
गुलों की पाएमाली का यह मंज़र कौन पूछे
किस शुजा’अत का हवाला है?
चलो अब दफ़्न करते हैं,
चिरागों को, दियों को,
रौशनी की हर अलामत को
ख़ता, मासूमियत,
जुर्म’ओ सज़ा
हुक्मे शरीयत को
कि इस नफरत गज़ीदा शहर में
लफ्ज़-ए -मुहब्बत को!
चलो अब दफ़्न करते हैं!!

घर वापसी

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इरतक़ा* समझा जिसे, ज़िल्लत का एक सामान है,
बाप-दादा का तरीक़ा ही तेरी पहचान है,
अब ज़रूरी है के हो घर वापसी ‘इंसान’ की,
बंदरों ने एक जलसे में किया एलान है!!

‘डार्विन’ कहता है सच, हैं पूर्वज हम ही तेरे,
जाने क्यों अपनों से फिर तू हो के बेगाना फिरे,
अशरफ-ए-मख़लूक़**, होने का ये सौदा छोड़ कर,
लौट आ जंगल के सबज़ह-ज़ार में ओ सरफिरे!

सुन के अब बेताब हैं आंसू निकलने के लिए,
‘ज़ुल्म’ जो तूने सहे ‘इंसान’ बनने के लिए,
तू दरख़्तों पर छलाँगें मर सकता था कभी,
आज है मजबूर दो टाँगों पे चलने के लिए!!

दुम कटाई, और खोए तन, बदन के बाल सब,
बंदरों की नस्ल की इज़्ज़त हुई पामाल सब,
बोलियाँ, कपड़े तेरे, तहज़ीब का जंजाल सब,
मिल गई मिट्टी में अपनी ‘अस्मिता’, इक़बाल सब!

बात से समझे तो क्यों जीना करें तुझ पे हराम?
लौट आ जंगल में ‘अपना राज है’ अपना निज़ाम,
हाशिए पर आज तक तारीख़ ने रख्खा जिन्हें,
हम दिलाएंगे हर एक “लँगूर” को उसका मुक़ाम!

आदमी बन कर कहाँ फिरता है ओ शरणार्थी,
फिर से तू बन्दर बने तो यह हुई “घर-वापसी”

(डॉक्टर नदीम ज़फर जिलानी, मेनचेस्टर, इंग्लैंड)

* Evolution
** Highest of creations

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TCN launches an internship program

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By TCN News

Come learn about exciting world of online journalism. TwoCircles.net (TCN) is a US-based non-profit news organization working on unreported stories of the marginalized communities.

TwoCircles.net invites application for a 6-month internship program. You will learn about reporting and writing news stories by experienced TCN staff.

Duration: 6 months

Language: Hindi or English

Requirement: Must be a resident of a non-capital city of India. Prior experience is not needed.

Send: A copy of your Resume to info@twocircles.net along with about 300-words article describing what you want to report about your region. Subject line of the email should say “Internship.”

Compensation: Rs. 5000/month depending on the need and availability of funds (TCN invites individuals to sponsor interns).

Last date: Jan 15, 2014.

Internship will begin: Feb 1, 2015.

Process: selection of candidates will be based on Resume, writing samples, and phone or online interview.

घर-वापसी पर कट्टरपंथी नेताओं के ज़ुबानी हमले तेज़

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By TwoCircles.Net Staff reporter,

हैदराबाद: भाजपा के सत्ता में आने के बाद घर्म-परिवर्तन और ‘घर-वापसी’ की घटनाओं में जो बढ़ोतरी हो रही है, उसे रोकने में कोई भी ‘विकास’ होता नहीं दिख रहा है. एक तरफ़ जहां सरकार संसद के दोनों सदनों में बुरी तरह घिरी हुई है, वहीं भाजपा के सहयोगी कट्टरपंथी दल किसी भी किस्म के गैर-जिम्मेदाराना और भड़काऊ बयान देने से बाज़ नहीं आ रहे हैं.

अशोक सिंघल, भागवत, आदित्यनाथ के बाद विश्व हिन्दू परिषद् महासचिव प्रवीण तोगड़िया ने भी धर्मांतरण पर अपना रुख स्पष्ट कर दिया है. विहिप के महासचिव प्रवीण तोगड़िया ने कहा है कि रोक धर्मांतरण पर लगानी चाहिए, ‘घर-वापसी’ पर नहीं.



प्रवीण तोगड़िया(Courtesy: livemint.com)

विहिप के केन्द्रीय बोर्ड की बैठक के बाबत प्रवीण तोगड़िया ने कहा, ‘हिंदुत्व जीवन जीने का एक तरीका है और इस तरीके को अपनाने वालों को गले लगाने के लिए तैयार हैं.’

इसके बाद वापिस विकास का राग अलापते हुए प्रवीण तोगड़िया ने ‘घर-वापसी’ को विकास में सहायक करार दे दिया. उनके मुताबिक़ विहिप के न्यासी बोर्ड ने कहा है कि धर्मांतरण व्यक्ति को राष्ट्रीय धारा से अलग कर देता है, जबकि ‘घर-वापसी’ उसे वापिस धारा में लाता है.

विहिप नेता ने दावा किया कि गैर-भाजपा सरकारों की ओर से गठित तीन आयोगों ने कहा है कि धर्मांतरण से घृणा फैलती है और यहां तक कि महात्मा गांधी ने भी ईसाई बनाए जाने के खिलाफ़ अपनी राय रखी थी.

देखने की बात है कि जहां एक तरफ़ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी संसद में कोई भी बयान नहीं देते हैं, अमित शाह यह कहकर सवाल टाल जाते हैं कि मामला अदालत में है और विपक्ष पर आरोप लगाए जाते हैं कि विकास के मुद्दे से ध्यान भटकाने के प्रयास हो रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ़ भाजपा अपने बौद्धिक और सामाजिक सहयोगी संस्थाओं पर कोई रोक लगा पाने में कैसे नाक़ाम है.

यह बात भी ध्यान देने की है कि भाजपा उर सहयोगी दलोंने अभी तक यह स्पष्ट नहीं किया है कि क्या वे घर-वापसी और धर्मांतरण को एक कटघरे में रखते हैं या नहीं?

वैंकेया नायडू ने सदन में यह कह दिया है कि उन्हें अपने संघी होने पर गर्व है और अरुण जेटली ने यह कहा कि अब लगता है विपक्ष तय करेगा कि सदन की कार्यवाही कैसे होगी. नवजात सरकार धर्म-सम्बन्धी मामलों से घिरती नज़र आ रही है. सरकार से लगातार अपेक्षा की जा रही है कि वह इन हिंदूवादी तत्वों के खिलाफ़ सख्ती से खादी होगी लेकिन अभी का वक्त देखकर लगता है कि दिल्ली दूर है.

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पीएमओ के इशारे पर अमित शाह को मिली क्लीन चिट - रिहाई मंच

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By TCN News,

लखनऊ: रिहाई मंच ने सीबीआई अदालत द्वारा भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को क्लीन चिट देने पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए पीएमओ पर सीबीआई को नियंत्रित करने का आरोप लगाया है. रिहाई मंच ने अपने आरोप में कहा है कि जिस पीएमओ अजित डोभाल और नृपेन्द्र मिश्रा जैसे अधिकारियों के सहारे लोकतंत्र और इन्साफ का गला घोंट रही है. अजित डोभाल और नृपेन्द्र मिश्रा जैसे अधिकारी इशरत जहां फर्जी मुठभेड़ जैसे मामलों में लगातार मोदी और उनके कुनबे को बचाने की हर संभव कोशिश करते रहे हैं.

रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुऐब ने कहा कि सीबीआई ने सोहराबुद्दीन मामले में अमित शाह को मुख्य अभियुक्त बनाया था, साथ ही साथ गुजरात में हो रही तमाम फिरौतियों की वसूली के गिरोहों का अमित शाह को सरगना बताया है. इसके बावजूद अमित शाह को आरोपों को बरी करने से सीबीआई की गंभीरता का अंदाज़ लगाया जा सकता है.



(Courtesy: NDTV)

शुऐब ने आगे कहा कि जहां अमित शाह के वकील ने उनके पक्ष में तीन दिन बहस की, वहीं सीबीआई के वकील ने महज़ पन्द्रह मिनट में अपना पक्ष रख दिया. इशरत जहां मामले में भी जो पुलिस वाले अभियुक्त हैं, उन्होंने भी स्वीकारा है कि काली दाढ़ी और सफेद दाढ़ी के कहने पर वे काम कर रहे थे. पूरा देश जानता है काली दाढ़ी व सफेद दाढ़ी का मतलब क्या है? वंजारा ने भी अपने पत्र में यह लिखा है कि गुजरात में हो रहे तमाम फर्जी मुठभेड़ों में राजनीतिक नेतृत्व की संलिप्तता रही है.

गौरतलब है कि गुजरात में मंत्री रहे हरेन पांड्या की हत्या में भी गुजरात का राजनीतिक नेतृत्व शामिल था. उनकी पत्नी जागृति पांड्या इस पूरे मामले की सीबीआई जांच की मांग करती रही हैं, लेकिन कोई सीबीआई जांच नहीं हो रही है. सत्ता में आते ही अमित शाह के वकील रहे यू. ललित को सुप्रीम कोर्ट का जज बनाने की भी अनुशंसा की गई थी जबकि वरीयता क्रम में वह गोपाल सुब्रमणियम से नीचे थे.

उन्होंने कहा कि केन्द्र में भाजपा सरकार आने के बाद जिस तरीके से शाह को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया, उससे यह साफ़ हो गया कि भाजपा शाह जैसे सांप्रदायिक और आपराधिक प्रवृत्ति वाले व्यक्ति की अगुवाई में राजनीति को आगे बढ़ाएगी. ऐसे में सोहराबुद्दीन मामले में क्लीन चिट ने साफ कर दिया कि वह इंसाफ के कत्ल के लिए किसी भी स्तर तक जा सकती है.

रिहाई मंच के नेता राघवेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा कि जिस तरह से पिछले दिनों राजस्थान में सुशील चौधरी ने इंडियन मुजाहिदीन के नाम पर 16 मंत्रियों के नाम धमकी भरा मेल भेजा, उसके बाद जिस तरह से उसे एटीएस ने क्लीन चिट दी, वह आतंकवाद के नाम पर देश की संप्रभुता के साथ सुरक्षा एंजेंसियों द्वारा किया जा रहा क्रूर मजाक है. ठीक इसी तरह बंगलुरू धमाके के बाद भी एक हिंदू लड़के ने कथित मुस्लिम पहचान के नाम से फर्जी ट्वीटर एकाउंट बनाकर आईएसआईएस के नाम पर संदेश प्रसारित किया. इसके बाद उसके परिजन उसे मंदबुद्धि का कह रहे हैं. ठीक इसी तरह पिछले दिनों मध्य प्रदेश में भी आतंकवाद के झूठे मेल मुस्लिम पहचान के साथ भेजने के प्रकरण सामने आए हैं. जिसे भाजपा नीति सरकारों में जांच के दायरे से सोच समझकर बाहर किया जा रहा है, जो साफ करता है कि इन मेलों में कुछ राज हैं जिनकी आतंकवाद जैसे गंभीर मामलों में जांच होनी ही चाहिए.

रिहाई मंच के नेता अनिल यादव ने आरोप लगाया कि भाजपा शासित मध्य प्रदेश की जेलों में आतंकवाद के नाम पर बंद मुस्लिम युवकों के परिजन जब उनसे मिलने जाते हैं तो उन्हें न सिर्फ मिलने से रोकने के लिए परेशान किया जाता है बल्कि उनकी धार्मिक आस्थाओं को भी ठेस पहुंचाने की भरसक कोशिश की जाती है.

‘नीति आयोग’ में बदलेगा योजना आयोग

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By TwoCircles.Net staff reporter,

नई दिल्ली: स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री द्वारा योजना आयोग को भंग करने का ऐलान अब रूप लेता दिख रहा है. भारत सरकार के अंतर्गत गठित इस आयोग का नाम ‘नीति आयोग’ करने की योजना है.



(Courtesy: dwarikagroup.com)

ज्ञात हो कि मोदी ने कहा था कि अब योजना आयोग की प्रासंगिकता समाप्त हो गयी है. योजना आयोग को खत्म करने का प्रयास नेहरू सरकार द्वारा चलाए गए कार्यक्रमों को खत्म करने के प्रयास के तहत देखा जा सकता है. प्रधानमंत्री ने यह भी कहा था कि योजना आयोग की जगह पर जो नई संस्था बनाई जाएगी, वह मौजूदा समकालीन आर्थिक वैश्विक ढाँचे के मनोकूल हो.

1950 में जब योजना आयोग की नींव रखी गयी, तब से लेकर आज तक आयोग अपने 65 वर्षों के इतिहास में 12 पंचवर्षीय योजनाओं और 6 सालाना योजनाओं के लिए प्रमुखता से जाना जाता है. इन सभी योजनाओं की कुल लागत 200 लाख करोड़ से भी ऊपर की मानी जाती है.

मुख्यमंत्रियों और प्रधानमंत्री के बीच हुई बैठक में यह फ़ैसला लिया गया. इस बैठक में समाजवादी मुख्यमंत्रियों ने योजना आयोग के पुनर्गठन का समर्थन किया, जबकि आशा के अनुरूप कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों ने आयोग के पुनर्गठन का विरोध किया.

दिसम्बर में प्रधानमंत्री ने सोवियत ढाँचे पर आधारित योजना आयोग को एक ‘टीम इंडिया’ के मूभूत विचारधारा पर आधारित बॉडी में बदलने को लेकर मुख्यमंत्रियों से चर्चा की थी. अभी कयास लगाए जा रहे हैं कि नए आयोग में तीन से चार अलग-अलग विभागों के होने की सम्भावना है.

आगामी दिल्ली विधानसभा चुनाव में अल्पसंख्यक

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By TwoCircles.Net staff reporter,

नई दिल्ली: जैसे-जैसे दिल्ली में जल्द मुमकिन विधानसभा चुनाव की करीबी बढ़ती जा रही है, उसी तरह से तमाम राजनीतिक पार्टियों में सरगर्मी बढ़ती दिख रही है. आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने अपने-अपने उम्मीदवारों की पहली सूची हाल में ही जारी की है.

यदि इन सूचियों को अल्पसंख्यक समुदाय की नज़र से देखा जाए तो कुछ दिलचस्प समीकरण बनता दिख रहा है. भाजपा की बात न करें तो आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने कुछ चुनिन्दा क्षेत्रों में ही अल्पसंख्यक समुदाय खड़े किये हैं.



TCN file photo

विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र देखें तो कांग्रेस अक्सर नामांकन के वक्त अपने उम्मीदवारों की सूची निकालने के लिए प्रचलित रही है. लेकिन दिल्ली विधानसभा में पिछले सवा साल से मचे उथल-पुथल को देखते हुए कांग्रेस ने अपने 24 उम्मीदवारों वाली पहली सूची निकाल दी है. इस सूची को देखें तो मुट्ठीभर सीटों पर ही अल्पसंख्यक उम्मीदवार नज़र आ रहे हैं.

इन उम्मीदवारों में सबसे बड़ा नाम शोएब इकबाल का है. शोएब इकबाल मटिया महल सीट से पिछले पांच बार से विधायक रह चुके हैं. ये चुनाव शोएब ने जदयू के टिकट पर लड़े थे. लेकिन बीते साल २० नवंबर को शोएब ने कांग्रेस की सदस्यता स्वीकार कर ली थी. इस लिहाज़ से मटिया महल की सीट कांग्रेस के लिए खेल के बड़े पत्ते की तरह साबित हो रही है.

इसके बाद नाम आता है पूर्व मंत्री हारून यूसुफ का. बल्लीमारान की विधानसभा सीट से पांच बार विधायक चुने गए यूसुफ की उम्मीदवारी उनकी ही सीट से बरकरार रखी गयी है.

इसी के साथ आसिफ मोहम्मद खान ओखला सीट से, मतीन अहमद सीलमपुर विधानसभा सीट से और हसन अहमद मुस्तफाबाद सीट से चुनाव लड़ेंगे.

कांग्रेस पार्टी के ताज़े और मौजूदा विधानसभा लाइनअप तो देखकर यह कहा जा सकता है कि 2013 विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद कांग्रेस कोई भी जोखिम लेने के विचार में नहीं है. फ़िर भी यह कहना मुश्किल है कि देश में भाजपा के विजय अभियान को वह दिल्ली में कैसे रोकने में सफल होगी?

आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों की बात करें तो मटिया महल सीट से असीम अहमद खान, बल्लीमारान सीट से इमरान हुसैन, ओखला से अमनतुल्ला खान, सीलमपुर से हाजी इशराक और मुस्तफाबाद से हाजी यूनुस को टिकट दिया गया है. आम आदमी पार्टी भी अल्पसंख्यक सीटों पर कोई जोखिम लेने को तैयार नहीं है.

कांग्रेस और आम आदमी पार्टी, दोनों ही दलों ने समान सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार खड़े किये हैं. एमआईएम ने अपनी स्थिति स्पष्ट नहीं की है. हाल में संगठित हुए जनता दल परिवार ने संकेत दिए थे कि वह आम आदमी पार्टी का समर्थन कर सकती है.

भाजपा ने अभी तक अपने उम्मीदवारों को कोई सूची जारी नहीं की है. सम्भव है कि हर बार की तरह भाजपा इस बार भी नरेन्द्र मोदी के नाम पर वोट मांगने का प्रयास करे. खबर तो यह भी है भाजपा इस बार दिल्ली में अपने स्टार प्रचारकों के साथ उतरने की तैयारी में है, क्योंकि पिछली बार की तरह जीत के करीब पहुँचकर भी सरकार न बना पाने के मलाल को भाजपा पूरे तरीके से खत्म करना चाहती है.

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